क्या फेमिनिज्म के खिलाफ है रामायण? वर्तमान दौर में राम राज्य की अवधारणा कितनी प्रासंगिक है

By अभिनय आकाश | Jan 16, 2024

कहा जाता है कि देवादिदेव महादेव के तीन पुत्र हैं 

देव, दानव और मनुष्य

महादेव के पास एक लाख मंत्र थे जिसे उन्होंने तीनों बच्चों में 33-33 हजार के रूप में बांट दिए लेकिन 1 हजार मंत्र महादेव के पास शेष रह गए। महादेव के तीनों बच्चों ने शेष बचे मंत्रों को भी बांटने की मांग कर दी। फिर महादेव ने 333-333 के रूप में देव, दानव और मनुष्यों को बराबरी से यह भी वितरित कर दिए। फिर भी एक मंत्र महादेव के पास शेष रह गया और बच्चों को इस पर भी संतुष्टि नहीं हुई। तब महादेव ने उस एक मंत्र में 32 अक्षरों में से 10-10 तीनों में वितरित कर दिए। लेकिन जो दो अक्षर शेष रह गए वो रा और म थे जिसे उन्होंने अपने कंठ में धारण कर लिया। उसी का परिणाम है कि कालकूट हलाहल विष भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। राम का चरित्र ही इतना विलक्षण है कि वह आपको निशंक कर देता है। 

500 वर्षों की तपस्या का परिणाम अब अयोध्या में विराजेंगे भगवान राम। अयोध्या एक लक्षण है, मजहबी असहिष्णुता के विरुद्ध प्रतिकार का, अध्याय प्रतीक है भारत राष्ट्र के आहत स्वाभिमान का, अयोध्या एक संकल्प है अपनी सांस्कृतिक धरोहर से हर कीमत पर जुड़े रहने का। जबकि राम आपके अंदर का योद्धा आपके अंदर का मनुष्य जगाते हैं। राम एक रसायन है जो किसी भी खराब चीज में इंवॉल्व होकर उसे ठीक कर देते हैं। आज हम रामायण, राम और मॉडर्न एरा में इसकी प्रासंगिकता को लेकर चर्चा करेंगे। हमारे साथ बात करने के लिए जुड़ रहे हैं शान्तनु गुप्ता जी। इन्होंने बतौर इन्वेस्टमेंट बैंकर स्विट्जरलैंड में काम किया है फिर कॉरपोरेट कल्चर को छोड़कर भारत में वापसी की। ये रामायण स्कूल के संस्थापक भी हैं। 2017 में उत्तर प्रदेश विकास एक प्रतीक्षा नामक किताब से शुरुआत करते हुए 5 साल बाद इनकी मॉन्क हू ट्रांसफॉर्म उत्तर प्रदेश आई और फिर ग्राफिक उपन्‍यास ‘अजय से योगी आदित्यनाथ तक’ । यानी पिछले 6 साल में उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तीन किताबें लिख डाली। हाल ही में रामायण पर भी इनकी नई किताब आई है। शांतनु गुप्ता जी से हमने रामायण और इसकी प्रासंगिकता पर बात की।

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सवाल: रामायण के तीन ऐसी बड़ी सीख जो आपको लगता है कि आज के दौर में हर इंसान के लिए सबसे जरूरी हैं?

