ज्ञानवापी मामले में अदालत को अपना काम करने देना चाहिए, नेता विवाद में कूदेंगे तो तनाव बढ़ेगा

By अजय कुमार | May 10, 2022

धर्म और राजनीति दो अलग-अलग विषय हैं। धर्म से हमें संस्कार मिलते हैं तो राजनीति से देश आगे बढ़ता है, लेकिन देश का यह दुर्भाग्य है कि यहां धर्म और राजनीति को एक ही तराजू पर तौला जाता है। इसी लिए यहां अक्सर ही जाति-धर्म के नाम पर नफरत के बीज बोए जाते हैं। इसीलिए तो अयोध्या के बाद अब काशी और मथुरा का विवाद गरमाया हुआ है। अयोध्या की तरह काशी-मथुरा का विवाद भी मंदिर-मस्जिद से ही जुड़ा है और कोर्ट में सुनवाई चल रही है। दोनों ही जगह समय-समय पर मंदिर-मस्जिद से जुड़े लोगों के बीच टकराव जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। हालिया विवाद वाराणसी में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से लगी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर गहराया हुआ है। वैसे तो ज्ञानवापी मस्जिद काफी समय से विवादित रही है, लेकिन जब से वाराणसी की एक सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर के कुछ इलाकों के सर्वेक्षण का आदेश दिया है, तब से यह विवाद सड़क पर आ गया है और इसमें नेता नगरी के लोग भी कूद पड़े हैं।

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गत शुक्रवार को ज्ञानवापी मस्जिद के पास उस समय हालात बेकाबू हो गए जब बड़ी संख्या में लोग यहां नमाज पढ़ने पहुंच गए। भीड़ का आलम यह था कि ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास की सड़कें कथित नमाजियों से पट गईं। कथित इसलिए क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में यहां कभी ईद पर भी इतनी बड़ी संख्या में नमाजियों का हुजूम नहीं देखा गया था। इसलिए यह माना जा रहा है कि यह भीड़ इसलिए जुटी थी क्योंकि उसी समय कोर्ट के आदेश पर टीम सर्वेक्षण करने के लिए आने वाली थी और इस सर्वेक्षण टीम का विरोध करने की घोषणा ज्ञानवापी मस्जिद की देखभाल करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने भी की थी। यह लोग लगातार नारेबाजी कर रहे थे। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, जब मुस्लिम जुटे तो दूसरे पक्ष से हर-हर महादेव का उद्घोष होने लगा। पुलिस को साधुवाद देना चाहिए जो उसने दोनों ही पक्षों के लोगों को समझा-बुझा कर वहां से हटा दिया, लेकिन इससे इतर ऐसे लोग भी जुटे हुए हैं जो नहीं चाहते हैं कि मंदिर-मस्जिद का विवाद आसानी से सुलझ जाए। इसीलिए दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक के भाईजान भी इस लड़ाई में अपनी सियासत चमकाने में जुट गए हैं।


विवाद उत्तर प्रदेश का है, अदालत में सुनवाई चल रही है, लेकिन इस विवाद में आग में घी डालने जैसा काम हैदराबादी ओवैसी कर रहे हैं, जिन्हें विधान सभा चुनाव में यूपी की जनता ने पूरी तरह से रिजेक्ट कर दिया था। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन के प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी भी इस विवाद में कूद गए हैं। औवेसी ने एक ट्विट करके कहा कि सिविल कोर्ट वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे का आदेश रथ यात्रा के रक्तपात और 1980-1990 के दशक की मुस्लिम विरोधी हिंसा का रास्ता खोल रहा है। वाराणसी की अदालत के आदेश की निंदा करते हुए असद्दुदीन ओवैसी ने अपने ट्वीट में कहा, ‘काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करने का यह आदेश 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है, जो धार्मिक स्थलों के रूपांतरण पर रोक लगाता है। असद्दुदीन ओवैसी ने कहा, ‘अयोध्या के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अधिनियम भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा करता है जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है।’ असद्दुदीन ओवैसी का बयान अदालत के एक आयुक्त के वाराणसी के श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद में अदालत के आदेश के अनुसार परिसर का सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी करने के एक दिन बाद आया है।


गौरतलब है कि वैसे तो यह विवाद काफी पुराना है। कहा जाता है कि मुस्लिम बादशाह औरंगजेब ने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर वहां मस्जिद बनवा दी थी, लेकिन यह बात मुस्लिम लोगों ने कभी स्वीकार नहीं की। बहरहाल, हाल ही में यह विवाद तब सुर्खियां बटोरने लगा जब दिल्ली की राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू और अन्य ने वाराणसी की एक सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और नंदी में दैनिक पूजा और अनुष्ठान करने की अनुमति मांगी थी। उन्होंने 18 अप्रैल, 2021 को अपनी याचिका के साथ अदालत का रुख किया था। याचिका पर सुनवाई के बाद वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने श्री काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और अन्य स्थानों पर ईद के बाद और 10 मई से पहले श्रृंगार गौरी मंदिर की वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया। इसी आदेशानुसार सर्वेक्षण टीम ने 6 मई और 7 मई को मस्जिद के परिसर के अंदर की वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण किए जाने की बात कही गई थी।

