By नीरज कुमार दुबे | May 03, 2024
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक शरद पवार ने बारामती में विकास के काम तो बहुत कराये हैं और वह लोकप्रिय नेता और राजनीति के उस्ताद भी रहे हैं लेकिन अब ऐसा लगता है कि उनकी राजनीतिक पारी समाप्ति की ओर है। ऐसा हम हवा में नहीं कह रहे बल्कि प्रभासाक्षी की चुनाव यात्रा के दौरान हमने पुणे, बारामती और शिरूर का दौरा किया और शरद पवार तथा अजित पवार की पार्टियों के चुनाव प्रचार, चुनाव प्रबंधन को तो देखा ही साथ ही यह भी जाना कि किस गुट के साथ कितने नेता और कार्यकर्ता हैं। सभी पैमानों का अध्ययन करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अजित दादा पवार ही अब सर्वमान्य नेता हैं और एनसीपी के नेता से लेकर कार्यकर्ता और आम जनता तक इस मत की नजर आ रही है कि अजित दादा पवार ही भविष्य के नेता हैं और यह स्वाभाविक ही है कि जहां भविष्य नजर आता है वहां लोग जुड़ते ही हैं। लेकिन अजित दादा पवार का यह रुतबा और स्वीकार्यता उन्हें विरासत में नहीं मिली है बल्कि यह उन्होंने अपनी खुद की मेहनत से कमाई है। छोटे से छोटे कार्यकर्ता से सीधा संवाद करना, सुबह पांच बजे से देर रात तक कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध रहना, मुंबई में व्यस्तता होने के बावजूद क्षेत्र का दौरा करते रहना और जो वादा किया है उसको जरूर निभाना, उनकी बड़ी खासियत हैं। विपक्ष उन पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाये लेकिन स्थानीय जनता इससे इत्तेफाक नहीं रखती और वह अजित दादा पवार के समर्थन में खड़ी नजर आती है।
जहां तक बारामती संसदीय क्षेत्र की बात है तो आपको बता दें कि यहां लोकसभा चुनावों के तीसरे चरण के तहत 7 मई को मतदान कराया जायेगा। यह क्षेत्र अपने चीनी कारखानों के लिए जाना जाता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का यह पारंपरिक गढ़ रहा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की सुप्रिया सुले ने लगातार तीन लोकसभा चुनावों में इस निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की है। बारामती लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें शामिल हैं- इंदापुर, बारामती, पुरंदर, भोर, खड़कवासला और दौंड। पुणे से सटा यह निर्वाचन क्षेत्र 1999 में पार्टी के गठन के बाद से एनसीपी का गढ़ रहा है। 1999 में शरद पवार ने यहां पहली बार एनसीपी के टिकट पर जीत हासिल की थी। पांच साल बाद, शरद पवार ने 2004 में लोकसभा क्षेत्र से अपनी जीत दोहराई। इसके बाद 2009 में उनकी बेटी सुप्रिया सुले पहली बार इस सीट से जीती थीं। 2009 में सुप्रिया सुले 4.87 लाख से ज्यादा वोटों और 66.46 फीसदी वोट शेयर से विजयी रही थीं लेकिन 2014 के आम चुनावों में सुप्रिया सुले ने फिर से बारामती से जीत तो हासिल की लेकिन उनका वोट शेयर बहुत कम हो गया था। 2014 में सुप्रिया सुले को 5.21 लाख से ज्यादा वोट मिले थे लेकिन वोट शेयर करीब 49 फीसदी रहा था। हालाँकि, 2019 के लोकसभा चुनावों में स्थिति में सुधार हुआ जब सुप्रिया सुले ने बारामती से 6.86 लाख से अधिक वोटों और 52.63 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी।
2024 के आम चुनावों में बारामती से सुप्रिया सुले की जीत का सिलसिला थम सकता है क्योंकि शरद पवार के भतीजे अजित पवार के विद्रोह के बाद स्थितियां एकदम बदल गयी हैं। इस बार सुले को अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। यानि ननद और भाभी आमने-सामने हैं। एनसीपी का विभाजन होने के परिणामस्वरूप, सुप्रिया सुले अब एक नए चुनाव चिह्न तुतारी या ब्लो हॉर्न के साथ चुनाव लड़ रही हैं, जबकि उनकी भाभी सुनेत्रा पवार एनसीपी के मूल चुनाव चिह्न घड़ी पर लड़ रही हैं। एक अनजाने चुनाव चिह्न के कारण सुले ने भावनात्मक रास्ता अख्तियार किया है। उन्होंने अब चुनावी लड़ाई को अपने पिता शरद पवार और अजित पवार के बीच की लड़ाई का रूप दे दिया है। उनका दावा है कि अजित पवार ने कथित तौर पर जांच एजेंसियों के दबाव में पार्टी पर कब्जा कर लिया है, जबकि उनके पिता शरद पवार ने पांच दशकों में अथक परिश्रम करके बारामती का निर्माण किया था।
दूसरी ओर, सुनेत्रा पवार अपने अभियान में बारामती से संबंधित स्थानीय मुद्दों पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित कर रही हैं। पवार परिवार से राजनीति में आई नई नेत्री का वैसे राजनीति से पुराना वास्ता रहा है। वह खुद भी राजनीतिक परिवार से ही ताल्लुक रखती हैं। इस चुनाव में वह पानी की कमी के साथ-साथ मराठा और धनगर आरक्षण जैसे मुद्दों को उठा रही हैं। सुनेत्रा पवार के भाषणों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अजित पवार के कामकाज का भी जिक्र होता है। हम आपको बता दें कि सत्तारुढ़ महायुति ने धनगर समुदाय, जिसमें लगभग 40 प्रतिशत मतदाता शामिल हैं, का समर्थन अपने पक्ष में करने के लिए बारामती से सुनेत्रा पवार की उम्मीदवारी की घोषणा की थी।
हम आपको यह भी बता दें कि बारामती मुख्य रूप से ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है क्योंकि 78 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं जबकि 22 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों से आते हैं। बारामती एक हिंदू बहुल निर्वाचन क्षेत्र है, जहां 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग हिंदू हैं। यहां 5 प्रतिशत मुस्लिम अल्पसंख्यक भी हैं और शेष अन्य धर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी यहां 12.3 प्रतिशत है जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 2 प्रतिशत है।
बहरहाल, सुप्रिया सुले चूंकि 15 साल से सांसद हैं इसलिए उनके खिलाफ माहौल होना स्वाभाविक ही है। उनके बारे में लोगों ने कहा कि वह स्थानीय स्तर पर सक्रिय रहने की बजाय दिल्ली और मुंबई में रहना ज्यादा पसंद करती हैं। वहीं सुनेत्रा पवार जनता के बीच रहती हैं और लोगों को उम्मीद है कि यदि वह जीतती हैं तो मोदी सरकार में उन्हें मंत्री पद मिल सकता है जिससे स्थानीय लोगों को लाभ होगा। इसके अलावा, सुनेत्रा पवार ने महिलाओं के बीच काफी काम किया है जिसका लाभ उन्हें चुनावों में मिल सकता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि टेक्सटाइल मिलों में महिलाओं की नौकरी लगवाने से लेकर उनके लिए सहकारी समितियों द्वारा वित्त का प्रबंध करवाने जैसे कई काम सुनेत्रा पवार ने किये हैं इसलिए उनकी जीत तय है।
-नीरज कुमार दुबे