By अजय कुमार | Dec 24, 2021
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को भी क्या सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा, जैसा की किसी भी चुनाव में अमूमन सभी सरकारों को करना पड़ता है। चुनाव कोई भी हो,लेकिन प्रत्येक चुनाव में करीब 3-4 प्रतिशत ऐसे वोटर अवश्य निकल आते हैं जो सरकार के कामकाज से नाखुश होकर उसके खिलाफ वोटिंग करते हैं। इन्हीं तीन-चार फीसदी वोटरों की नाराजगी के चलते कई बार सरकारें बदल भी जाती हैं। फिर यूपी का तो इतिहास ही रहा है कि यहां कोई भी पार्टी दोबारा सत्ता में नहीं आई है.बीजेपी चाहती है कि उसकी सत्ता में वापसी हो तो उसे यह मिथक भी तोड़ना होगा.आज की स्थिति यह है कि भले ही बीजेपी के नेता जीत के बड़े-बड़े दावें कर रहे हों, लेकिन अंदर खाने से यह नेता यह भी जान-समझ रहे हैं कि इस बार बीजेपी की राह बहुत ज्यादा आसान नहीं है। बीजेपी को चिंता इस बात की भी है कि कहीं हिन्दू वोट विभिन्न दलों के बीच बिखर नहीं जाए। क्योंकि इस बार सभी दल अकेले चुनाव लड़ रहे हैं, बीजेपी का सत्ता विरोधी लहर के अलावा भी दो-तीन प्रतिशत वोट अन्य दलों के खाते में चला गया तो बीजेपी को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. वहीं बात मुस्लिम वोटों की कि जाए तो उसको लेकर यही संभावना व्यक्त की जा रही है कि वह एक मुश्त साइकिल की ही सवारी करेगा। ओवैसी यूपी में इतने ताकतवर नहीं दिख रहे हैं, फिर उसकी छवि बीजेपी की बी टीम वाली भी बन गई है, जिसे तोड़ना ओवैसी के लिए आसान नहीं लग रहा है। यूपी में बीजेपी की पतली हालात को देखते हुए ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी आलाकमान यूपी में एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है।
यूपी में बीजेपी का कमजोर होने का मतलब केन्द्र में मोदी सरकार की भी ताकत का क्षीण होना तय है। इसी लिए पीएम मोदी भी यूपी विधान सभा चुनाव में पूरी ताकत झोंके हुए हैं। एक तरह से 2017 की तरह 2022 के विधान सभा चुनाव भी बीजेपी मोदी के चेहरे पर ही चुनाव की बिसात बिछा रही है। बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही उत्तर प्रदेश में सरकार विरोधी लहर की धार को कुंद कर सकते है। मोदी के साथ ही, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा,रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी पूरा यूपी मथने और योगी सरकार विरोधी लहर को ध्वस्त करने की रणनीति बनाने में लगे हैं। वहीं बीजेपी की प्रदेश इकाई की तरफ से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह अपने सहयोगी और पार्टी के संगठन मंत्री सुनील बंसल के साथ कड़ी मेहनत कर रहे हैं। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या पार्टी के पक्ष में पिछड़ों को लामबंद करने के साथ हिन्दुत्व की भी अलख जलाए हुए हैं। सभी को मोदी की लोकप्रियता के सहारे 2022 में सरकार बना लेने का भरोसा है। आज स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आगे-आगे और मुख्यमंत्री योगी उनकी छाया बने हुए हैं। कुल मिलाकर भाजपा का थिंक टेंक मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में तो योगी को ही आगे किए हुए है, लेकिन जीत दिलाने का भरोसा उसे पीएम मोदी पर ही है।
उधर, नेताओं को वोटरों की चुप्पी रास नहीं आ रही है तो बीजेपी के शीर्ष नेत्त्व को लग रहा है कि इस बार 2017 की तुलना में सामाजिक समीकरण काफी बदले हुए हैं। भाजपा की चिंता इस बात को भी लेकर है कि क्यों क्यों उसके विधायक और नेता पार्टी छोड़ते जा रहे हैं? भाजपा की अंदरुनी रिपोर्ट भी बहुत संतोषजनक नहीं है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती जातिगत समीकरण की तरफ बढ़ रहे चुनाव को साधने की है। दूसरी बड़ी चुनौती टिकट बंटवारे की है। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी आलाकमान ने इस बार विधायकों के कामकाज के आधार पर करीब 40 फीसदी विधायकों के टिकट काटने का मन बना लिया है। तीसरा कारण जनता के बीच में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि को बताया जा रहा है,येागी के सख्त तेवरों ने तमाम लोगों की सरकार से नाराजगी बढ़ा दी है तो एक बड़ा कारण यह भी है कि योगी राज में किसी भाजपा नेता या कार्यकर्ता का कोई काम नहीं होता था, क्योंकि इस पर योगी ने रोक लगा रखी थी, जबकि सपा राज में सपाई छाती ठोंक कर सरकारी अधिकारियों से काम करा लिया करते थे। पार्टी के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि जगह-जगह विकास को लोकर की जा रही घोषणाओं से भी वातावरण बदलेगा, लेकिन ऐसा ज्यादा देखने को हनीं मिल रहा है।
