Shaurya Path: Israel-Hamas, Russia-Ukraine, India-Russia और India-China संबंधी मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

By नीरज कुमार दुबे | Nov 14, 2024

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने इजराइल-हमास युद्ध, रूस-यूक्रेन युद्ध, भारत-रूस रक्षा संबंध और भारत-चीन रिश्तों से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-


प्रश्न-1. इजराइल ने दक्षिणी गाजा में हमले बढ़ा दिये हैं। इस बीच कतर इजराइल और हमास के बीच मध्यस्थता से अलग हो गया है। क्या अब यह युद्ध थमने के आसार पूरी तरह खत्म हो चुके हैं?


उत्तर- पिछले साल जब इजराइली सेना पहली बार गाजा में घुसी, तो उन्होंने उत्तरी गाजा को निशाना बनाया, जोकि इजरायल की सीमा के पास घनी आबादी वाले शहरी केंद्रों और छोटे स्ट्रॉबेरी खेतों तक फैला हुआ क्षेत्र था। पिछले कुछ दिनों में इस क्षेत्र में इजराइली सेना उतने हमले नहीं कर रही थी लेकिन अब हमले फिर से बढ़ा दिये गये हैं। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि हमास के कट्टर लड़ाके नागरिकों के बीच छिपे हुए थे, इसलिए इजराइली सेना ने आवासीय इलाकों, अस्पतालों और स्कूलों पर हमला किया है। उन्होंने कहा कि ठीक एक साल पहले यहां जो हालात थे अब वैसे ही हालात फिर से देखने को मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तरी गाजा नए सिरे से इजरायली हमले का केंद्र है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइली सैनिकों, टैंकों और सशस्त्र ड्रोनों ने लगभग प्रतिदिन इस क्षेत्र पर हमला किया है, जिससे 100,000 निवासी विस्थापित हुए हैं और 1,000 से अधिक अन्य लोग मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि कई निवासियों का कहना है कि इतनी सारी लाशें हैं कि सड़कों पर आवारा कुत्तों ने उन्हें नोंचना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि साथ ही इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पहली बार स्वीकार किया कि सितंबर में हिज्बुल्ला को निशाना बनाकर किए गए पेजर और वॉकी-टॉकी हमलों के पीछे उनका देश था, जिनमें 39 लोगों की मौत हो गयी तथा 3,000 से अधिक लोग घायल हो गए थे। उन्होंने कहा कि मीडिया में नेतन्याहू के हवाले से कहा गया है कि रक्षा प्रतिष्ठान में वरिष्ठ अधिकारियों और राजनीतिक क्षेत्र में उनके समर्थकों के विरोध के बावजूद पेजर और हिज्बुल्ला नेता हसन नसरल्ला को खत्म करने का अभियान चलाया गया।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हिब्रू मीडिया में आयी खबरों के अनुसार नेतन्याहू ने साप्ताहिक मंत्रिमंडल बैठक के दौरान ये टिप्पणियां कीं। उन्होंने कहा कि इजराइल ने अभी तक सार्वजनिक रूप से इन हमलों की जिम्मेदारी नहीं ली थी लेकिन व्यापक अनुमान था कि सफलतापूर्वक अंजाम दिए गए इन जटिल हमलों के पीछे उसका हाथ है। इन हमलों ने दुनिया को स्तब्ध कर दिया था। लेबनान तथा सीरिया के कुछ हिस्सों में 16 सितंबर को विस्फोटक वाले हजारों पेजर फट गए थे जो हिज्बुल्ला के समर्थकों के पास थे। उन्होंने कहा कि दुनियाभर के लोग पेजर विस्फोट की खबरों से उबर भी नहीं पाए थे कि एक दिन बाद 17 सितंबर को वॉकी-टॉकी में भी विस्फोट हुए, जिसने लेबनानी शिया मिलिशिया के खिलाफ युद्ध में इजराइल की खुफिया तैयारी के स्तर को लेकर दुनिया को चौंका दिया। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू के बयान को रक्षा मंत्री योआव गैलेंट को हटाने तथा युद्ध की सफलता का श्रेय लेकर व्यक्तिगत लोकप्रियता बढ़ाने के प्रधानमंत्री के प्रयासों के संदर्भ में समझा जा रहा है। उन्होंने कहा कि जहां तक मध्यस्थता के प्रयासों की बात है तो वह पहले भी कई हुए और विफल रहे। ऐसा लगता है कि आने वाले वक्त में भी मध्यस्थता के प्रयास विफल ही रहने वाले हैं।


प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन रह-रह कर एक दूसरे पर हमले बढ़ा रहे हैं। इस बीच रूस और उत्तर कोरिया ने रक्षा संबंधी संधि का नवीनीकरण भी कर लिया है। अब यह युद्ध अपने 1000 दिन भी पूरे करने जा रहा है। आगे के परिदृश्य को कैसे देखते हैं आप?


