प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शितापूर्ण नीतियों से आत्मनिर्भर बन रहा है देश

By ललित गर्ग | Jul 20, 2020

कोरोना वायरस से उपजे संकट ने भारत को गहरे घाव दिये हैं। स्वास्थ्य संकट, सीमा विवाद, बेरोजगारी, व्यापार की अस्तव्यस्तता, अनियंत्रित अर्थव्यवस्था जैसी अनेक समस्याएं-परिस्थितियां उभरी हुई हैं, फिर-फिर उभरेंगी, आग पकड़ेंगी, मिटेंगी और फिर जन्म लेगी। ऐसे नाजुक क्षणों में हमें चुनौतियों का सामना करना होगा। संयम, विवेक और संतुलन से आगे बढ़ना होगा। निर्णय और क्रियान्विति के बीच उतावलापन नहीं, नापसन्दगी के क्षणों में बौखलाहट नहीं, सिर्फ धैर्य, स्वविवेक एवं साहस को सुरक्षित रखना होगा, क्योंकि गहरे जख्मों को भरने के लिये तेज हवा को भी कुछ समय चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इन जटिल एवं चुनौतीपूर्ण हालातों में देश को जिस कुशलता, निर्णायक क्षमता एवं सूझबूझ से संकट से बाहर निकाल रहे हैं, ऐसा लग रहा है वे कोरे अतिशयोक्तिपूर्ण आदर्शवाद की बजाय दृढ़ संकल्पी, धारदार एवं राष्ट्रीयता से ओतप्रोत चाणक्य नीति पर चल रहे हैं।


नरेन्द्र मोदी की सूझबूझ एवं दूरदर्शितापूर्ण नीतियां एवं सिद्धान्तों का ही प्रभाव ही है कि हम इतनी बड़ी एवं विकराल समस्या से जूझते हुए भी अपने-आप को टूटने नहीं दे रहे हैं। राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा एवं उनकी पूर्ति के लिये मोदी जहां स्वयं को शक्तिशाली बना रहे हैं, वहीं आम जनता के मनोबल को भी मजबूती प्रदान कर रहे हैं। इन्हीं शुभ एवं ताकतवर स्थितियों का परिणाम है कि न केवल पाकिस्तान को उसकी औकात का भान कराया है, बल्कि चीन जैसे शक्तिशाली राष्ट्र को भी पीछे हटने पर मजबूर किया है।

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प्रगति की प्रयत्नशील दौड़ में मोदी केवल ‘स्व-तंत्र’ से नहीं जुड़े हैं बल्कि ‘जन-तंत्र’ से जुड़े हैं। उन्होंने वही सोचा और वही किया जो जन-जन की उपलब्धियों एवं खुशहाली के लिये जरूरी है। हम देख रहे हैं कि कोरोना महाप्रकोप ने भारत समेत सभी देशों की अर्थव्यवस्था को बेपटरी कर दिया है। मौजूदा दौर में आर्थिक वृद्धि दर बहाल करना मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है। यह निश्चित है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी। देश के सामने बेरोजगारी है, बाजार खुले हैं लेकिन ग्राहक नहीं, जरूरत के सामानों सहित पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से हर कोई परेशान है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए केन्द्र सरकार ने हर क्षेत्र को पैकेज दिया है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत उद्योग जगत, छोटे-बड़े कारोबारियों, दुकानदारों और मजदूर वर्ग को राहत दी है। रिजर्व बैंक ने भी आर्थिक तंत्र को सुरक्षा और मौजूदा संकट में अर्थव्यवस्था को सहयोग देने के लिए कई कदम उठाए हैं।


आवश्यकता मोदी की नीतियों को बल देने के लिये कोरोना महासंकट के कारण हो रहे नुकसान के दुःख को भूलकर नये सुख की सृजना में जुट जाने की हैं। ऐसे परिदृश्य दिखाई भी दे रहे हैं, जैसा कि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था के सामान्य होने के संकेत दिखाई देने लगे हैं और उनका यह भी कहना है कि भारतीय बैंकिंग व्यवस्था और वित्तीय व्यवस्था इस संकट का मुकाबला करने में सक्षम है। संकट के इस समय में भी भारतीय कम्पनियों और उद्योगों ने बेहतर काम किया। ढलान से बहते पानी के तेज प्रवाह को रोकना बहुत कठिन है, इसी तरह तीव्र गति से विपरीत दिशा में मुड़ती अच्छाइयों एवं विकास की तेज रफ्तार को रोकने में अकेला नेतृत्व भी भला क्या कर सकेगा? आज चाहिए एक साथ कई हाथ उठे, एक साथ कदम-से-कदम मिलकर आगे बढ़ें, तभी आने वाला भविष्य दीये से दीया जलाकर सर्वत्र रोशनी बिखेर सकेगा।


