मध्यपूर्व में सबसे ज्यादा मिसाइल पावर वाले देश ईरान से मुकाबला आसान नहीं

By योगेश कुमार गोयल | Jan 09, 2020

3 जनवरी की सुबह इराक में बगदाद अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जो कुछ हुआ, उसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने नए साल की शुरूआत के महज तीसरे ही दिन जिस प्रकार एक ही झटके में ड्रोन हवाई हमला करके ईरान के 62 वर्षीय शीर्ष कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी को मार डाला, उससे उन्होंने पूरी दुनिया को एकाएक एक और विश्वयुद्ध के मुहाने पर धकेल दिया है। हालांकि यह आने वाला समय ही बताएगा कि ईरान के रिवोल्यूनशरी गॉर्ड्स कॉर्प्स के शीर्ष कमांडर सुलेमानी को इस प्रकार मार दिए जाने के बाद पहले से ही बेहद खराब चल रहे ईरान और अमेरिका के और कटुतापूर्ण हुए संबंधों का क्या परिणाम सामने आएगा लेकिन जिस प्रकार ईरान द्वारा लाल झंडे लहराकर अमेरिका के इस हमले का बदला लेने की चेतावनियां दी जा रही हैं, उससे इतना तो तय है कि इसका खामियाजा सिर्फ इन दो देशों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा।

 

ईरानी चेतावनियों और उसके जवाब में अमेरिकी धमकियों को देखते हुए आज हर किसी के दिलोदिमाग में अब एक ही प्रश्न कौंध रहा है कि कहीं यह तीसरे ‘विश्वयुद्ध’ की आहट तो नहीं है ? दरअसल एक तरफ जहां ईरान ने अमेरिकी कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन बताते हुए तेल का समुद्री रास्ता बंद करने की चेतावनी दी है और कहा है कि वह वाशिंगटन से अपने शीर्ष कमांडर की हत्या का सही समय पर बदला लेगा तो दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने तेवर कड़े करते हुए बार-बार कह रहे हैं कि अगर ईरान ने उसके हितों पर कहीं भी चोट पहुंचाने की कोशिश की तो अमेरिकी सेनाएं ईरान के चुनिंदा 52 ठिकानों को निशाना बनाने से नहीं चूकेंगी। दूसरी ओर ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला खोमैनी ने अमेरिका को जबरदस्त बदले और अंजाम भुगतने की धमकी दी है। इस पूरे प्रकरण से समूची दुनिया एक और खाड़ी युद्ध की ओर आगे बढ़ती दिख रही है और अगर ऐसा कुछ हुआ तो हर तरफ सिर्फ तबाही का ही मंजर सामने आएगा क्योंकि आज के दौर में साधारण तरीकों से लड़े जाने वाले युद्ध की कल्पना भी नहीं की जा सकती बल्कि अगर युद्ध हुआ तो उसमें अत्याधुनिक तकनीकों से सुसज्जित हथियारों और परमाणु हथियारों का खुलकर इस्तेमाल होगा, जिनका प्रभाव दुनिया के अनेक हिस्सों में देखा जाएगा।

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सैन्य ताकत के मामले में ईरान भले ही अमेरिका के समक्ष कहीं टिकता नहीं दिखाई देता हो लेकिन इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि ईरान आज एक ऐसा देश बन चुका है, जिसके पास मिडल-ईस्ट में सबसे ज्यादा मिसाइल पावर है। उसके पास ऐसी मिसाइलों, क्रूज और लड़ाकू विमानों का बड़ा जखीरा मौजूद है, जिसका इस्तेमाल करते हुए वह अपने सबसे बड़े दुश्मन सऊदी अरब सहित खाड़ी के कई अन्य देशों को भी बड़ी आसानी से अपना निशाना बनाने का सामर्थ्य रखता है। हालांकि यह अलग बात है कि अमेरिका के पास ऐसी-ऐसी तकनीकों वाले हथियारों का बहुत बड़ा भंडार मौजूद है, जिससे वह अपनी ही जमीन से ईरान को नेस्तनाबूद करने की क्षमता रखता है। तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो रूस अमेरिकी कार्रवाई के खिलाफ ईरान के साथ खड़ा दिख रहा है और चीन तथा उत्तरी कोरिया जैसे ताकतवर देश भी पहले से ही अमेरिका के खिलाफ हैं और वे भी इस लड़ाई में ईरान का साथ दे सकते हैं। ऐसे में अगर विश्व युद्ध जैसे हालात बनते हैं तो ईरान को इन देशों का सहयोग मिलने से हालात बहुत खतरनाक हो सकते हैं।

                

