By अनुराग गुप्ता | Dec 06, 2021
नयी दिल्ली। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ग्रैंड ओल्ड पार्टी (जीओपी) पर हमला बोला था। जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा छिड़ गई कि प्रशांत किशोर कांग्रेस से खफा क्यों हो गए ? हाल ही में प्रशांत किशोर ने ग्रैंड ओल्ड पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा था कि पिछले 10 सालों में कांग्रेस 90 फीसदी से ज्यादा चुनाव हार चुकी है।
उन्होंने एक ट्वीट में लिखा था कि कांग्रेस जिस विचार और दायरे का प्रतिनिधित्व करती रही है, वह एक मजबूत विपक्ष के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व किसी एक शख्स का दिव्य अधिकार नहीं है। वह भी तब जब पार्टी पिछले 10 सालों में कांग्रेस 90 फीसदी से ज्यादा चुनाव हार चुकी है। ऐसे में विपक्ष की लीडरशिप का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से होने देना चाहिए। प्रशांत किशोर की टिप्पणी पर कांग्रेस ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इससे पहले लखीमपुर खीरी की घटना को लेकर भी कांग्रेस को घेरने की कोशिश की थी।
उन्होंने कहा था कि जो लोग यह सोच रहे हैं कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी के सहारे विपक्ष की तुरंत वापसी होगी वे गलतफहमी में हैं। दुर्भाग्य से ग्रैंड ओल्ड पार्टी की जड़ों और उनकी संगठनात्मक संरचना में बड़ी खामियां हैं। फिलहाल इस समस्या का कोई त्वरित समाधान नहीं है।
कांग्रेस में शामिल होने वाले थे पीके
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद से चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थी और पार्टी में भी उनके शामिल होने की लगभग प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी। राहुल गांधी चुनावी रणनीतिकार को कांग्रेस में शामिल कराना चाहते थे। हालांकि, प्रशांत किशोर को लेकर जुलाई के बाद कांग्रेस में कोई भी चर्चा नहीं हुई है। प्रशांत किशोर को अगर कांग्रेस में शामिल कराया जाता तो उन्हें साधारण तरीके से नहीं बल्कि एआईसीसी पैनल के माध्यम से शामिल कराते। कहा तो यह भी जाता है कि प्रशांत किशोर को शामिल कराने के लिए महज कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की मुहर लगना बाकी था लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
कांग्रेस सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक प्रशांत किशोर ने कांग्रेस आलाकमान के सामने पार्टी में शामिल होने की जो शर्तें रखी थीं, वो व्यवहारिक नहीं थी। इसके अलावा वो अहम पद की मांग कर रहे थे। सूत्र ने बताया कि कांग्रेस के साथ जारी बातचीत के बीच में प्रशांत किशोर ने कुछ ऐसे बयान दिए जो आलाकमान को पसंद नहीं आए।
कांग्रेस की तरफ सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलने की वजह से प्रशांत किशोर ने उनके बिना ही आगे बढ़ने का मन बना लिया और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री को राजनीतिक सलाह देने लगे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रशांत किशोर के एक करीबी ने बताया कि चुनावी रणनीतिकार के भविष्य के बारे में वो लोग तय नहीं कर सकते हैं जो अपनी सीट भी जीत नहीं पाए। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस को मजबूत करने का जिम्मा संभाल लिया और यात्राओं में निकल गईं। कभी दिल्ली आकर पत्रकार के सवाल का जवाब देते हुए कहती हैं कि हमेशा कांग्रेस अध्यक्षा से मिलना जरूरी नहीं होता है तो मुंबई में एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात के बाद यूपीए को लेकर बयानबाजी कर रही हैं। जिसका मतलब साफ है कि वो कांग्रेस के बिना भी नेतृत्व करने की क्षमता रखती हैं।
माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर के साथ कांग्रेस के रिश्ते सुधर सकते हैं लेकिन इसमें देरी न हो जाए। क्योंकि कांग्रेस चुनावी रणनीतिकार के बिना विधानसभा चुनावों में उतरती है और परिणाम अच्छे नहीं आते हैं तो आगे उत्पन्न होने वाली स्थिति से निपटने के लिए कांग्रेस को प्रशांत किशोर की आवश्यकता महसूस होगी। लेकिन परिणाम अच्छे आ जाते हैं तो रिश्ते और भी ज्यादा बिगड़ सकते हैं।