By नीरज कुमार दुबे | Feb 04, 2024
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह विदेशों में अमेरिकी ठिकानों पर हो रहे हमलों, ईरान और पाकिस्तान के बीच हुई सुलह, इजराइल-हमास संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध और मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की बढ़ती मुश्किलों से संबंधित मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. ईरान समर्थित आतंकी कई देशों में अमेरिकी ठिकानों पर हमले कर रहे हैं, क्या आप एक और युद्ध की आहट देख रहे हैं?
उत्तर- लगता तो ऐसा ही है कि अमेरिका एक और युद्ध छेड़ने के मूड़ में है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने जॉर्डन में अपने सैनिकों पर हमलों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हुए इराक और सीरिया में ईरान समर्थित मिलिशिया (असैनिक लड़ाकों) और ईरानी ‘रिवोल्यूशनरी गार्ड’ के 85 ठिकानों पर हमले किए हैं। उन्होंने कहा कि जॉर्डन में ईरान समर्थित समूह के ड्रोन हमले में तीन अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गई थी और 40 से अधिक सैनिक घायल हो गए थे। उन्होंने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और अन्य शीर्ष अमेरिकी नेता कई दिनों से चेतावनी दे रहे थे कि अमेरिका मिलिशिया समूहों पर जवाबी हमला करेगा और उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि यह केवल एक हमला नहीं बल्कि समय के साथ की जाने वाली कई स्तर की प्रतिक्रिया होगी। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सैन्य बलों ने 85 से अधिक लक्ष्यों पर हमला किया, इस हमले में अमेरिका से भेजे गए लंबी दूरी के बमवर्षक विमानों सहित कई विमान शामिल थे।
प्रश्न-2. आखिर चीन ने कैसे पाकिस्तान और ईरान के बीच सुलह करा दी?
उत्तर- यदि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहल नहीं करते तो मुद्दा बढ़ सकता था। उन्होंने कहा कि ईरान के साथ चीन के रिश्ते काफी सहज हैं और पाकिस्तान का तो वह पुराना मददगार है ही। उन्होंने कहा कि जब चीन ने देखा कि पहले ही आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान फंस गया है तो वह मदद के लिए आगे आया और दोनों देशों के बीच सुलह कराई।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन ने पिछले साल ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध बहाल करने में सफलता हासिल की थी और अब उसने ईरान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उसे मनाया और दोनों देशों को यह संदेश दिया कि वे अपनी संवेदनशील सीमाओं पर किसी और संघर्ष से बचें। उन्होंने कहा कि यह सब देख कर अमेरिका चिंतित हो रहा है कि चीन ना सिर्फ खाड़ी क्षेत्र में बल्कि दक्षिण एशिया में भी शांति का नया मसीहा बनकर उभर रहा है। उन्होंने कहा कि भू-राजनीति के क्षेत्र में अहम भूमिका में चीन का आना अमेरिका के लिए बहुत बड़ा झटका है। उन्होंने कहा कि चीन ने ईरान और पाकिस्तान के बीच टकराव को इसलिए भी टलवाया है ताकि वह अमेरिका को यह दिखा सके कि बीजिंग का कितना प्रभाव है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन के हस्तक्षेप के बाद जिस तरह ईरान के सुर बदले हैं वह हैरान करने वाला है। उन्होंने कहा कि पहले तेहरान सारा दोष पाकिस्तान पर मढ़ रहा था लेकिन अब ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुल्लाहियान ने तालिबान की अगुवाई वाले अफगानिस्तान की ओर परोक्ष रूप से इशारा करते हुए कहा है कि इसमें कोई ‘शक नहीं’ कि पाकिस्तान और ईरान के सीमावर्ती क्षेत्रों में मौजूद आतंकवादियों को तीसरे देशों का ‘समर्थन’ प्राप्त है। उन्होंने कहा कि जिस तरह ईरानी विदेश मंत्री इस तनावपूर्ण माहौल में भागे भागे