By प्रह्लाद सबनानी | Dec 10, 2021
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य जारी किया है। इस परिदृश्य में बताया गया है कि वर्ष 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 5.9 प्रतिशत की विकास दर हासिल की जा सकेगी और वर्ष 2022 में यह घटकर 4.9 प्रतिशत के स्तर पर आ जाएगी, जबकि वर्ष 2020 में पूरे विश्व में फैली कोविड महामारी के कारण यह ऋणात्मक 3.1 प्रतिशत की रही थी। इस परिदृश्य में विभिन्न देशों के सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2020, 2021 एवं 2022 में होने वाली वृद्धि दर को भी दर्शाया गया है। अमेरिका में उक्त तीनों वर्षों में क्रमशः ऋणात्मक 3.4 प्रतिशत, 6 प्रतिशत एवं 5.2 प्रतिशत की विकास दर रहेगी। यूरोप के क्षेत्र में क्रमशः ऋणात्मक 6.3 प्रतिशत, 5 प्रतिशत एवं 4.3 प्रतिशत की विकास दर रहेगी। चीन में क्रमशः 2.3 प्रतिशत, 8 प्रतिशत एवं 5.6 प्रतिशत की विकास दर रहेगी। जबकि भारत में ऋणात्मक 7.3 प्रतिशत, 9.5 प्रतिशत एवं 8.5 प्रतिशत की विकास दर रहेगी। इस प्रकार, पूरे विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत में विकास दर सबसे अधिक रहने की सम्भावना अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अपने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में दर्शाई गई है। ऐसे क्या कारण रहे हैं जिनके चलते न केवल भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को अन्य देशों की तुलना में शीघ्रता से पटरी पर ला दिया है बल्कि एक बार पुनः भारत विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यस्थाओं की श्रेणी में शामिल हो गया है।
यह तो सर्वविदित है कि वर्ष 2020 एवं 2021 में कोरोना महामारी के प्रथम दौर एवं द्वितीय दौर ने लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को विपरीत रूप से प्रभावित किया है, कुछ देशों में तो कोरोना महामारी का तृतीय दौर भी जारी है। इस दौरान, विभिन्न देशों ने अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को संभालने के लिए कई प्रकार के निर्णय लिए और इनका सकारात्मक असर भी इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ा है। हालांकि, कुछ देशों की अर्थव्यवस्थाएं तो संभाल ली गईं परंतु कुछ देशों की अर्थव्यवस्थाएं अभी भी संघर्ष कर रही हैं। जैसे अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में मांग एवं आपूर्ति में पैदा हुए असंतुलन के चलते उत्पादों की आपूर्ति से सम्बंधित सप्लाई चैन में समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं जिसके कारण इन देशों में मुद्रास्फीति की दर अपने रिकॉर्ड उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। अब इन देशों में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर पर भी विपरीत प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। इसके ठीक विपरीत भारत में कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों के कारण सप्लाई चैन की समस्या उत्पन्न होने ही नहीं दी गई जिसके कारण देश के किसी भी कोने में उत्पादों की उपलब्धता पर कोई अंतर ही नहीं पड़ा एवं इससे उपभोक्ता मुद्रास्फीति की दर भी नियंत्रण में बनी रही है।
भारत में आर्थिक क्षेत्र में कुछ निर्णय तो ऐसे भी लिए गए जिसकी वैश्विक स्तर पर सराहना हुई। जैसे, देश की अर्थव्यवस्था में तरलता बनाए रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बैंकों द्वारा प्रदान किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के ऋणों के लिए विशेष गारंटी योजना लागू की जिसके कारण बैंकों ने औद्योगिक इकाईयों, विशेष रूप से छोटे, मध्यम एवं सूक्ष्म इकाईयों को ऋण आसानी से प्रदान कराए एवं इन इकाईयों को तरलता की कमी नहीं आने दी। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी समय-समय पर ब्याज की दरों (रेपो एवं रिवर्स रेपो की दरों) में कमी की गई, इससे एक तो ऋण पर ब्याज की दरें कम हुईं और दूसरे ऋण की उपलब्धता भी आसान हुई। हालांकि देश में कई राजनैतिक दलों द्वारा लगातार यह मांग की जाती रही कि जनता के हाथों में सीधे ही पैसा पहुंचाया जाये परंतु इस मांग को न मानते हुए केंद्र सरकार ने 80 करोड़ गरीब एवं मध्यम वर्ग के नागरिकों को अन्न, दाल आदि उत्पादों को मुफ्त उपलब्ध कराते हुए इस वर्ग की सहायता की। इस निर्णय का लाभ यह हुआ कि यदि सीधे ही गरीब वर्ग के हाथों में पैसा पहुंचाया जाता तो इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा का चलन बढ़ता और इससे मुद्रास्फीति की समस्या खड़ी हो जाती। देश में चूंकि सरकार के पास किसानों से खरीदे गए अन्न के पर्याप्त भंडार मौजूद हैं तो गरीब वर्ग को सीधे मुद्रा प्रदान न कर अन्न उपलब्ध कराने से मुद्रास्फीति के विपरीत प्रभाव को रोकने में सफलता हासिल की गई। जबकि अमेरिका एवं अन्य देश, विशेष रूप से इस कारण से भी अब मुद्रास्फीति की समस्या से जूझ रहे हैं। दूसरे, औद्योगिक इकाईयों को कम ब्याज दर पर एवं आसानी से ऋण उपलब्ध कराने के कारण व्यापार एवं उत्पादन करने वाली इकाईयों को शीघ्रता से पुनः प्रारम्भ किया जा सका एवं देश में रोजगार के अवसर पुनः शीघ्रता से निर्मित किए गए।
भारतीय अर्थव्यवस्था का शीघ्रता से पटरी पर लौटने का एक कारण यह भी है कि देश में नागरिकों का कोरोना से सम्बंधित टीकाकरण बहुत ही व्यवस्थित तरीके से तेजी के साथ किया गया जिसके कारण अभी तक देश में तीसरी लहर का प्रकोप दिखाई ही नहीं दिया है। जबकि अन्य कई देशों में चूंकि टीकाकरण उस तेजी के साथ नहीं हो सका है अतः इन देशों में तीसरी लहर का प्रकोप भी दिखाई दिया एवं इसका नकारात्मक प्रभाव भी इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ा ही है।
कोरोना महामारी के दौरान भारत में सामाजिक संस्थाओं एवं धार्मिक संस्थाओं (मंदिरों, गुरुद्वारों, आदि) एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भी समाज के गरीब वर्ग के साथ एकजुटता दिखाई एवं अपना सहयोग का हाथ बढ़ाया गया। इस काल में भारत में सामाजिक समरसता भी सही अर्थों में दिखाई दी थी। इससे भी गरीब एवं मध्यम वर्ग की आर्थिक परेशानियों को कुछ हद तक कम किया जा सका एवं उन्हें स्वास्थ्य एवं आर्थिक परेशानियों से उबारा जा सका है। दूसरे, भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न त्यौहारों के चलते भी उत्पादों की खरीद बढ़ जाती है। इस वर्ष दीपावली के दौरान देश में 125,000 करोड़ रुपए से अधिक का खुदरा व्यापार सम्पन्न हुआ है जो पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान हुए खुदरा व्यापार में सबसे अधिक है। अतः भारतीय संस्कृति का पालन करते हुए भी देश की अर्थव्यवस्था को शीघ्र गति देने में सफलता हासिल की गई है।
कोरोना महामारी के दौरान अत्यधिक विपरीत रूप से प्रभावित भारतीय अर्थव्यवस्था अब तो कोरोना महामारी के पूर्व के स्तर को प्राप्त कर चुकी है और अब तेजी से उस स्तर से और आगे बढ़ रही है। अभी हाल ही में जारी किए गए आर्थिक संकेतकों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था के 22 प्रखर आवृति वाले महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों में से 19 आर्थिक संकेतकों में कोरोना महामारी के पूर्व के स्तर को प्राप्त कर लिया गया है अथवा उस स्तर से आगे निकल आए हैं। कोरोना महामारी के पूर्व के स्तर से आगे निकलने वाले आर्थिक संकेतकों में शामिल हैं ई-वे बिल जारी होना, उत्पादित वस्तुओं के निर्यात, कोयला उत्पादन, रेलवे द्वारा ढोया जाने वाला माल आदि। इन सभी आर्थिक संकेतकों के अंतर्गत हो रही वृद्धि दर को देखते हुए अब तो संशोधित आकलन किया जा रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था में वित्तीय वर्ष 2021-22 में वृद्धि दर 10 प्रतिशत से भी अधिक रह सकती है।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक