बागियों की भूमिकाओं, दल-बदलुओं की चालबाजियों तथा विभिन्न दलों के भीतर मची कलह-कुचाल के कारण झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव की चर्चा काफी गर्म है। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 05 जनवरी 2025 को समाप्त होगा, लेकिन यहां की सभी 81 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में 13 और 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। वैसे तो, राज्य में आईएनडीआईए (इंडिया) और एनडीए गठबंधनों के बीच सीधी टक्कर होने की बातें कही जाती हैं, लेकिन धरातल पर इस बार भी पूर्व की तरह मुख्य चुनावी लड़ाई मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में ही दिखाई पड़ रही है। हालांकि गौरतलब है कि दलों के बीच गठबंधन वाली एकता जैसी एनडीए खेमे में दिखाई पड़ रही है, वैसी एकता आएनडीआइए गठबंधन के खेमे में नहीं है। इसके कारण आएनडीआइए खेमे में मायूसी और चिंता का माहौल बना हुआ है, जबकि दूसरी ओर एनडीए खेमे में निश्चित तौर पर उत्साह और खुशी का माहौल बना हुआ है। इसके बावजूद दोनों गठबंधनों की ओर से अपनी-अपनी जीत के दावे बेहद जोर-शोर से किए जा रहे हैं। बहरहाल, इस बात का पता तो आगामी 23 नवंबर को ही पता चल पाएगा कि चुनाव में किसकी गाड़ी मंजिल तक पहुंचती है और किसकी गाड़ी बीच मजधार में ही फंसी रह जाती है। वैसे खुश होने की एक वजह तो है कि लंबे समय तक नक्सल-प्रभावित रहे झारखंड राज्य में पिछले कुछ वर्षों के दौरान नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगाने में सुरक्षा बलों को बड़ी सफलता मिली है।
राज्य के विश्रामपुर विधानसभा सीट की बात करें तो पिछले दिनों यहां पर इंडिया गठबंधन के भीतर खुल कर विरोधी गतिविधियां देखी गईं। गौरतलब है कि सीटों के बंटवारे के बाद विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के कोटे में गई थी, जबकि आरजेडी ने विश्रामपुर विधानसभा से जैसे ही अपने उम्मीद्वार रामनरेश सिंह को खड़ा किया, लगे हाथ कांग्रेस ने भी अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। कांग्रेस पार्टी यहीं नहीं रूकी, बल्कि उसने विश्रामपुर विधानसभा पर अपना दावा ठोंकते हुए अपने नेता सुधीर कुमार चंद्रवंशी को टिकट थमा दिया। स्थिति यहां तक तक पहुंच गई कि सुधीर कुमार चंद्रवंशी ने क्षेत्र से नामांकन करके अपने ही अलायंस के पार्टनर प्रत्याशी राजद के रामनरेश सिंह की मुश्किलें बढ़ा दीं। ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस ने आरजेडी प्रत्याशी के विश्रामपुर सीट से चुनाव हारने की आशंका के कारण उसने इस सीट पर अपना प्रत्याशी उतारा है, क्योंकि यदि राजद प्रत्याशी बीजेपी के प्रत्याशी से चुनाव हार गए तो आईएनडीआईए गठबंधन को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। बता दें कि एक जमाने में विश्रामपुर विधानसभा सीट कांग्रेस का मजबूत किला माना जाता था। हालांकि, पिछले दो चुनावों में उसके प्रत्याशियों को लगातार हार का सामना भी करना पड़ा है, जिससे कांग्रेस का किला पूरी तरह दरकता हुआ दिखाई देने लगा था। वहीं, 2014 में पहली बार इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला, जब राजद छोड़कर बीजेपी में आए रामचंद्र चंद्रवंशी ने चुनाव जीता था।
