इंदिरा गांधी खुद 370 हटाना चाहती थीं, कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता यह बात भूल क्यों गये ?

By डॉ. अजय खेमरिया | Sep 18, 2019

कांग्रेस में कभी थिंक टैंक काम किया करता था जिसमें पढ़ने लिखने वाले नेता हुआ करते थे जो पार्टी और सरकार के लिये प्रमाणिकता के साथ मुद्दों की समझ विकसित करने के लिये इनपुट उपलब्ध कराते थे। आमतौर पर इस थिंक टैंक की सोच राष्ट्रीय हितों पर आधारित हुआ करती थी। तुष्टीकरण की राजनीति से पहले का दौर था यह। पार्टी में पर्सनेलिटी कल्ट को अधिमान्यता मिलने के बाद भी इस टैंक का प्रभाव  कांग्रेस की नीतियों पर साफ नजर आता था। लेकिन आज लगता है जनार्दन द्विवेदी, वीरप्पा मोइली जैसे कांग्रेसी 24 अकबर रोड से खदेड़ दिए गए हैं। जम्मू-कश्मीर पर पार्टी का आधिकारिक पक्ष बहुत ही चौंकाने वाला इसलिये नहीं है क्योंकि वर्तमान पार्टी में खुद के इतिहास को ही समझने और देखने वाला कोई नहीं रह गया। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के निर्णय की कांग्रेस पार्टी ने आधिकारिक रूप से निंदा की। संसद के दोनों सदनों में उसके नेताओं ने मोदी सरकार के निर्णय के खिलाफ भाषण दिए। आज भी 370 के तकनीकी पक्षों पर कांग्रेस के तमाम दिग्गज सरकार के निर्णय को कटघरे में खड़ा करते रहते हैं।

 

देश के पूर्व वाणिज्य मंत्री आनन्द शर्मा का एक ताजा बयान अखबारों में छपा है जिसमें उन्होंने देश के सर्वोच्च न्यायालय से 370 पर विचाराधीन याचिकाओं के माध्यम से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। आनन्द शर्मा यहीं नही रुके हैं उन्होंने न्यायालय पर 370 के मामले में संवैधानिक भूमिका के साथ न्याय न कर पाने का जिक्र किया है। इससे पहले कांग्रेस पार्टी लगभग सभी राजनीतिक दलों के विपरीत जाकर अनुच्छेद 370 के मामले में अपनी भद पिटवा चुकी है। उसके नेता राहुल गांधी के बयान पाकिस्तान के लिये यूएन में शिकायत के आधार बनाए जा चुके हैं। जिस तरह से राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद ने भाषण दिया वह इस पार्टी के परंपरागत वोटर्स को भी नहीं भाया है।

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सवाल यह है कि क्या आनन्द शर्मा जैसे नेता जो वर्षों तक मंत्री रहे हैं जिनके पास बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां रही हैं वह अपनी ही पार्टी के इतिहास और राष्ट्रीय मुद्दों पर स्टैंड का अध्ययन नहीं करते हैं? इस समय कांग्रेस के पास राज्यसभा में विवेक तन्खा, अभिषेक मनु सिंघवी, केटीएस तुलसी, कपिल सिब्बल, चिदम्बरम जैसे दिग्गज और पढ़ाकू वकील मौजूद हैं, क्या इन सबका उपयोग केवल अपने नेताओं की जमानत कराने, ईडी, सीबीआई से बचाने के लिये ही सुनिश्चित है?

 

कांग्रेस में इंदिरा गांधी को लेकर बड़ा उपलब्धि भाव रहता है लेकिन आज हकीकत यह है कि किसी मुख्यधारा के कांग्रेसी को न इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व, कृतित्व की समझ है न पार्टी के इतिहास और दर्शन की जिसने कांग्रेस को अखिल भारतीय स्वरूप के साथ एक दौर तक भारत का स्वाभाविक शासक दल बनाकर रखा। जिस थिंक टैंक की चर्चा कभी कांग्रेस में होती थी आज वह स्वामी भक्ति केंद्र या परिवार साधना केंद्र में तब्दील हो गया है। 370 पर जिस भटकाव और भ्रम की मार से देश की सबसे पुरानी पार्टी पीड़ित दिखी उसका मूल कारण इसके नेताओं का जनता से कट जाना तो है ही साथ ही अपने ही पूर्वजों का पिंडदान करना भी एक कारक है।

 