उत्तर- ऐसा लग रहा है कि आजकल युद्ध बंद नहीं होने के लिए शुरू हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि ताजा जानकारी यह है कि रूसी गोलाबारी में मध्य यूक्रेन के निप्रॉपेट्रोस क्षेत्र के निकोपोल शहर में दो लोगों की मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा निप्रॉपेट्रोस क्षेत्र के क्रिवी रिह में एक आवासीय इमारत पर रूसी मिसाइल हमले में एक महिला की मौत हो गई और 14 नागरिक घायल हो गए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा खबर है कि रूस के रक्षा मंत्रालय ने जानकारी दी है कि रूसी सेना ने यूक्रेन के पूर्वी खार्किव क्षेत्र में कोलिस्नीकिव्का की बस्ती पर कब्जा कर लिया है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस युद्ध में यह भी महत्वपूर्ण है कि यूक्रेन की सेनाएं रूस के कुर्स्क क्षेत्र में लगभग 50,000 दुश्मन सैनिकों से लड़ रही हैं। इस बारे में यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा है कि यूक्रेन पूर्व में पोक्रोव्स्क और कुराखोव मोर्चों पर अपनी स्थिति को "काफी मजबूत" कर रहा है जहां सबसे सक्रिय लड़ाई हो रही है। उन्होंने कहा कि इसी बीच यह भी खबर है कि यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने कहा है कि यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को युद्ध के लिए 980,000 से अधिक गोलों की आपूर्ति की है और इस साल के अंत तक इसके 1 मिलियन का आंकड़ा पार करने की योजना है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने साथ ही कहा कि उत्तर कोरिया ने रूस के साथ एक पारस्परिक रक्षा संधि की पुष्टि की है, जिस पर दोनों देशों के नेताओं ने जून में हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने कहा कि यह संधि सशस्त्र हमले के मामले में प्रत्येक पक्ष को दूसरे की सहायता के लिए आने का आह्वान करती है। उन्होंने कहा कि युद्ध के मोर्चे पर एक और अहम खबर यह है कि क्रेमलिन ने उन रिपोर्टों को खारिज कर दिया है कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की थी। उन्होंने कहा कि यह खंडन तब आया है जब अज्ञात सूत्रों ने दावा किया था कि ट्रम्प ने पुतिन को कॉल पर कहा था कि मॉस्को को यूक्रेन में अपना युद्ध नहीं बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस युद्ध में फिलहाल यही संकेत मिल रहे हैं कि इसका अंत दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा है। रूसी सेना लगातार आगे बढ़ रही है और अपने लक्ष्य को हासिल करने तक वह ऐसा करती रहेगी। उन्होंने कहा कि युद्ध में कोई नया मोड़ डोनाल्ड ट्रंप के औपचारिक रूप से अमेरिका की कमान संभालने के बाद ही संभव दिखता है।


प्रश्न-3. ऐसी रिपोर्टें हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भारत को रूस से एस-400 की आपूर्ति में तीन साल का विलंब होगा और परमाणु पनडुब्बी की आपूर्ति भी अनिश्चितकाल के लिए टल गयी है, इस पर आपका क्या कहना है? हम यह भी जानना चाहते हैं कि रूस के उप प्रधानमंत्री भारत आये और दोनों देशों ने वायु रक्षा को मजबूत बनाने के लिए ‘पैंट्सिर वेरिएंट’ समझौते पर हस्ताक्षर किये। इससे भारत को क्या लाभ होगा?


