By प्रह्लाद सबनानी | Mar 18, 2025
अमेरिका में दिनांक 20 जनवरी 2025 को नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ली गई शपथ के उपरांत ट्रम्प प्रशासन आर्थिक एवं अन्य क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण फैसले बहुत तेज गति से ले रहा है। इससे विश्व के कई देश प्रभावित हो रहे हैं एवं कई देशों को तो यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि अंततः आगे आने वाले समय में इन फैसलों का प्रभाव इन देशों पर किस प्रकार होगा।
ट्रम्प प्रशासन अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के हो रहे आयात पर टैरिफ की दरों को बढ़ा रहा है क्योंकि इन देशों द्वारा अमेरिका से आयात पर ये देश अधिक मात्रा में टैरिफ लगाते हैं। चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर तो टैरिफ को बढ़ा भी दिया गया है। इसी प्रकार भारत के मामले में भी ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि भारत, अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अमेरिका भी भारत से आयात किए जा रहे कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत का टैरिफ लगाएगा। इस संदर्भ में हालांकि केवल भारत का नाम नहीं लिया गया है बल्कि “टिट फोर टेट” एवं “रेसिप्रोकल” आधार पर कर लगाने की बात की जा रही है और यह समस्त देशों से अमेरिका में हो रहे आयात पर लागू किया जा सकता है एवं इसके लागू होने की दिनांक भी 2 अप्रेल 2025 तय कर दी गई है। इस प्रकार की नित नई घोषणाओं का असर अमेरिका सहित विभिन्न देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर स्पष्टतः दिखाई दे रहा है एवं शेयर बाजारों में डर का माहौल बन गया है।
अमेरिका में उपभोक्ता आधारित उत्पादों का आयात अधिक मात्रा में होता है और अब अमेरिका चाहता है कि इन उत्पादों का उत्पादन अमेरिका में ही प्रारम्भ हो ताकि इन उत्पादों का अमेरिका में आयात कम हो सके। दक्षिण कोरीया, जापान, कनाडा, मेक्सिको आदि जैसे देशों की अर्थव्यवस्था केवल कुछ क्षेत्रों पर ही टिकी हुई है अतः इन देशों पर अमेरिका में बदल रही नीतियों का अधिक विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। जबकि भारत एक विविध प्रकार की बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था है, अतः भारत को कुछ क्षेत्रों में यदि नुक्सान होगा तो कुछ क्षेत्रों में लाभ भी होने की प्रबल सम्भावना है। संभवत: अमेरिका ने भी अब यह एक तरह से स्वीकार कर लिया है कि भारत के कृषि क्षेत्र को टैरिफ युद्ध से बाहर रखा जा सकता है, क्योंकि भारत के किसानों पर इसका प्रभाव विपरीत रूप से पड़ता है। और, भारत यह किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगा कि भारत के किसानों को नुक्सान हो। डेरी उत्पाद एवं समुद्रीय उत्पादों में भी आवश्यक खाने पीने की वस्तुएं शामिल हैं। भारत अपने देश में इन उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्देश्य से इन उत्पादों के आयात पर टैरिफ लगाता है, ताकि अन्य देश सस्ते दामों पर इन उत्पादों को भारत के बाजार में डम्प नहीं कर सकें। साथ ही, भारत में मिडल क्लास की मात्रा में वृद्धि अभी हाल के कुछ वर्षों में प्रारम्भ हुई है अतः यह वर्ग देश में उत्पादित सस्ती वस्तुओं पर अधिक निर्भर है, यदि इन्हें आयातित महंगी वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती हैं तो वह इन्हें सहन नहीं कर सकता है। अतः यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों को सस्ते उत्पाद उपलब्ध करवाए। अन्यथा, यह वर्ग एक बार पुनः गरीबी रेखा के नीचे आ जाएगा। भारत ने मुद्रा स्फीति को भी कूटनीति के आधार पर नियंत्रण में रखने में सफलता प्राप्त की है। रूस, ईरान, अमेरिका, इजराईल, चीन, अरब समूह आदि देशों के साथ अच्छे सम्बंध रखकर विदेशी व्यापार करने में सफलता प्राप्त की है। जहां से भी जो वस्तु सस्ती मिलती है भारत उस देश से उस वस्तु का आयात करता है। इसी नीति पर चलते हुए, कच्चे तेल के आयात के मामले में भी भारत ने विभिन्न देशों से भारी मात्रा में छूट प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है और ईंधन के दाम भारत में पिछले लम्बे समय से स्थिर बनाए रखने में सफलता मिली है।
