By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 26, 2020
यरूशलम। इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि वह कब्जे वाले वेस्ट बैंक के बचे अन्य हिस्सों को भी अपने देश में शामिल करेंगे। यह एक ऐसी योजना है जिसका विरोध उनके महत्वपूर्ण सहयोगी भी कर रहे हैं। वहीं व्यापक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन के साथ फलस्तीनी लोगों का मानना है कि पूरा वेस्ट बैंक उनका है। वह लगातार इसे लौटाने की मांग करते रहे हैं। फलस्तीन के लोग इस क्षेत्र को अपने भविष्य के स्वतंत्र देश का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बताते हैं। इस क्षेत्र के बड़े हिस्से पर कब्जा करना पूरी तरह से ‘दो देश समाधान’ की उम्मीद को क्षीण कर देगा। प्रत्यक्ष तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के साथ दोस्ताना संबंध का हवाला देते हुए नेतन्याहू ने सोमवार को कहा कि इज़राइल के पास मध्यपूर्व के मानचित्र को फिर से बनाने का ‘ऐतिहासिक मौका’ है और इसे गंवाना नहीं चाहिए। इज़राइल की मीडिया ने उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया है कि वह जुलाई में कदम उठाएंगे। उन्होंने अपने रूढ़िवादी लिकुड पार्टी के सदस्यों से कहा, ‘‘ यह एक ऐसा अवसर है जिसे हम जाने नहीं देंगे।’’
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प्रधानमंत्री ने कहा कि वेस्ट बैंक को कब्जे में लेने का इससे बड़ा ‘ ऐतिहासिक अवसर’ इज़राइल की 1948 में हुई स्थापना के बाद से अब तक नहीं मिला था। इन टिप्पणियों से अरब और यूरोपीय सहयोगियों के साथ इज़राइल के मतभेद बढ़ सकते हैं और वाशिंगटन में भी इज़राइल को लेकर पार्टियों के बीच विवाद और भी गहरा सकता है। इज़राइल ने मध्यपूर्व युद्ध में 1967 में वेस्ट बैंक पर कब्जा कर लिया था और वहां करीब 500,000 यहूदियों को बसा दिया था लेकिन अंतरराष्ट्रीय विरोध की वजह से कभी भी उसने औपचारिक तौर पर इसे इज़राइल का क्षेत्र करार नहीं दिया। लेकिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों की तुलना में ट्रंप का रुख इसको लेकर नरम रहा है। इस साल नवंबर में ट्रंप का राष्ट्रपति पद पर फिर से चुना जाना तय नहीं माना जा रहा है और ऐसे में इज़राइल में कट्टर रुख रखने वालों ने नेतन्याहू से अपील की है कि वह इस क्षेत्र में कब्जे की योजना को लेकर तेजी से कदम उठाएं। यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने कहा कि इस तरह के कब्जे से अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा और इसे रोकने के लिए वे सभी राजनयिक क्षमताओं का इस्तेमाल करेंगे। वहीं इसको लेकर फलस्तीन ने इस्लामिक आतंकवादियों के खिलाफ साझा संघर्ष में इज़राइल के साथ रक्षा संबंध खत्म कर लिए हैं। पर्दे के पीछे इज़राइल के साथ सबंध रखने वाले प्रभावशाली अरब देश सऊदी अरब ने भी इसका विरोध किया है और अरब लीग ने भी इसे ‘ युद्ध अपराध’ बताया है। वहीं जॉर्डन और मिस्र भी इसका विरोध कर रहे हैं। केवल इन्हीं दो अरब देशों के इजराइल के साथ शांतिपूर्ण संबंध हैं।