नीतीश के लिए कोरोना की चुनौतियों से निपटना आसान नहीं, करना होगा स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त

By अंकित सिंह | Apr 03, 2020

पूरा देश इस वक्त कोरोना वायरस के संक्रमण में है। लगभग सभी राज्यों में कोरोना वायरस से संक्रमित लोग पाए गए हैं। बिहार में भी इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है। बिहार में अब तक कोरोना वायरस से लगभग 29 लोग संक्रमित हैं जिसमें से एक की मौत हो चुकी है। बिहार में इस साल विधानसभा के चुनाव है। ऐसे में अगर यह आंकड़ा बिहार में बढ़ता है तो कहीं ना कहीं सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। नीतीश कुमार लगातार हालात का जायजा ले रहे हैं और अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहे हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए नीतीश सरकार ने कई घोषणाएं भी की है। इस कठिन परिस्थिति में लोगों को राहत पहुंचाने पर जोर दिया गया है। बिहार सरकार की चिंता याहां रहने वाले लोगों के साथ-साथ उन प्रवासी मजदूरों के लिए भी है जो फिलहाल लॉक डाउन की वजह से देश के विभिन्न कोनों में फंसे हुए हैं। लोगों को सीधा राहत पहुंचाने के लिए उनके खाते में एक-एक हजार रुपे का भुगतान किया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण और लॉक डाउन से निपटने के लिए राशन कार्ड धारियों को भी सहायता के रूप में 1-1 हजार प्रति परिवार की दर से भुगतान किया गया है। नीतीश कुमार ने यह भी फैसला लिया है कि मुख्यमंत्री राहत कोष, बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग के तहत राज्य के बाहर फंसे लोगों के लिए ₹1000 की सहायता राशि दी जाएगी। सीएम नीतीश कुमार ने डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मियों को 1 माह का प्रोत्साहन राशि देने का ऐलान किया है। यह राशि वेतन के अलग से दिया जाएगा। सरकार ने राशन कार्ड धारी परिवारों को 1 महीने का राशन मुफ्त में देने की घोषणा की है। इसके अलावा वृद्धजन पेंशन, दिव्यांग पेंशन, विधवा पेंशन और वृद्धावस्था पेंशन के तहत सभी को 3 महीने की पेंशन तत्काल अग्रिम तौर पर दी जाएगी। इसके अलावा 1 से लेकर 12वीं तक के छात्रों को 31 मार्च तक की छात्रवृत्ति दी जाएगी।

 

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चिकित्सा के स्तर पर देखें तो राज्य में पटना के दो अस्पतालों को कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए सुरक्षित कर दिया गया है। नालंदा मेडिकल कॉलेज और आईजीआईएमएस पूर्णत कोरोना मरीजों के लिए हो गया है। इसके अलावा भागलपुर, गया और दरभंगा में भी कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के इलाज के लिए व्यवस्थाएं की जा रही है। राज्य के लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में खासकर के जिला स्वास्थ्य केंद्रों में कोरोना से निपटने के लिए हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है। अस्पतालों में आइसोलेशन बेड्स की भी व्यवस्था की जा रही है। लेकिन बिहार की दिक्कत यह है कि वहां की स्वास्थ्य सुविधाएं भी लचर अवस्था में है। पिछले साल मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज में जिस तरीके से बच्चों की मौत हुई उसके बाद से वहां के पोल लगातार खुल रहे है।

 

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कोरोना वायरस महामारी के दौरान भी बिहार की चिकित्सीय क्षमता पर सवाल उठ रहे है। दरअसल राज्य में जिस रफ्तार से कोरोना संक्रमित मरीजों का टेस्ट किया जाना चाहिए वैसा नहीं हो रहा है। यही कारण है कि संक्रमित मरीजों की संख्या अभी काफी कम है। इसके अलावा राज्य में चिकित्सा कर्मियों के लिए जरूरी उपकरण भी नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में स्वयं नीतीश कुमार ने माना कि उन्होंने 500000 पीपीई किट की मांग की थी लेकिन सिर्फ 4000 ही मिले हैं। इसके अलावा 10 लाख एन-95 मास्क की जरूरत है लेकिन सिर्फ 10000 ही मिले है। दूसरे राज्यों से लौटे लोगों को राज्य की सीमाओं पर रखा जा रहा है। उन्हें 14 दिन रखने के बाद ही राज्य में घुसने की इजाजत मिल रही है। साथ ही साथ बिहार पुलिस लगातार क्षेत्रों का दौरा कर रही है। कुल मिलाकर हम इतना कह सकते हैं कि नीतीश कुमार के लिए कोरोना कठिन चुनौती बनकर आया है जिससे निपटना उनके लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है।


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