फिर उन्होंने 2019 में भी अपनी जीत को भली-भांति दोहराने का कार्य किया। यही कारण है कि पार्टी ने इस बार उन्हें हैट्रिक लगाने की मंशा से मैदान में उतारा है। इसमें संदेह नहीं कि यदि आएनडीआइए गठबंधन की आपसी कलह समय रहते समाप्त नहीं हुई तो बीजेपी उम्मीद्वार की हैट्रिक लगनी सुनिश्चित है। इसी प्रकार, बीजेपी नेता रवींद्र राय के विद्रोही तेवर के कारण धनवार विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे भाजपा के बाबूलाल मरांडी की चुनावी जंग शुरुआती दौर में फंसती दिखाई पड़ने लगी थी, लेकिन बीजेपी ने समय रहते रविन्द्र राय को झारखंड बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर डैमेज कंट्रोल करने में सफलता पा ली, जिससे बाबूलाल मरांडी का संकट शीघ्र ही टल गया। दूसरी ओर, धनवार विधानसभा सीट पर भी एक बार फिर आएनडीआइए गठबंधन की ही गाड़ी फंसती नजर आने लगी, जब यहां से गठबंधन के दो दो उम्मीदवार आमने-सामने खड़े हो गए। दरअसल, सीट बंटवारे के बाद हिस्से में आई इस सीट पर जेएमएम के निजामुद्दीन अंसारी बाबूलाल मरांडी को चुनौती दे रहे थे, परंतु बाद में सीपीआई के राजकुमार यादव भी धनवार के चुनावी जंग में ताल ठोंकते नजर आने लगे। जाहिर है कि एक ही सीट से एक ही गठबंधन के दो-दो प्रत्याशियों के खड़े हो जाने से आएनडीआइए गठबंधन के वोटों में बिखराव होना तय है और यदि आएनडीआइए गठबंधन ने समय रहते डैमेज कंट्रोल नहीं किया तो बाबूलाल मरांडी की विजय बेहद आसान हो जाएगी।
ऐसे ही, झारखंड के छतरपुर विधानसभा सीट के भी आईएनडीआईए गठबंधन की आपसी कलह की भेंट चढ़ने के आसार दिखाई देने लगे हैं। गौरतलब है कि छतरपुर विधानसभा सीट आपसी बंटवारे में गठबंधन की ओर से कांग्रेस के हिस्से में गई थी, जिसके बाद यहां से कांग्रेस ने अपने जाने-माने नेता राधाकृष्ण किशोर को टिकट दिया। बता दें कि राधाकृष्ण किशोर कई दलों में भ्रमण करते रहने वाले नेता रहे हैं और फिलहाल वे कांग्रेस की ओर से चुनावी मैदान में हैं। इससे पहले भी छतरपुर विधानसभा सीट से ये पांच बार चुनाव जीत चुके हैं। इनमें से तीन बार कांग्रेस के कोटे से और एक बार जेडीयू तथा एक बार बीजेपी की ओर से इन्होंने विधायक बनने में सफलता पाई है। हालांकि इस बार इनकी गाड़ी आपसी विरोध और कलह-कुचाल के कीचड़ में फंसती हुई दिखाई दे रही है। दरअसल, कांग्रेस के कोटे से जैसे ही राधाकृष्ण किशोर ने अपना नामांकन पत्र भरा आईएनडीआईए गठबंधन के ही नाराज पार्टनर राजद ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। नौबत यहां तक आ गई कि राजद ने यहां से विजय राम को प्रत्याशी बना डाला। अब यहां से छठी बार अपना भाग्य आजमा रहे कांगेसी उम्मीद्वार राधाकृष्ण किशोर को यह भय सताने लगा है कि कहीं उनकी चुनावी गाड़ी बेपटरी तो नहीं हो जाएगी। बहरहाल, राज्य के विश्रामपुर, धनवार और छतरपुर विधानसभा सीटों पर यदि आईएनडीआईए गठबंधन ने अपने समीकरण नहीं बदले और इसके उम्मीद्वार आपस में ऐसे ही भीड़ते रहे तो उन्हें चुनाव बाद कहीं यह गाना न गुनगुनाना पड़ जाए- ‘मुझे तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था, मेरी कश्ती थी वहां डूबी, जहां पानी कम था।’
−चेतनादित्य आलोक
वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार एवं राजनीतिक विश्लेषक, रांची, झारखंड