दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल लगातार नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के लागू होने का बेहूदा, बेतुका एवं उच्छृंखल विरोध कर रहे हैं। वे एवं अन्य विपक्षी दलों के नेता सीएए रूपी उजालों पर कालिख पोतने का प्रयास करते हुए आकाश में पैबन्द लगाना चाहते हैं और सछिद्र नाव में सवार होकर राजनीति-सागर की यात्रा करना चाहते हैं। ऐसा करते हुए वे न केवल आम जनता को गुमराह कर रहे हैं, बल्कि अराजकता का माहौल निर्मित कर रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी में लाखों की संख्या में पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान से हिंदू व सिख आने से चोरी, रेप और अपराध की घटनाएं बढ़ने की बात कहकर केजरीवाल ने इन लोगों की भावनाओं को आहत किया हैं। केजरीवाल के बयान भ्रामक, बेबुनियाद एवं विध्वंसात्मक इसलिये है कि सीएए नये आने वाले हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध एवं पारसी लोगों पर लागू ही नहीं होगा, बल्कि देश में वर्ष 2014 एवं उससे पहले आये ऐसे शरणार्थियों को सीएए के अन्तर्गत नागरिकता देने का कानून हैं। अब इससे नये लोगों के आने, बेरोजगारी बढ़ने एवं कानून-व्यवस्था चरमरा के प्रश्न कहां से आ गये? विपक्षी दल इस कानून के सन्दर्भ में कपट और झूठ का सहारा लेकर जिस तरह दुष्प्रचार में जुट गए हैं, वह केवल अप्रत्याशित ही नहीं, खतरनाक भी है। वोट बैंक की बेहद सस्ती, घटिया और गंदी राजनीति के चलते किया जा रहा यह खतरनाक एवं देश तोड़क दुष्प्रचार न केवल लोगों को बरगलाने, बल्कि उकसाने वाला भी है। इस तरह का विरोध समय एवं शक्ति का अपव्यय है तथा बुद्धि का दिवालियापन है। यह लोकतंत्र के मूल्यों को धुंधलाने एवं ध्वस्त करने की कुचेष्ठा है।
सीएए की मूल आत्मा को समझे बिना उसका विरोध करना एवं मोदी सरकार पर कीचड़ उछालना बौखलाहट का द्योतक हैं। केजरीवाल का यह कहना कि सीएए के साथ, भाजपा सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में गरीब अल्पसंख्यकों के भारत आने के गेट खोल दिए हैं। यह 1947 से भी बड़ा माइग्रेशन होगा। क्या केजरीवाल ने सीएए का नया कानून पढ़ा है, उसमें कहीं भी ऐसी किसी स्थिति का उल्लेख है? केजरीवाल की ही तर्ज पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को यह तो समझ नहीं आया कि नागरिकता कानून वैध है या नहीं, लेकिन उन्होंने यह ठान लिया कि वह बंगाल में उसे लागू नहीं होने देंगी। आखिर वह होती कौन हैं इस कानून को न लागू करने वाली? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि इस कानून का किसी राज्य सरकार से कोई लेना-देना ही नहीं। नागरिकता देना केवल केंद्र सरकार का अधिकार है। यह बुनियादी बात तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को भी समझनी होगी, क्योंकि उनकी ओर से भी यह कहा जा रहा है कि वह इस कानून को अपने राज्य में लागू नहीं होने देंगे। यह हास्यास्पद एवं विरोधीभासी स्थिति है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस विचित्र नतीजे पर पहुंच गए कि नागरिकता कानून को अमल में लाकर केंद्र सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के लोगों को भारत लाकर उन्हें नौकरियां देने और उनके लिए घर बनाने का काम करने जा रही है। जबकि सीएए पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं बांग्लादेश से किन्हीं नये अल्पसंख्यकों का भारत लाकर बसाने, उन्हें घर एवं नौकरी देने का कानून है ही नहीं। कोई भी यह समझ सकता है कि वह संकीर्ण राजनीतिक कारणों से नागरिकता कानून की मनमानी व्याख्या कर रहे हैं और इस तथ्य की जानबूझकर अनदेखी कर रहे हैं कि यह कानून उक्त तीन देशों के अल्पसंख्यकों को बुलाकर नागरिकता देने का नहीं है।
केजरीवाल के बचकाने एवं बेहूदे बयानों से हिन्दू एवं सिख शरणार्थियों में काफी गुस्सा देखा गया है। उन पर चोरी, रेप और अपराध जैसे आधारहीन आरोप लगाने से उनकी भावनाएं आहत हुई हैं, जो शरणार्थी वर्षों से न्याय होने की उम्मीद लगाये इस कानून की प्रतीक्षा कर रहे थे, उन पर घटिया राजनीति के चलते तरह-तरह के वार उनको पीड़ा दे रहे हैं। केजरीवाल, ममता एवं एमके स्टालिन का मोदी-विरोध के नाम पर देश-विरोध एवं कानून विरोध पर उतर जाना उनकी स्तरहीन राजनीति को ही दर्शा रहा है। मोदी का विरोध कोई नई बात नहीं है। कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि इन नेताओं की विरोध करना ही नियति हैं। आश्चर्य इस बात का है कि विरोध की तीव्रता एवं दीर्घता के बावजूद मोदी के अस्तित्व पर कोई आंच नहीं आ सकी। जहां तक सीएए के लागू होने का प्रश्न है तो यह अब एक कानून बन चुका है और उसे लागू होने से कोई नहीं रोक सकता।
