चांद-सूर्य के बाद साल के पहले ही दिन इसरो ने XPoSat के जरिए अपने इरादे किए साफ, 2024 के लिए भारत का अंतरिक्ष मिशन काफी दिलचस्प रहने वाला है

By अभिनय आकाश | Jan 02, 2024

हमारे ब्रह्मांड के बारे में सबसे अधिक सर्च किया जाने वाला प्रश्न कौन सा है? जवाब है ब्लैक होल क्या है? यह सदियों से मानव जाति के लिए रहस्य है। जितना अधिक हम जानते हैं उतना अधिक जानने की और आवश्यकता है। भारत ने नए साल की शुरुआत ब्रह्मांड के सबसे बड़े रहस्यों में से एक ब्लैक होल को सुलझाने की कोशिश में की है। ब्लैकहोल का बेहतर अध्ययन और समझने के लिए इसरो ने अपना पहला एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट लॉन्च किया, जिसे XPoSat के नाम से भी जाना जाता है। साल के पहले दिन ही इसरो ने दुनिया का दूसरा और देश का पहला ऐसा सैटेलाइट लॉन्च कर दिया जो पल्सर ब्लैक होल आकाश गंगा रेडीशन की जानकारी हासिल करेगा। इसके साथ ही 10 पेलोड भी लॉन्च किए गए। आपको बता दें कि इससे पहले नासा ने इस तरह के सैटेलाइट की लॉन्चिंग की थी। 

यह इसरो के लिए सबसे अधिक प्रोडक्टिव साल रहा। जहां उसने सात सफल मिशनों को अंजाम दिया, जिनमें दो हाई-प्रोफाइल मिशन चंद्रयान -3 और आदित्य-एल 1 शामिल थे। कई प्रारंभिक परीक्षण अभी भी शेष हैं, गगनयान अब 2025 के लिए निर्धारित है। इस बीच, इसरो ने अगले कुछ वर्षों में हासिल करने के लक्ष्य की एक प्रभावशाली सूची का अनावरण किया। इनमें 2024 में नासा के साथ संयुक्त प्रयास में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर एक अंतरिक्ष यात्री भेजना, अगले चार वर्षों में चंद्रमा से नमूना वापसी मिशन चंद्रयान-4, 2028 तक अंतरिक्ष स्टेशन भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और 2040 तक चंद्रमा पर एक इंसान को उतारना शामिल है। 

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चंद्रयान-3

इनमें से कई योजनाएं अगस्त में चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के बाद ही पक्की हुईं। यह तथ्य कि संयुक्त राज्य अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ ने 1960 और 1970 के दशक में चंद्रमा पर लैंडिंग को एक नियमित कार्यक्रम बना दिया था, किसी भी तरह से भारत की उपलब्धि की विशालता को कम नहीं करता है। पाँच दशक बाद, अभी भी केवल दो और देश हैं जो चंद्रमा पर गए हैं - चीन और भारत। चंद्रयान-3 अधिक सुखद था क्योंकि भारत का पहला प्रयास 2019 में चंद्रयान-2 के रूप में चंद्रमा की सतह पर उतरने के आखिरी कुछ सेकंड में ही चूक गया था। इस बार इसरो सटीक लैंडिंग कराने में कामयाब रहा।

नई साझेदारियाँ

इसरो की बढ़ती क्षमताओं के परिणामस्वरूप अधिक अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियाँ भी हुईं। इस साल जून में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका यात्रा के दौरान, भारत ग्रहों की खोज के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्टेमिस समझौते में शामिल हुआ। आर्टेमिस समझौते सिद्धांतों का एक समूह है जिसका पालन करने के लिए देश चंद्रमा और अन्य ग्रहों की शांतिपूर्ण और सहयोगात्मक खोज की अपनी खोज में सहमत होते हैं। आर्टेमिस समझौते में शामिल होने का भारत का निर्णय दोनों देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को पहले से कहीं अधिक करीब लाता है। लेकिन यह एकमात्र अंतरिक्ष मिशन नहीं है जिसे उसने 2024 के लिए तैयार किया है। आपको 2024 में इसरो की तरफ से कई ऐसे मिशन के बारे में बताते हैं। 

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इसरो का सैटेलाइट रवाना, खुलेंगे ब्लैक होल के रहस्य

भारत की स्पेस एजेंसी ISRO ने ब्लैक होल्स और सुपरनोवा जैसी सुदूर चीजों की स्टडी करने के लिए सैटलाइट सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया। एक्स-रे पोलरिमीटर (XPoSat) नाम का सैटलाइट यह स्टडी करेगा। XPoSat को 5 साल तक काम करने के हिसाव से डिजाइन किया गया. है। यह एक्स-रे के अहम डेटा जुटाएगा। अमेरिका के वाद भारत दूसरा देश वन गया है जो ऐसी स्टडी करेगा। इससे पहले NASA ने 2021 में IXPE सैटलाइट लॉन्च कर स्टडी की थी। ISRO चीफ एस. सोमनाथ ने कहा कि 2024 गगनयान की तैयारियों का साल होगा। हम इस साल 12-14 मिशनों के लिए तैयार है। 

क्या है XPoSat?

