By अंकित सिंह | Jan 03, 2023
भारत के इतिहास में ऐसे कई महिलाएं हैं जिनके द्वारा समाज में ऐसी भूमिकाएं निभाई रही हैं जिसका उल्लेख आज भी किया जाता है। हालांकि, यह बात भी सत्य है कि भारत के इतिहास में महिलाओं को वह प्रधानता नहीं मिली थी जिसकी वह हकदार थीं। लेकिन कुछ महिलाओं ने अपने कर्मों से समाज में अलग पहचान बनाई और आज की पीढ़ी के लिए वह एक प्रेरणा स्रोत हैं। उन्हीं महान महिलाओं में से एक थी सावित्रीबाई फुले। सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के उत्थान के लिए कई बड़े काम किए थे। उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षक के रूप में याद किया जाता है। महज 17 साल की उम्र में उन्होंने पुणे में देश का पहला गर्ल्स स्कूल खोलकर समाज के लिए एक बेहद ही महत्वपूर्ण कार्य किया था। यह उस वक्त की बात है जब भारतीय महिलाओं की स्थिति बड़ी ही दयनीय होती थी। लेकिन सावित्रीबाई फुले समाज सुधारक बनकर महिलाओं के जीवन में उत्थान लगने की कोशिश करती रहीं। उन्होंने समाज में शिक्षा और अवसरों के लिए कई बड़े प्रयास भी किए।
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को नायगांव में हुआ था। तब या ब्रिटिश भारत का हिस्सा था। अब महाराष्ट्र के सतारा में आता है। सावित्रीबाई फुले की शादी महज 10 वर्ष की उम्र में हो गई थी। सावित्री बाई के पति का नाम ज्योतिबा फुले था। उस वक्त ज्योतिबा फुले की उम्र 13 वर्ष की थी। हालांकि, सावित्रीबाई फुले के नसीब में संतान सुख नहीं था। विवाह के कई सालों तक संतान नहीं होने के बाद उन्होंने एक ब्राह्मण महिला के पुत्र को गोद लिया था। इसका नाम यशवंतराव रखा गया। सावित्रीबाई फुले ने अपने पुत्र यशवंतराव को पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बनाया था। सावित्रीबाई फुले समाज में महिलाओं की स्थिति को देखकर काफी निराश होती थीं। वह उनके लिए कुछ करना चाहती थीं। ऐसे में उन्होंने महिलाओं को शिक्षित बनाने के लिए 1948 में एक विद्यालय की शुरुआत की थी जिसमें 9 विद्यार्थी पढ़ते थे।
दरअसल, ज्योतिराव फुले ने अपनी पत्नी को घर में ही पढ़ाया। यही कारण था कि सावित्रीबाई फुले को कई विषयों का ज्ञान था। अपने पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई फुले ने महिला शिक्षा और दलित उत्थान को लेकर कई बड़े काम किए। दोनों ने छुआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा को रोकने एवं विधवा पुनर्विवाह को प्रारंभ करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य भी किए। महिलाओं को शिक्षा के क्षेत्र में आगे करने के लिए सावित्रीबाई ने समाज में कई बड़े संघर्ष किए। हालांकि, वह अपनी इस काम में लगातार लगी रही। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर अट्ठारह स्कूल खोले थे। सावित्रीबाई ने अनेक विरोध सहे लेकिन वह अपने रास्ते से नहीं भटकीं। पूरी निडरता के साथ समाज को कुरीतियों से बाहर निकालने की कोशिश करते रहीं। सावित्रीबाई फुले ने बाल विवाह और युवा विधवाओं के मुंडन के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद की थी। बताया जाता है कि सावित्रीबाई ने पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसंबर 1873 को संपन्न कराया था।
बताया जा रहा है कि सावित्रीबाई फुले जब पढ़ाने के लिए अपने घर से निकलती थी, तब लोग उन पर कीचड़, कूड़ा और गोबर तक फेंकते थे। इसलिए वह एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थी और स्कूल पहुंचकर गंदी हुई साड़ी को बदल लेती थी। महात्मा ज्योतिराव फुले की मुत्यु 28 नवंबर, 1890 को हुई, तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने का संकल्प लिया। लेकिन, 1897 में प्लेग की भयंकर महामारी फैल गई। पुणे के कई लोग रोज इस बीमारी से मरने लगे। तब सावित्रीबाई ने अपने पुत्र यशवंत को अवकाश लेकर आने को कहा और उन्होंने उसकी मदद से एक अस्पताल खुलवाया। इस नाजुक घड़ी में सावित्रीबाई स्वयं बीमारों के पास जाती और उन्हें इलाज के लिए अपने साथ अस्पताल लेकर आती। इस प्रक्रिया में यह महामारी उनको भी लग गई और 10 मार्च, 1897 को रात को 9 बजे उनकी सांसें थम गई।
- अंकित सिंह