Shaurya Path: India-China, BRICS, Israel-Hamas व Russia-Ukraine से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

By नीरज कुमार दुबे | Oct 28, 2024

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने भारत-चीन संबंधों, ब्रिक्स सम्मेलन, भारत-रूस संबंधों और इजराइल हमास संघर्ष से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार- 


प्रश्न-1. भारत-चीन के बीच तनावपूर्ण रिश्ते आखिरकार सामान्य होते दिख रहे हैं। आखिर यह कैसे संभव हो पाया?


उत्तर- इसके लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जो प्रयास किये थे वह आखिरकार कामयाब हुए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यह भी देखने वाली बात है कि भारत ने आक्रामकता का जवाब आक्रामकता से दिया और चर्चा का जवाब चर्चा से दिया तथा जो धैर्य दिखाया वह भी काबिले तारीफ था। 


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हमें सेना प्रमुख की टिप्पणी पर भी गौर करना चाहिए जिन्होंने कहा है कि भारतीय सेना ‘‘विश्वास’’ बहाली के प्रयास कर रही है और इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए दोनों पक्षों को ‘‘एक दूसरे को आश्वस्त’’ करना होगा। उन्होंने कहा कि जहां तक हमारा सवाल है, हम अप्रैल 2020 की यथास्थिति की बहाली चाहते हैं। इसके बाद हम सैनिकों की वापसी, हालात को सामान्य बनाने और वास्तविक नियंत्रण रेखा के सामान्य प्रबंधन पर गौर करेंगे। उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख ने बताया है कि एलएसी का यह सामान्य प्रबंधन वहीं खत्म नहीं होगा। उसमें भी कई चरण हैं। उन्होंने कहा कि सीमा गतिरोध पर चीन के साथ लगभग सभी वार्ताओं में भारत मई 2020 की शुरुआत में सीमा गतिरोध शुरू होने से पहले की यथास्थिति बहाल करने पर जोर देता रहा है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद भारत और चीन के संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए थे। यह झड़प पिछले कुछ दशकों में दोनों पक्षों के बीच हुई सबसे भीषण सैन्य झड़प थी। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के बाद दोनों पक्ष टकराव वाले कई बिंदुओं से पीछे हट गए थे। हालांकि, देपसांग और डेमचोक संबंधी गतिरोध के समाधान में वार्ता में बाधाएं आईं। उन्होंने कहा कि अब देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में गश्त की सुविधा फिर शुरू होना एक बड़ी कामयाबी है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मुझे लगता है कि यह एक अच्छा कदम है; यह एक सकारात्मक घटनाक्रम है और मैं कहूंगा कि यह बहुत ही संयमित और बहुत ही दृढ़ कूटनीति का नतीजा है। उन्होंने कहा कि आप पूरे घटनाक्रम को देखेंगे तो पाएंगे कि एक तरफ हमें स्पष्ट रूप से जवाबी तैनाती करनी थी, लेकिन साथ-साथ हम बातचीत भी करते रहे। सितंबर 2020 से बातचीत चल रही थी जोकि अब जाकर सफल हुई। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही संयमित प्रक्रिया रही है और शायद यह 'जितना हो सकती थी और होनी चाहिए थी, उससे कहीं अधिक जटिल थी। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा कहता रहा है कि अगर आप शांति और स्थिरता में खलल डालते हैं, तो आप संबंधों के आगे बढ़ने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पिछले महीने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने रूसी शहर सेंट पीटर्सबर्ग में विवाद का जल्द समाधान तलाशने पर ध्यान केंद्रित करते हुए बातचीत की थी। ब्रिक्स देशों के एक सम्मेलन से इतर हुई बातचीत में दोनों पक्ष पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले बाकी बिंदुओं से पूर्ण सैन्य वापसी के लिए "तत्काल" और "दोगुने" प्रयास करने पर सहमत हुए थे। उन्होंने कहा कि बैठक में डोभाल ने वांग से कहा था कि द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति एवं स्थिरता और एलएसी का सम्मान आवश्यक है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीनी राष्ट्रपति के बयान को देखें तो उन्होंने भी भारत-चीन संबंधों को बेहतर बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिए गए सुझावों पर “सैद्धांतिक रूप से” सहमति व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि बैठक के दौरान जिनपिंग ने कहा कि चीन-भारत संबंध मूलतः इस बात को लेकर हैं कि 1.4 अरब की आबादी वाले दो बड़े विकासशील और पड़ोसी देश एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। उन्होंने कहा कि शी ने कहा कि चीन और भारत को एक-दूसरे के प्रति ठोस रणनीतिक धारणा बनाए रखनी चाहिए तथा दोनों बड़े पड़ोसी देशों को सद्भावनापूर्ण तरीके से रहने और साथ-साथ विकास करने के लिए “सही और उज्ज्वल मार्ग” खोजने के वास्ते मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि विशिष्ट असहमतियों से समग्र संबंधों पर असर नहीं पड़ेगा। दोनों नेताओं का मानना है कि उनकी मुलाकात रचनात्मक रही और इसका बहुत महत्व है।


