ओडिशा में हुए हॉकी विश्व कप में पदक नहीं जीत पाने का गम पूरे देश को है। 1975 के बाद भारत ने हॉकी विश्व को कभी भी अपने नाम नहीं किया। 2010 के बाद जब 2018 में स्वदेश में विश्व कप का आयोजन हुआ उस समय सभी को इस हिंदुस्तान की टीम से पदक की उम्मीदें थीं। लेकिन ये सपना क्वार्टर फाइनल में हार के साथ ही टूट भी गया। जाहिर है एशियन कप में अच्छे प्रदर्शन नहीं करने के बाद वर्ल्ड कप में जीत की उम्मीद लिए भारत का पोडियम फिनिश करने का सपना फिर से चार साल का इंतजार दे गया। वर्ल्ड कप की इस हार का गुनहगार कोच हरेंद्र सिंह को माना गया। जिसके बाद हॉकी इंडिया ने उन्हें बर्खास्त कर दिया और जूनियर हॉकी टीम की कोचिंग पद की भूमिका संभालने की पेशकश की।
पिछले कुछ वर्षों में अच्छे और बुरे प्रदर्शन के साथ ही टीम इंडिया में कोच बदलने का सिलसिला भी वक्त की रफ्तार से चलता रहा। टेरी वॉल्स, पॉल वान आस, शोर्ड मारिन, रोलंट ऑल्टमैंस से लेकर हरेंद्र सिंह सहित ना जाने कितने कोच बीते कुछ वर्षों में टीम से अंदर बाहर आते जाते रहे हैं। लेकिन इसके साथ लगातार ये भी सवाल उठते रहे कि क्या भारतीय टीम की तकदीर कोच के बदलने से ठीक हो सकती है, या फिर इस सिस्टम में कुछ ऐसी चीजें है जिन पर सुधार करने की ज्यादा जरूरत है।
वर्ल्ड कप में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद जब हॉकी इंडिया ने हरेंद्र को बर्खास्त किया था उसके बाद उन्होंने अपने बयान में कहा कि ‘वर्ष 2018 भारतीय पुरूष हाकी टीम के लिए निराशाजनक रहा और परिणाम उम्मीद के अनुरूप नहीं रहे और इसलिए हाकी इंडिया को लगता है कि जूनियर कार्यक्रम पर ध्यान देने से लंबी अवधि में फायदा मिलेगा’। जाहिर है राष्ट्रमंडल खेलों में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद हॉकी इंडिया ने महिला टीम की कोचिंग पद की भूमिका संभाल रहे हरेंद्र सिंह को सीनियर पुरूष हॉकी टीम का कोच बनाया। उसके बाद टीम ने ब्रेडा में हुए शीर्ष टीमों के बीच चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीतकर शानदार खेल दिखाया। हालांकि इसके बाद हरेंद्र के लिए हॉकी इंडिया में दिन ज्यादा अच्छे नहीं रहें। एशियन गेम्स में कांस्य पदक के बाद वर्ल्ड कप के क्वार्टर फाइनल में हार जाना उन्हें टीम से बाहर करने के लिए सबसे बड़ा कारण बना।
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हरेंद्र का टीम से जाना इस खेल का अंत नहीं है। हॉकी इंडिया में कोच पद का बदलाव का दौर कितना लंबा चलेगा इसकी गुत्थी भविष्य के पिटारे में बंद है। लेकिन सवाल ये है कि हरेंद्र के ऊपर वर्ल्ड कप में जीत का इतना दबाव किस हद तक ठीक है। टीम ने 2018 वर्ल्ड कप में छठे स्थान पर अपना सफर खत्म किया। 1994 में हुए सिडनी विश्व कप के बाद से टीम का इस टूर्नामेंट में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है। साफ है टीम एशियन गेम्स के सेमीफाइनल में मलेशिया से हार गई थी लेकिन वहां मामला शूटआउट में पहुंचा था जिसे किसी भी टीम का खेल करार दिया जाता है। वहीं चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीतना हरेंद्र सिंह के कोच पद की गरिमा का अपने आप बखान करता है। हॉकी इंडिया की सीइओ इलिना नोर्मन सहित टीम के हाई पर्फोर्मेंस डायरेक्टर डेविड जॉन के ऊपर भी लागातार सवाल उठाएं जा रहे हैं। इसके साथ ही ये भी जानना जरूरी है कि क्या कहीं ये लोग हॉकी इंडिया की तकदीर का फैसला तो नहीं कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में हॉकी इंडिया कोच पद में लगातार बदलाव कर रही है। लेकिन क्या कभी किसी वक्त टीम के एनालिटिकल कोच क्रिस सेरेलियो के ऊपर संकट के बादल गहराए। टीम के कोचिंग स्टॉफ के नाते हुए खराब प्रदर्शन पर उनकी जिम्मेदारी भी जायज है। लेकिन शायद हॉकी इंडिया के अधिकारियों को कोच पद के बदलाव से टीम के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद बढ़ जाती है। वर्ल्ड कप के बाद अब भारतीय हॉकी टीम मार्च में होने वाले सुल्तान अजलान शाह कप अपना ध्यान केंद्रित कर रही होगी। ये टीम तमाम युवा और अनुभवी खिलाड़ियों के मेल से बनी हुई है जिसे सही कोचिंग में ऊंची उपलब्धियों तक पहुंचाया जा सकता है। वर्ष 2019 में अजलान शाह कप के बाद टीम इंडिया को एफआईएच सीरीज फाइनल खेलना है। वहीं टीम की असली नजर 2020 में होने वाले टोक्यो ओलंपिक के ऊपर होगी जहां अच्छा प्रदर्शन कर भारत फिर से ओलंपिक में अपनी धाक जमाने को बेकरार रहेगा।
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जाहिर है जिस तरीके से हॉकी इंडिया में उथल पुथल चल रही है। उससे ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या भविष्य में भी इसी तरीके से कोच की आवाजाही चलती रहेगी या फिर किसी एक ऐसे कोच को जिम्मेदारी दी जाएगी जो टीम के साथ ज्यादा समय बिताएगा और फिर से हिंदुस्तान में हॉकी को उस मुकाम पर पहुंचाएगा जिसकी वो शायद काफी पहले से हकदार है। साफ है सवाल काफी हैं लेकिन इसका जवाब सिर्फ भविष्य की गहराई में छुपा है।
-दीपक कुमार मिश्रा