Vishwakhabram: South China Sea में ड्रैगन को घेरने के लिए भारत ने कस ली है कमर, Vietnam के साथ जो समझौते हुए हैं वह बहुत कुछ संकेत दे रहे हैं

By नीरज कुमार दुबे | Aug 02, 2024

हाल ही में संपन्न क्वॉड समूह की बैठक के दौरान दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता से निबटने के उपायों पर चर्चा की गयी थी। क्वॉड देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को प्रगाढ़ करने के कदमों पर भी चर्चा की थी। अब भारत और वियतनाम ने दक्षिण चीन सागर के विषय पर आपस में जो सहमति बनाई है उसके चलते ड्रैगन का परेशान होना स्वाभाविक है। हम आपको बता दें कि वियतनाम के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच अहम समझौते हुए हैं। कुछ महीनों पहले भारत के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री ने वियतनाम की यात्रा की थी। हम आपको बता दें कि दक्षिण चीन सागर में चीनी आक्रामकता से परेशान वियतनाम को साथ लेकर भारत चीन को कड़ा सबक सिखाना चाहता है। 


भारत और वियतनाम ने अपनी रणनीतिक साझेदारी का विस्तार करने के लिए जिस कार्ययोजना को मंजूरी दी है उसका बड़ा प्रभाव आने वाले समय में देखने को मिल सकता है। हम आपको बता दें कि दोनों देशों ने रक्षा संबंधों को बढ़ाने और चीन की बढ़ती सैन्य ताकत के मद्देनजर दक्षिण चीन में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयासों को दोगुना करने की प्रतिबद्धता जताई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके वियतनामी समकक्ष फाम मिन्ह चिन्ह के बीच हुई व्यापक वार्ता में दक्षिण चीन सागर और समग्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिति पर प्रमुखता से चर्चा हुई। मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत विकास का समर्थन करता है, न कि विस्तारवाद का। उनकी इस टिप्पणी को चीन के विस्तारवादी व्यवहार की ओर परोक्ष संकेत के रूप में देखा जा रहा है।

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हम आपको बता दें कि दोनों शीर्ष नेताओं के बीच बातचीत के दौरान यह भी निर्णय लिया गया कि भारत वियतनाम को 30 करोड़ अमेरिकी डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान करेगा, ताकि मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश की समुद्री सुरक्षा को मजबूत किया जा सके। इसके साथ ही दोनों पक्षों ने 2024-2028 की अवधि के दौरान व्यापक रणनीतिक साझेदारी के कार्यान्वयन के लिए ‘कार्य योजना’ सहित कुल नौ समझौतों और दस्तावेजों को अंतिम रूप दिया।


इसके अलावा, मोदी और चिन्ह ने एक संयुक्त बयान में दक्षिण चीन सागर में शांति, स्थिरता, सुरक्षा और नौवहन एवं उड़ान की स्वतंत्रता बनाए रखने के महत्व की पुष्टि की, साथ ही धमकी या बल प्रयोग का सहारा लिए बिना यूएनसीएलओएस के अनुसार विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करने का आह्वान किया। हम आपको बता दें कि दक्षिण चीन सागर हाइड्रोकार्बन का एक बड़ा स्रोत है जिस पर संप्रभुता के चीन के व्यापक दावों को लेकर वैश्विक चिंताएं बढ़ रही हैं। इस पर वियतनाम, फिलीपीन और ब्रुनेई सहित क्षेत्र के कई देशों के जवाबी दावे हैं।


संयुक्त वक्तव्य के मुताबिक, ‘‘दोनों नेताओं ने दावेदारों और अन्य सभी देशों द्वारा सभी गतिविधियों के संचालन में गैर-सैन्यीकरण और आत्म-संयम के महत्व को रेखांकित किया, तथा ऐसी कार्रवाइयों से बचने पर जोर दिया, जो स्थिति को और जटिल बना सकती हैं।’’ बयान में कहा गया कि मोदी और चिन्ह ने इस बात पर जोर दिया कि यूएनसीएलओएस समुद्री अधिकारों, संप्रभुता, क्षेत्राधिकार और समुद्री क्षेत्रों पर वैध हितों के निर्धारण का आधार है। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने सीमा पार आतंकवाद सहित सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में आतंकवाद की स्पष्ट रूप से निंदा भी की। वियतनाम ने माई सन यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के जीर्णोद्धार और संरक्षण के लिए भारत की प्रतिबद्धता तथा ए, एच और के. ब्लॉक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किए गए कार्यों के साथ-साथ एफ ब्लॉक में आगामी परियोजना की सराहना की।