पाकिस्तान पहुँचे और वहां के विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया उससे कूटनीति के बड़े-बड़े जानकारों को भी हैरानी हुई है। उन्होंने कहा कि संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में दोनों मंत्रियों ने कहा कि ‘‘हमारे ऐतिहासिक संबंध इस बात के गवाह हैं कि हम दो भिन्न भौगोलिक स्थितियों में स्थित एकल राष्ट्र हैं। ईरान एवं पाकिस्तान एक दूसरे की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हैं। हम यहां हैं, इसलिए मुखर रूप से हम सभी आतंकवादियों को बतायेंगे कि ईरान एवं पाकिस्तान उन्हें अपनी साझा सुरक्षा को खतरे में नहीं डालने का मौका देंगे।’’ उन्होंने कहा कि ईरान और पाकिस्तान का विदेश मंत्रियों के स्तर पर ‘‘उच्च स्तरीय सकारात्मक प्रणाली की स्थापना’ करना चीनी प्रयासों की बड़ी जीत है। उन्होंने कहा कि जो देश एक सप्ताह पहले तक एक दूसरे पर मिसाइल हमला कर रहे थे वह अब इस कदर दोस्त नजर आ रहे हैं कि पाकिस्तान ने ईरानी राष्ट्रपति को देश आने का न्यौता तक दे दिया है।
प्रश्न-3. इजराइल-हमास संघर्ष अब किस मोड़ पर है?
उत्तर- यह संघर्ष खिंचता नजर आ रहा है क्योंकि दोनों ही पक्ष झुकने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ताजा खबर यह है कि हफ्तों की बमबारी और गहन जमीनी अभियानों के बाद खान यूनिस में हमास को ''विघटित'' करने के बाद, इजरायल की सेना गाजा के सबसे दक्षिणी शहर राफा तक अपने आक्रामक रुख को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी एन्क्लेव की आधी से अधिक आबादी ने इजराइली हमले के बाद से राफ़ा में शरण ले रही है लेकिन अब उसके सामने संकट है कि वह जाए तो जाए कहां? उन्होंने कहा कि एक तरह से राफ़ा में इजराइली सेना का पहुँचना प्रेशर कुकर की भांति होगा क्योंकि यदि यहां आम लोग निशाने पर आये तो हमास के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो जायेगी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा कई राजनयिक प्रस्तावित अस्थायी संघर्ष विराम और बंधक रिहाई समझौते की रूपरेखा पर हमास के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस बारे में कतरी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि उग्रवादी समूह हमास ने ''प्रारंभिक सकारात्मक पुष्टि'' की है। उन्होंने कहा कि साथ्ज्ञ ही इज़राइल का युद्ध मंत्रिमंडल भी आगे की बातचीत शुरू करने से पहले हमास की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो हमास-इजराइल युद्ध को चार महीने पूरे होने वाले हैं, ऐसे में कुछ इजराइली गाजा पट्टी से शेष 136 बंधकों को छुड़ाने में इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू और उनकी सरकार की विफलता को लेकर लगातार आक्रोश भी प्रकट कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इजराइली प्रदर्शनकारियों ने नेतान्याहू के इस्तीफे की मांग की है जबकि बंधक बनाए गए लोगों के परिवारों के दर्जनों सदस्यों ने 22 जनवरी 2024 को इजराइली संसद पर धावा बोल दिया और बंधकों की रिहाई के लिए समझौता करने की मांग की। उन्होंने कहा कि देखने में आ रहा है कि युद्ध को लेकर इजराइली जनता की राय बदल रही है। उन्होंने कहा कि युद्ध के पहले तीन महीनों में, इजराइलियों, विशेष रूप से यहूदी इजराइलियों ने, युद्ध और हमास को हराने व नष्ट करने के सरकार के घोषित लक्ष्य का पुरजोर समर्थन किया था। लेकिन अब वह सर्वसम्मति और एकता तेजी से कमजोर हो रही है। उन्होंने कहा कि नेतान्याहू का कहना है कि युद्ध जारी रखना बंधकों को रिहा कराने का सबसे अच्छा तरीका है, लेकिन बंधकों के परिवारों समेत अनेक इजराइली यह तर्क दे रहे हैं कि युद्ध जारी रहने से हर गुजरते दिन के साथ बंधकों का जीवन अधिक खतरे में