Shaurya Path: Wagner Group, Russia-Ukraine War, Israel, Taiwan, Indian Air Force और 31 MQ-9B drones पर Brigadier DS Tripathi (R) से बातचीत

By नीरज कुमार दुबे | Jun 30, 2023

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह वैगनर ग्रुप के रुख से उपजी परिस्थितियों, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात, इजराइल से मित्रता का हाथ बढ़ाते चीन और ताइवान के खिलाफ बढ़ती चीनी आक्रामकता, भारतीय वायुसेना के सबसे बड़े युद्धाभ्यास और भारत-अमेरिका के बीच हुए रक्षा करारों पर कांग्रेस पार्टी की ओर से उठाये गये सवालों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) जी से बातचीत की गयी। पेश है विस्तृत बातचीत


प्रश्न-1. वैगनर ग्रुप की बगावत को आप कैसे देखते हैं? ऐसे और कौन-से सशस्त्र समूह हैं जिन्होंने दुनिया के अलग-अलग देशों में समय-समय पर विद्रोह किया? वैगनर ने जो किया उससे रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या असर पड़ेगा? वैगनर ग्रुप ने बेलारूस में अपना बेस बनाया है जिसको देखते हुए बाल्टिक देशों की चिंता बढ़ गयी है। यह भी खबर है कि बेलारूस के राष्ट्रपति ने रूसी राष्ट्रपति की आलोचना की है। इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं? साथ ही संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है कि रूस ने आम लोगों को टॉर्चर किया और जान से मारा। यही नहीं यूक्रेन के बारे में कहा गया कि उसने हिरासत में लिये गये लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया। इस सबको कैसे देखते हैं आप?


उत्तर- वैगनर ग्रुप जैसे कई सशस्त्र समूह हैं जिनका दुनिया के अलग-अलग देशों की सरकारें समय-समय पर उपयोग करती रहती हैं। इनमें एनसिएंट ग्रीस, अमेरिकन मिलिशियास, आयरिश रिपब्लिकन आर्मी, माहदी आर्मी, बासिज मिलिशिया, सूडान की जंजावीड़ और चीन की मैरिटाइम मिलिशिया प्रमुख हैं। जहां तक वैगनर ग्रुप की बात है तो वह पुतिन के लिए जांचा परखा सैन्य समूह था क्योंकि इसने क्रीमिया में उनकी मदद की, यूक्रेन में कई इलाकों पर रूसी कब्जे में मदद की। यही नहीं वैगनर ग्रुप अपनी सैन्य सेवाएं सीरिया और इराक समेत कुछ देशों में दे चुका है। जहां तक रूस से उसके हालिया तनावपूर्ण संबंधों की बात है तो मात्र 36 घंटों के भीतर, निजी सैन्य कंपनी वैगनर ग्रुप के नेता येवगेनी प्रिगोझिन द्वारा क्रेमलिन के खिलाफ दी गई चुनौती खत्म हो गई। प्रिगोझिन ने अपने 25,000 सैनिकों को ‘‘न्याय के लिए मार्च’’ पर निकलने का आदेश दिया, जो मास्को में रूसी राष्ट्रपति का सामना करने के लिए निकले। अगली दोपहर उन्होंने इसे बंद कर दिया। उस समय उनके सैनिक मॉस्को और रोस्तोव-ऑन-डॉन में रूसी सेना के दक्षिणी मुख्यालय के बीच एम4 मोटरवे के आधे से अधिक रास्ते पर आगे बढ़ चुके थे। उनकी निजी सेना रूसी राजधानी के 200 किमी (125 मील) के भीतर थी। संकट स्पष्ट रूप से बेलारूसी राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको की मध्यस्थता में किए गए सौदे और क्रेमलिन द्वारा इसकी पुष्टि किए जाने के कारण टल गया था। लेकिन उथल-पुथल की इस संक्षिप्त घटना का रूस और यूक्रेन में युद्ध पर स्थायी प्रभाव पड़ेगा। प्रिगोझिन और रूसी सेना के शीर्ष अधिकारियों के बीच पिछले कुछ समय से टकराव चल रहा है। लेकिन जैसे-जैसे बखमुत पर लड़ाई तेज होती गई, यह बढ़ता गया, जिसके दौरान प्रिगोझिन ने शिकायत की कि उसके 20,000 से अधिक लोग मारे गए। मई में, प्रिगोझिन ने एक और रूसी क्रांति की चेतावनी दी थी। उन्होंने चार सप्ताह बाद इस वादे को पूरा करने का प्रयास किया। लेकिन यह 1917 की अक्टूबर क्रांति के जन विद्रोह से बहुत अलग था। इसके बजाय, यह अंततः रूसी सैन्य-औद्योगिक परिसर के प्रतिस्पर्धी गुटों के बीच एक टकराव था। हालाँकि, अगर कोई समानता है, तो वह यह है कि विदेशी युद्ध उस पृष्ठभूमि का हिस्सा थे जिसके खिलाफ बोल्शेविक क्रांति और प्रिगोझिन के सत्ता के प्रयास दोनों हुए। प्रिगोझिन के विद्रोह का कथित कारण रूसी सेना द्वारा यूक्रेन में अग्रिम मोर्चे पर उसके शिविर पर किया गया स्पष्ट हवाई हमला था। हवाई हमला स्वयं, यदि वास्तव में ऐसा हुआ, तो एक संकेत है कि क्रेमलिन को पता था कि कुछ घटित हो रहा है। लेकिन जिस गति और सटीकता के साथ प्रिगोझिन ने अपने सैनिकों को बड़ी दूरी पर और रोस्तोव-ऑन-डॉन सहित रणनीतिक स्थानों पर पहुंचाया- यह दर्शाता है कि यह एक अच्छी तरह से तैयार ऑपरेशन था। हो सकता है कि यह विफल हो गया हो, लेकिन क्रेमलिन के किसी भी भावी चुनौती देने वाले के लिए इसमें भी सबक होंगे।