जवाब: तीन बताना तो बहुत ही मुश्किल है क्योंकि मेरी किताब में ही 25 है। मैं इसकी एक सीरिज भी लिखूंगा। बहुत सारी सीख है। लेकिन आपने पूछा है तो मैं इंगित करने की कोशिश करता हूं। रामायण में केवल श्री राम नहीं। हर व्यक्ति अच्छे कंडक्ट की पराकाष्ठा है। जैसे दशरथ। राम अगले दिन राजा बनने वाले थे। पूरे दरबार ने मिलकर ऐसा सोचा और तय किया कि राम सबसे सर्वोत्तम हैं और उन्हें कौशल नरेश बनाया जाए। पूरे शहर में हर्षोल्लास है। शाम तक ये खबर आती है कि कैकई और मंथरा ने मिलकर ऐसी प्लानिंग की है कि उन्होंने पूरी परिस्थिति को ही 180 डिग्री घुमा दिया। अपने दो वरदानों के माध्यम से ऐसी व्यवस्था कर दी कि राम को 14 सालों का वनवास भेजा जाएगा। भरत को राजा बनाया जाएगा। दशरथ जी के पास दो विकल्प थे कि इस बात को माने या न माने। अगर मान लेते हैं तो अयोध्या इतना बड़ा राजा खो देगा और वो अपने पुत्र को भी अपने से दूर कर देंगे। उनके पास हर वो कारण थे कि कैकई की बात को न माना जाए। कैकई और उनके बीच का जो वादा था वो उन दोनों के बीच की बात थी। उसका कोई आज की तरह लिखित प्रमाण नहीं था। कोई राजकीय पेपर पर साइन नहीं हुए थे। उसका कोई साक्षी भी नहीं था। वो उस वादे से वादा खिलाफी कर सकते थे। लेकिन दशरथ ने क्या कहा रघुकुल रीत सदा चली आए, प्राण जाए पर वचन न जाए। मेरे प्राण चले जाएंगे, लेकिन मेरा वचन नहीं जाएगा। पुत्र धर्म और राज धर्म के बीच राज धर्म सबसे ऊपर है। वचन की प्रथा को निभाना पड़ेगा। अगर मैं राजा होकर अगर अपनी प्रतिज्ञा को नहीं मानूंगा तो प्रजा पर इसका असर क्या पड़ेगा। समाज में प्रतिज्ञा का अस्तित्व बना रहे इसलिए उन्होंने अपने बेटे को 14 साल वनवास में जाने दिया। हम सुबह एक वादा करते हैं अपनी पत्नी से अपने बच्चों से दोस्त से और शाम तक तोड़ देते हैं। उसे हम जस्टिफाई भी करते हैं। उनके प्राण चले गए लेकिन उन्होंने वचन नहीं छोड़ा।

सवाल: राम मंदिर का जिक्र होता है तो राम राज्य की बातें भी अपने आप इससे जुड़ जाती हैं। राज में व्यक्ति का महत्व होता है लेकिन जब बात राज्य की आती है तो विचार और व्यवस्था महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसे में शान्तनु गुप्ता के हिसाब से राम राज्य क्या है? 

जवाब: राम राज्य या राम का चरित्र एक मर्यादा की पराकाष्ठा का या फिर एक राज्य को सबसे अच्छे तरीके से चलाने के की पराकाष्ठा का प्रतीक है। तभी महात्मा गांधी ने जब गु़ड गर्वेनेंस की बात करी थी तो उसे राम राज्य से परिभाषित किया था। आज भी हम कहीं पर सुशासन देखते हैं तो कहते हैं राम राज्य है। राम का जीवन जब वो राजा थे या दशरथ के पुत्र थे जब वो वन में जा रहे थे। मर्यादा से भरा पड़ा है। 15-16 साल की उम्र में उनके गुरु विश्वामित्र जंगल में लेकर जा रहे थे कि तारका, सुबाहु, मारिच का सामना करना है। वो हमारी पूजाओं में विघ्न डाल रहे हैं, उसका समाधान निकालना है। जंगल में पहुंचने पर तारका सामने होती है। वहां पर विश्वामित्र जी कहते हैं कि अपना सबसे पैना बाण निकालकर उसका वध कीजिए। श्रीराम जैसे ही ऐसा करने के लिए बाण निकालते हैं उन्हें अर्जुन जैसा विसाध आता है। जैसे अर्जुन को महाभारत में कुरुक्षेत्र में विसाध, चिंता आई थी। वैसा ही राम के सामने भी होता है। वो कहते हैं कि मुझे तो कहा गया कि महिलाओं पर हाथ नहीं उठाना है तो ये तो महिला है। मैं अपने गुरु की शिक्षा का अवहेलना नहीं कर सकता। सोचिए जरा आपके पास कितनी बड़ी विपदा खड़ी है। अगर तारका को आप नहीं मारेंगे तो वो आपको मार देगी। जीवन मरण की स्थिति में भी आपका मॉरल कंपस ऑन है। हमारी छोटी सी फ्लाइट छूट रही होती है तो हम सिंग्नल तोड़ देते हैं। हम इसे जस्टिफाई भी करते हैं कि रोज तो सिग्नल फॉलो करते हैं। आज फ्लाईट छूट रही है। राम आज हजारों साल बाद इसलिए नहीं चर्चा में हैं और उनका मंदिर बन रहा है कि वो बहुत प्रैक्टिल व्यक्ति थे। वो मर्यादा पुरुषोत्तम थे। फिर विश्वामित्र और श्रीराम में चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि तारका केवल एक महिला के शरीर में है। वो बच्चों, महिलाओं, पुरुषों, ऋषिओं का वध करती है। इसलिए एक धर्म की स्थापना के लिए उस नीति को तोड़ना सही है। जब राम इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं तभी वो बाण चलाते हैं। रामायण आपको बार-बार पढ़ते रहना चाहिए हर बार आपको एक नई सीख मिलेगी।