उत्तर- इसमें कोई दो राय नहीं कि युद्ध के लंबा खिंचने से रूस की ओर से विभिन्न देशों के साथ किये गये रक्षा समझौतों पर असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि भारत का एअर डिफेंस सिस्टम इतना मजबूत नहीं रहा है और वर्तमान में जिस तरह के संघर्ष चल रहे हैं उसको देखते हुए भारत को अपनी वायु रक्षा प्रणाली को तुरंत मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह प्रकरण यह भी दर्शाता है कि रक्षा क्षेत्र में पूर्ण आत्मनिर्भरता कितनी जरूरी है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत रूसी एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की शेष दो इकाइयों के लिए काफी समय से इंतजार कर रहा है। माना जा रहा है कि यह इंतजार और बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि शुरुआत में डिलीवरी 2025 तक होने की उम्मीद थी, लेकिन अब इसके 2026 की शुरुआत तक मिलने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि यह देरी ऐसे समय में हुई है जब क्षेत्रीय सुरक्षा तनावपूर्ण बनी हुई है, खासकर चीन के साथ उत्तरी सीमा पर। उन्होंने कहा कि S-400 वायु रक्षा प्रणाली की खरीद, जिसे दुनिया में सबसे उन्नत में से एक माना जाता है, को 2018 में अंतिम रूप दिया गया था जब भारत और रूस ने पांच इकाइयों के लिए 5.43 बिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली 400 किमी तक की दूरी पर विमान, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों सहित कई हवाई खतरों को ट्रैक करने और उन्हें बेअसर करने में सक्षम है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पहली S-400 दिसंबर 2021 में भारत पहुंची थी। इसके बाद अगले दो वर्षों में दूसरी और तीसरी इकाइयों की डिलीवरी और परिचालन शुरू होना था ताकि पश्चिमी और पूर्वी दोनों क्षेत्रों में भारत की रक्षा स्थिति मजबूत हो सके। उन्होंने कहा कि इन इकाइयों को शामिल करना भारत की वायु रक्षा ग्रिड को मजबूत करने में महत्वपूर्ण रहा है, खासकर पाकिस्तान और चीन जैसे विरोधियों से संभावित हवाई खतरों को देखते हुए। उन्होंने कहा कि पहले कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न व्यवधानों के कारण डिलीवरी में देरी हुई उसके बाद यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के कारण देरी हो रही है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध ने रूस के सैन्य-औद्योगिक परिसर और रक्षा अनुबंधों को पूरा करने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि शेष दो S-400 इकाइयों के आगमन में देरी ने भारतीय वायु सेना के भीतर चिंता बढ़ा दी है, जिसने देश के हवाई क्षेत्र की सुरक्षा में इन प्रणालियों के महत्व पर लगातार प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा कि देरी को ध्यान में रखते हुए, भारतीय वायुसेना और रक्षा मंत्रालय अपनी तैयारी सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक समाधान तलाश रहे हैं। इसमें अतिरिक्त वायु रक्षा प्रणालियों की संभावित खरीद शामिल है। उन्होंने कहा कि अभी तीन मौजूदा एस-400 प्रणालियों की तैनाती ने भारत की रक्षात्मक क्षमताओं को बढ़ाया है, जिससे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में अधिक मजबूत निगरानी है। उन्होंने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ जारी गतिरोध ने एक मजबूत वायु रक्षा नेटवर्क बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। एस-400 की देरी एक महत्वपूर्ण चुनौती है क्योंकि भारत का लक्ष्य अपनी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना है। उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त, उन्नत मिसाइल प्रणालियों और पांचवीं पीढ़ी के विमानों में चीन निवेश करता जा रहा है, ऐसे में भारत के लिए जरूरी है कि वह एस-400 प्रणाली को पूर्ण रूप से तैनात करके रणनीतिक बढ़त बनाए रखे।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक रूस के प्रथम उप प्रधानमंत्री की भारत यात्रा की बात है तो यह काफी महत्वपूर्ण रही। उन्होंने कहा कि भारत में रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के एक प्रमुख उपक्रम ने ‘पैंट्सिर वायु रक्षा मिसाइल-गन प्रणाली’ के वेरिएंट पर सहयोग के लिए रूस के ‘रोसोबोरोनएक्सपोर्ट’ के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने कहा कि पैंट्सिर वायु रक्षा प्रणाली ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसे अहम सैन्य और औद्योगिक केंद्रों को हवाई खतरों से बचाने व वायु रक्षा इकाइयों को मजबूत बनाने के लिए बनाया गया है। उन्होंने कहा कि रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (डीपीएसयू) के अनुसार, भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (बीडीएल) और ‘रोसोबोरोनएक्सपोर्ट’ के बीच समझौता ज्ञापन पर हाल ही में गोवा में पांचवें आईआरआईजीसी (भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग उपसमूह) के दौरान हस्ताक्षर किए गए। उन्होंने कहा कि बीडीएल को 1970 में रक्षा मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में शामिल किया गया था। इसका उद्देश्य भारतीय सशस्त्र बलों के लिए निर्देशित मिसाइल प्रणालियों और संबद्ध उपकरणों का निर्माण करना था। बीडीएल का मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है। उन्होंने कहा कि बीडीएल ने अपने बयान में कहा है कि भारत डायनेमिक्स लिमिटेड और रूस के ‘रोसोबोरोनएक्सपोर्ट’ ने पैंट्सिर वेरिएंट पर सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने कहा कि यह समझौता रूस के प्रथम उप प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव की उपस्थिति में हुआ।


