बीते शनिवार से मध्य पुर्तगाल के जंगल भीषण दावानल के चपेट में हैं। अग्नि काफी तेजी से जंगलों को खाक करने में लगी है हालांकि जंगल की आग को बुझाने के क्रम में भी कई लोग मारे गए हैं। जंगलों में लगी आग से 62 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और 60 से ज्यादा घायल हो गये हैं। हो सकता है ये आंकड़े और ज्यादा बढ़ें। अधिकांश लोग अपनी कारों से सुरक्षित क्षेत्रों की ओर जाने के क्रम में मारे गए हैं। अग्नि ने जंगलों से होते हुए रिहायशी इलाकों में पहुंचकर भी तांडव किया है। अग्नि की वजह से बड़ी तादाद में ग्रामीण भी प्रभावित हुए हैं। एक तरफ बड़ी तादाद में उनके आशियाने जलकर खाक हो गए तो दूसरी तरफ आग की लपटों ने उनके खेतों में खड़ी फसलों को भी नहीं बख्शा। धधकती हुई ज्वाला के कारण वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा काफी बढ़ चुकी है। जिसके कारण दम घुटने से भी काफी लोगों की मृत्यु हुई है। इसी कारण उन्हें अपने पड़ोसी इलाके में शरण लेनी पड़ी है। हालांकि गांवों में अभी तक लोग फंसे हुए हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार चारों तरफ सिर्फ आग की लपटें ही दिखाई दे रही थीं। तेज हवाओं के कारण छतें उड़ गईं, ऐसा लग रहा था कि हॉरर मूवी का दृश्य चल रहा हो। पहाड़ों की तरफ तो तेज हवाओं के कारण आग की लपटें एक खाई से दूसरी खाई को छू रही थीं। यह अग्नि काडं कितना भीषण है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा ने तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है और जंगलों में लगी आग को अब तक की सबसे बड़ी त्रासदी बताया है। भारतीय प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर इस त्रासदी के प्रति संवेदना प्रकट की है।
अग्नि के चपेट में पुर्तगाल के कौन कौन से हिस्से हैं?
धधकते हुए दावानल ने मध्य पुर्तगाल के जगलों को अपने आगोश में ले लिया है। शनिवार को कोइम्बरा से लगभग 50 किलो मीटर दूर पेड्रोगो ग्रांडे नगरपालिका के तहत आने वाले जंगलों में यह आग लगी और इस भीषण अग्नि ने पुर्तगाल के कई इलाकों को अपने चपेट में लिया। जिसमें लीरिया, मैरिन्हा ग्रांडे, आरेन हैं। इस भीषण अग्नि को काबू करने हेतु लगभग 900 फायरफाइटर्स और राहत कार्यों हेतु 300 वाहनों को लगाया गया है। इसके अतिरिक्त सेना की दो बटालियन को भी मदद हेतु भेजा गया है। राष्ट्रपति के अनुसार अग्नि पर काबू पाने हेतु फायर फाइटर्स ने पूरी शिद्दत से कार्य किया है। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि पुर्तगाली राष्ट्रपति मार्सेलो रेबलो को लीरिया पीड़ितों से मिलने जाना पड़ा और पुर्तगाली प्रधानमंत्री ने पेड्रोगाओ, फिगेयरो और कासटेनहेयरा के स्कूलों को अनिश्चित काल तक बंद करने और परीक्षा स्थगित करने की बात कही।
पुर्तगाल के जंगलों में लगी अग्नि पर काबू पाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय मदद
रात के समय पुर्तगाल के 60 जंगलों में आग लगी और आग का प्रसार प्रचंड रूप धारण कर चुका है। स्थानीय मीडिया के अनुसार आग बुझती हुई दिखाई नहीं दे रही है। आग बुझाने हेतु लगभग करीब 1700 फायर फाइटर्स लगे हुए हैं। स्पेन ने रविवार को दो पानी बौछार वाले प्लेन को भेजा जबकि फ्रांस ने तीन एयरक्राफ्ट भेजे। स्पेनिश प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा यदि आवश्यकता हुई तो और सहायता प्रदान की जाएगी। यूरोपीय यूनियन ने कहा कि वह लिस्बन के अनुरोध पर फायर फाइटिंग प्लेन उपलब्ध कराने हेतु तैयार है।
पुर्तगाल के जंगलों में आग लगने के कारण क्या हैं?
दरअसल जंगलों में आग लगने के दो प्रकार के कारण होते हैं। एक मानवीय कारण तो दूसरा प्राकृतिक कारण। पुर्तगाल के जंगलों में आग लगने का कारण प्राकृतिक बताया जा रहा है जो सम्पूर्ण विश्व समुदाय हेतु बेहद चिंता करने वाला विषय है। यह सर्वज्ञात है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि वर्तमान का यर्थाथ है और गर्मी के मौसम में तापमान तो 44 डिग्री से लेकर 50 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। चूंकि पुर्तगाल दक्षिण यूरोपीय देश है जो आइबेरियन प्रायद्वीप पर स्थित है और इस समय आइबेरियन प्रायद्वीप के कई क्षेत्रों का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक है। साथ ही यह प्रायद्वीप इस वक्त भयंकर गर्म हवाओं की चपेट में है। ऐसे में तापमान अत्यधिक होने के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं।
पुर्तगाल में आग लगने की वजहों में आकाशीय बिजली का गिरना माना जा रहा है। चूंकि आइबेरियन प्रायद्वीप का तापमान ग्रीष्म काल में अधिक होता है। जिसके कारण वर्षा की बूंदें जमीन पर गिरने से पहले ही भाप में परिवर्तित हो जाती हैं। ऐसे में बिजली गिरने व गर्म हवाएं चलने से आग लगना स्वाभाविक है। ऐसा ही पुर्तगाल में हुआ है, बिजली गिरने से जंगलों में आग लगने के पश्चात तेज गर्म हवाओं ने आग को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में तेजी से प्रसार में मदद की। पिछले साल अगस्त में पुर्तगाल के मदेरा द्वीप पर आग लगने से कई लोगों की मृत्यु हो गई थी।
क्या दावानल विश्वव्यापी समस्या है?
वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से जूझ रहा है। जिसके कारण पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि हो रहा है। परिणाम स्वरूप दावानल की समस्या में वृद्धि हो रही है। भारत के संदर्भ में देखे तो पिछले साल उत्तराखंड के जंगलों में भीषण आग लगी थी जिसमें 1900 हेक्टेयर से ज्यादा वन क्षेत्र तबाह हो चुका है। दरअसल शीत कालीन बारिश नहीं होने के कारण जंगलों की ज़मीन में नमी नहीं बची थी। वहीं अप्रैल और मई के महीने में तापमान की अत्यधिक वृद्धि के कारण उष्णकटिबंध क्षेत्रों में वृक्षों से पत्ते गिरना स्वाभाविक है। जंगल की जमीन में नमी नहीं होने के कारण आग लगी और विकराल रूप धारण कर लिया। दरअसल उत्तराखंड के जंगलों में चीड़ के वृक्षों की बहुलता है। ज्ञात हो कि चीड़ के पत्तों में एक ज्वलनशील पदार्थ पाया जाता है जिसके कारण आग तेजी से पकड़ती है और हवा के माध्यम से आग का प्रसार काफी तेज होता है। ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड के जंगलों में 2016 में पहली बार आग लगी थी। इसके पूर्व 1992, 1997, 2004 और 2012 में भी उत्तराखंड के जंगलों में आग लगी थी। और 2017 में भी उत्तराखंड के जंगलों में भीषण आग के कारण लगभग 2000 हेक्टेयर जंगल जल कर खाक हो चुके हैं। लेकिन 2016 की दावानल की घटना अत्यधिक चर्चा में रही, उसने प्रचंड रूप धारण कर लिया था जिसको बुझाने हेतु पहली बार वायुसेना, थल सेना और एनडीआरएफ को भी लगाना पड़ा था।
जनवरी 2017 में दक्षिणी अमेरिकी देश चिली के जंगलों में दशक की सबसे भीषण आग लगी और राष्ट्रपति मिशेल जंगलों में लगी आग पर काबू पाने हेतु महारत हासिल किए हुए देशों से मदद मांगी। दरअसल इस समय दक्षिण अमेरिकी देशों में गर्मी का मौसम चल रहा होता है। हालत इतने गंभीर हो गए थे कि चिली की राजधानी सेंटियोगो के दक्षिणी इलाके में आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी थी।