हम आपको बता दें कि वियतनाम एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। इसके अलावा वह एक कम्युनिस्ट देश है। वियतनाम परिधानों का प्रमुख निर्यातक है और उसकी अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों के साथ महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारी है। वियतनाम भारत का बढ़ता रक्षा साझेदार भी है। हम आपको यह भी बता दें कि वियतनाम की विदेश नीति को विशेषज्ञ बैम्बू पॉलिसी कहते हैं। जैसे बांस जरूरत पड़ने पर इधर उधर झुक जाता है मगर उखड़ता नहीं वैसे ही वियतनाम की विदेश नीति जरूरत पड़ने पर लचीला रुख अपनाती है।


हम आपको यह भी बता दें कि पिछले वर्ष वियतनाम के केंद्रीय रक्षा मंत्री भारत आये थे। उस समय भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वियतनाम के केंद्रीय रक्षा मंत्री जनरल फान वान जियांग के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के बाद घोषणा की गयी थी कि भारत वियतनाम की नौसेना को स्वदेश निर्मित मिसाइल युद्धपोत आईएनएस कृपाण उपहार स्वरूप देगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि स्वदेश निर्मित मिसाइल युद्धपोत आईएनएस कृपाण को उपहार में देना वियतनाम की नौसेना की क्षमताओं के बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। देखा जाये तो हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के मजबूत स्थिति में होने के चलते भारत ने वियतनाम की नौसेना की ताकत बढ़ाने का जो फैसला किया था वह रणनीतिक रूप से काफी महत्व रखता है।


हम आपको याद दिला दें कि जुलाई 2007 में वियतनाम के तत्कालीन प्रधानमंत्री गुयेन तान दुंग की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों का स्तर ‘रणनीतिक साझेदारी’ के स्तर पर पहुंच गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2016 में हुई वियतनाम की यात्रा के दौरान द्विपक्षीय संबंध उन्नत होकर ‘समग्र रणनीतिक साझेदारी’ के स्तर पर पहुंच गये थे।


देखा जाये तो वियतनाम, आसियान (दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का संगठन) का एक महत्वपूर्ण देश है, जिसका दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद है। दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के जल क्षेत्र में भारत की तेल खोज परियोजनाएं हैं। साझा हितों की रक्षा के लिए पिछले कुछ वर्षों में भारत और वियतनाम अपने समुद्री सुरक्षा सहयोग को बढ़ा रहे हैं। भारत और वियतनाम एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी भी साझा करते हैं। दरअसल, द्विपक्षीय रक्षा संबंध इस साझेदारी का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों में विभिन्न प्रकार की साझेदारी हैं जिनमें सेवाएं, सैन्य-से-सैन्य आदान-प्रदान, उच्च-स्तरीय यात्राऐं, क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में सहयोग, जहाज यात्राएं और द्विपक्षीय अभ्यास शामिल हैं।


हम आपको यह भी बता दें कि जून 2022 में भारतीय रक्षा मंत्री की वियतनाम यात्रा के दौरान, '2030 की ओर भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी पर महत्वपूर्ण व्यापक मार्गदर्शक दस्तावेजों, 'संयुक्त दृष्टिकोण बयान' और एक समझौता ज्ञापन 'म्युचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट' पर हस्ताक्षर किए गए थे जिसके कारण दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के दायरे और पैमाने में काफी वृद्धि हुई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की वियतनाम यात्रा के दौरान भारत और वियतनाम ने संबंधों को नयी ऊँचाई प्रदान करते हुए जिस महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किये थे उसकी बदौलत दोनों देशों की सेना एक-दूसरे के प्रतिष्ठानों का इस्तेमाल मरम्मत कार्य के लिए तथा आपूर्ति संबंधी कार्य के लिए कर पा रही हैं। खास बात यह है कि यह पहला ऐसा बड़ा समझौता था, जो वियतनाम ने किसी देश के साथ किया था।