फिलहाल पुतिन के पास विचार करने और ध्यान देने के लिए अन्य समस्याएं हैं। रूसी राष्ट्रपति का भाषण बेहद आक्रामक था, जिसमें उन्होंने ‘‘सशस्त्र विद्रोह’’ को अंजाम देने वाले को कुचलने की कसम खाई थी। 12 घंटों के भीतर, उन्होंने एक समझौता किया जिसके तहत, फिलहाल, प्रिगोझिन या उसके किसी भी भाड़े के सैनिक को दंडित नहीं किया जाएगा। इससे भी अधिक, प्रिगोझिन के साथ प्रतिद्वंद्विता के दौरान पुतिन अपने रक्षा मंत्री, सर्गेई शोइगु और जनरल स्टाफ के प्रमुख वालेरी गेरासिमोव के साथ खड़े रहे। लेकिन अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि इन दोनों को बदला जा सकता है। शोइगु की जगह एलेक्सी ड्युमिन आ सकते हैं जिन्होंने उस ऑपरेशन का नेतृत्व किया था और जिसके परिणामस्वरूप 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्ज़ा हुआ। वर्तमान में वह तुला के क्षेत्रीय गवर्नर के रूप में कार्यरत हैं।

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हाल के दिनों में जो कुछ हुआ उससे पुतिन की देश या विदेश में किसी मजबूत नेता की छवि नहीं बनती। इसके अलावा, तथ्य यह है कि प्रिगोझिन के भाड़े के सैनिक जमीन पर किसी भी प्रतिरोध का सामना किए बिना मास्को के इतने करीब पहुंच गए और पुतिन को उनके साथ समझौता करना पड़ा और यह महत्वपूर्ण है। यह संकट का जवाब देने और यूक्रेन में युद्ध से परे सैन्य और सुरक्षा संसाधनों को तैनात करने की रूस की क्षमता की सीमाओं के बारे में कुछ कहता है। प्रिगोझिन के प्रति प्रतिरोध की कमी और रोस्तोव-ऑन-डॉन में वैगनर को प्राप्त स्पष्ट लोकप्रिय समर्थन क्षेत्रीय अभिजात वर्ग और क्रेमलिन के बाहर के लोगों के बीच यूक्रेन में युद्ध के प्रति उत्साह की कमी की तरफ भी इशारा करता है। यह इस बात पर भी सवाल उठाता है कि आम लोग शासन में बदलाव के बारे में कैसा महसूस कर सकते हैं जिसमें चुनाव पुतिन और प्रिगोझिन के बीच है। इन कमजोरियों का उजागर होना रूस के कुछ बचे हुए सहयोगियों के लिए भी चिंताजनक होगा। तुर्की के राष्ट्रपति, रेसेप तैयप एर्दोगन, पुतिन के टेलीविज़न संबोधन के बाद उनसे बात करने वाले पहले विदेशी नेताओं में से एक थे।