दिल्ली का मुख्यमंत्री होने के नाते अरविंद केजरीवाल को पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान से आये हिंदू व सिख शरणार्थियों के प्रति सहानुभूति होनी चाहिए, उनकी दीन दशा से परिचित होने के साथ ही उनके प्रति न्यूनतम संवेदनशीलता का भी उन्हें परिचय देना चाहिए। यदि विरोधी दलों को यह लगता है कि नागरिकता कानून ठीक नहीं तो वह उससे असहमति जताने और कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस नेताओं की तरह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को स्वतंत्र हैं, लेकिन इसके नाम पर उन्हें लोगों को भड़काने से बाज आना चाहिए। उनकी इसी भड़काऊ राजनीति के कारण चार साल पहले देश में जगह-जगह हिंसा हुई थी और शांतिपूर्ण विरोध के बहाने आगजनी की गई थी। दिल्ली में तो शाहीन बाग इलाके में विपक्षी दलों के सहयोग और समर्थन से एक व्यस्त सड़क घेरकर महीनों तक धरना चलाने से आम जनता पीड़ित एवं परेशान हुई। विद्वेष और वैमनस्य पैदा करने वाले इसी धरने के चलते दिल्ली में भीषण दंगा हुआ था, जिसमें 50 से अधिक लोग मारे गए थे। क्या विपक्षी दल अशांति, हिंसा एवं अराजकता की आग फैलाकर फिर से अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं? यदि नहीं तो फिर उन्हें नागरिकता कानून के विरोध में जबान संभालकर बोलना चाहिए। विरोध का भी कोई उद्देश्य और स्तर होता है। निरुद्देश्य एवं स्तरहीन विरोध, विरोधी खेमे की स्वार्थपूर्ण मनोवृत्ति, ईर्ष्या एवं विध्वंस की नीति का ही स्वयंभू प्रमाण है।
सीएए लागू होने को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीति तेज होने लगी है, यह आगामी लोकसभा चुनाव का एक मुख्य मुद्दा होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। भाजपा नेता इसे नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा उठाया गया ऐतिहासिक कदम बता रहे हैं तो वहीं विपक्ष इसका विरोध कर रहा है। लेकिन मोदी सरकार का यह कदम ऐतिहासिक एवं साहसिक तो है, क्योंकि आजादी के बाद से अब तक शरणार्थियों ने जो तकलीफें झेली हैं, जो कष्ट एवं उपेक्षाओं का जीया है, वह उन्हें नागरिकता मिलने से ही दूर हो सकती है। अब उन्हें नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है तो उसका स्वागत होना चाहिए। केजरीवाल तो शरणार्थियों को मिल रही नागरिकता की स्वतंत्र सांसों का स्वागत की बजाय विरोध कर रहे हैं, यह कैसी राजनीति है? यह कैसे राजनेता है? यह कैसा राजनीतिक चरित्र है? केजरीवाल एवं ममता की मानें तो सीएए लागू होने के बाद अगर पड़ोसी देशों के डेढ़ करोड़ अल्पसंख्यक भी भारत आ गए तो यह स्थिति ‘खतरनाक’ हो जाएगी।’ कोई उनसे पूछे कि इस कानून में ऐसा कहा लिखा है? यह गन्दी गैर-जिम्मेदाराना राजनीति का द्योतक है, जिसका जबाव आम-जनता आगामी लोकसभा चुनाव में देगी। इन नेताओं ने मोदी के खिलाफ एवं राष्ट्रहीत की नीतियों एवं योजनाओं पर कीचड़ उछालने की जो हरकतें की हैं, सीएए तक पहुंच कर वे पराकाष्ठा तक पहुंच गयी हैं। पर इससे मोदी का वर्चस्व कभी धूमिल होने वाला नहीं हैं। क्योंकि उनकी नीति विशुद्ध है और सैद्धान्तिक आधार पुष्ट है। विरोध करने वाले नेता स्वयं इस बात को महसूस करते हुए बौखलाये हुए हैं। अपनी बौखलाहट एवं सरकती राजनीतिक जमीन को बचाने के लिये वे जनता को गुमराह करने के लिये और उनका मनोबल कमजोर करने के लिये सीएए रूपी उजालों पर कालिख पोत रहे हैं, वे धूर्त तथ्यों से विपरीत जाकर अनर्गल प्रलाप कर रहे है, इससे उन्हीं के हाथ काले होने की संभावनाएं हैं। ऐसे नासमझ नेताओं को सद्बुद्धि आए, वे अपना समय एवं श्रम स्वस्थ एवं आदर्श राजनीति में लगाएं तो लोकतंत्र भी मजबूत होगा एवं जनता को भी विकास की नयी दिशाएं दिखाई देगी।
-ललित गर्ग
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)