By नीरज कुमार दुबे | Nov 01, 2023
देश में धर्मांतरण का खेल लंबे समय से चल रहा है। भारत में हिंदुओं की संख्या घटाने के लिए विदेशी साजिशें लगातार चल रही हैं। कुछ राज्य सरकारों ने जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध कड़े कानून बनाये हैं लेकिन उसका खास असर देखने को नहीं मिल पा रहा है। दरअसल भारत में तुष्टिकरण की राजनीति के चलते अक्सर देखने में आता है कि धर्मांतरण कराने वालों को बचाने का प्रयास किया जाता है। कई बार यह भी देखने को मिलता है कि न्यायिक प्रक्रिया के उलझाऊ होने का लाभ यह लोग उठा कर हमेशा बचते रहते हैं। धर्मांतरण और मतांतरण के खिलाफ यदि सरकारें और प्रशासन कुछ सख्ती करते हैं तो यह लोग अपनी रणनीति में बदलाव करते हैं। कई रिपोर्टें दर्शाती हैं कि सरकार यदि डाल डाल रहती है तो मतांतरण कराने वाले लोग पात पात रहते हैं। धर्मांतरण कराने वालों ने आजकल गरीब बच्चों पर विशेष रूप से निगाह लगाई हुई है। अक्सर पढ़ने-सुनने में आता है कि बिहार, बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश और झारखंड से बच्चों का अपहरण हो जाता है। यह बच्चे चूंकि गरीबों के होते हैं इसलिए उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता। ना ही मीडिया में इस मुद्दे को सुर्खियों में जगह मिलती है।
इस मुद्दे पर भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि पूरे देश में एक बड़ा खेल चल रहा है जिसको तत्काल रोके जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि केरल में जितने भी यतीमखाने हैं उनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, झारखंड और बंगाल से गरीब बच्चों का अपहरण करके रखा जाता है जहां उनका खतना कर दिया जाता है और मतांतरण कर दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि मुगलों के काल में भी धर्मांतरण हो रहा था, अंग्रेजों के जमाने में भी मतांतरण हो रहा था और आज भी हो रहा है। उन्होंने कहा कि केरल के यतीमखानों की जांच की जानी चाहिए, उनकी फंडिंग रोकी जानी चाहिए और जिन लोगों ने गरीब बच्चों का अपहरण कर उनका मतांतरण कराया है उनके खिलाफ सामान्य धाराओं में मुकदमा दर्ज करने की बजाय गंभीर से गंभीर धाराएं लगा कर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।