प्रश्न-2. यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के बीच रूस ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में कई ऐसे देश भी आये जोकि पश्चिम एशिया में उलझे हुए हैं। क्या दो बड़े संघर्षों के समाधान का रास्ता कजान से निकल पाया?

 

उत्तर- ब्रक्स सम्मेलन एक तरह से रूसी राष्ट्रपति की ओर से पश्चिमी देशों को अपनी शक्ति दिखाने का प्रयास था। हालांकि व्लादिमीर पुतिन ने यह भी कहा कि ब्रक्स पश्चिम विरोधी संगठन नहीं है बल्कि यह ऐसा संगठन है जो इस क्षेत्र की तरक्की और विकास के लिए मिलकर काम कर रहा है। जहां तक इस सम्मेलन से संघर्षों का समाधान निकलने की बात है तो ऐसी उम्मीद किसी को थी भी नहीं और वहां कोई हल निकला भी नहीं। पूरे सम्मेलन पर नजर डालेंगे तो यही दिखेगा कि अमेरिका जोकि सोचता है कि उसने पुतिन को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अलग-थलग कर दिया है वह यह देख ले कि दुनिया के बड़े-बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष कैसे मास्को की आवभगत स्वीकार कर रहे हैं।


प्रश्न-3. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा के दौरान कौन-कौन-सी महत्वपूर्ण मुलाकातें रहीं?


उत्तर- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस दौरे के दौरान 16वें ‘ब्रिक्स’ शिखर सम्मेलन में भाग लिया और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तथा चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं। प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत युद्ध का नहीं बल्कि संवाद और कूटनीति का समर्थन करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से समाधान करने का आह्वान किया। मोदी ने युद्ध, आर्थिक अनिश्चितता, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसी चुनौतियों पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ‘ब्रिक्स’ विश्व को सही रास्ते पर ले जाने में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है। प्रधानमंत्री ने आतंकवाद से निपटने के लिए मिलकर काम करने और सभी से ‘दृढ़ समर्थन’ की जोरदार वकालत की। उन्होंने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए ‘दोहरे मानकों’ की कोई जगह नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने युवाओं को कट्टर बनने से रोकने के लिए ‘सक्रिय कदम’ उठाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी ने राष्ट्रपति शी के साथ द्विपक्षीय वार्ता की, जो पिछले पांच वर्षों में उनकी पहली मुलाकात रही। मोदी ने द्विपक्षीय वार्ता के दौरान सीमा संबंधी मसलों पर मतभेदों का असर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति व स्थिरता पर नहीं पड़ने देने की आवश्यकता को रेखांकित किया। दोनों नेताओं ने कहा कि भारत-चीन सीमा विवाद पर विशेष प्रतिनिधियों को सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन, ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन, उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शावकत मिर्जियोयेव और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय बैठकें भी कीं।


प्रश्न-4. इजराइल-हमास-हिज्बुल्ला-ईरान संघर्ष में अब नया अपडेट क्या है?


