By अंकित सिंह | Jul 31, 2021
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हाल में ही चुनाव कराए गए जिसमें इमरान खान की पार्टी को बहुमत हासिल हुई। भले ही पाकिस्तान पीओके में चुनाव कराने में कामयाब हो गया लेकिन भारत की ओर से लगातार इस चुनाव को अस्वीकार किया जा रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में साफ तौर पर कहा कि पाकिस्तान का ‘‘इन भारतीय भूभागों पर कोई अधिकार नहीं है’’ और अपने अवैध कब्जे के सभी भारतीय क्षेत्रों को उसे खाली कर देना चाहिए। भारत ने कहा कि ‘‘बनावटी प्रक्रिया’’ कुछ नहीं बल्कि पाकिस्तान द्वारा ‘‘अपने अवैध कब्जे को छिपाने’’ का प्रयास है। साथ ही भारत ने इस पर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। भारत ने कहा कि पाकिस्तान की इस कवायद का स्थानीय लोगों ने भी विरोध किया है और उसे खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह का कार्य ना तो पाकिस्तान द्वारा किये गये अवैध कब्जे के सच को छिप सकता है और ना ही इन अवैध कब्जे वाले क्षेत्रों में उसके द्वारा किये गये मानवाधिकारों के गंभीर हनन, शोषण और लोगों को स्वतंत्रता से वंचित करने के कृत्य पर पर्दा डाल सकता है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर पाकिस्तान को पीओके में चुनाव कराने की जरूरत क्या पड़ गई? खबरों के मुताबिक इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पीओके में पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ लगातार विरोध के स्वर उभर रहे थे। इन्हीं सबको निपटने के लिए पाकिस्तान की ओर से कोशिश भी की गई। खुद इमरान खान को कई बार स्थानीय लोगों का विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। इसको ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान सरकार की ओर से लगातार इस क्षेत्र के लिए कई ऐलान किए गए। यह क्षेत्र पाकिस्तानी सेना की ओर से जबरन भूमि कब्जे, बुनियादी सुविधाओं का अभाव, भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी से हमेशा त्रस्त रहा है। बिजली और पानी की व्यवस्था नहीं है। यही कारण है कि यहां लगातार पाकिस्तान सरकार के खिलाफ विरोध होते रहता है। पाकिस्तान भारत के हिस्से वाले कश्मीर में किए जा रहे कार्यों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। भारत द्वारा पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक कराना, कश्मीर से 370 को खत्म करना, साथ ही साथ जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन करना पाकिस्तान को पच नहीं रहा है। ऐसे में पाकिस्तान को इस बात का भय रहता है कि कभी भारत की ओर से उसके खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।
भारत-पाकिस्तान सीमा पर लगे गांव में लगातार विकास की कोशिश कर रहा है। साथ ही साथ अपना इंफ्रास्ट्रक्चर भी विकसित कर रहा है। लद्दाख में भी जिस तरह की इंफ्रास्ट्रक्चर को डिवेलप करने का काम भारत की ओर से किया जा रहा है उसके बाद चीन और पाकिस्तान ममें चिंता की लकीरें है। लेकिन भारत फिलहाल जम्मू कश्मीर को सर्वाधिक प्राथमिकता दे रहा है। पाकिस्तान को यह लग रहा है कि अगर भारत इस तरह से जम्मू कश्मीर में विकास कार्यों को करता रहेगा तो वह पीओके में रहने वाले लोगों को अपनी तरफ खींचने में कामयाब हो सकता है जिससे की इमरान सरकार के खिलाफ वहां विरोध और बढ़ सकता है। यही कारण है कि पाकिस्तान पीओके पर अपनी हुकूमत को और मजबूत करने की कोशिश में लगा हुआ है। इसी वजह से वहां चुनाव कराने का निर्णय लिया। लेकिन भारत रणनीतिक तौर पर कश्मीर पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे को नाकाम करने की कोशिश कर रहा है। कश्मीर की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही साथ वहां शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्थाओं को भी दुरुस्त किया जा रहा है।
भारत ने पाकिस्तान-चीन के प्रेस बयान में कश्मीर के उल्लेख को खारिज किया
भारत ने पाकिस्तान और चीन द्वारा हाल ही में एक संयुक्त प्रेस बयान में जम्मू-कश्मीर का उल्लेख किये जाने को बृहस्पतिवार को दृढ़ता से खारिज किया और कहा कि केंद्र शासित प्रदेश के साथ-साथ लद्दाख उसका अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा रहा है और रहेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बयान में तथाकथित चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के उल्लेख पर भी आपत्ति जताते हुए कहा कि यह भारतीय क्षेत्र में है जिस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। बागची ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, ‘‘पहले की तरह, भारत जम्मू कश्मीर के किसी भी उल्लेख को स्पष्ट रूप से खारिज करता है। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा रहा है और रहेगा।’’ संयुक्त प्रेस बयान में सीपेक के उल्लेख पर प्रवक्ता ने कहा कि भारत ने चीन और पाकिस्तान दोनों को लगातार बताया है कि तथाकथित सीपेक भारत के क्षेत्र में है। उन्होंने कहा, ‘‘हम पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जे वाले क्षेत्रों में अन्य देशों द्वारा यथास्थिति को बदलने के किसी भी प्रयास का विरोध करते हैं और साथ ही पाकिस्तान द्वारा अवैध कब्जे वाले भारतीय क्षेत्रों में किसी भी भौतिक परिवर्तन का भी विरोध करते हैं। हम संबंधित पक्षों से इस तरह की कार्रवाइयों को रोकने का आह्वान करते हैं।’’ सीपेक चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा है। भारत बीआरआई का कड़ा विरोध करता रहा है क्योंकि 50 अरब अमरीकी डॉलर वाला यह गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है। चीन के सिचुआन प्रांत के चेंगदू में चीनी विदेश मंत्री वांग यी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष शाह महमूद कुरैशी के बीच बातचीत के बाद पिछले शनिवार को पाकिस्तान-चीन प्रेस बयान जारी किया गया था। इसमें कहा गया है कि पाकिस्तानी पक्ष ने चीन को जम्मू-कश्मीर में ‘बिगड़ती स्थिति’ के बारे में जानकारी दी। पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने का लगातार प्रयास कर रहा है। अगस्त 2019 में नयी दिल्ली द्वारा जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लेने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के निर्णय की घोषणा के बाद पड़ोसी देश ने भारत विरोधी अभियान चला रखा है। भारत ने पाकिस्तान से कहा है कि वह आतंकवाद, शत्रुता और हिंसा से मुक्त वातावरण में इस्लामाबाद के साथ सामान्य पड़ोसी संबंध चाहता है। भारत ने कहा है कि आतंकवाद और शत्रुता से मुक्त वातावरण बनाने की जिम्मेदारी पाकिस्तान की है।