Matrubhoomi: पोलियो के खिलाफ भी भारत ने जीती है लड़ाई, 'दो बूंद जिंदगी की' अभियान हुआ था लोकप्रिय

By अंकित सिंह | Apr 18, 2022

भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया फिलहाल कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है। हालांकि भारत में जिस तरीके से कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण हुआ, वह दुनिया के कई देशों के लिए प्रेरणा स्रोत रहा। इतनी बड़ी आबादी के बावजूद भी भारत में कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में मजबूती दिखाई और दुनिया को नई दिशा दी। हालांकि इससे पहले भी भारत दो गंभीर बीमारियों को लेकर दुनिया को नई राह दिखा चुका है। वे दो बीमारियां थी- चेचक और पोलियो। वर्तमान में देखें तो भारत को पोलियो मुक्त कहा जा सकता है। हालांकि इन दोनों बीमारियों से भारत की लड़ाई आसान नहीं थी। बावजूद इसके भारत ने कोशिश की और सफलता पाने में कामयाबी हासिल की। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो मुक्त देश घोषित कर चुका है। इसका मतलब साफ है कि अब हमारे नौनिहालों को पोलियो विकलांगता का शिकार होकर जीवन भर आंसू नहीं बहाने पड़ेंगे। 

 

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पोलियो के खिलाफ भारत की लड़ाई 

साल 1985 में भारत में पोलियो के करीब डेढ़ लाख मामले सामने आए थे। उसके बाद से भारत ने पोलियो को जड़ से मिटाने का संकल्प लिया। भारत ने सर्विलांस के जरिए लोगों को ढूंढा और मामलों की पड़ताल के बाद टीकाकरण का कार्य युद्ध स्तर पर शुरू किया। इस दौरान भारत ने इस बीमारी से निपटने के लिए हर वह जरूरी काम किया। भारत में कई सहयोगी संगठन और संयुक्त राष्ट्र की मदद से टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा था। हालांकि भारत की पोलियो मुक्त बनने की कहानी में 'दो बूंद जिंदगी की' अभियान का बड़ा ही योगदान रहा।

 

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दो बूंद जिंदगी की अभियान 

दरअसल, 1988 में संयुक्त राष्ट्र ने विश्व को पोलियो मुक्त बनाने का अभियान प्रारंभ किया। 1993 से लेकर 1998 तक दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ. हर्षवर्धन ने राष्ट्रीय राजधानी को पोलियो मुक्त बनाने की पहल की। इसके लिए उन्होंने पल्स पोलियो कार्यक्रम की शुरुआत की थी। 1995 में यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना में शामिल हुआ जिसके बाद यह देश व्यापी अभियान बन गया। 3 साल तक की उम्र के बच्चों को पोलियो टीकाकरण अभियान के दायरे में लाया गया और 1 साल में करीब 8.7 करोड़ बच्चे इस अभियान में शामिल हुए। बाद में इसकी उम्र सीमा 5 साल कर दी गई। सरकार को पोलियो उन्मूलन अभियान में कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और एजेंसियों की भी मदद मिली। बाद में साल 1997 में नेशनल पोलियो सर्विलेंस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई। यह भारत को पोलियो मुक्त करने के लिए सरकार तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक साझा कार्यक्रम था।


जागरूकता के अभाव में भारत में पल्स पोलियो अभियान में कई दिक्कतें भी आई। कई लोग पल्स पोलियो की खुराक का इसलिए बहिष्कार कर रहे थे क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे बांझपन का खतरा बढ़ जाएगा। हालांकि जागरूकता के साथ-साथ भारत ने पल्स पोलियो अभियान ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की। भारत के लिए अच्छी बात यह भी रही कि उत्तर प्रदेश और बिहार में भी पोलियो के खिलाफ जबरदस्त कामयाबी हासिल हुई। यह दोनों राज्य जागरूकता और शिक्षा के मामले में तब काफी पीछे थे। ऐसे में यहां जागरूकता फैलाना एक बड़ी चुनौती थी। भारत ने अमिताभ बच्चन को पल्स पोलियो अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया। अमिताभ बच्चन 'दो बूंद जिंदगी की' इसको लेकर लगातार प्रचार करते रहे और लोगों में जागरूकता होती गई। भारत में पल्स पोलियो अभियान को बिल गेट्स ने भी इसकी तारीफ की और कहा था कि यह सफलता मानव कल्याण के क्षेत्र में दुनिया के सबसे कठिन संघर्ष को जीतने के लिए प्रेरणा देते हैं। 

 

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चेचक के खिलाफ अभियान 

चेचक भी इंसानों के लिए करीब 3000 सालों से एक बड़ी मुसीबत बनी हुई थी। इसकी वजह से करोड़ों लोगों की मौत भी हुई है। आजादी के वक्त भारत में चेचक के बहुत ज्यादा मामले सामने आ रहे थे। 1948 में भारत सरकार ने इस बीमारी से निपटने के लिए एक बयान जारी किया था। उस दौरान चेन्नई के किंग्स इंस्टीट्यूट ने बीसीजी टीका बनाने का कार्य शुरू किया था। 1949 में भारत में बीसीजी का टीकाकरण स्कूल स्तर पर शुरू किया गया जबकि 1951 में इसे देश भर में बड़े स्तर पर लागू किया गया। उसके बाद से भारत ने चेचक की लड़ाई मजबूती से लड़ी। साल 1975 में भारत में चेचक का आखिरी मामला सामने आया था। साल 1977 में भारत को चेचक मुक्त घोषित कर दिया गया। भारत में लगभग 3 दशक तक चेचक के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

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