महाभियोग प्रस्ताव: सभापति के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी कांग्रेस

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Apr 23, 2018

नयी दिल्ली। कांग्रेस ने देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू द्वारा खारिज किये जाने के फैसले को आज 'असंवैधानिक और गैरकानूनी' करार दिया और कहा कि वह इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख करेगी। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार नहीं चाहती कि ‘कदाचार’ के जो आरोप सामने आए हैं, उनकी जांच हो। कांग्रेस ने यह भी उम्मीद जतायी कि उच्चतम न्यायालय में मामला जाने पर इससे प्रधान न्यायाधीश का कोई लेनादेना नहीं रहेगा और इसके संवैधानिक पहलुओं पर गौर किया जाएगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने संवाददाताओं से कहा, 'सभापति ने कोई जांच कराए बिना ही इस नोटिस को खारिज कर दिया। यह असंवैधानिक, गैरकानूनी, गलत सलाह पर आधारित और जल्दाबाजी में लिया गया फैसला है।'उन्होंने सवाल किया कि आखिर सभापति ने आरोपों की जांच होने से पहले उनके गुण-दोष पर फैसला कैसे कर लिया?

 

सिब्बल ने कहा कि जांच समिति फैसला करती कि आरोप साबित होते हैं या नहीं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार नहीं चाहती कि इसकी जांच हो। सरकार जांच को दबाना चाहती है। सरकार का रुख न्यायपालिका को नुकसान पहुंचाने वाला है।उन्होंने कहा कि सभापति नायडू के फैसले से लोगों का विश्वास चकनाचूर हुआ है।उन्होंने कहा, 'हम उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करेंगे। हमें भरोसा है कि जब याचिका दायर होगी तो इससे प्रधान न्यायाधीश का कुछ लेनादेना नहीं होगा।' सिब्बल ने कहा कि 64 सांसदों ने सोच-विचार करके महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था और इसमें प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ जिन आरोपों का उल्लेख किया गया था वो बहुत गंभीर हैं। ऐसे में राज्यसभा के सभापति को जांच समिति गठित करनी चाहिए थी और जांच पूरी होने के बाद कोई फैसला करते। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि यह महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस किसी पार्टी की तरफ से नहीं, राज्यसभा के 64 सदस्यों की ओर से दिया गया था। आगे इन सदस्यों की ओर से ही शीर्ष अदालत में अपील दायर की जाएगी।

 

उच्चतम न्यायालय द्वारा अपील को खारिज किए जाने की सूरत में पार्टी के अगले कदम संबंधी सवाल पर सिब्बल ने कहा, ‘‘हमारा काम अपील करना है। आगे क्या होगा, उस बारे में कुछ नहीं कह सकता। अपील दायर करने के बाद जो करना है, वो अदालत को करना है।’’ सिब्बल ने यह भी कहा कि महाभियोग प्रस्ताव से संबंधित कदम का न्यायाधीश बी एच लोया की मौत के मामले से कोई संबंध नहीं है क्योंकि लोया मामले में अदालत का फैसला आने से कई दिन पहले ही महाभियोग प्रस्ताव से संबंधित प्रक्रिया आरंभ हो गई थी। इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले 71 सांसदों में सात सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। इससे पहले कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने नायडू के फैसले पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, ‘‘महाभियोग की संवैधानिक प्रक्रिया 50 सांसदों (राज्यसभा में) की ओर से प्रस्ताव (नोटिस) दिये जाने के साथ ही शुरू हो जाती है। 

 

राज्यसभा के सभापति प्रस्ताव पर निर्णय नहीं ले सकते, उन्हें प्रस्ताव के गुण-दोष पर फैसला करने का अधिकार नहीं है। यह वास्तव में ‘‘लोकतंत्र को खारिज’’ करने वालों और ‘‘लोकतंत्र को बचाने वालों’’ के बीच की लड़ाई है।’’ राज्यसभा के सभापति नायडू ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पद से हटाने के लिए कांग्रेस एवं छह अन्य दलों के सदस्यों की ओर से दिये गये महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को आज नामंजूर कर दिया। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस सहित सात दलों ने न्यायमूर्ति मिश्रा को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस बीते शुक्रवार को नायडू को दिया था। नोटिस में न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ ‘कदाचार’ और ‘पद के दुरुपयोग’ का आरोप लगाया गया था।

 

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