लॉकडाउन के दौरान जनजीवन, यातायात और आवागमन ठप्प होकर रह गया था लेकिन अब आवागमन बढ़ा है, जन-जीवन अपनी पटरी पर लौट रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले कुछ माह में कामकाज सामान्य हो जाएगा। निराशा एवं धुंध के बादल छंटने लगेंगे, व्यापारिक एवं औद्योगिक गतिविधियां गति पकड़ेगी, उत्पादन और कारोबार में बढ़त का सीधा संबंध आर्थिक उन्नति लायेगा। मांग बढ़ेगी तो उत्पादन बढ़ेगा, उत्पादन बढ़ेगा तो रोजगार बढ़ेगा और लोगों की कमाई बढ़ेगी। जरूरत है सतर्कता से कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की, विवेक एवं संयम का परिचय देते हुए मनोबल को दृढ़ बनाने की। इसी से बड़े से बड़े संकट को झेलने में हम सक्षम होंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषता हैं कि वह हर बड़े-से-बड़े तूफान को झेल लेती है और उससे उबर आती है। केन्द्र सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा के बाद हमारे आर्थिक विकास की रफ्तार तेज होने की संभावनाएं साफ-साफ दिखाई दे रही हैं। ग्रामीण क्षेत्र में किसानों और कामगारों को सरकारी मदद तथा मनरेगा जैसी योजनाओं से काफी फायदा होगा। यह बढ़त इसलिए भी अहम है कि प्रवासी श्रमिकों के वापस अपने गांवों को लौटने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही थी लेकिन ये आंकड़े काफी संतोषप्रद हैं। मानसून के सामान्य रहने की उम्मीदों से भी कृषि क्षेत्र को बड़ा सहारा मिला है। घोर अंधेरों के बीच ये अनेक उजाले हैं।

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आज कोरोना महामारी के कारण बड़े-बड़े राष्ट्रों के चिन्तन, दर्शन व शासन प्रणाली में परिवर्तन आ रहे हैं। अब तक जिस विचारधारा पर वे चल रहे थे, उसे किनारे रखकर नया रास्ता खोज रहे हैं। लेकिन मोदी चतुर रणनीतिकार की भांति स्वयं को शक्तिशाली एवं सामर्थ्यवान बनाकर पड़ोसी राष्ट्रों सहित चीन जैसे शक्तिशाली राष्ट्रों को चुनौती दे रहे हैं, न केवल बाहरी बल्कि भीतरी राजनीति को भी वे लोकतांत्रिक मूल्यों के जीवंतता की सीख दे रहे हैं। लोकतंत्र श्रेष्ठ प्रणाली है और उसके संचालन में शुद्धता, पवित्रता एवं पारदर्शिता के माध्यम से मोदी उसे सशक्त बना रहे हैं। वे चाहते हैं कि लोक जीवन में लोकतंत्र प्रतिष्ठापित हो और लोकतंत्र में लोक मत को अधिमान मिले। अधिकारों का दुरुपयोग नहीं हो, आमजन के स्तर पर भी और प्रशासक स्तर पर भी। लोक चेतना जागे। लोक प्रशिक्षण हो ताकि राजनीति में  चरित्र की प्रधानता बनी रहे। जन भावना लोकतंत्र की आत्मा होती है। लोक सुरक्षित रहेगा तभी तंत्र सुरक्षित रहेगा। मोदी के सारे सिद्धान्त एवं नीतियां लोक के लिए, लोक जीवन के लिए, लोकतंत्र के लिए कामना करते हैं कि उसे शुद्ध सांसें मिलें। लोक जीवन और लोकतंत्र की अस्मिता को गौरव मिले।


देश चिन्तन के उस मोड़ पर खड़ा है जहां एक समस्या खत्म नहीं होती, उससे पहले अनेक समस्याएं एक साथ फन उठा लेती है। ऐसे समय में देश की सुरक्षा, जन-जन की रक्षा एवं अंधेरों को चीर कर रोशनी प्रकट करने के लिये सही समय पर सही निर्णय लेने वाले दूरदर्शी, समझदार, सच्चे राष्ट्रनायक की जरूरत है जो न शस्त्र की भाषा में सोचता हो, न सत्ता की भाषा में बोलता हो और न स्वार्थ की तुला में सबको तोलता हो। आज आदर्शों की पूजा नहीं, उसके लिये कसौटी चाहिए। आदर्श हमारे शब्दों में ही नहीं उतरे, जीवन का अनिवार्य हिस्सा बने। उन्हें सिर्फ कपड़ों की तरह न ओढ़ा जाये अन्यथा फट जाने पर आदर्श भी चिथड़े कहलायेंगे। इसीलिये नरेन्द्र मोदी कोरे निरर्थक आदर्शवाद के हिमायती नहीं हैं, बल्कि उन्होंने अपनी प्रखर कूटनीतिक रणनीति, राष्ट्रीयता की सोच एवं व्यावहारिक आदर्शवाद से स्पष्ट कर दिया है कि भारत एक बड़ी ताकत है, आत्मनिर्भर शक्तिशाली राष्ट्र है, जिसे छेड़ने का अर्थ है कि सोये हुए नाग को डंक मारने पर विवश करना। उसे अपनी सीमाओं, संप्रभुता एवं भीतरी समस्याओं से जन-जन की रक्षा करना आता है। अन्यथा भारत तो शांति ही चाहता है और शांति के प्रयत्नों में ही जुटा है।


-ललित गर्ग

(लेखक, पत्रकार, स्तंभकार)

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