गोरखपुर से लेकर गाजियाबाद तक एक संदेश भाजपा को परेशान कर रहा है। भाजपा के एक नेता का कहना है कि तीनों कृषि कानूनों पर प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद पढ़े लिखे लोगों और किसानों में गलत संदेश गया है। यह भ्रम विपक्ष ने फैलाया है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि जब तीनों कानून सही थे तो वापस क्यों लिए गए? जरूर कुछ गड़बड़ थी। पश्चिमी उ.प्र. के कई जिलों में यह धारणा कुछ ज्यादा ही बन रही है। भाकियू के प्रवक्ता धर्मेन्द्र मलिक और उनकी टीम भी आग में घी डालने का काम रही है। वह गांव-गांव लोगों के बीच में जाकर इस सवाल को उठा रहे हैं। इसी प्रकार से लखीमपुर प्रकरण और उसमें केन्द्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी और उनके पुत्र की भूमिका भी बीजेपी नेताओं के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। केन्द्र सरकार भी इस मुद्दे पर असंवेदनशील हो जाती है। भाजपा के नेता भी नाम न छापने की शर्त पर मानते हैं कि टेनी को राहत देने से पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
अखिलेश यादव की विजय रथ यात्रा के रणनीतिकार संजय लाठर कहते हैं कि भाजपा के पैर के नीचे से जमीन खिसक रही है। भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले विधायकों, नेताओं की संख्या देख लीजिए। लाठर कहते हैं कि राजनीति करने वाले जमीन पर बदल रही हवा को भांपकर ही अपना पाला भी बदलते हैं। उ.प्र. सरकार के एक और पूर्व मंत्री कहते हैं कि चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचना तो घोषित होने दीजिए बीजेपी की परेशानी और भी बढ़ जाएगी। राजनीति के जानकार सवाल खड़ा कर रहे हैं कि ऐन चुनाव से पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी 4 लोगों के यहां आयकर का छापा, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के खिलाफ पुराने मामले को अब खोले जाने का आखिर क्या मतलब है? राजनैतिक पंडित कहते हैं कि विपक्षी दलों की जनसभा में भीड़ का उमड़ना लोगों की नाराजगी को ही दर्शाता है। कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी और बसपा की भी जनसभा देख लीजिए। मायावती की जनसभा में तो भीड़ होती थी, लेकिन कांग्रेस की नेता की जनसभा में भी लोग बड़ी संख्या में जुट रहे हैं।
वोटरों की नाराजगी के ताप को कम करने के लिए भाजपा ने सूबे के छह क्षेत्रों से छह रूट निर्धारित करके जन विश्वास यात्रा की शुरूआत की है। इसके माध्यम से बीजेपी का उत्तर प्रदेश की 403 विधान सीटों को साध लेने का उद्देश्य है। इसे भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह अपनी ऊर्जा दे रहे हैं। यात्रा का समापन लखनऊ में कराने की योजना है और इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संबोधित करेंगे। भाजपा के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि यह 2017 में विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर की गई परिवर्तन यात्रा जैसा माहौल बनाएगी। जन विश्वास यात्रा में भाजपा ने प्रदेश की जनता तक उ.प्र. सरकार के कामकाज, केन्द्र सरकार की प्रदेश को सौगात और डबल इंजन की सरकार के कारण फलते-फूलते उ.प्र. का संदेश देने की योजना बनाई गई है।
लब्बोलुआब यह है कि बीजेपी की सत्ता में भले ही वापसी हो जाए,लेकिन अबकी बार उसके लिए 300 का आकड़ा छूना आसान नहीं होगा.तमाम ऐसे छोटे-बड़े मुद्दे हैं जो बीजेपी के खिलाफ नजर आ रहे हैं। बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी, अपना दल समय-समय पर तेवर दिखाते रहते हैं, वहीं पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन की तपिश भले कम हो गई हो, लेकिन अब जाट आरक्षण की भी आग सुलगने लगी है। जाट आरक्षण की मांग को लेकर अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति ने पश्चिमी यूपी में अपना अभियान तेज कर दिया हैं। अखिल भारतीय आरक्षण संघर्ष समिति के प्रमुख यशपाल मलिक जाट आरक्षण की मांग लेकर पश्चिमी यूपी के तमाम जिलों में बैठकें कर रहे हैं। मेरठ, आगरा, सहारनपुर और मथुरा में जाट आरक्षण को लेकर समाज के बीच बैठक हो चुकी है। अगर जाट आंदोलन अपनी मांगों को लेकर आंदोलित हुआ फिर बीजेपी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यशपाल मलिक ने कहा कि जाटों के आरक्षण के मुद्दों पर हम अब तक सरकार की सहमति का इंतजार कर रहे थे, लेकिन अब जाट आरक्षण गांवों से शहरों तक होगा और बिना मांग पूरे हुए हम नहीं शांत बैठेंगे। यशपाल ने कहा कि जाट समाज पश्चिमी यूपी की 100 सीटों पर अपना असर रखता है।
- अजय कुमार