By अंकित सिंह | Oct 26, 2021
भारत के प्रमुख हिंदी समाचार पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम की 20वीं वर्षगाँठ पर आयोजित विचार संगम कार्यक्रम में कई महानुभावों ने हिस्सा लिया। हमारे यहाँ चुनावों में वैसे तो विकास ही मुख्य मुद्दा होता है लेकिन जैसे-जैसे मतदान की तिथि करीब आती है वैसे-वैसे धर्म बड़ा मुद्दा बनने लगता है। नेतागण भी धर्म स्थलों पर अधिक दिखने लगते हैं, धार्मिक प्रतीकों का प्रदर्शन करने लगते हैं ऐसे में सवाल उठता है कि विकास से ज्यादा धर्म क्यों है राजनीति के नजदीक? इस विषय पर बोलते हुए भाजपा सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि धर्म एक बहुत ही संवेदनशील विषय है। इसके साथ ही इसको समझने की भी आवश्यकता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि धर्म भारत और भारतीय समाज में ही है। दूसरे देशों में धर्म नहीं है रिलीजन है।
उन्होंने कहा कि भारत धर्म से विमुक्त देश नहीं हो सकता, समाज नहीं हो सकता। भारत के लोगों का धर्म में आस्था है। भारतीय सोच धर्म पर आधारित है, संप्रदाय पर नहीं। धर्म राष्ट्रीय चेतना को बल देता रहा है। स्वतंत्रता के समय धर्म के आधार पर देश का विभाजन हुआ जो दुर्भाग्यपूर्ण है। चुनाव के समय धर्म के उपयोग पर सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि 1989 में राजीव गांधी ने अयोध्या से राम राज्य की कल्पना के साथ अपनी राजनीतिक अभियान की शुरुआत की थी। लेकिन कांग्रेस सरकार ने यू-टर्न लेते हुए समाजवादी पार्टी को 1990 में बचाने की कोशिश करती है। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा है कि वह लोग जीवन में महत्वपूर्ण पद मिलने के समय मंदिर नहीं जाते हैं।
उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि टॉलरेंस भारतीय मानसिकता का अंग ही नहीं है। हमारे यहां सर्व पंथ सद्भाव है। उन्होंने कहा कि धर्म का मजाक तब होता है जब आप रोजा इफ्तार देते हैं और रोजा नहीं रखते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज के मूल भाव को समझे तो धर्म कभी भी नकारात्मक नहीं है। सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि महात्मा गांधी ने रामराज्य की कल्पना की थी। लेकिन बाद में राम संप्रदायिक हो गए। उन्होंने सवाल किया कि यह कैसे हो गया? उन्होंने कहा कि 'ध' से धरती बनी है और 'ध' से ही धर्म बना है। उन्होंने कहा कि संप्रदाय और धर्म एक नहीं हो सकते। संप्रदाय का राजनीति से कोई संबंध नहीं होना चाहिए। पंथ निरपेक्ष राजनीति होनी चाहिए, धर्म को धारण करने वाली होनी चाहिए।
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