प्रश्न-2. चीन ने इजराइल के राष्ट्रपति को निमंत्रण भेजा है। इसे कैसे देखते हैं आप? साथ ही भारत-अमेरिका रिश्तों पर चीन ने कहा है कि देशों के बीच सहयोग से क्षेत्रीय शांति को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। इसे कैसे देखते हैं आप?


उत्तर- दरअसल चीन चाहता है कि इजराइल से संबंधी सुधरें तो इसका लाभ अमेरिका से संबंधों में सुधार के लिए भी मिले। लेकिन इजराइल चीन की हर चाल को समझता है इसलिए जैसे ही चीन ने इजराइली प्रधानमंत्री को निमंत्रण भेजा, बेंजामिन नेतन्याहू ने इसकी जानकारी अमेरिका को दी। अमेरिका और इजराइल के संबंध दुनिया में सबसे बेहतरीन द्विपक्षीय संबंधों में से हैं। चीन यह भी चाहता है कि इजराइल से संबंध सुधारने के बाद यदि वह फिलस्तीन और इजराइल के बीच कोई समझौता करा पाया तो यह वैश्विक कूटनीति में उसकी एक बड़ी जीत होगी। दरअसल चीनी राष्ट्रपति पद पर एक बार फिर काबिज होने के बाद से शी जिनपिंग विश्व राजनीति में भी अपनी भूमिका तलाश रहे हैं। इस क्रम में उन्होंने हाल में कई पुराने दुश्मन देशों को करीब लाने में सफलता हासिल भी की है।


जहां तक भारत-अमेरिका संबंधों पर चीन के बयान की बात है तो उसकी बौखलाहट स्वाभाविक ही है। इसलिए चीन ने कहा है कि देशों के बीच सहयोग से न तो क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता को कमजोर किया जाना चाहिए, और न ही किसी तीसरे पक्ष को निशाना बनाया जाना चाहिए। चीन की यह प्रतिक्रिया भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में हुए विभिन्न रक्षा और वाणिज्यिक समझौतों के परिप्रेक्ष्य में आई है। इन समझौतों में लड़ाकू विमानों के लिए एफ414 जेट इंजनों का संयुक्त उत्पादन एवं सशस्त्र ड्रोन की खरीद शामिल है। इसके अलावा, जनरल इलेक्ट्रिक एयरोस्पेस ने घोषणा की है कि इसने भारतीय वायुसेना के हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए)-एमके-द्वितीय तेजस के लिए संयुक्त रूप से लड़ाकू जेट इंजन बनाने के वास्ते हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। भारत ने जनरल एटमिक्स से सशस्त्र एमक्यू-9बी सीगार्जियन ड्रोन खरीदने के अपने इरादे की घोषणा की। यह उन्नत प्रौद्योगिकी भारत की खुफिया, निगरानी और टोही क्षमताओं को बढ़ाएगी। जनरल एटमिक्स का एमक्यू-9 ‘रीपर’ सशस्त्र ड्रोन 500 प्रतिशत अधिक पेलोड ले जा सकता है और पहले के एमक्यू-1 प्रीडेटर की तुलना में इसमें नौ गुना अधिक अश्वशक्ति है। जाहिर है, जब भारत को इतने अहम रक्षा उपकरण मिलेंगे तो चीन बौखलायेगा ही।


प्रश्न-3. ताइवान के विदेश मंत्री जौशीह जोसेफ वू ने कहा है कि ताइवान के खिलाफ चीन का खतरा जितना दिख रहा है उससे कहीं अधिक गंभीर है। यही नहीं, बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जापान और ताइवान के आसमान में चीनी जासूसी गुब्बारे देखे गये। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?