प्रश्न-4. एक रिपोर्ट के मुताबिक चीनी अधिकारियों ने भारतीय मीडिया से बात करते हुए कहा है कि बीजिंग चाहता है कि दिल्ली के साथ उसके संबंध 2020 से पहले जैसे सामान्य हो जायें। आखिर चीन के मन में आ रहे इस बदलाव के असल कारण क्या हैं?


उत्तर- चीन के हर कदम के पीछे कोई ना कोई छिपा हुआ उद्देश्य होता ही है और भारत इस बात को अच्छी तरह से समझता है। उन्होंने कहा कि भारत चीन की चालों को कितनी अच्छी तरह समझता है यह बात ड्रैगन ने पिछले दस सालों में देख ली है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि आप जिस मीडिया रिपोर्ट की बात कर रहे हैं उसके मुताबिक वरिष्ठ चीनी अधिकारियों ने यह रेखांकित किया है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच पिछले महीने कज़ान में हुई बैठक काफी सकारात्मक और रचनात्मक रही थी। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ चीनी अधिकारियों ने कहा है कि दोनों पक्ष संबंधों को "सामान्य" वापस लाने के लिए कई उपायों पर चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीनी अधिकारियों का कहना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अप्रैल-मई 2020 में टकराव शुरू होने से पहले जिस तरह के संबंध दोनों देशों के थे, वैसे ही संबंध बनाये जायेंगे।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ऐसा लगता है कि बीजिंग को उम्मीद है कि जल्द ही दोनों देशों के बीच ज्यादा "सीधी उड़ानें" होंगी, राजनयिकों और विद्वानों सहित चीनी नागरिकों पर वीजा प्रतिबंधों में ढील दी जायेगी, मोबाइल ऐप्स पर प्रतिबंध हटेगा, चीनी पत्रकारों को भारत आने की अनुमति मिलेगी और चीनी सिनेमाघरों में अधिक भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन की अनुमति भी दी जायेगी। उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चीनी सरकार को यह भी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले साल शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन के लिए चीन का दौरा करेंगे। उन्होंने कहा कि चीनी अधिकारियों का कहना है कि मोदी-जिनपिंग के बीच पांच साल बाद हुई द्विपक्षीय बैठक के बाद दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों, विदेश मंत्रियों और उप विदेश मंत्रियों की बैठकें भी अब होती रहेंगी। उन्होंने कहा कि ब्राजील में होने जा रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के मंत्रियों और अधिकारियों की वार्ताएं प्रस्तावित हैं।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस मीडिया रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन सीमा मुद्दे का हल पूरी तरह से निकालने का इच्छुक है। उन्होंने कहा कि चीन की ओर से कहा गया है कि सीमा मुद्दा रिश्ते का केंद्र नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन को समझना चाहिए कि भले वहां की सरकार और जनता के लिए सीमा का मुद्दा प्रमुख नहीं हो लेकिन भारत की सरकार और जनता के लिए सीमा का मुद्दा ही सबसे प्रमुख है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो दोनों पक्षों को आपसी बातचीत के जरिए रिश्ते को आगे बढ़ाने की जरूरत है। दोनों पक्षों को सीमा मुद्दे को सुलझाने और अन्य मुद्दों पर अधिक समन्वय करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की व्हाइट हाउस में वापसी चीन के लिए ज्यादा अच्छी खबर नहीं है इसलिए भी वह भारत के निकट आना चाह रहा है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अगले साल चीन एससीओ का अध्यक्ष होगा और उसे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें भाग लेने के लिए चीन जाएंगे। उन्होंने कहा कि चीन का कहना है कि हमारे प्रधानमंत्री जी20 के लिए भारत गए थे और हमने जी20 घोषणा में भी योगदान दिया और उस पर भारत के साथ काम किया था। उन्होंने कहा कि चीन के साथ संबंधों पर सतर्कता के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। लेकिन पांच साल के रिश्तों पर गौर करें तो चीन को एक बात स्पष्ट हो गयी है कि यह पुराना भारत नहीं है, अगर आप मिलकर नहीं चलेंगे और एकतरफा ढंग से कार्रवाई करेंगे तो सख्त जवाब तत्काल मिलेगा।

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