देखा जाये तो दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच भारत और वियतनाम के रिश्ते प्रगाढ़ होना पूरे क्षेत्र के हित में है क्योंकि चीन लगभग पूरे विवादित दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है, हालांकि ताइवान, फिलीपीन, ब्रूनेई, मलेशिया और वियतनाम इसके हिस्सों पर अपना दावा करते हैं। बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान बनाये हैं। दक्षिण के अलावा चीन का पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ भी क्षेत्रीय विवाद चल रहा है। 


वियतनाम के खिलाफ चीनी हरकतों की बात करें तो आपको बता दें कि एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि चीन की सरकार की ओर से प्रायोजित हैकर्स दक्षिणपूर्व एशिया में सरकार और निजी क्षेत्र के संगठनों को व्यापक रूप से निशाना बना रहे हैं, इनमें बुनियादी ढांचे के विकास की परियोजनाओं पर बीजिंग के साथ करीबी रूप से संलिप्त संगठन भी शामिल हैं। ‘रिकॉर्डेड फ्यूचर’ के चेतावनी अनुसंधान मंडल ‘इन्सिक्ट ग्रुप’ के अनुसार, हैकर्स के खास निशाने पर थाईलैंड का प्रधानमंत्री कार्यालय और सेना, इंडोनेशिया और फिलीपीन की नौसेनाएं, वियतनाम की नेशनल असेंबली और उसकी कम्युनिस्ट पार्टी का केंद्रीय कार्यालय तथा मलेशिया का रक्षा मंत्रालय रहते हैं। एक और समूह ‘इन्सिक्ट ग्रुप’ के खुलासे में भी बताया गया था कि मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम शीर्ष तीन देश हैं जो साइबर हमलों के निशाने पर रहते हैं। 


वियतनाम पर एक नजर डालें तो लगभग पौने दस करोड़ की जनसंख्या वाला यह देश चीन का एकदम पड़ोसी है। यह साम्यवादी पार्टी द्वारा शासित देश है। इसके नेता हो ची मिन्ह की गिनती दुनिया के बड़े नेताओं में हुआ करती थी। वियतनाम में एक-पार्टी शासन होने के बावजूद चीन की तरह इंटरनेट और मीडिया पर सरकारी शिकंजा नहीं है। 


दोनों प्रधानमंत्रियों का वक्तव्य


जहां तक दोनों नेताओं की ओर से संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में दिये गये वक्तव्य की बात है तो आपको बता दें कि मोदी ने अपने मीडिया वक्तव्य में कहा, "हमारी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और हमारी हिंद-प्रशांत दृष्टि में वियतनाम हमारा महत्वपूर्ण साझेदार है... हम विस्तारवाद का नहीं, विकासवाद का समर्थन करते हैं।" उन्होंने कहा, "हम एक स्वतंत्र, खुले, नियम-आधारित और समृद्ध हिंद-प्रशांत के लिए अपना सहयोग जारी रखेंगे।" मोदी ने कहा कि दोनों पक्षों ने आतंकवाद और साइबर सुरक्षा मुद्दों से निपटने के लिए सहयोग को मजबूत करने का फैसला किया है। मोदी ने कहा, "हमारा मानना है कि 'विकसित भारत 2047' और वियतनाम के 'विजन 2045' ने दोनों देशों में विकास को गति दी है। इससे आपसी सहयोग के कई नए क्षेत्र खुल रहे हैं। और इसलिए, अपनी व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के लिए, आज हमने एक नयी कार्ययोजना अपनायी है।" 