कांग्रेस में गांधी, नेहरू, शास्त्री, इंदिरा को सब पूजना चाहते हैं, उनकी माला जपना चाहते हैं पर उनकी मानना कोई नहीं चाहता है क्योंकि इनकी बात मानने के लिये पुरुषार्थ की जरूरत पड़ती है और आज की कांग्रेस में पुरुषार्थ के बगैर ही सब हासिल करने का चलन है क्योंकि परिवार भक्ति सबसे सरल जरिया जिसमें आपको न वैचारिकी की अनिवार्यता, न जमीन पर सँघर्ष का कॉलम। दुःखद पहलू यह है कि कांग्रेस में इस मौजूदा वैचारिक दरिद्रता ने आजादी के आंदोलन की ऐतिहासिकता से भी नई पीढ़ी को वंचित करने का काम किया है। आज नेहरू और इंदिरा गांधी को यह देश किस तरह अपनी स्मृति में संजो कर रखना चाहेगा? यही कि नेहरू ने कश्मीर को 370 के दलदल और यूएन की दहलीज पर धकेला? इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की हत्या की? जम्हूरियत में मतभेदों का अपना अनिवार्य महत्व है लेकिन हर असहमति एक अहसास कराती है जिम्मेदारी का। उसकी वजनदारी का। क्या ये कांग्रेस नेतृत्व का नैतिक और राजनीतिक दायित्व नहीं है कि वह देश की जनता को बताए कि उसका इतिहास आज के गुलाम नबी, आनन्द शर्मा और चौधरी के बोल नहीं हैं। सच तो यह है कि खुद इंदिरा गांधी चाहती थीं कि कश्मीर से 370 हटाया जाए। इसकी प्रमाणिकता को साबित करने के लिये हमें 28 अक्टूबर 1975 के एक भाषण को समझना होगा। नई दिल्ली में कॉमनवेल्थ संसदीय कॉन्फ्रेंस थी। एक अमेरिकन पत्रकार ने श्रीमती गांधी से एक सवाल किया कि मेडम क्या आप कश्मीर में 370 के बारे में कुछ बोलेंगी? इसका जबाब देते हुए श्रीमती गांधी ने कहा, "any system can prevail only long as it keeps pace with changing conditions and proves it's ability to solve the problems of its people when tha majority are struggling for survival. Will they tolerate for a few either material in tha form of license to do whatever they wish. यानी "वही सिस्टम अस्तित्व में रह सकता है जो समयानुकूल हो, जब एक स्थान पर बहुसंख्यक जीने के लिये जूझ रहे हों तब दूसरों को हम ऐश करने का लाइसेंस नहीं दे सकते हैं।'' 

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उपरोक्त बात अनुच्छेद 370 पर इंदिरा गांधी का आधिकारिक स्टैंड था प्रधानमंत्री की हैसियत से। अब सवाल यह है कि क्या आनन्द शर्मा, गुलाम नबी, अधीर रंजन, कपिल सिब्बल जैसे बड़े नेताओं के पास इतना समय नहीं है कि वे अपने ही कथित आराध्य लोगों का अध्ययन कर सकें।

 

जवाब बहुत पेचीदा नहीं है। आज की कांग्रेस का वैचारिकी के साथ कोई नाता नहीं बचा है। बहुत ही निर्मम हकीकत यह है कि आज की कांग्रेस सही मायनों में राजीव कांग्रेस ही है क्योंकि उनके आने के बाद जो जनादेश इस पार्टी को मिला था उसकी चकाचौंध ने पार्टी को वैचारिक रूप से खत्म कर दिया, राजीव गांधी खुद एक विचार विहीन संसार की राजनीतिक उपज थे। वे एक नेक इंसान और असफल राजनेता थे। उनके चारों तरफ जिन लोगों का जमावड़ा था वह असल मे कांग्रेसी न होकर सत्ता के यायावर थे। आज भारत की राजनीति में मुस्लिम तुष्टिकरण का खुला खेल शाहबानो के जरिये राजीव गांधी की ही देन था। राजीव जी अगर चाहते तो वयस्क मताधिकार जैसे अनेक निर्णय अपने अद्वितीय बहुमत से ले सकते थे लेकिन इस बहुमत का प्रयोग 370 जैसे कानूनी प्रावधान हटाने की जगह शाहबानो केस, फिर पलट पांसे की तरह राम मंदिर के दरवाजे खोलने जैसे मामलों में किया गया। यहीं से कांग्रेस का राजनीतिक अस्तित्व सिमटता चला गया 1989 से 2019 तक का इतिहास इस बात की तस्दीक कर रहा है कि कांग्रेस जड़ों से कट गई। उसके पास सत्ता सिर्फ इसलिये आती जाती है क्योंकि लोगों के पास विकल्प नहीं है। उसकी तुष्टिकरण की नीतियों ने जनता के बीच उसे ठीक वैसे ही अलग-थलग कर रखा है जैसा मोदी ने इस समय पाकिस्तान को। फिर भी आनन्द शर्मा टाइप लोगों को समझ नही आता है क्योंकि वे 10 जनपथ की कृपा पर निर्भर हैं, लोकपथ से उनका कोई वास्ता नहीं है इसीलिए 10 जनपथ से आगे आज कांग्रेस की दृष्टि जा ही नहीं पाती भले ही 2019 में 2014 दोहराया गया हो।

 

-डॉ. अजय खेमरिया

 

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