पड़ रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा इस बारे में भी संदेह बढ़ रहा है कि क्या इजराइल वास्तव में हमास को निर्णायक रूप से पराजित और खत्म कर सकता है। उन्होंने कहा कि युद्ध के तीन महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी हमास खत्म नहीं हुआ है और इजराइल पर रॉकेट हमले कर रहा है। इजराइल हमास के मध्य स्तर के कमांडरों को मार चुका है, लेकिन हमास के नेता अभी भी जीवित हैं और लड़ने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि अधिकांश इजराइली यहूदियों का ध्यान बंधकों के भाग्य और इजराइली सैनिकों के हताहत होने पर है। उन्होंने कहा कि नवंबर में रिहा हुए कुछ बंधक कैद में अपने दुखद अनुभवों को भूल नहीं पा रहे हैं, इससे जनता का ध्यान अब भी गाजा में बंधकों पर केंद्रित है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि साथ ही गाजा में इजराइली सैनिकों की मौतों से भी लोगों का ध्यान नहीं हटा है। युद्ध शुरू होने के बाद से 23 जनवरी इजराइली सेना के लिए सबसे घातक दिन था जब 24 सैनिक मारे गए थे। अधिकांश इजराइली यहूदियों ने सेना में सेवा की है, और अधिकांश के परिवार के सदस्य या मित्र फिलहाल सेवाएं दे रहे हैं। इसलिए वे सेना से बहुत जुड़े हुए हैं, और सैनिकों की मौतें इजराइली समाज में बहुत शक्तिशाली भूकंप की तरह हैं। उन्होंने कहा कि अधिकांश इजराइली जिस चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं वह गाजा में फलस्तीनी नागरिकों की पीड़ा है। उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर नेतान्याहू फिलहाल असमंजस की स्थिति का सामना कर रहे हैं। एक ओर जहां उन पर बंधकों को छुड़ाने का दबाव है तो दूसरी ओर युद्ध खत्म करने की चुनौती है। ऐसे में आने वाला समय नेतान्याहू के लिए और भी चुनौती भरा हो सकता है, जिनसे पार पाना उनके लिए आसान नहीं होगा।
प्रश्न-4. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुए अब दो साल हो गये। आखिर और कितना खिंचेगा यह युद्ध?
उत्तर- मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को अब यह अहसास हो गया होगा कि उनसे कितनी बड़ी गलती हो गयी है। उन्होंने कहा कि उनके मंत्रियों के मनोनयन को संसद की मंजूरी नहीं मिलना, संसद में मारपीट होना, विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति को भारत से माफी मांगने की सलाह देना और मालदीव की जनता के मन में चीन के प्रति बढ़ता गुस्सा तथा राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग आना दर्शा रहा है कि मुइज्जू को भारत विरोध बहुत भारी पड़ने वाला है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत और मालदीव के संबंधों में ताजा अपडेट यही है कि मालदीव के विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी है कि भारत इस द्वीपीय देश में तीन विमानन प्लेटफॉर्म में अपने सैन्यकर्मियों को बदलेगा और इस प्रक्रिया का पहला चरण 10 मार्च तक पूरा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मालदीव के विदेश मंत्रालय का यह बयान इस विवादास्पद मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच एक उच्च-स्तरीय बैठक के कुछ घंटे बाद आया। दोनों देशों के कोर समूह की बैठक दिल्ली में संपन्न हुई, जिसमें मुख्य रूप से मालदीव से भारतीय सैन्यकर्मियों को वापस बुलाने के विषय पर चर्चा हुई। विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्ष मालदीव में भारतीय विमानन प्लेटफॉर्म का संचालन जारी रखने के लिए कुछ परस्पर स्वीकार्य समाधान पर सहमत हुए। उन्होंने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि पिछले महीने, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने भारत से 15 मार्च तक