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सवाल: भारत में राम राज्य शब्द को लेकर कई भ्रांतियां रही हैं। कई विद्वान इसके प्रयोग से बचते रहे हैं। 1930 में नवजीवन में पहला लेख महात्मा गांधी ने स्वराज्य और रामराज्य लिखा उसमें भी इसकी झलक आपको दिख जाएगी जब बापू एक जगह लिखते हैं कि यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो उसे मैं धर्मराज्य कहूंगा। क्या आपको नहीं लगता कि इसके एक संकीर्ण अर्थ को राजनीतिक रूप से स्थापित करने की अज्ञानतापूर्ण कोशिश हो रही है? 

जवाब: महात्मा गांधी को कई लोग जो पसंद भी करते हैं वो उनकी एक बात से वाकिफ नहीं होते हैं कि उन्होंने सेक्युरिज्म को एक्ट्रीम पर ले जाने की कोशिश करी। जब मोपला के दंगे भी हुए तो उन्होंने एक तरह से मुस्लिम पक्ष का साथ दिया। लेकिन मैं रामराज्य को रामराज्य ही कहूंगा। धर्मराज्य भी अच्छा शब्द है। लेकिन राम ही धर्म के प्रतीक हैं। आप अपने जीवन में आई सबसे बड़ी विपदा के बारे में एक बार सोचिए। उसे राम के जीवन में क्या क्या हुआ उससे मिलाइए। मतलब राम राजा बनने वाले थे। आप जिस भी कंपनी में काम कर रहे हैं उसके सीईओ बनने वाले हैं। आप सोचेंगे कि कल कौन सी टाई पहनूंगा, कौन से कपड़े पहनूंगा, क्या स्पीच पढ़ूंगा। एक और लेटर आता है थोड़ी देर में कि आपको तो सीईओ नहीं कंपनी से निकाला जाता है। आप किस हालत में होंगे। राम के साथ भी यही हुआ। लेकिन उन्होंने इसे संभाव से लिया। इतना ही नहीं लक्ष्मण को प्रेरित किया कि हमें जाना चाहिए। उन्होंने 13-14 साल में प्रतिदिन नई चीजें सीखीं। वो कह रहे हैं कि 500 लोग एक साथ आ जाए तो मैं कैसे लड़ूंगा। उन्होंने आर्युर्वेद, शास्त्र सीखा। माता सीता जहां-जहां जा रही वहां ग्रस्थी के नियम सीख रही हैं। 13 साल बाद उनकी पत्नी का हरण हो जाता है। फिर आप अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ते हैं। आपके पास वानर सेना है जबकि रावण के पास  बड़ी सेना है। पुष्पक विमान हैं। आप लड़ते-लड़ते इंद्रजीत के हाथों दो बार मरते-मरते बचे। लेकिन फिर भी वो एक बार भी विचलित नहीं हुए। कोई शॉर्टकट नहीं लिया। इसे राम को जीना कहेंगे और ये हमारी सभ्यता में है।