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इसी क्रम में शुक्रवार 6 मई को दोपहर बाद तीन बजे श्री काशी विश्वनाथ धाम परिसर स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास उस समय हलचल बढ़ गई जब कोर्ट कमिश्नर की अगुवाई में दोनों पक्षकार और उनके साथ अधिवक्ता धाम के मुख्य प्रवेश द्वार (गेट संख्या चार) से प्रवेश करते हुए मस्जिद के पश्चिम पहुंचे। इस बीच पुलिस ने किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए सतर्कता दिखाते हुए ज्ञानवापी के चारों ओर बड़ी संख्या में सुरक्षा के लिए जवान तैनात कर दिए। मुख्य द्वार से श्रद्धालुओं का प्रवेश बंद कर दिया गया था। पहले से मौजूद विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक डॉ. सुनील कुमार वर्मा और डीएम के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे एडीएम सिटी गुलाब चंद्र ने सर्वे शुरू कराया। कोर्ट कमिश्नर ने दो साथी अधिवक्ताओं के साथ सर्वे शुरू किया जो करीब तीन घंटे तक अनवरत जारी रहा। कमीशन की कार्रवाई के दौरान गेट के बाहर काफी गहमागहमी रही। दोनों पक्षों के लोगों का जमावड़ा लगा रहा।

    

उधर, ज्ञानवापी प्रकरण में विपक्षी अंजुमन मस्जिद इंतजामिया कमेटी के अधिवक्ता अभयनाथ यादव कह रहे थे कि हम कोर्ट कमिश्नर की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हैं। कोर्ट में उन्हें बदलने की अर्जी देंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि कोर्ट कमिश्नर एक-एक चीज को ऊंगली से कुरेद रहे थे जबकि कोर्ट का किसी चीज को कुरेदने या खोदने का आदेश नहीं है। इसलिए इस कार्रवाई से मैं संतुष्ट नहीं हूं। अधिवक्ता ने बताया कि श्रृंगार गौरी के चबूतरे के सर्वे के बाद कोर्ट कमिश्नर ने ज्ञानवापी मस्जिद के प्रवेश द्वार को खुलवा कर अंदर जाने का प्रयास किया। इसका हमने विरोध दर्ज करवाया। अधिवक्ता ने कहा, 'कोर्ट का ऐसा कोई आदेश नहीं है कि बैरिकेडिंग के अंदर जाकर आप उसकी वीडियोग्राफी करें लेकिन कमिश्नर ने कहा कि मुझे ताला खोलवा कर अंदर वीडियोग्राफी कराने का आदेश है।' इसी के बाद ज्ञानवापी मस्जिद पक्षकार कोर्ट कमिश्नर को हटाए जाने की मांग को लेकर कोर्ट पहुंच गए। इस पर अदालत ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत ने यह जरूर कहा कि सर्वे यदि निष्पक्ष नहीं होता है तो दोनों पक्षकार कोर्ट में अपनी बात रख सकते हैं। यह और बात है कि कोर्ट के इस आदेश पर भी मुस्लिम पक्षकार व्यवधान खड़ा करते दिखे और सर्वे टीम को मस्जिद के अंदर नहीं आने दिया।

 

खैर, बताते चलें कि श्रृंगार गौरी प्रकरण के सर्वे के लिए पहली बार वर्ष 1995 में मामला अदालत में पहुंचा था। लक्सा के सूरजकुंड निवासी डॉ. सोहनलाल आर्य ने अदालत से कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर सर्वे कराने की गुहार लगायी थी। वर्ष 1996 में अदालत ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर कमीशन की कार्रवाई करने का आदेश दिया था। डॉ. सोहनलाल बताते हैं कि कोर्ट कमिश्नर ने दोनों पक्षों को नोटिस देकर 18 मई 1996 को सर्वे के लिए बुलाया। सर्वे के दौरान विपक्ष की ओर से काफी संख्या में पहुंचे लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। इसकी वजह से सर्वे पूरा नहीं हो सका। तब भी जुमा का दिन था और नमाजियों का हुजूम उमड़ पड़ा था। इसके बाद दिल्ली की राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू, रेखा पाठक ने 18 अगस्त 2021 को संयुक्त रूप से सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में याचिका दायर की। डॉ. सोहनलाल इस प्रकरण में पैरोकार हैं। वादी में शामिल लक्ष्मी देवी उनकी पत्नी हैं। आठ अप्रैल 2022 को अदालत ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया। कोर्ट कमिश्नर ने 19 अप्रैल को सर्वे करने के लिए अदालत को अवगत कराया। 18 अप्रैल को शासन-प्रशासन ने शासकीय अधिवक्ता के जरिए आपत्ति दाखिल कर वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी पर रोक लगाने की मांग की। 19 अप्रैल को विपक्षी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने भी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे रोकने की गुहार लगाई। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। 20 अप्रैल को निचली अदालत ने भी सुनवाई पूरी की। 26 अप्रैल को निचली अदालत ने ईद के बाद सर्वे की कार्यवाही का आदेश दिया। आदेश के तहत कोर्ट कमिश्नर ने शुक्रवार को सर्वे शुरू कर दिया। वादी ने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, डीएम, पुलिस आयुक्त, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को पक्षकार बनाया है।

  

उधर, ज्ञानवापी मस्जिद पर ओवैसी के बयान के खिलाफ साधु-संतों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। ओवैसी के बयान पर संत समिति के महामंत्री जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि ओवैसी कोर्ट को धमका रहे हैं, लेकिन उनकी धमकी से कोई डरने वाला नहीं है। कोर्ट की प्रक्रिया से काम हो रहा है। वहीं केन्द्रीय मंत्री कौशल किशोर जो इस समय वाराणसी में थे, उन्होंने कहा कि किसी को भी सर्वे का विरोध नहीं करना चाहिए, सर्वे से सच सामने आएगा। सब जानते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद क्या है। मंत्री ने ओवैसी के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि ओवैसी अदालत के आदेश की अवमानना कर रहे हैं, उन्हें कोई आपति है तो जनता को भड़काने की बजाए ऊपरी कोर्ट में जाएं।


-अजय कुमार

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