ईरानी नायक के रूप में जाने जाते रहे वहां के सुप्रीम कमांडर सुलेमानी को ड्रोन हमले के जरिये मार दिए जाने के बारे में ट्रंप का कहना है कि सुलेमानी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों की हत्या का जिम्मेदार था, जिसने काफी समय तक हजारों अमेरिकियों की हत्या की या उन्हें बुरी तरह घायल किया और वह कई और अमेरिकियों को जान से मारने की योजना बना रहा था। अमेरिका का आरोप है कि जनरल सुलेमानी ईराक में उसके ठिकानों, राजनयिकों और सेनाओं पर हमले की योजना बनाने में सक्रिय था। दूसरी ओर अमेरिका के भीतर ही इस अमेरिकी कार्रवाई का प्रबल विरोध होने लगा है। दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति भले ही सुलेमानी की हत्या के लिए कोई भी कारण गिनाएं किन्तु सही मायनों में उनके इस कदम को न केवल अमेरिकी राजनीति में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी इसी साल होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि उन्होंने चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए ही दुनिया को युद्ध के मुहाने पर धकेलने वाला यह घातक कदम उठया है।

                

अगर अमेरिकी चुनावों का इतिहास देखा जाए तो यह आशंका इसलिए भी बलवती होती है क्योंकि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को घेरते हुए ट्रम्प कहते रहे थे कि ओबामा दोबारा चुनाव जीतने के लिए ईरान के साथ युद्ध शुरू कर सकते हैं। उस दौरान उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि ओबामा पुनः अमेरिका के राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए ईरान पर हमला करेंगे। ट्रम्प द्वारा कुछ वर्ष पूर्व दिए गए उनके इस तरह के बयानों को देखा जाए तो इन धारणाओं को स्वतः ही बल मिलता है कि उन्होंने यह सब चुनावों में जीत हासिल करने के उद्देश्य से ही किया है। दरअसल घरेलू मोर्चे पर वह दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। एक ओर जहां वे अमेरिकी कांग्रेस में अपने खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं तो दूसरी ओर इसी वर्ष उन्हें राष्ट्रपति चुनावों का सामना करना है। ऐसे में उनके लिए अपनी स्थिति मजबूत दिखाना बेहद जरूरी हो गया था। ईरान पर हमला करने के इस कदम से ट्रम्प की स्थिति भले ही अपनी पार्टी के भीतर मजबूत हो गई है लेकिन विपक्षी दलों ने उन्हें इस मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया है। अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि पहले से ही खतरों से भरे क्षेत्र में यह युद्ध के लिए उकसाने वाली घटना है और राष्ट्रपति ट्रम्प ने बारूद में चिंगारी लगाने वाला काम किया है। दूसरी ओर अमेरिकी सदन की स्पीकर व शीर्ष डेमोक्रेट नेता नेन्सी पेलोसी का कहना है कि सुलेमानी की हत्या से हिंसा के खतरनाक स्तर तक बढ़ जाने का खतरा पैदा हो गया है और अमेरिका के साथ ही पूरी दुनिया इस तनाव को नहीं झेल सकती। उनका कहना है कि अमेरिका ऐसे भड़काऊ और अनुचित कार्यों से अमेरिकी नागरिकों, कर्मियों तथा राजनयिकों की जान को खतरे में नहीं डाल सकता।

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बहरहाल, अमेरिका द्वारा सुलेमानी को मारे जाने के बाद आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर नई मोर्चाबंदी खुलकर सामने आ सकती है। अगर दुनिया एक और खाड़ी युद्ध की ओर आगे बढ़ती है तो यह भी तय है कि भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में तेल की सप्लाई बाधित होगी, जिससे पहले से ही भारी दबाव झेल रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती खड़ी हो सकती है। इसे अगर भारत के संदर्भ में देखा जाए तो तेल की आपूर्ति प्रभावित होने या कच्चे तेल के दामों में भारी वृद्धि होने से देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि हमारी करीब सत्तर फीसदी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति पश्चिमी एशिया के खाड़ी देशों से ही होती है। पहले से ही मंदी की शिकार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बेहद मुश्किल दौर होगा। अगर आने वाले दिनों में खाड़ी युद्ध के हालात उत्पन्न होते हैं तो वहां काम कर रहे भारतीयों को स्वदेश लौटना पड़ेगा और इससे वहां से भारत आने वाली अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा का नुकसान भी होगा। भारत को पश्चिम एशिया में कार्यरत 80-90 लाख भारतीयों के जरिये प्रतिवर्ष करीब 40 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

 

-योगेश कुमार गोयल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा तीस वर्षों से समसामयिक विषयों पर लिख रहे हैं)

 

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