दहाई आंकड़े की विकास दर एवं 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ता भारत

By प्रहलाद सबनानी | Dec 15, 2020

पिछले कुछ वर्षों से देश में केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारें आर्थिक माहौल बनाने में जुटी हुई हैं जिससे देश में पूंजी निवेश बढ़े, आधारिक संरचना का विकास हो, इसके लिए कई क्षेत्रों में लगातार आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं। अभी हाल ही में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना लागू की गई है। इसी प्रकार कृषि क्षेत्र में एक लम्बे अरसे के बाद एतिहासिक सुधार कार्यक्रम लागू किया गया है, जिसके अंतर्गत तीन क़ानूनों को लागू किया गया है जिससे न केवल किसानों की आय दोगुनी होने की सम्भावनाएं बढ़ गई हैं बल्कि देश से कृषि उत्पादों का निर्यात भी अब अधिक मात्रा में हो सकता है। श्रम क्षेत्र में भी क्रांतिकारी सुधार क़ानून लागू किए गए हैं। कुल मिलाकर केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारें भारत को दहाई आंकड़े की विकास दर की श्रेणी में ले जाकर 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की ओर आगे बढ़ने का लगातार प्रयास कर रही हैं।

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कृषि क्षेत्र को केंद्र में रखकर ही देश के आर्थिक विकास को गति देने का प्रयास किया जा रहा है, इसके लिए ग्रामीण इलाक़ों में फ़ूड प्रॉसेसिंग इकाईयों, गोदाम एवं कोल्ड स्टोरेज की स्थापना तथा आधारिक संरचना का विकास करने के लिए एक लाख करोड़ रुपए की एक वृहद योजना बनाई गई है। उद्योग जगत को भी इस हेतु आगे लाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि वे भी ग्रामीण क्षेत्रों में अपना निवेश बढ़ा सकें। ग्रामीण इलाक़े आगे बढ़ेंगे तो देश भी आगे बढ़ेगा और उद्योग जगत को भी इससे फ़ायदा होगा क्योंकि उनके उत्पादों की मांग भी ग्रामीण क्षेत्रों से ही निकलेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश की अत्यधिक आवश्यकता है, और अभी तक इस ओर पूर्व की सरकारों द्वारा उचित ध्यान नहीं दिया गया है। अंततः इससे ग्रामीण इलाक़ों में उत्पादकता में भी सुधार होगा और पूरे देश को ही इसका फ़ायदा मिलेगा।


अब तो आर्थिक विकास सम्बंधी सारे संकेत बता रहे हैं कि कोरोना महामारी के बाद भारत अब काफ़ी आगे आ चुका है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मॉनिटर किए जा रहे 48 में से 30 संकेतों में कोरोना काल के पहले की स्थिति को प्राप्त कर लिए गया है। औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादों की मांग ठीक तरीक़े से बढ़ रही है। रोज़गार के अवसर भी बढ़ते जा रहे हैं तो मांग और भी आगे बढ़ेगी। साथ ही उपभोक्ता वस्तुओं की मांग ग्रामीण इलाक़ों में भी अच्छे स्तर पर दिखने लगी है। देश में बरसात ठीक रही थी अतः विभिन्न उत्पादों की पैदावार भी अच्छी रही है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था काफ़ी अच्छी वृद्धि दर्ज कर रही है। ट्रैक्टर आदि उत्पादों की बिक्री बढ़ी है। आत्मनिर्भर भारत योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने 3 चरणों में कई उपाय लागू किए थे उनका भी अब अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है। श्रम क्षेत्र में क़ानूनों में संशोधन, कृषि क्षेत्र में बदलाव, ऋणों के माध्यम से लघु उद्योग एवं अन्य क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में तरलता बढ़ाई गई, अर्थव्यवस्था में रोकड़ की कमी थी जिसे दूर कर लिया गया, इन सभी उपायों के चलते अब उत्पादों की मांग में वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है।


भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाया जा रहा है ताकि श्रमिक वर्ग को उद्योग जगत द्वारा, केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा घोषित किए जा रहे विभिन्न उपायों के अंतर्गत, लाभ प्रदान किए जा सकें। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों की परिभाषा में भी परिवर्तन किया गया है। पूर्व में इस क्षेत्र में बहुत छोटी-छोटी इकाईयों की स्थापना होती थी इसके चलते इनके द्वारा उत्पादित सामान की मात्रा बहुत कम रहती थी। परंतु, अब नई परिभाषा के अंतर्गत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों का आकार बढ़ाने में सहायता मिलेगी एवं ये इकाईयां अपने उत्पाद की मात्रा को बढ़ा सकेंगे तथा अपने उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना सकेंगे।

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उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना का लाभ भी अब दिखने लगा है। अभी हाल ही में सैमसंग कम्पनी ने घोषणा की है कि वे 4825 करोड़ रुपए का निवेश कर अपनी मोबाइल उत्पादन इकाई को चीन से भारत में स्थानांतरित कर रहे हैं। इसी प्रकार की घोषणाएं कुछ अन्य बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा किया जाना अपेक्षित है। अक्टूबर 2020 माह में औद्योगिक उत्पादन में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, कोरोना महामारी के चलते विनिर्माण के क्षेत्र में पिछले 7 माह से लगातार कमी दर्ज की जा रही थी। बिजली का उत्पादन अक्टूबर 2020 में, अक्टूबर 2019 की तुलना में 11.2 प्रतिशत बढ़ा है। 

 

अभी तक हम भारत में कृषि उत्पादों का मात्र 10 प्रतिशत ही संसाधित कर पाते हैं। फल एवं सब्ज़ियों का तो लगभग 30/40 प्रतिशत हिस्सा, प्रसंस्करण इकाईयों एवं कोल्ड स्टोरेज के अभाव में ख़राब हो जाता है। अब कृषि क्षेत्र में किया जा रहे क्रांतिकारी सुधारों के चलते यदि इस लगभग 30/40 प्रतिशत हिस्से को ही बचा लिया जाता है तो देश के किसानों का कितना फ़ायदा होने वाला है। यह ख़राब हो जाने वाला हिस्सा बचा कर ही देश से कृषि उत्पादों के निर्यात बढ़ाए जा सकते है। इन उपायों का फ़ायदा दरअसल अब दिखने भी लगा है। सितम्बर 2020 को समाप्त छमाही में भारत से कृषि उत्पादों में 43 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है एवं ये 53,626 करोड़ रुपए तक पहुंच गए हैं। अभी हाल ही में अप्रैल-अक्टूबर 2020 के आंकड़े भी जारी किये गए हैं और इस दौरान कृषि उत्पाद के निर्यात बढ़कर 70,000 करोड़ रुपए के ऊपर पहुंच गए हैं। भारतीय कृषि उत्पादों की अन्य देशों में मांग लगातार बढ़ती जा रही है। अतः केंद्र सरकार द्वारा इस दौरान कृषि क्षेत्र में जो भी सुधार कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं वे किसानों के हित में हैं एवं इससे न केवल देश के किसानों बल्कि पूरे देश को ही फ़ायदा होने वाला है तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को आसानी से 5 लाख करोड़ डॉलर के स्तर पर लाया जा सकेगा।


चूंकि भारत में लगभग 60 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती है अतः भारतीय अर्थव्यवस्था में आगे आने वाले समय में ग्रामीण एवं छोटे शहरों का दबदबा बना रहने वाला है। उद्योगों को ग्रामीण इलाक़ों एवं छोटे शहरों की ओर अपना रूख करना ही होगा। आज भी विभिन्न उत्पादों की मांग ग्रामीण इलाक़ों से ही आ रही है, अतः ग्रामीण इलाक़ों में उत्पादों को पहुंचाना होगा अथवा कहें कि इनका उत्पादन भी ग्रामीण इलाक़ों में ही करना होगा। सामाजित आधारभूत संरचना का भी ग्रामीण इलाक़ों में विकास करना अब ज़रूरत बन गया है। इसके लिए निजी क्षेत्र को भी अपना योगदान बढ़ाना होगा।