दावानल की समस्या से अमेरिका भी अछूता नहीं है। फरवरी 2017 में अमेरिका के ओक्लाहोमा राज्य में भीषण आग लगी और सैंकड़ों एकड़ क्षेत्र में फैल गई जिससे परिणामस्वरूप लोगों को अपने घर खाली होने हेतु मजबूर होना पड़ा।
फरवरी 2014 में गर्मी के कारण दक्षिण पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में भयंकर आग लगी। इस प्रकार दावानल की समस्या वैश्विक है। अतः इसका समाधान भी वैश्विक होना चाहिए। यह सर्वविदित है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है जो धरती पर जीव जंतुओं और वनस्पतियों के अस्तित्व पर संकट है। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति का जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने हेतु पेरिस जलवायु समझौते को कपोल कल्पना बताकर पेरिस जलवायु परिवर्तन संधि से हटना दुखद है। जबकि अमेरिका विश्व में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण है। आवश्यकता इस बात की है कि सम्पूर्ण विश्व को ग्लोबल वार्मिंग जैसी विकट समस्या का मिलकर सामना करना चाहिए।
भारत को इन घटनाओं से सबक लेते हुए ऐसी परिस्थितियों से निपटने हेतु मास्टर प्लान तैयार करना चाहिए ताकि जंगलों को जलने से बचाया जा सके। यह प्लान पहले से ही तैयार होना चाहिए न कि आग लगने के पश्चात आननफानन में तैयार किया जाना चाहिए। यह सत्य है कि गलोबल वार्मिंग एक वैश्विक समस्या है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन स्थानीय स्तर पर भी तैयारी आवश्यक है। ज्ञातव्य है कि जंगल में आग लगने से सिर्फ जंगल ही खाक नहीं होता बल्कि जैव विविधता के अस्तित्व पर भी संकट उत्पन्न होता है जो हमारे जीवन का आधार है। साथ ही हजारों पशुओं के आशियानों पर भी संकट मंडराता है। भारत तो प्राचीन काल से ही प्रकृति प्रेमी रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता में इसे देखा जा सकता है। दावानल की घटनाओं से निपटने हेतु हमें पुनः प्राचीन भारत के मूल्यों को अपने में समाहित करना होगा न कि प्रकृति के ऊपर बाजारवाद और उपभोक्तावाद को महत्व देना होगा। महात्मा गांधी के अनुसार प्रकृति में इतनी क्षमता है कि हमारी आवश्यकता को तो पूरी कर सकती है लेकिन हमारे लालच को नहीं।
सरकारों और वन विभागों को जंगल को दावानल से बचाने हेतु ईमानदार प्रयास करना होगा ताकि वन संसाधन को सुरक्षित रखा जा सके। कुछ प्रयासों के माध्यम से जंगलों में दावानल की घटना को नियंत्रित किया जा सकता है जैसे जंगलों में वृक्षों की जो पत्तियां गिरती हैं उसे इकट्ठा कर खाद बनाने हेतु रोजगार तैयार कर सकते हैं। यदि शीतकालीन बारिश नहीं होती तो जंगलों की जमीन में नमी समाप्त हो जाती है तो ऐसी स्थिति में जंगलों की जमीन में कृत्रिम बारिश कराकर जमीन की नमी को बरकरार रखा जा सकता है। यदि किसी प्रकार आग लग जाए तो तत्काल फायर फाइटर्स को मुस्तैद रहना चाहिए। चूंकि जंगल एक व्यापक क्षेत्र में फैला होता है इसलिए आग को तेजी से फैलने से रोकने हेतु पानी की बौछार करने वाले प्लेन भी आवश्यक उपकरण हैं।
अनीता वर्मा
(लेखिका अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार हैं)