द्वीपीय राष्ट्र से अपने सभी सैन्यकर्मियों को वापस बुलाने को कहा था। उन्होंने कहा कि मालदीव के विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि ‘दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि भारत सरकार 10 मार्च तक तीन विमानन प्लेटफार्म में से एक में सैन्यकर्मियों को बदल देगी और 10 मई तक अन्य दो प्लेटफार्म में सैन्यकर्मियों को बदलने का काम पूरा कर लेगी।' अपने बयान में, विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्ष मालदीव के लोगों को मानवीय सहायता एवं मेडिकल बचाव सेवाएं मुहैया करने वाले भारतीय विमानन प्लेटफॉर्म का संचालन जारी रखने के लिए कुछ परस्पर स्वीकार्य समाधान पर सहमत हुए हैं। बयान में कहा गया है कि उच्च-स्तरीय कोर समूह की अगली बैठक पारस्परिक रूप से एक सुविधाजनक तारीख को माले में आयोजित करने पर सहमति बनी। विदेश मंत्रालय ने कहा कि बैठक के दौरान, दोनों पक्षों ने जारी विकास सहयोग परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी लाने सहित साझेदारी को बढ़ाने की दिशा में द्विपक्षीय सहयोग से संबंधित व्यापक मुद्दों पर अपनी चर्चा जारी रखी। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिसंबर में, दुबई में सीओपी28 शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के बीच हुई एक बैठक के बाद दोनों पक्षों ने कोर समूह गठित करने का निर्णय लिया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अभी भारत के करीब 80 सैन्यकर्मी मालदीव में हैं, जो मुख्य रूप से दो हेलीकाप्टर और एक विमान का संचालन करने के लिए हैं। इनके जरिये सैंकड़ों मेडिकल बचाव एवं मानवीय सहायता मिशन को पूरा किया गया है। उन्होंने कहा कि मुइज्जू के पिछले साल नवंबर में सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव आ गया था। कार्यभार संभालने के बाद, व्यापक रूप से चीन समर्थक नेता माने जाने वाले मुइज्जू का यह कहना है कि वह भारतीय सैन्यकर्मियों को देश से निष्कासित कर अपने चुनावी वादे को पूरा करेंगे। उन्होंने कहा कि मालदीव, हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख समुद्री पड़ोसी है और रक्षा एवं सुरक्षा के क्षेत्रों में संपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में (मालदीव की) पूर्ववर्ती सरकार के तहत प्रगति हुई थी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मालदीव में यह बात बेहद निराली हुई कि जम्हूरी पार्टी के नेता जसीम इब्राहिम ने राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू से भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से औपचारिक रूप से माफी मांगने और द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए ‘‘राजनयिक सुलह’’ करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि जसीम इब्राहिम की यह मांग चीन समर्थक माने जाने वाले मुइज्जू की उन टिप्पणियों के संदर्भ में की गयी है जिसमें इस महीने की शुरुआत में उन्होंने किसी देश का नाम लिए बगैर भारत को धमकाने वाला देश बताया था। उन्होंने कहा कि खास बात यह है कि जम्हूरी पार्टी ने यह मांग तब की है जब विपक्षी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) ने कहा कि उसकी मुइज्जू पर महाभियोग चलाने के लिए एक प्रस्ताव रखने की तैयारी है। उन्होंने कहा कि हालांकि मालदीव सरकार ने राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू पर महाभियोग चलाने की विपक्ष की योजना के मद्देनजर संसद के स्थायी आदेशों में हुए हालिया संशोधन को लेकर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने कहा कि इस समय मालदीव के राष्ट्रपति की जो स्थिति है उसको देखते हुए यही लगता है कि उनके मन में भी आ रहा होगा कि चीन के बहकावे में आकर भारत और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जो पंगा लिया है उससे उनके सत्ता स्वाद का सारा मजा खराब हो गया।