उत्तर- दरअसल ताइवान को लगा रहा है कि अगर हमला हुआ तो पहले अपने बचाव में उसको खुद ही उतरना होगा इसलिए वह अपनी तैयारियां तेज कर रहा है। उसे डर इस बात का भी है कि जिस तरह दुनिया के बड़े देश पिछले साल लगातार उसे समर्थन दे रहे थे वह दौर थम गया है। यही नहीं हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने चीन के दौरे के समय चीनी राष्ट्रपति से बातचीत के दौरान वन चाइना पॉलिसी का समर्थन किया था जिससे ताइवान के होश उड़े हुए हैं। इसलिए भी ताइवान के विदेश मंत्री जौशीह जोसेफ वू ने कहा है कि ताइवान के खिलाफ चीन का खतरा जितना दिख रहा है उससे कहीं अधिक गंभीर है और बीजिंग द्वारा बलपूर्वक यथास्थिति बदलने के किसी भी प्रयास के दुनिया के लिए गंभीर परिणाम होंगे, जिसमें सेमीकंडक्टर की आपूर्ति बाधित होना भी शामिल है।


वू ने कहा कि ताइवान के लोग अपने देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए दृढ़-प्रतिज्ञ हैं और रूसी हमले का सामना करने के यूक्रेनवासियों के अविश्वसनीय दृढ़ संकल्प से ताइवानवासियों का संकल्प और बढ़ गया है। चीन कहता रहा है कि ताइवान उसका हिस्सा है और उसे मुख्य भूमि के साथ फिर से एकीकृत किया जाना चाहिए और यदि इसके लिए जरूरी हुआ तो बल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। चीन नियमित रूप से ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र में लड़ाकू विमान भेज रहा है और स्व-शासित द्वीप के करीब युद्धपोत तैनात कर रहा है। ताइवान के विदेश मंत्री ने कहा कि समय आ गया है कि सभी लोकतांत्रिक देश चीन के विस्तारवादी एजेंडे और विशेषकर समुद्री क्षेत्र में उसकी सैन्य ताकत से निपटने के तरीके खोजें। वू ने कहा है कि मुझे यकीन नहीं है कि चीन, यूक्रेनी युद्ध को उसी तरह से देख रहे हैं जिस तरह से अन्य देश इसे देख रहे हैं। दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक रूस को यूक्रेन पर आक्रमण में मुश्किलें आ रही हैं। उन्होंने कहा कि बहुत से लोगों का अनुमान था कि युद्ध एक या दो सप्ताह में समाप्त हो जाएगा, लेकिन यह एक साल से अधिक समय तक खिंच गया और यह चीन के लिए एक अच्छा सबक है। वू ने कहा कि चीनी नेतृत्व को ताइवान के खिलाफ युद्ध शुरू करने की कठिनाइयों को समझना चाहिए और चीन के जीतने की कोई गारंटी नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर वे समझते हैं, तो उन्हें ताइवान के खिलाफ सैन्य धमकियों का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए...एक बात हम दुनिया को याद दिलाते रहते हैं कि कोई भी युद्ध, खासकर दुनिया के इस हिस्से में, दुनिया के बाकी हिस्सों पर असर डाल सकता है। ताइवान के विदेश मंत्री ने आगाह किया कि ताइवान के खिलाफ चीन की किसी भी सैन्य शत्रुता का वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, विशेषकर सेमीकंडक्टर, पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। भारत और दुनिया भर के देश ताइवान में उत्पादित सेमीकंडक्टर पर बहुत अधिक निर्भर हैं। वू ने कहा कि ताइवान दुनिया भर में आवश्यक 90 प्रतिशत उन्नत चिप्स की आपूर्ति करता है। उन्होंने कहा कि चीन, ताइवान के खिलाफ जिस भी युद्ध का इस्तेमाल करना चाहता है, उसका वैश्विक स्तर पर गंभीर प्रभाव पड़ने वाला है। हमें यह देखकर खुशी हो रही है कि प्रमुख अंतरराष्ट्रीय नेता चीन को यथास्थिति कायम रखने के लिए आगाह कर रहे हैं, खासकर बल प्रयोग से। उन्होंने कहा कि हमने यूक्रेन के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी देखा और इसे मैं यूक्रेनियों के लिए अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता की लड़ाई की दृष्टि से महत्वपूर्ण समझता हूं। ताइवान के विदेश मंत्री ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध ने असममित युद्ध के महत्व को उजागर किया है। उन्होंने कहा कि हम बहुत गंभीरता से सैन्य सुधार में भी लगे हुए हैं। उदाहरण के लिए, हम अपनी सेना को असममित युद्ध के लिए भी अनुकूलित करने की कोशिश कर रहे हैं। हम ऐसे युद्ध के लिए हथियार हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। असममित युद्ध से तात्पर्य युद्ध के अपरंपरागत रूपों से है। ताइवान जलसंधि, ताइवान को चीन से अलग करती है। ताइपे के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों को दर्शाते हुए अमेरिका नियमित रूप से इस क्षेत्र में अपने युद्धपोत भेजता है। वू ने यूक्रेन के खिलाफ रूसी आक्रामकता को ‘अकारण’ करार दिया। उन्होंने कहा कि यह मानवाधिकारों के सबसे बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है। यह मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है। युद्ध अंतरराष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के मौलिक सिद्धांतों का भी घोर उल्लंघन है। वू ने कहा कि ताइवान, यूक्रेन ही नहीं बल्कि पोलैंड, स्लोवाकिया और लिथुआनिया जैसे देशों में शरण ले रहे यूक्रेनवासियों को मानवीय सहायता भी प्रदान कर रहा है।


