संयुक्त किसान मोर्चा प्रत्येक माह की 26 तारीख को दिल्ली में खलबली मचा देता है। कृषि कानूनों के विरुद्ध दिल्ली में डेरा जमाए उनको सात माह हो गए। अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला। बातचीत हुई थी, अब वह भी रुकी है। सरकार ने किसानों को अपने हाल पर छोड़कर बातचीत के सिलसिले बंद कर दिए हैं। पर, सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए किसान मुस्तैदी से डटे हैं, तभी हर माह विभिन्न प्रदेशों से लाखों की संख्या में ट्रैक्टरों को लाकर दिल्ली में बड़ी रैली करते हैं। हंगामा कटता है, हलचलें होती हैं। इस माह की 26 तारीख को भी ट्रैक्टरों की बड़ी रैली आयोजित की गई। इस तरह की रैलियों से सरकार पर कितना दबाव बनेगा, आदि को लेकर एक बार फिर डॉ. रमेश ठाकुर ने किसान आंदोलन का मुख्य चेहरा राकेश टिकैत से बातचीत करके भविष्य की रणनीति को भांपा।
प्रश्न- प्रत्येक 26 तारीख को ट्रैक्टर रैली निकाल कर क्या संदेश देना चाहते हैं और इससे हल क्या निकलेगा?
उत्तर- हल निकाल देंगे! देखते हैं दिल्ली की गूंगी सरकार किसानों की सहनशीलता की परीक्षा कब तक लेगी। शांत तो नहीं बैठेंगे, कुछ न कुछ तो करते रहेंगे। सरकार को जितनी मनमानी करनी है कर ले। हम यहीं हैं कहीं जाने वाले नहीं? पश्चिम बंगाल के जरिए किसानों ने केंद्र सरकार को संदेश दे दिया है, वह क्या कर सकते हैं? सरकार चिंता न करे, उसके मर्ज की दवा हमारे पास है। पहला इंजेक्शन 2022 में यूपी चुनाव में देंगे, उसके बाद बारी 2024 की होगी। जितनी यातनाएं हमें देनी हैं, जी भर कर दें और जितना बदनाम करना है वो भी कर लें?
प्रश्न- अगर 2022 से पहले सरकार आपकी मांगें मान लेती है तो?
उत्तर- तो अपने घरों को चले जाएंगे? हमें शौक थोड़ी ना है दिल्ली के सड़कों पर रात गुजारना। हम भी बाल बच्चे वाले लोग हैं और खेतीबाड़ी करने वाले किसान। हमारे बच्चे भी हमारा इंतजार घरों में लौटने का कर रहे हैं। लेकिन प्रण किया हुआ है जब तक सरकार लिखित में हमारी सभी मांगें नहीं मांग लेती और तीनों कृषि कानूनों को रद्द नहीं कर देती, हम जाने वाले नहीं, यहीं हटे रहेंगे? बिना कानूनों को रद्द किए बिना बात नहीं बनेगी। हमारे सैंकड़ों किसान इसी आंदोलन में शहीद हुए हैं, उनकी आत्माओं की सच्ची श्रद्धांजलि तभी मिलेगी, जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।
प्रश्न- मीडिया के माध्यम से कृषि मंत्री ने बातचीत का फिर ऑफर दिया है?
उत्तर- मीडिया में बयान देने से अच्छा है संयुक्त किसान मोर्चा के किसी नेता को कह देते, या संवाद का कोई सीधा जरिया अपनाते। दरअसल मीडिया के लोगों को गुमराह करते हैं सरकार के लोग। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि एक फोन की दूरी है। कौन-सा फोन है वो हमें भी बताएं, ताकि उसका इस्तेमाल कर सकें। मीडिया में आकर सिर्फ झूठ बोलते हैं। हम एक नहीं हजार बार बात करने को तैयार हैं। हम भी चाहते हैं आंदोलन का कोई हल निकले। सात महीने हो गए, हमें यहां डेरा डाले, कोई पूछने तक नहीं आया। सरकार इतनी असंवेदनहीन होगी, हमने कभी कल्पना तक नहीं की थी?