उत्तर- इजराइल ने 26 अक्टूबर, 2024 को हवाई हमले कर ईरान, इराक और सीरिया में लगभग 20 सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। इसकी आशंका कई सप्ताह से थी। दरअसल, यह काईवाई अक्टूबर की शुरुआत में तेहरान द्वारा किए गए बैलिस्टिक मिसाइल हमले के बाद इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की ओर से बदला लेने की चेतावनी के बाद की गई। यह कदम उस पैटर्न का अनुसरण करता है जिसमें ईरान और इजराइल बारी-बारी से उस स्थिति को आगे बढ़ाते हैं जो लंबे समय तक एक ‘छाया युद्ध’ था, लेकिन अब यह प्रत्यक्ष टकराव में बदल गया है। इन प्रतिशोधात्मक हमलों से व्यापक भय उत्पन्न हो गया कि समूचा क्षेत्र और अधिक उग्र चरण में प्रवेश करने को तैयार है। लेकिन, भले ही यह विरोधाभासी लगे पर मेरा मानना है कि हाल ही में हुए इजराइली हमलों ने तनाव को कम किया है। ऐसा क्यों हुआ, यह समझने के लिए, इजराइली अभियान की प्रकृति और पैमाने का विश्लेषण करना ज़रूरी है। साथ ही हमले के बाद इजराइल, ईरान और अमेरिका में निर्णय लेने वालों के संभावित रुख का भी विश्लेषण करना जरूरी है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ईरान द्वारा अक्टूबर में किया गया हवाई हमला, ईरान के छद्म समूह हिजबुल्ला के विरुद्ध इजराइली अभियानों की श्रृंखला का प्रतिशोध था। इनमें जुलाई में ईरान के नए राष्ट्रपति के शपथग्रहण की पूर्व संध्या पर तेहरान में हमास के एक उच्च पदस्थ अधिकारी की हत्या तथा सितंबर के अंत में हिजबुल्ला के नेता की हत्या शामिल है। इसी प्रकार, अप्रैल में ईरान द्वारा इजराइली ठिकानों पर किया गया हवाई हमला, इस वसंत में इजराइली उकसावे के जवाब में किया गया था। इसमें एक अप्रैल को सीरिया के दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हमला भी शामिल था, जिसमें दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारी मारे गए थे। उन्होंने कहा कि कई पर्यवेक्षकों ने अनुमान लगाया था, या आशंका जताई थी कि ईरान के अक्टूबर के मिसाइल और ड्रोन हमले पर इजराइल की प्रतिक्रिया भारी और दंडात्मक होगी। हालांकि इजराइल के पास निश्चित रूप से ऐसा करने की सैन्य क्षमता है। लेकिन ईरान में महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे या देश की परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाने के बजाय, इजराइल ने इस्लामी गणराज्य की वायु रक्षा और मिसाइल क्षमताओं पर ‘सटीक और लक्षित’ हमले का विकल्प चुना।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइली अभियान का कुछ सीमित दायरा यह दर्शाता है कि यह हमला ईरान के सर्वोच्च नेता और ईरानी सैन्य कमांडरों को एक कड़ा संदेश भेजने के लिए किया गया था। संक्षेप में, इजराइल यह संकेत दे रहा है कि उसके पास ईरान के केंद्र पर हमला करने की क्षमता है परंतु वह पूर्ण-शक्ति से हमले करने से बच रहा है, जिससे ईरान की पहले ही डंवाडोल अर्थव्यवस्था को और अधिक नुकसान पहुंचता। उन्होंने कहा कि इजराइल के हमलों के असर का पूर्ण आकलन करने में समय लगेगा, लेकिन प्रारंभिक संकेत हैं कि वे ईरान की समग्र सुरक्षा में कमजोरियों को उजागर करने में सफल रहे। इसका अभिप्राय है कि ईरान या तथाकथित ‘प्रतिरोध की धुरी’ में उसके साझेदार जवाबी कार्रवाई करने का फैसला करते हैं तो इन कमजोरियों के अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्यों, जैसे तेल और गैस उत्पादन सुविधाओं या यहां तक कि परमाणु ऊर्जा स्थलों को भी निशाना बनाया जा सकता है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि विभिन्न लक्ष्यों पर इजराइल के हमलों की स्पष्ट सफलता के बावजूद, ईरानी नेताओं के बयानों से पता चलता है कि परिचालनात्मक प्रभाव सीमित था। उन्होंने कहा कि ईरान के विदेश मंत्रालय के एक बयान में हमले की निंदा की गयी। इसमें कहा गया कि ईरान को ‘‘आत्मरक्षा का अधिकार है।’’ लेकिन साथ ही यह भी कहा गया कि ईरान ‘‘क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को कायम रखेगा।’’ उन्होंने कहा कि ईरान इस बात से भली-भांति परिचित है कि तनाव बढ़ने से, अमेरिका के नेतृत्व में और अधिक प्रतिबंध लगने तथा इजराइल को बढ़ते समर्थन से उसकी डांवाडोल अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इसलिए वह यह अनुमान लगा सकता है कि इजराइल के साथ तनाव बढ़ने से पूर्व की स्थिति पर लौटना उसके हित में है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइल और ईरान के बीच खुले युद्ध के विपरीत ‘छद्म युद्ध की वापसी का वाशिंगटन में निस्संदेह स्वागत किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इजराइल में सात अक्टूबर, 2023 को हमास के भीषण हमलों के बाद से, बाइडन प्रशासन दायित्वों और चिंताओं के बीच फंस गया। इनमें दीर्घकालिक सहयोगी इजराइल का समर्थन करना शामिल है, जबकि मित्र अरब सरकारों को अलग-थलग नहीं करना और क्षेत्र में संघर्ष के पूर्ण युद्ध में बदलने को रोकने का प्रयास करना शामिल है। उन्होंने कहा कि इस बीच, चुनावी वर्ष में, डेमोक्रेटिक पार्टी विशेष रूप से इजराइल समर्थक यहूदी मतदाता समूह के प्रति अपने समर्थन को संतुलित करने का प्रयास कर रही है, साथ ही वह प्रमुख राज्यों में संभावित रूप से महत्वपूर्ण मुस्लिम मतों को नाराज न करने की जरूरत पर भी ध्यान दे रही है। वह फलस्तीनी युवा मतदाताओं को भी नाराज नहीं करना चाहती है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि क्षेत्र में संघर्ष बढ़ने से व्हाइट हाउस को इन मामलों में कोई मदद नहीं मिलेगी। राष्ट्रपति जो बाइडन के नेतन्याहू के साथ दशकों पुराने संबंधों के बावजूद वह परिणाम नहीं निकला है जिसकी उनके प्रशासन को अपेक्षा थी। उन्होंने कहा कि वाशिंगटन अपने सहयोगी को गाजा में युद्ध विराम के लिए प्रेरित करने और न ही दक्षिणी लेबनान में हिजबुल्ला और इजराइल के बीच शत्रुता समाप्त करने में सफल हो पाया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में पांच नवंबर को होने वाले चुनाव के साथ, मध्य पूर्व में विभिन्न मोर्चों पर बढ़े तनाव का असर यह हो सकता है कि मतदाता उपराष्ट्रपति कमला हैरिस या पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कैसे देखते हैं। विशेष रूप से मिशिगन के चुनाव मैदान में, जहां डेमोक्रेट अरब और मुस्लिम अमेरिकियों का वोट खो सकता है, जो बाइडन प्रशासन के कथित इजराइल समर्थक रुख से नाराज हैं।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पश्चिम एशिया में आगे क्या होगा, इसका पूर्वानुमान लगाना अब तक सबसे अनुभवी विश्लेषकों के लिए भी संभव नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि यह आकलन करने में कई दिन, सप्ताह या महीने लग सकते हैं कि क्या इजराइल द्वारा किया गया यह नवीनतम हवाई हमला ईरान और इजराइल के बीच तनाव को और बढ़ाएगा या क्षेत्र में तनाव को कम करने वाली परिस्थितियां बनाएगा। उन्होंने कहा कि लेकिन यह मानने के अच्छे कारण हैं कि ईरान, इजराइल और अमेरिका के निर्णयकर्ता जानते हैं कि और अधिक तनाव किसी के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि और हो सकता है कि हालिया हमले ने इजराइल को संतुष्ट कर दिया हो और ईरान को भी यह कहने का मौका मिल गया हो कि जवाबी हमले की कोई जरूरत नहीं है।

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