XPoSat अडवांस्ड ऑब्जर्वेटरी है। इसमें ब्लैक होल और न्यूट्रान तारों की स्टडी के लिए दो पेलोड POLIX (पोलारिमीटर इंस्ट्रूमेंट इन एक्स-रे) और XSPECT (एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग) लगे हैं। इसमें POLIX को रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट ने बनाया है। यह दुनिया का पहला इंस्ट्रूमेंट है, जो 8 से 30 keV यानी किलो इलेक्ट्रॉन वोल्ट एनर्जी बैंड पर काम करेगा। यह खगोलीय पिंडों से पैदा होने वाले पोलराइजेशन की डिग्री और कोण को मापेगा। दूसरा पेलोड - XSPECT 0.8- 15 keV एनर्जी बैंड में स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी देगा यानी यह एक्सरे स्रोतों के वर्णक्रमीय और ध्रुवीकरण विशेषताओं की स्टडी आसान बनाएगा।

क्या है इस लॉन्च की अहमियत ?

XPoSat एक्स-रे के अहम डेटा जुटाएगा, जिससे हमें ब्रह्मांड को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी। सामान्य टेलिस्कोप हमें बताता है कोई खगोलीय चीज कैसी दिखती है, लेकिन यह पता नहीं चल पाता कि ये कैसे बनी हैं और इनका व्यवहार कैसा है। इन तारों से आने वाली तरंगों के अन्य रूपों जैसे एक्स-रे, गामा-रे, ब्रह्मांड या रेडियो तरंगों से डेटा इकट्ठा करते हैं। एक्स-रे जवरदस्त टकराव, बड़े विस्फोट, तेज घूर्णन, मजबूत चुंबकीय क्षेत्र से आते हैं। इनमें ब्लैक होल्स होते हैं। उनकी स्टडी के लिए खास चीजों की जरूरत होती है। यह एक्सरे टेलिस्कोप इसी में मदद करेगा।

भारतीय स्पेस स्टेशन के लिए क्यों जगी उम्मीद?

इस मिशन के साथ फ्यूल सेल पावर सिस्टम (FCPS) भी भेजा गया है। इसमें केमिकल रिएक्शन के जरिए बिजली पैदा की जाती है, जिससे पावर सप्लाई लंबे समय तक रहती है। यह फ्यूल सेल स्पेस मिशन के लिए ऊर्जा का टिकाऊ स्रोत बन सकता है। यह लंबी अवधि के स्पेस मिशन के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। भारत के स्पेस स्टेशन के लिए यह अहम सावित हो सकता है। इसरो का लक्ष्य है कि 2035 तक भारत का अपना स्पेस मिशन हो। इसके साथ स्पेस टेक स्टार्टअप ध्रुव स्पेस, वेलाट्रिक्स एयरोस्पेस, TM2स्पेस के पेलोड भी PSLV रॉकेट के साथ भेजे गए हैं। कुल 10 पेलोड इस रॉकेट के साथ भेजे गए हैं।

इन मिशनों पर भी नजर

बहुप्रतीक्षित NASA-ISRO सैटेलाइट एपर्चर रडार (NISAR) अगले साल की पहली तिमाही के लिए निर्धारित है। बाद में, अंतरिक्ष यात्रियों के बिना गगनयान की एक परीक्षण उड़ान निर्धारित की गई है। एनआरएफ के प्रभाव स्पष्ट दिखाई देने लगेंगे। विज्ञान और इंजीनियरिंग स्नातकों का एक बड़ा समूह, प्रयोगशालाओं और अनुसंधान संस्थानों का एक बड़ा नेटवर्क और प्रीमियम वैज्ञानिक अनुसंधान में सक्रिय भागीदारी के बावजूद, भारत विभिन्न अनुसंधान संकेतकों पर कई देशों से पीछे है।

जीडीपी का केवल 0.65% वैज्ञानिक अनुसंधान पर खर्च 

भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.65% वैज्ञानिक अनुसंधान पर खर्च करता है, जो वैश्विक औसत 1.79% से काफी कम है। भारत में कुल वैज्ञानिक शोधकर्ताओं में महिलाएं केवल 18% हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर यह संख्या 33% है। भारत में प्रति मिलियन जनसंख्या पर शोधकर्ताओं की संख्या, 262, ब्राज़ील (888), दक्षिण अफ्रीका (484) या मैक्सिको (349) जैसे विकासशील देशों से भी काफी कम है। एनआरएफ के प्रदर्शन का आकलन इन संकेतकों को सुधारने की उसकी क्षमता पर किया जाएगा।


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