By नीरज कुमार दुबे | Sep 03, 2023
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में चीन की ओर से जारी किये गये नये मानचित्र पर उठे विवाद, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात, भारत-बांग्लादेश रक्षा संबंध, इसरो और डीआरडीओ तथा गैबॉन में हुए तख्तापलट से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. चीन की ओर से नया मानचित्र जारी किये जाने को आप कैसे देखते हैं? क्या भारत को भी कैलाश मानसरोवर जैसे उन स्थलों को अपने मानचित्र में दिखाना चाहिए जो ऐतिहासिक रूप से भारत के रहे हैं?
उत्तर- भारत ने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन के मानचित्र में दिखाए जाने के संबंध में पड़ोसी देश के दावों को ‘आधारहीन’ बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया और कहा है कि चीनी पक्ष के ऐसे कदम सीमा से जुड़े विषय को केवल जटिल ही बनाएंगे। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो चीन को समझना होगा कि सिर्फ बेतुके दावे करने से अन्य लोगों के क्षेत्र आपके नहीं हो जाते। उन्होंने कहा कि चीन की ओर से मनोवैज्ञानिक आधार पर दबाव बनाना कोई नयी बात नहीं है। इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। इसलिए भारत के कुछ क्षेत्रों पर अपना दावा करने वाला मानचित्र पेश करने से मुझे लगता है कि इससे कुछ नहीं बदलता। ये भारत का हिस्सा हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन की ऐसी हरकतों को ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है हालांकि भारत को उच्च स्तर की सतर्कता सदैव बनाए रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन को जब भी नया बखेड़ा शुरू करना होता है तब वह चार हजार साल पुराना मानचित्र निकालता है और उसमें संशोधन कर उसे जारी कर देता है लेकिन अब पूरी दुनिया उसका खेल समझ चुकी है इसीलिए उसके खिलाफ विश्वव्यापी माहौल बन रहा है। उन्होंने कहा कि जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीनी संविधान में बदलाव कर खुद को आजीवन राष्ट्रपति घोषित किया है तबसे उनकी महत्वाकांक्षा और बढ़ गयी है और वह दुनिया पर राज करने का जो सपना देख रहे हैं वह कभी पूरा नहीं हो पायेगा। उन्होंने कहा कि चीन यदि इस तरह के मानचित्र जारी कर रहा है तो हमें भी कैलाश मानसरोवर समेत उन क्षेत्रों को भारतीय नक्शे में दिखाना चाहिए जो ऐतिहासिक रूप से भारत के पास रहे थे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हैरत इस बात पर हो रही है कि एक ओर ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान 24 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अनौपचारिक बातचीत की लेकिन दूसरी ओर चार दिन बाद चीन ने नया मानचित्र जारी कर दिया। उन्होंने कहा कि चीन यदि संबंधों को सुधारना चाहता तो इस धृष्टता से बच सकता था। उन्होंने कहा कि चीन के इस कदम से दुनिया के समक्ष एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि चीन कहता कुछ है और करता कुछ है। उन्होंने कहा कि चीन ने अपने मानचित्र में भारत के अलावा और जिन देशों के भूभाग को अपना बताया है वह भी विरोध पर उतर आये हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत के साथ-साथ फिलीपीन, मलेशिया, वियतनाम और ताइवान की सरकारों ने चीन के नए राष्ट्रीय मानचित्र को खारिज कर दिया और कड़े शब्दों में बयान जारी कर आरोप लगाया है कि बीजिंग उनके क्षेत्रों पर अपना दावा कर रहा है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो चीन के खिलाफ एक साथ जिस तरह कई देश भारत के साथ खड़े हुए हैं उससे ड्रैगन के मन में भय का वातावरण अवश्य बना होगा। उन्होंने कहा कि फिलीपीन सरकार ने चीन के तथाकथित ‘मानक मानचित्र’ के 2023 संस्करण की आलोचना की है। उन्होंने बताया कि फिलीपीन के विदेश मामलों की प्रवक्ता मा तेरेसिता दाजा ने एक बयान में कहा है कि समुद्री क्षेत्रों पर चीन की कथित संप्रभुता