By नीरज कुमार दुबे | Sep 06, 2023
देश को इंडिया की बजाय भारत नाम से बुलाये जाने पर विपक्ष सवाल खड़े करते हुए कह रहा है कि यह विपक्षी गठबंधन इंडिया के डर से किया जा रहा है। विपक्ष सवाल उठा रहा है कि मोदी सरकार को इंडिया नाम से नफरत क्यों हो गयी है? लेकिन विपक्ष आरोप लगाने से पहले जरा अपने गिरेबां में झांक कर देखेगा तो उसे पता चलेगा कि गठबंधन में शामिल दलों के कई नेता ही पहले इस तरह की मांग करते रहे हैं। हम आपको बता दें कि विपक्षी गठबंधन इंडिया में शामिल समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी चाहते थे कि देश को इंडिया की बजाय भारत के नाम से ही पुकारा जाये। मुलायम सिंह यादव ने साल 2004 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने के दौरान इस सबंध में विधानसभा से सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव भी पास करवा कर केंद्र सरकार को भेजा था। उन्होंने इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान 'भारत' नाम के समर्थन में जोरदार भाषण भी दिया था। यही नहीं, मुलायम सिंह यादव ने साल 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र में वादा किया था कि यदि उनकी पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिलता है तो इंडिया का नाम बदल कर भारत किया जायेगा।
हम आपको यह भी बता दें कि मुलायम सिंह यादव हमेशा हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य को भी बढ़ावा देते रहे थे। विधानसभा के वाकये का जिक्र करें तो आपको बता दें कि बात 3 अगस्त 2004 की है। उस समय तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष लालजी टंडन ने संस्कृत शिक्षकों का मुद्दा उठाते हुए उनको उनके जायज हक को दिलाने की मांग की थी। लालजी टंडन ने कहा था कि जिस दिन दुनिया से संस्कृत खत्म हो जाएगी, उस दिन संस्कृति भी खत्म हो जाएगी। यह सुनते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने हस्तक्षेप करते हुए कहा था कि उनकी सरकार में कभी भी संस्कृत की उपेक्षा नहीं होगी। उलटा उन्होंने पूर्व की भाजपा सरकार पर ही अंग्रेजी का सर्वाधिक उपयोग करने का आरोप लगा दिया था। मुलायम सिंह यादव ने साथ ही अपने संसदीय कार्यमंत्री को निर्देश दिया था कि एक प्रस्ताव लाया जाये कि संविधान में जहां इंडिया इज भारत लिखा हुआ है उसे भारत इज इंडिया कर दिया जाये। बाद में जब यह प्रस्ताव आया तो पूरे सदन ने इसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया था। उस प्रस्ताव में कहा गया था- यह सदन केंद्र सरकार से संस्तुति करता है कि संविधान के भाग-1 के अनुच्छेद-1 (नेम एंड टेरीटरी ऑफ यूनियन) में ''इंडिया दैट इज भारत'' के स्थान पर ''भारत दैट इज इंडिया'' रखने हेतु संविधान में आवश्यक संशोधन करें।
न्यायालय का फैसला
हम आपको यह भी बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने सभी उद्देश्यों के लिए ‘इंडिया’ को ‘भारत’ कहे जाने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका 2016 में खारिज करते हुए कहा था कि लोग देश को अपनी इच्छा के अनुसार इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने 2016 में महाराष्ट्र के निरंजन भटवाल द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा था, ‘‘भारत या इंडिया? आप इसे भारत कहना चाहते हैं, कहिये। कोई इसे इंडिया कहना चाहता है, उन्हें इंडिया कहने दीजिए।’’ न्यायालय ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद एक में बदलाव के लिए विचार करने की खातिर ऐसी कोई परिस्थिति नहीं बनी है। संविधान के अनुच्छेद 1(1) में कहा गया है, ‘‘इंडिया, जो भारत है, राज्यों का एक संघ है।’’ उस समय जनहित याचिका का विरोध करते हुए गृह मंत्रालय ने कहा था कि संविधान का मसौदा तैयार करने के दौरान संविधान सभा में देश के नाम पर विस्तार से चर्चा हुई थी और अनुच्छेद एक के उपबंध आम सहमति से अंगीकृत किये गये थे। उस समय उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ता को आड़े हाथ लिया था और उनसे पूछा था कि क्या उन्हें लगता है कि इसके पास करने के लिए और कुछ नहीं है, तथा उन्हें याद दिलाया था कि जनहित याचिकाएं गरीबों के लिए हैं। याचिका में, गैर सरकारी संगठनों और कंपनियों को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था कि सभी आधिकारिक और गैर आधिकारिक उद्देश्यों के लिए वे भारत शब्द का इस्तेमाल करें। याचिका में कहा गया था कि संविधान सभा में देश के लिए सुझाये गये प्रमुख नामों में ‘‘भारत, हिंदुस्तान, हिंद और भारतभूमि या भारतवर्ष तथा इस तरह के अन्य नाम थे।’’
शशि थरूर का दावा
हम आपको यह भी बता दें कि इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने दावा किया है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने इंडिया नाम पर आपत्ति जताई थी क्योंकि इसका तात्पर्य यह था कि “हमारा देश ब्रिटिश राज का उत्तराधिकारी राष्ट्र था और पाकिस्तान एक अलग राष्ट्र था”। थरूर ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘इंडिया को 'भारत' कहने में कोई संवैधानिक आपत्ति नहीं है, जो कि देश के दो आधिकारिक नामों में से एक है। मुझे उम्मीद है कि सरकार इतनी मूर्ख नहीं होगी कि उस 'इंडिया' नाम को पूरी तरह से ख़त्म कर दे, जिसकी सदियों से एक बड़ी ब्रांड वैल्यू बनी हुई है।’’ थरूर ने कहा, ‘‘इतिहास को फिर से जीवंत करने वाले नाम, दुनिया भर में पहचाने जाने वाले नाम पर अपना दावा छोड़ने के बजाय हमें दोनों शब्दों का इस्तेमाल जारी रखना चाहिए।’’