प्रश्न-5. मालदीव में जिस तरह राष्ट्रपति मुइज्जु का विरोध बढ़ने लगा है उसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- यह युद्ध खिंच इसलिए रहा है क्योंकि अब यह प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका है। उन्होंने कहा कि युद्ध में एक तरफ रूस है और दूसरी तरफ यूक्रेन के कंधे पर रखकर हथियार चला रहे नाटो देश हैं जो रूस से अपनी पुरानी दुश्मनी का हिसाब किताब चुकता करना चाहते हैं लेकिन पुतिन जिस तरह से लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं वह दर्शा रहा है कि वह कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस युद्ध में एक ताजा अपडेट यह है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि यूरोपीय संघ द्वारा उनके देश के लिए 50 बिलियन यूरो (54 बिलियन डॉलर) के सहायता पैकेज को मंजूरी दी गयी है। उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि रूस के खिलाफ उसके दुश्मन अब भी पूरी तरह एकजुट हैं। उन्होंने कहा कि इस भारी मदद के लिए ज़ेलेंस्की ने यूरोपीय संघ के नेताओं को धन्यवाद दिया है। उन्होंने कहा कि यूरोप ने ठीक उसी तरह की एकता का प्रदर्शन किया है जिसकी जरूरत है... यह मॉस्को के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि यूरोप कुछ भी झेलेगा मगर इरादों से टूटेगा नहीं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा दक्षिणी यूक्रेनी क्षेत्र खेरसॉन के गवर्नर ऑलेक्ज़ेंडर प्रोकुडिन ने कहा है कि बेरीस्लाव शहर पर रूसी ड्रोन हमले के बाद दो फ्रांसीसी स्वयंसेवी सहायता कार्यकर्ता मारे गए जबकि चार लोग घायल हो गए, जिनमें से तीन विदेशी थे। उन्होंने कहा कि यूक्रेनी राष्ट्रपति कार्यालय ने भी कहा है कि पूर्वी डोनेट्स्क क्षेत्र के गांवों पर रूसी गोलाबारी और रॉकेट हमलों में एक व्यक्ति की मौत हो गई और दो घायल हो गए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यूक्रेन ने कहा है कि पूर्वी खार्किव क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति के शहर कुपियांस्क के पास एक चिकित्सा सुविधा पर रूसी मिसाइल हमले में चार लोग घायल हो गए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यूक्रेन की सैन्य खुफिया एजेंसी GUR ने कहा है कि उसने समुद्र के अंदर ड्रोन का इस्तेमाल कर रूसी कार्वेट इवानोवेट्स पर हमला किया और उसे काला सागर में डुबो दिया। उन्होंने कहा कि निजी सुरक्षा फर्म एंब्रे ने कहा है कि यूक्रेन ने हमले में छह समुद्री ड्रोन का इस्तेमाल किया। हालांकि इस पर रूस की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि वायु रक्षा बलों ने बेलगोरोड, कुर्स्क और वोरोनिश के रूसी क्षेत्रों में 11 यूक्रेनी ड्रोनों को मार गिराया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का एक फैसला रूस के खिलाफ गया है। उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर देखें तो किसी को कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं हुई है, बस दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर डटे हुए हैं इसलिए युद्ध खिंचता चला हा रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा एक और चीज देखने को मिल रही है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति का अपने ही सैन्य नेतृत्व पर विश्वास नहीं रहा है और उन्होंने हाल में सैन्य प्रमुख पर घोटाले के आरोप लगाये हैं। उन्होंने कहा कि सैन्य नेतृत्व भी सरकार पर ही निशाना साध रहा है जिससे प्रतीत हो रहा है कि यूक्रेन काफी अंतर्विरोधों से जूझ रहा है।