मोदी ने कहा कि रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग के लिए नए कदम उठाए गए हैं। दोनों प्रधानमंत्रियों ने ना त्रांग स्थित टेलीकम्युनिकेशन यूनिवर्सिटी में एक आर्मी सॉफ्टवेयर पार्क का डिजिटल तरीके से उद्घाटन भी किया। इसे नयी दिल्ली की विकास सहायता से बनाया गया है। मोदी ने कहा, ‘‘30 करोड़ अमेरिकी डॉलर की स्वीकृत ऋण सुविधा वियतनाम की समुद्री सुरक्षा को मजबूत करेगी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम इस बात पर सहमत हैं कि आपसी व्यापार क्षमता को साकार करने के लिए आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते की समीक्षा जल्द से जल्द पूरी की जानी चाहिए।’’ मोदी ने कहा, ‘‘हमने हरित अर्थव्यवस्था और नयी उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है। ऊर्जा और बंदरगाह विकास में एक-दूसरे की क्षमताओं का आपसी लाभ के लिए उपयोग किया जाएगा।’’ प्रधानमंत्री ने वियतनाम के लोगों को भारत के ‘बौद्ध सर्किट’ में आने का निमंत्रण भी दिया। उन्होंने कहा, ‘‘और हम चाहते हैं कि वियतनाम के युवा नालंदा विश्वविद्यालय का भी लाभ उठाएं।’’ मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि पिछले एक दशक में भारत-वियतनाम संबंधों में ‘‘विस्तार और प्रगाढ़ता’’ आई है। उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 10 वर्षों में हमने अपने संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में बदल दिया है। हमारे द्विपक्षीय व्यापार में 85 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और विकास साझेदारी में आपसी सहयोग बढ़ा है। रक्षा और सुरक्षा क्षेत्रों में आपसी सहयोग ने नयी गति पकड़ी है।’’ मोदी ने कहा, ‘‘पिछले एक दशक में कनेक्टिविटी बढ़ी है। और आज हमारे बीच 50 से अधिक सीधी उड़ानें हैं। इसके साथ ही पर्यटन में लगातार वृद्धि हो रही है और लोगों को ई-वीजा की सुविधा भी दी गई है।’’ 


वहीं वियतनामी प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह ने मीडिया को दिए वक्तव्य में कहा कि दोनों पक्ष सूचना साझा करने और दक्षिण चीन सागर को शांति, स्थिरता और मित्रता के जलक्षेत्र में बदलने के प्रयासों को दोगुना करने पर सहमत हुए हैं। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष उप विदेश मंत्री स्तर की आर्थिक कूटनीति वार्ता प्रणाली स्थापित करेंगे। वियतनामी प्रधानमंत्री चिन्ह ने कहा कि दोनों पक्ष अगले तीन से पांच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को दोगुना करने पर सहमत हुए तथा अधिक ‘ठोस और प्रभावी’ व्यापार और निवेश सहयोग की वकालत की है। भारत की यात्रा पर आये वियतनाम के प्रधानमंत्री ने दोनों पक्षों के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ाने के लिए एक दूरगामी व्यापार समझौते की वकालत की। हम आपको बता दें कि भारत-वियतनाम के बीच मौजूदा व्यापार करीब 15 अरब अमेरिकी डॉलर है। अपने वक्तव्य में चिन्ह ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को विश्व के विकास के लिए ‘इंजन’ बताया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां प्रमुख शक्तियों की राजनीति उग्र रूप ले रही है।


उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर में शांति, स्थिरता, सुरक्षा और नौवहन तथा उड़ान की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने तथा अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से यूएनसीएलओएस (समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र संधि) 1982 के सम्मान के आधार पर विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करेंगे। चिन्ह ने कहा, ‘‘हमने दक्षिण चीन सागर को शांति, स्थिरता, मैत्री और सहयोग का सागर बनाने के लिए जानकारी साझा करने और साथ मिलकर काम करने पर सहमति व्यक्त की है, जहां सुरक्षा, संरक्षा और नौवहन तथा उड़ान की स्वतंत्रता कायम रहेगी।’’

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