प्रश्न-4. भारतीय वायुसेना इस साल अक्टूबर में बड़े युद्धाभ्यास का आयोजन करने जा रही है। इसके पीछे क्या उद्देश्य है? साथ ही भारत-अमेरिका रक्षा करार पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने Cabinet Committee on Security की बैठक किए बिना फिर से अपना महंगा शौक पूरा किया। कांग्रेस का आरोप है कि जो प्रीडेटर ड्रोन दूसरे देश 4 गुना कम कीमत पर खरीदते हैं, उन्हें PM मोदी 880 करोड़ रुपए प्रति ड्रोन के हिसाब से खरीद रहे हैं। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?


उत्तर- भारतीय वायु सेना अक्टूबर में एक बड़े युद्धाभ्यास का आयोजन करेगी जिसमें करीब 12 देशों की वायु सेनाएं भाग लेंगी और इसमें सैन्य सहयोग सुधारने पर ध्यान दिया जाएगा। ‘तरंग शक्ति’ भारत में आयोजित हो रहा सबसे बड़ा वायु सैनिक अभ्यास है। समझा जाता है कि अभ्यास में फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान की वायु सेनाएं भाग लेंगी। युद्धाभ्यास में छह देश अपने लड़ाकू विमानों, सैन्य परिवहन विमान और बीच हवा में ईंधन भर सकने वाले विमानों जैसे संसाधनों के साथ भाग लेंगे, वहीं छह अन्य देशों को पर्यवेक्षक के रूप में आमंत्रित किया जाएगा। राजस्थान सेक्टर में यह अभ्यास हो सकता है। इसके अलावा हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारतीय वायु सेना ने पिछले कुछ महीने में अनेक बड़े अभ्यासों में हिस्सा लिया है। एक बात और ध्यान रखे जाने की जरूरत है कि जो भी देश इस युद्धाभ्यास में भाग लेंगे वह कहीं ना कहीं चीनी आक्रामकता से परेशान हैं।