और अधिकार क्षेत्र को वैध बनाने के इस नवीनतम प्रयास का अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से 1982 की समुद्र कानून संबंधी संयुक्त राष्ट्र संधि (यूएनसीएलओएस) के तहत कोई आधार नहीं है। दाजा ने कहा कि 2016 के ‘‘आर्बिट्रल अवार्ड’’ ने पहले ही सीमांकन को अमान्य कर दिया है और चीन से यूएनसीएलओएस के तहत अपने दायित्वों का पालन करने का आह्वान किया है। फिलीपीन ने पहले ही 2013 में चीन के राष्ट्रीय मानचित्र के प्रकाशन का विरोध किया था, जिसमें कलायान द्वीप समूह या स्प्रैटलीज़ के कुछ हिस्सों को चीन की ‘राष्ट्रीय सीमा’ के भीतर रखा गया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा मलेशियाई सरकार ने कहा है कि वह दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावों पर एक विरोध नोट भेजेगी, जैसा कि ‘चीन मानक मानचित्र संस्करण 2023’ में उल्लिखित है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि मलेशिया दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों को मान्यता नहीं देता है, जैसा कि चीन के मानक मानचित्र के ताजा संस्करण में बताया गया है और उसमें मलेशिया के समुद्री क्षेत्र को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा, चीन के उकसावे वाली इस ताजा कार्रवाई की वियतनाम ने भी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि वियतनामी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता फाम थू हैंग ने कहा है कि वियतनाम होआंग सा (पैरासेल) और ट्रूओंग सा (स्प्रैटली) द्वीपों पर अपनी संप्रभुता को दृढ़ता से दोहराता है, और चीन के किसी भी समुद्री दावे को दृढ़ता से खारिज करता है। उधर, ताइवान के विदेश मंत्रालय ने भी चीन के नए ‘मानक मानचित्र’ की आलोचना करते हुए कहा कि ताइवान पर कभी भी चीन का शासन नहीं रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर नेपाल से सामने आया मामला भी बड़ा रोचक है क्योंकि काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी के मेयर बालेंद्र शाह ने नेपाल के नए राजनीतिक मानचित्र को स्वीकार करने में चीन की विफलता पर वहां की अपनी पूर्व निर्धारित यात्रा रद्द कर दी है। उन्होंने बताया कि बालेंद्र शाह को चीन में आयोजित एक सांस्कृतिक उत्सव के समापन समारोह में भाग लेने के लिए वहां जाना था। सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में, मेयर शाह ने कहा कि उन्होंने चीन द्वारा सोमवार को एक नया नक्शा जारी किए जाने की पृष्ठभूमि में अपनी यात्रा रद्द कर दी है क्योंकि चीन के नये नक्शे में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख क्षेत्रों को भारत के हिस्से के रूप में दिखाया गया है जबकि नेपाल इन्हें अपना हिस्सा मानता है। काठमांडू के मेयर ने कहा कि नेपाल से पूछे बिना नेपाली क्षेत्र को भारत का बताने को हम अपनी संवेदनशीलता के खिलाफ एक गलत कदम मानते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि काठमांडू द्वारा 2020 में एक नया राजनीतिक मानचित्र प्रकाशित किए जाने के बाद भारत और नेपाल के बीच संबंधों में तनाव आ गया था, जिसमें तीन भारतीय क्षेत्रों- लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख- को नेपाल के हिस्से के रूप में दिखाया गया था। उसी साल, नेपाल की तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने देश के नए राजनीतिक मानचित्र को अद्यतन करने के लिए एक संविधान संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर किये थे जिसमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तीन भारतीय क्षेत्रों को शामिल किया गया। हालांकि भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे "एकतरफा कृत्य" बताया और काठमांडू को आगाह किया कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा "कृत्रिम विस्तार" उसे स्वीकार्य नहीं होगा।
प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं?
उत्तर- युद्ध में इस समय रूस कुछ ज्यादा फँसा हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि मास्को तक लगातार ड्रोन पहुँच रहे हैं। उन्होंने कहा कि खास बात यह है कि मास्को में रूसी एअर बेस तक ड्रोन का पहुँचना बड़ी कामयाबी है। उन्होंने कहा कि यदि यूक्रेन का यह कहना सही है कि मास्को तक ड्रोन रूस के भीतर से ही पहुँचे हैं तो यह रूस के लिए सोचने की बात है कि देश के अंदर ही कौन-से दुश्मन बैठे हुए हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह रूसी राष्ट्रपति को हथियार जुटाने के लिए कभी चीन, कभी ईरान और अब उत्तर कोरिया की मदद लेनी पड़ रही है वह दर्शाता है कि रूस की शक्ति का दम निकल चुका है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने खुलासा किया है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन को एक पत्र भेजा है क्योंकि रूस यूक्रेन युद्ध के लिए उत्तर कोरिया से युद्ध सामग्री चाहता है।?
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि अमेरिका और पश्चिमी देश उत्तर कोरिया को धमका रहे हैं कि वह रूस को किसी भी प्रकार की युद्ध सामग्री नहीं दे लेकिन फिर भी किम जोंग उन का जो स्वभाव है उसको देखते हुए वह पश्चिम की बात मानेंगे नहीं और रूस को सप्लाई अवश्य करेंगे। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो युद्ध सामग्री और पैसों के लिए सिर्फ यूक्रेन के राष्ट्रपति ही दूसरे देशों के आगे हाथ नहीं फैला रहे बल्कि रूस के राष्ट्रपति को भी ऐसा करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन को जिस तरह एफ-16 और अन्य घातक हथियार नाटो देशों से मिलते जा रहे हैं उससे उसका हौसला बढ़ा हुआ है और वह पीछे हटने को तैयार नहीं है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर वैगनर ग्रुप के मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन के मारे जाने से रूस के लिए लड़ रहे किराये के लड़ाकों का भी मनोबल कमजोर हुआ है। उनमें ऐसी भावना आ रही है कि रूस काम निकल जाने के बाद ऐसा हश्र करता है। उन्होंने कहा कि यदि प्रिगोझिन की मौत के पीछे रूस का हाथ साबित हो जाता है तो पुतिन की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं क्योंकि रूसी सेना में भी वैगनर समूह के शुभचिंतक बैठे हुए हैं।
प्रश्न-3. भारत और बांग्लादेश ने रक्षा संबंधों की समीक्षा की है। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- भारत लगातार अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने पर जोर देता है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने ढाका में हुई पांचवीं वार्षिक रक्षा वार्ता में रक्षा संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श किया। वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने ने किया, जबकि बांग्लादेशी दल का नेतृत्व बांग्लादेश के सशस्त्र बल डिवीजन के ‘प्रिंसिपल स्टाफ ऑफिसर’ लेफ्टिनेंट जनरल वाकर-उज-जमां ने किया। इस बातचीत में दोनों पक्षों ने दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच संबंधों की भावी दिशा के महत्व पर विचार-विमर्श किया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारतीय रक्षा मंत्रालय ने अपने बयान में बताया है कि बैठक के दौरान दोनों देशों के बीच चल रही रक्षा सहयोग गतिविधियों की समीक्षा की गई और दोनों पक्षों ने बढ़ती रक्षा सहयोग गतिविधियों पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि बयान के मुताबिक बातचीत में मौजूदा द्विपक्षीय अभ्यासों पर