अभी फ़ार्मेसी के क्षेत्र में भारत ने पूरे विश्व में अपना दबदबा क़ायम कर लिया है एवं 100 से भी अधिक देशों को भारत से दवाईयों का निर्यात होने लगा है। अब आगे आने वाले समय में इसी प्रकार भारत कृषि उत्पादों के क्षेत्र में भी पूरे विश्व में अपनी धाक जमा सकता है। भारत में इसकी क्षमता है। हमारे स्थानीय उत्पादों के लिए पूरे विश्व में बाज़ार उपलब्ध है। हमें अपने देशी उत्पादों के लिए वोकल होना पड़ेगा। भारत में निर्मित उत्पाद का मतलब बेस्ट क्वालिटी उत्पाद होना चाहिए। इससे देश के किसानों की आमदनी बढ़ेगी। अगले साल यदि देश को दहाई आंकड़े की विकास दर में ले जाना है तो ग्रामीण इलाक़ों, टियर-2 एवं टियर-3 जैसे छोटे शहरों में निवेश बढ़ाना होगा।


प्रधानमंत्री वाणी योजना को भी पूरे देश में लागू किया जा रहा है जिसके अंतर्गत वाइफ़ाई हाट स्पाट्स की स्थापना की जाएगी ताकि देश में इंटरनेट का जाल बिछाया जा सके। इससे ग्रामीण इलाक़ों में भी ई-कामर्स सुविधाएं एवं वाइफ़ाई हाट स्पाट्स बढ़ेंगे तथा ग्रामीण इलाक़ों में भी कार्यक्षमता के स्तर में सुधार होगा। ग्रामीण इलाक़ों में भी लोग अपना व्यवसाय शुरू कर सकेंगे। आज के ज़माने में युवा वर्ग को तकनीक के साथ जोड़ना ज़रूरी हो गया है। निजी क्षेत्र को भी इसमें आगे आना होगा। यदि केंद्र सरकार 10 लाख नए वाइफ़ाई हाट स्पॉट स्थापित कर लेती है तो निजी क्षेत्र भी अपने व्यवसाय मॉडल को इस प्रकार विकसित कर सकता है ताकि इस सुविधा को 10 गुना आगे बढ़ाया जा सके। दरअसल देश में वाइफ़ाई हाट स्पॉट विकसित किए जाने की महती आवश्यकता है क्योंकि इंटरनेट कनेक्टिविटी आज एक आवश्यकता बन गया है।

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देश में डिजिटल भुगतान हेतु आधारिक संरचना पहले ही विकसित की जा चुकी है। आज प्रतिदिन यूपीआई प्लेटफ़ॉर्म पर लाखों करोड़ों रुपए के लेनदेन हो रहे हैं। अक्टूबर 2020 में यूपीआई सिस्टम पर 4 लाख करोड़ रुपए के लेनदेन हुए हैं। डिजिटल लेनदेन का भारतीय पेमेंट सिस्टम पूरे विश्व में एक रोल मॉडल बन गया है। कोरोना महामारी के दौरान पूरा विश्व यह सिस्टम ढूंढ़ रहा था, जबकि भारत में यह पहले से ही मौजूद था। डीबीटी (सुविधाओं का सीधा हस्तांतरण) देश में एक बहुत मज़बूत सिस्टम बन गया है इसके अंतर्गत करोड़ों हितग्राहियों के खातों में हज़ारों करोड़ रुपए सीधे ही जमा किये जा रहे हैं। 

 

भारत में शेयर बाज़ार भी आज रोज़ाना नए स्तर को छूते नज़र आ रहे हैं। विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाज़ार में काफ़ी अधिक मात्रा में निवेश बढ़ाते जा रहे हैं। दिनांक 11 दिसम्बर 2020 को बीएसई सेन्सेक्स 46099 एवं एनएसई 13514 के रिकार्ड स्तर पर बंद हुए हैं। विदेशी निवेशकों ने भी इस वर्ष अभी तक 928 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश भारतीय शेयर बाज़ार में किया है। विदेशी निवेशक तो भविष्य में होने वाली आर्थिक गतिविधियों को ध्यान में रखकर ही विदेशी बाज़ारों में निवेश करते हैं। आज चूंकि विदेशी निवेशकों को भारतीय बाज़ार में अपार सम्भावनाएं नज़र आ रही हैं इसीलिए वे अपना निवेश भारतीय शेयर बाज़ार में बढ़ाते जा रहे हैं।


-प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत उप-महाप्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक

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