जहां तक अमेरिका से आने वाले ड्रोनों पर सियासत की बात है तो हमें सरकार का पक्ष भी सुनना चाहिए जिसने बताया है कि भारत के लिए एमक्यू-9बी ड्रोन के वास्ते अमेरिका द्वारा प्रस्तावित औसत अनुमानित लागत वाशिंगटन से इसे खरीदने वाले अन्य देशों की तुलना में 27 प्रतिशत कम होगी। भारतीय प्रतिनिधि बातचीत के दौरान इसे और कम करने का काम करेंगे। सरकार ने स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है कि अभी तक मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर बातचीत शुरू नहीं हुई है। हमें विश्वास है कि अंतिम कीमत अन्य देशों द्वारा वहन की जाने वाली लागत की तुलना में प्रतिस्पर्धी होगी। कीमतें तभी बढ़ाई जा सकती हैं जब भारत इन ड्रोन में अतिरिक्त विशिष्टताओं की मांग करेगा। संबंधित 31 ड्रोन की प्रस्तावित खरीद की दिशा में नवीनतम आधिकारिक घटनाक्रम रक्षा खरीद परिषद द्वारा दी गई "आवश्यकता की स्वीकृति" का रहा है, जो 15 जून को हुआ था। अमेरिका निर्मित इन ड्रोन की सांकेतिक लागत 307.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर है। प्रत्येक ड्रोन के लिए यह कीमत 9.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर बैठती है। इस ड्रोन को रखने वाले कुछ देशों में से एक संयुक्त अरब अमीरात को प्रति ड्रोन 16.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना पड़ा। भारत जिस एमक्यू-9बी को खरीदना चाहता है, वह संयुक्त अरब अमीरात के बराबर है, लेकिन बेहतर संरचना के साथ है। 


ब्रिटेन द्वारा खरीदे गए ऐसे 16 ड्रोन में से प्रत्येक की कीमत 6.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर थी, लेकिन यह सेंसर, हथियार और प्रमाणन के बिना केवल एक "हरित विमान" था। सेंसर, हथियार और पेलोड जैसी सुविधाओं पर कुल लागत का 60-70 प्रतिशत हिस्सा खर्च होता है। भारत के सौदे के आकार और इस तथ्य के कारण कि विनिर्माता ने अपने शुरुआती निवेश का एक बड़ा हिस्सा पहले के सौदों से वसूल कर लिया है, नयी दिल्ली के लिए कीमत दूसरे देशों की तुलना में कम हो रही है। भारत को इन ड्रोन के साथ अपने कुछ रडार और मिसाइलों को एकीकृत करने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे कीमत में संशोधन हो सकता है।


वायुसेना, थलसेना और नौसेना ने सभी स्तरों पर इनकी खरीद का समर्थन किया है। भारत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के हिस्से के रूप में 15-20 प्रतिशत तकनीकी जानकारी चाहता है और इंजन, रडार प्रोसेसर इकाइयों, वैमानिकी, सेंसर और सॉफ्टवेयर सहित प्रमुख घटकों एवं उपप्रणालियों का निर्माण और स्रोत यहीं से किया जाएगा। एक बार दोनों सरकारों से सौदे को अंतिम मंजूरी मिल जाने के बाद, भारत अपनी तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए इनमें से 11 ड्रोन जल्द खरीदने पर विचार कर रहा है और बाकी को देश में ही तैयार किया जाएगा। झूठी खबरें और प्रचार करके सौदे को बाधित करने का प्रयास किया जा सकता है क्योंकि उन्नत हथियारों से भारत के प्रतिद्वंद्वियों में डर और घबराहट पैदा होगी तथा इन उन्नत ड्रोन से भारत को अपने दुश्मनों पर प्रभावी ढंग से निगरानी रखने में मदद मिलेगी। इन ड्रोनों के आ जाने से हमारे दुश्मनों द्वारा हमें आश्चर्यचकित किए जाने की संभावना बहुत कम हो जाएगी। भारत और अमेरिका सरकारों के बीच होने वाला सौदा पारदर्शी एवं निष्पक्ष होना तय है।


अधिक ऊंचाई वाले एवं लंबे समय तक टिके रहने वाले ये ड्रोन 35 घंटे से अधिक समय तक हवा में रहने में सक्षम हैं और चार हेलफायर मिसाइल तथा लगभग 450 किलोग्राम बम ले जा सकते हैं। भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर में निगरानी के लिए 2020 में जनरल एटमिक्स से दो एमक्यू-9बी सी गार्जियन ड्रोन एक साल की अवधि के लिए पट्टे पर लिए थे और बाद में पट्टा अवधि बढ़ा दी गई थी।

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