सवाल: वर्तमान दौर में रामायण को फेमिनिस्म के खिलाफ दिखाने या बताने की कोशिश कुछ वर्गों द्वारा की जाती रही है। राम के जीवन कालखंड पर नजर डालें तो वो अहिल्या से मिलकर उनके चरण स्पर्श करते हैं और घोषणा करते हैं कि ये पाप मुक्त हैं। बाली का वध करते हैं रूमा के अपहरण के कारण, फिर ये सवाल अक्सर उठता है कि जो आदमी अपनी पत्नी के सार्वजनिक अपमान को अपनी छाती पर झेलता हो उसने अपनी पत्नी को आखिर कैसे किसी के कहने पर जंगल भेज दिया? 

जवाब: एक बहुत बड़ा वामपंथी वर्ग नहीं चाहता था कि भारत के घरों में रामायण, गीता हो। उसने अलग-अलग तरह से उसमें छेद ढंढ़ने की कोशिश की और हमें ही उसके खिलाफ बरगलाने की कोशिश करी। उन्हें पता था कि भारतीय घरों में रामायण, गीता होगी तो उसकी बराई होगी। भारतीय घर दृढ़ होंगे। भारतीय परिवार, समाज दृढ़ होगा। इस तरह से उसका काटा गया। कहा गया कि महाभारत घर में रहेगी तो महाभारत हो जाएगी। रामायण घर में रहेगा तो बुरा होगा। रामायण महिला विरोधी है। एक व्यक्ति ने अपने जीवन का सबसे बड़ा युद्ध अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए लड़ा। उसने सुग्रीव को अपनी पत्नी से मिलाया, इतने प्रतापी बाली का वध करके। नारी सम्मान तो रोम रोम में घुसा था उनके। फिर लोग पूछते हैं कि उन्होंने सीता की अग्नि परीक्षा क्यों ली? राम को तो पता था कि सीता का जीवन स्वच्छता से है। लेकिन वो जनता के सामने माता सीता की सुचिता को स्टैबलिस करना चाहते थे। राम को तो पता था नहीं तो वो इतनी बड़ी लड़ाई क्यों लड़ते जिसमें खुद दो बार मरते-मरते बचे। मेरी पत्नी का जनता में मान रहे सम्मान रहे कि वो इतने बड़े अग्नि परीक्षा से निकलकर आई। एक धोबी ने कह दिया कि वो लंका में रहकर आई। श्री राम को लगा कि आज एक ने कहा है कल दो कहेंगे परसो सौ कहेंगे। जनता में माता सीता का अपमान होने लगेगा। मेरा तो मानना है कि दोनों में बात होकर ये हुआ है। वाल्मिकी रामायण का मूल स्रोत्र क्या है। मेरे हिसाब से सीता माता हैं। सीता माता लव कुश के साथ उसी आश्रम में रहती थीं। अगर माता सीता दुख में गुस्से में जाती और बात करके नहीं जातीं तो वो राम के बारे में बुरा और गलत बोलतीं। रामायण में राम के बारे में गलत लिखा होता। हुआ क्या होगा कि उन्होंने कहा कि धोबी बोल रहा है और गुप्तचरों ने देखा कि और भी ऐसी चर्चा है कि राम ने राजधर्म छोड़ दिया। ये ज्यादा अच्छा है कि वो बाहर जाकर रहें और जो बच्चे होने वाले हैं उन्हें भी वाल्मिकी जैसा ऋषि मिले व उनके पास पले। राम ने उसके बाद क्या बड़ा हर्ष उल्लास का जीवन जिया। वो तो बस अकेले राज पाठ निरसता से चलाते रहे। ऐसी भई मान्यता है कि जब सीता धरती में विलय हो गई तो राम भी जल में विलुप्त हो गए। एक बड़ी अच्छी कविता भी है कि सीता आग में न जली राम जल में जल गए। 

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