अमेरिका द्वारा चीन, कनाडा एवं मेक्सिको पर लगाए गए टैरिफ के बढ़ाने के पश्चात इन देशों द्वारा भी अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर टैरिफ लगा दिए जाने के उपरांत अब विभिन्न देशों के बीच व्यापार युद्ध एक सच्चाई बनता जा रहा है। परंतु, क्या इसका असर भारत के विदेशी व्यापार पर भी पड़ने जा रहा है अथवा क्या कुछ ऐसे क्षेत्र भी ढूढे जा सकते हैं जिनमें भारत लाभप्रद स्थिति में आ सकता है। जैसे, अपैरल (सिले हुए कपड़े) एवं नान अपैरल टेक्सटायल का मेक्सिको से अमेरिका को निर्यात प्रतिवर्ष लगभग 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहता है और मेक्सिको का अमेरिका को निर्यात के मामले में 8वां स्थान है। अमेरिका द्वारा मेक्सिको से आयात पर टैरिफ लगाए जाने के बाद टेक्सटायल से सम्बंधित उत्पाद अमेरिका में महंगे होने लगेंगे अतः इन उत्पादों का आयात अब अन्य देशों से किया जाएगा। मेक्सिको अमेरिका को 250 करोड़ अमेरिकी डॉलर के कॉटन अपैरल का निर्यात करता है एवं 150 करोड़ अमेरिकी डॉलर के नान कॉटन अपैरल का निर्यात करता है। कॉटन अपैरल के आयात के लिए अब अमेरिकी व्यापारी भारत की ओर देखने लगे हैं एवं इस संदर्भ में भारत के निर्यातकों के पास पूछताछ की मात्रा में वृद्धि देखी जा रही है। इन परिस्थितियों के बीच, टेक्स्टायल उद्योग के साथ ही, फार्मा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, इंजीयरिंग क्षेत्र एवं श्रम आधारित उद्योग जैसे क्षेत्रों में भी भारत को लाभ हो सकता है।
यदि अमेरिका अपने देश में हो रहे उत्पादों के आयात पर टैरिफ में लगातार वृद्धि करता है तो यह उत्पाद अमेरिका में बहुत महंगे हो जाएंगे और इससे अमेरिकी नागरिकों पर मुद्रा स्फीति का दबाव बढ़ेगा। क्या अमेरिकी नागरिक इस व्यवस्था को लम्बे समय तक सहन कर पाएंगे। उदाहरण के तौर पर फार्मा क्षेत्र में भारत से जेनेरिक्स दवाईयों का निर्यात भारी मात्रा में होता है। यदि अमेरिका भारत के उत्पादों पर टैरिफ लगाता है तो इससे अधिक नुक्सान तो अमेरिकी नागरिकों को ही होने जा रहा है। भारत से आयात की जा रही सस्ती दवाएं अमेरिका में बहुत महंगी हो जाएंगी। इससे अंततः अमेरिकी नागरिकों के बीच असंतोष फैल सकता है। अतः अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन के लिए टैरिफ को लम्बे समय तक बढ़ाते जाने की अपनी सीमाएं हैं।
अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र एवं सबसे बड़ा विकसित देश है और इस नाते अन्य देशों के प्रति अमेरिका की जवाबदारी भी है। टैरिफ बढ़ाए जाने के सम्बंध में इक तरफा कार्यवाही अमेरिका की अन्य देशों के साथ सौदेबाजी की क्षमता तो बढ़ा सकती है परंतु यह कूटनीति लम्बे समय तक काम नहीं आ सकती है। अमेरिकी नागरिकों के साथ साथ अन्य देशों में भी असंतोष फैलेगा। कोई भी व्यापारी नहीं चाहता कि नीतियों में अस्थिरता बनी रहे। इसका सीधा सीधा असर विश्व के समस्त स्टॉक मार्केट पर विपरीत रूप से पड़ता हुआ दिखाई भी दे रहा है। यदि यह स्टॉक मार्केट के अतिरिक्त अन्य बाजारों एवं नागरिकों के बीच में भी फैला तो मंदी की सम्भावनाओं को भी नकारा नहीं जा सकता है। अमेरिका के साथ साथ अन्य कई देश भी मंदी की चपेट में आए बिना नहीं रह पाएंगे। अर्थात, इस प्रकार की नीतियों से विश्व के कई देश विपरीत रूप में प्रभावित होंगे।
अमेरिका को भी टैरिफ के संदर्भ में इस बात पर एक बार पुनः विचार करना होगा कि विकसित देशों पर तो टैरिफ लगाया जा सकता है क्योंकि अमेरिका एवं इन विकसित देशों में परिस्थितियां लगभग समान है। परंतु विकासशील देशों जैसे भारत आदि में भिन्न परिस्थितियों के बीच तुलनात्मक रूप से अधिक परेशानियों का सामना करते हुए विनिर्माण क्षेत्र में कार्य हो रहा है, अतः विकसित देशों एवं विकासशील देशों को एक ही तराजू में कैसे तौला जा सकता है। विकासशील देशों ने तो अभी हाल ही में विकास की राह पर चलना शुरू किया है और इन देशों को अपने करोड़ों नागरिकों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है। इनके लिए विकसित देश बनने में अभी लम्बा समय लगना है। अतः विकसित देशों को इन देशों को विशेष दर्जा देकर इनकी आर्थिक मदद करने के लिए आगे आना चाहिए। अमेरिका को विकसित देश बनने में 100 वर्ष से अधिक का समय लग गया है और फिर विकासशील देशों के साथ इनकी प्रतिस्पर्धा कैसे हो सकती है। विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने का अधिकार है, अतः विकासशील देश तो टैरिफ लगा सकते हैं परंतु विकसित देशों को इस संदर्भ में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
- प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर - 474 009