भारत ने विदेशों में काम करने वाली ई-वाणिज्य कंपनियों पर डिजिटल कर लगाये जाने का बचाव किया

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 18, 2020

नयी दिल्ली। भारत ने विदेशों में रहकर यहां काम करने वाली ई-वाणिज्य कंपनियों पर 2 प्रतिशत सामान्यीकरण शुल्क (इक्वलाइजेशन लेवी) यानी डिजिटल कर लगाये जाने का बचाव किया है। उसने कहा कि इसकी प्रकृति भेदभावपूर्ण नहीं है और इसका मकसद उन कंपनियों पर कर लगाना है जिनका डिजिटल परिचालन के जरिये देश के बाजार के साथ गहरा संबंध हैं। अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि को दिये छह पृष्ठ के जवाब में भारत ने कहा कि शुल्क केवल उन्हीं कंपनियों पर लागू होती है जिनकी सालाना आय 2 करोड़ रुपये (करीब 2,67,000 डॉलर)से अधिक है। इस सीमा का कारण छोटी ई-वाणिज्य कंपनियों को इससे छूट देना है। भारत ने कहा, ‘‘यह अमेरिका की कंपनियों के खिलाफ भेदभाव नहीं करता क्योंकि यह समान रूप से उन सभी ई-वाणिज्य परिचालकों पर लगता है जिनका भारत में स्थायी तौर पर प्रतिष्ठान नहीं है। भले ही वे कंपनियां किसी भी देश की हों।’’

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अमेरिका ने पिछले महीने व्यापार कानून, 1974 की धारा 301 के तहत उस डिजिटल सेवा कर की जांच शुरू करने का निर्णय किया जिसे भारत समेत कई देश लगाने पर विचार कर रहे हैं या उन्होंने इसे लागू कर दिया है। अमेरिका का मानना है कि यह कर ‘अनुचित’रूप से उसकी प्रौद्योगिकी कंपनियों को ध्यान में रखकर लगाया गया है। उस समय उसने जांच को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया मांगी थी। भारत ने अपने जवाब में कहा, ‘‘सामान्यीकरण शुल्क का मकसद अमेरिकी या किसी अन्य कंपनी को निशाना बनाना नहीं है। इसका उद्देश्य प्रतिस्पर्धा, निष्पक्षता, तर्कसंगतता सुनिश्चित करना है। साथ ही इसके जरिये उन कंपनियों पर कर लगाना है जिनका अपने डिजिटल परिचालन के माध्यम से भारत बाजार के साथ गहरा ताल्लुक हैं।’’ इसमें कहा गया है कि भारत इस बारे में अमेरिका के साथ बातचीत को तैयार है। भारत ने यह भी कहा कि यह शुल्क पूरी तरह से भारत के डब्ल्यूटीओ (विश्व व्यापार संगठन) की प्रतिबद्धताओं और अंतरराष्ट्रीय कराधान समझौतों के अनुरूप है। इसे बावजूद अमेरिका की कोई चिंता है तो वह विशिष्ट अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत विवाद निपटान के प्रावधान के तहत उपयुक्त मंच पर इसे उठा सकता है।

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