उच्चतम न्यायालय ने आज केन्द्र को निर्देश दिया कि वह अकादमिक सत्र 2018-19 के बाद से मेडिकल पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए संयुक्त परीक्षा नीट में उर्दू को एक भाषा के तौर पर शामिल करें। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौदार की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि सरकार के लिए इस वर्ष से उर्दू को शामिल करना संभव नहीं होगा। याचिकाकर्ता ने सात मई को आयोजित होने वाली नीट परीक्षा 2017 के लिए उर्दू को एक माध्यम बनाने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।
पीठ ने कहा, ‘‘हम भारत की केन्द्र सरकार को निर्देश देते हैं कि वह अकादमिक सत्र 2018-19 के बाद से नीट परीक्षा में उर्दू को एक भाषा के तौर पर शामिल करें।’’ जब याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुये वकील ने इस पर जोर दिया कि उर्दू भाषा को इस वर्ष से ही नीट परीक्षा में शामिल किया जाना चाहिये तो पीठ ने कहा, ‘‘सारी परेशानी यह है कि इस वर्ष यह संभव नहीं है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘इसमें बहुत-सी दिक्कतें हैं। कृपया यह समझने की कोशिश करें कि हम उन्हें (केन्द्र) चमत्कार करने के लिए नहीं कह सकते। यह परीक्षा सात मई को है और आज 13 अप्रैल है। इसमें कई प्रक्रियाएं शामिल हैं।’’
केन्द्र की तरफ से पेश हुये सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि वे 2018 अकादमिक सत्र के बाद से उर्दू को नीट परीक्षा का माध्यम बनाने के सुझाव का विरोध नहीं कर रहे। सॉलिसिटर जनरल ने 31 मार्च को उच्चतम न्यायालय को बताया था कि नीट परीक्षा को उर्दू भाषा में भी आयोजित कराने की मांग कर रही छात्रों की इकाई ने केन्द्र पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाया है। केन्द्र ने न्यायालय को बताया था कि मौजूदा अकादमिक सत्र से नीट के लिए उर्दू भाषा को एक माध्यम के रूप में शामिल करना संभव नहीं है। अभी नीट परीक्षा दस भाषाओं- हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, ओडिया, बांग्ला, असमी, तेलुगु, तमिल और कन्नड़ में आयोजित करायी जाती है।