प्रश्न- चुनावों में भाजपा को वोट ना देने की आपकी अपील के क्या मायने समझे जाएं?
उत्तर- हां जी की है? क्या करें फिर कोई चारा भी तो नहीं! ऐसी सरकार को चुनने का क्या फायदा जो गरीबों और किसानों की न सुने। केंद्र सरकार अन्नदाताओं की शक्ति से परिचित है या अपरिचित पता नहीं! पर हम मौजूदा सरकार का इलाज करके ही जाएंगे। मैं भाजपा का वोटर था, उनको वोट किया था। मेरी छोड़ो आंदोलन में जितने भी किसान बैठे हैं सभी ने भाजपा को वोट दिया था। लेकिन उसकी सजा इन्हें ये मिली है। सड़कों पर जीवन बिता रहे हैं। हम आंदोलन स्थल पर कूलर, पंखा, एसी, गैस चूल्हे लगा रहे हैं तब भी उनको दिक्कतें हो रही हैं। क्या सरकार सिर्फ ये चाहती है कि किसान खेत-खलिहानों और फटिचर तक ही सीमित रहे? सुख-सुविधाओं के हकदार नहीं हैं क्या?
प्रश्न- लेकिन सरकार आंदोलन में बैठे लोगों को किसान मानती ही नहीं, राजनीतिक कार्यकर्ता बताती है?
उत्तर- देखिए, जिसे मौजूदा आंदोलन से नफरत करनी है, वह दो-तीन न्यूज चैनल जो आंदोलन के खिलाफ हैं, को रोजाना देखें और इतने ही अखबार हैं जिन्हें पढ़े। कुछ मीडिया संस्थान ऐसे हैं जो शुरू से हमें गाली दे रहे हैं। तरह-तरह के इल्जाम लगा रहे हैं। सरकार से ज्यादा खिलाफ हमसे तो मीडिया का एक धड़ा दिखाई पड़ता है जो सरकार के इशारे पर नाच रहा है। एक रिपोर्टर बोल रहा था कि आंदोलन में बैठे लोग किसान नहीं, कांग्रेस और वाम कार्यकर्ता हैं। हमारे लोगों ने उसे पकड़ा और धरना स्थल पर ले आए, पूछा बता भाई इसमें कांग्रेसी कौन है और वाम कार्यकर्ता कौन-कौन हैं? तब उसने बताया कि संपादक ने ऐसा बोलने को कहा था। इससे आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं?
प्रश्न- आंदोलन से लोगों को परेशानी हो रही है, बीते दिनों आंदोलन के खिलाफ कुछ पंचायतें भी हुईं?
उत्तर- ये सब सरकार का ड्रामा है। कुछ संगठनों को भी बहला फुसलाकर हमारे खिलाफ खड़ा किया था। हमें खालिस्तानी-पाकिस्तानी आतंकवादी तक बताया था। धरना स्थल पर अप्रिय घटनाओं को करवाना आदि हथकंड़े सरकार शुरू से अपना रही है। लेकिन हम भी पूरी तैयारी के साथ बैठे हैं। हमारी तीन-चार कोर टीमें इन्हीं हरकतों पर नजर बनाए रखने के लिए लगी हुई हैं।
प्रश्न- सरकार से बात नहीं बनीं, तो क्या होगी आगे की प्लानिंग?
उत्तर- मोर्चा सामूहिक निर्णय ले चुका है। फिलहाल हमारा टारगेट 2022 है। सात-आठ महीनों बाद पांच राज्यों में चुनाव होने हैं जिनमें उत्तर प्रदेश प्रमुख है जो मेरा गृह राज्य भी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोई भाजपा को वोट नहीं करेगा। वैसा ही हम पूरे प्रदेश में आह्वान करेंगे। अगर 2022 भाजपा हारती है तो केंद्र सरकार मौके की नजाकत को देखकर खुद हमारे पास आएगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। उसके बाद हमारा टारगेट 2024 होगा।
-ट्रैक्टर रैली के बाद जैसा डॉ. रमेश ठाकुर से राकेश टिकैत ने कहा।