चर्चा हुई और दोनों पक्ष इन अभ्यासों की जटिलता बढ़ाने पर सहमत हुए। उन्होंने कहा कि दोनों देशों ने स्वीकार किया है कि "सार्थक बातचीत" हुई और इस बात पर जोर दिया गया कि दोनों देश बातचीत में बनी साझा समझ के आधार पर संबंधों को बनाये रखने के लिए उत्सुक हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सशस्त्र सेनाएं कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को लेकर उत्सुक हैं और सम्पर्क में बढ़ोतरी दोनों देशों के संबंधों के भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा भारत और बांग्लादेश की सैन्य सेवाओं ने अधिकारी स्तर की तीसरी त्रि-सेवा अधिकारी वार्ता (टीएसएसटी) आयोजित की, जिसमें बांग्लादेश ने अपने सशस्त्र बलों के प्रशिक्षण में भारत के निरंतर सहयोग को स्वीकार किया। टीएसएसटी की सह-अध्यक्षता बांग्लादेश सशस्त्र बल डिवीजन के संचालन और योजना निदेशालय के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल हुसैन मुहम्मद मशीउर रहमान तथा भारत के एयर वाइस मार्शल आशीष वोहरा ने की। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में बांग्लादेश के रक्षा मंत्रालय के बयान को देखना चाहिए जिसने कहा है कि बांग्लादेश के सशस्त्र बलों के प्रशिक्षण के लिए निरंतर भारतीय सहयोग बिल्कुल स्पष्ट है। उन्होंने कहा कि बयान में कहा गया कि बांग्लादेश की सेना, नौसेना और वायु सेना के कई कर्मियों को विभिन्न भारतीय संस्थानों में प्रशिक्षित किया जाता है और बांग्लादेश भी हर साल भारत के सशस्त्र बलों के कर्मियों के लिए प्रशिक्षण की मेजबानी करता है। वहीं, दोनों सशस्त्र बल संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में विभिन्न स्तरों पर एक साथ काम करते हैं। उन्होंने कहा कि बयान में कहा गया है कि हाल के वर्षों में बांग्लादेश के भारत के साथ सैन्य और सुरक्षा संबंधी संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है, जिससे द्विपक्षीय सहयोग और दोस्ती एक नई ऊंचाई पर पहुंच गई है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि तीसरी टीएसएसटी दोनों देशों द्वारा बांग्लादेश की राजधानी में पांचवीं रक्षा वार्ता आयोजित करने के दो दिन बाद आयोजित की गई। बांग्लादेश ने 2021 में पहली टीएसएसटी की मेजबानी की थी, जबकि दूसरी 2022 में भारत में आयोजित की गई थी। उन्होंने कहा कि यह बातचीत मुख्य रूप से सैन्य सहयोग, प्रशिक्षण और द्विपक्षीय रक्षा मुद्दों पर केंद्रित थी।
प्रश्न-4. इसरो की तारीफों के पुल लगातार बांधे जा रहे हैं लेकिन कहा जा रहा है कि डीआरडीओ वह मुकाम हासिल नहीं कर पाया जोकि उसे करना चाहिए था। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- दोनों ही संगठनों की कार्यशैली में बड़ा अंतर है। उन्होंने कहा कि इसरो जहां सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत आता है वहीं डीआरडीओ रक्षा मंत्रालय के तहत आता है। उन्होंने कहा कि इसरो की स्थापना डीआरडीओ के बाद हुई थी लेकिन सीमित संसाधनों के बावजूद यह संगठन इसलिए अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रहा क्योंकि इसमें नौकरशाही का हस्तक्षेप नहीं है जबकि दूसरी ओर लगभग 7500 वैज्ञानिकों और देशभर में 50 से ज्यादा विभिन्न प्रकार के लैबों के बावजूद डीआरडीओ ज्यादा सफल नहीं रहा। उन्होंने कहा कि डीआरडीओ के जो उत्पाद सफल रहे उनमें कई संयुक्त रूप से उत्पादित किये गये जैसे कि ब्रह्मोस को रूस के साथ मिलकर बनाया गया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने बताया कि जुलाई 1980 में इसरो को एक बड़ी कामयाबी मिली थी जब SLV-3 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया, जिससे भारत उपग्रह प्रक्षेपण यान में महारत हासिल करने वाला छठा देश बन गया। उन्होंने कहा कि उस परियोजना के निदेशक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बाद में भारत का मिसाइल कार्यक्रम विकसित करने के लिए डीआरडीओ में चले गए थे जिससे उस संगठन को लाभ हुआ। उन्होंने कहा कि सच कहें तो डीआरडीओ ने संगठन के रूप में नहीं बल्कि व्यक्तिगत प्रतिभा के कारण जरूर कुछ उपलब्धि हासिल की है। जैसे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) इन सफलताओं में सबसे प्रमुख है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम के बाद के संस्करण भी रुक-रुक कर ही सही, सफल रहे हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि आज इसरो और डीआरडीओ के बीच बड़ा विरोधाभास है। इसरो की जहां सराहना की जाती है वहीं डीआरडीओ की आलोचना की जाती है। उन्होंने कहा कि पिछले साल CAG ऑडिट में DRDO की कई परियोजनाओं में देरी से बढ़ने वाले खर्चों पर सवाल उठाये गये थे। साथ ही यह भी सवाल उठाये गये थे कि जिन परियोजनाओं को बंद किया गया उन्हें बाद में किस आधार पर चालू कर दिया गया? उन्होंने कहा कि यह भी सवाल उठता है कि भारी भरकम बजट वाले इस विभाग के बावजूद भारत को क्यों सामान्य हथियारों की खरीद के लिए भी आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि एक ओर इसरो दूसरे देशों के सैटेलाइट को लान्च करके आर्थिक लाभ कमाने लग गया है लेकिन दूसरी ओर डीआरडीओ एक सामान्य राइफल तक नहीं बना पाया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह भी देखने में आता है कि DRDO और भारत की सशस्त्र सेवाओं के बीच तालमेल का अभाव है। इससे समय और लागत दोनों बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि जब डीआरडीओ हमारी सेना की आवश्यकताओं को ही नहीं समझ पा रहा है और जब हमारे सशस्त्र बलों की कसौटी पर ही डीआरडीओ के उत्पाद खरे नहीं उतर पा रहे हैं तो हम दूसरे देशों को हथियार कैसे बेच पाएंगे? उन्होंने कहा कि देखा जाये तो पिछले कुछ वर्षों में डीआरडीओ का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, जिससे सशस्त्र बलों में काफी निराशा है। उन्होंने कहा कि इसरो अपनी असफलता से भी सीखता है और डीआरडीओ में नौकरशाही इस कदर हावी है कि सफलता-असफलता तक बात पहुँच ही नहीं पाती क्योंकि उत्पाद बरसों बरस परीक्षण के दौर से ही गुजरते रहते हैं तब तक तकनीक बदल जाती है और सशस्त्र बलों को उसकी जरूरत नहीं रहती। उन्होंने कहा कि डीआरडीओ द्वारा विकसित किये जा रहे उत्पादों की समय सीमा सुनिश्चित करनी होगी और इसके कार्यों की सतत समीक्षा के लिए एक समिति बनानी होगी जिसमें इस संगठन के अलावा सशस्त्र बलों के भी अधिकारी शामिल होने चाहिए।
प्रश्न-5. गैबॉन में तख्तापलट से दुनिया को क्या संदेश गया है?
उत्तर- गैबॉन में जो कुछ हुआ वह लोकतंत्र के लिए खतरा है। खासतौर पर अफ्रीकी देशों में जिस तरह की स्थिति पनप रही है वह दर्शाती है कि सेना का राजनीतिक उपयोग करने का खामियाजा वहां की सरकारों को कभी ना कभी भुगतना पड़ता है। गैबॉन में जो कुछ हुआ वह दर्शाता है कि हथियारों के बल पर राज करने की चाह बढ़ रही है इसलिए दुनिया को एकजुट रहना होगा और लोकतंत्र की रक्षा करनी होगी। उन्होंने कहा कि हाल ही में नाइजर और उसके पहले सूडान में भी ऐसी स्थिति देखने को मिली थी इसलिए खासतौर पर ऐसे देशों में रह रहे लोगों को सावधान रहने की जरूरत है।