देश की आज़ादी से लेकर नव निर्माण तक में बुद्धिजीवी, बेहद मेहनती, देशभक्त व स्वाभिमानी 'त्यागी समाज' के सम्मानित लोगों का अपना एक अनमोल योगदान हमेशा से रहा है। त्यागी समाज के बहुत सारे महापुरुषों ने निस्वार्थ भाव से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लालबहादुर शास्त्री आदि जैसे दिग्गज लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश निर्माण के लिए कार्य किया था। मां भारती की सेवा में अपने प्राण को न्यौछावर करने के लिए मेजर आशाराम त्यागी जैसे वीर योद्धा हमेशा तत्पर रहे हैं, समाज के लोगों ने हमेशा निस्वार्थ भाव से देश व समाज की सेवा करने का कार्य हर तरह की अच्छी या बुरी परिस्थितियों में किया है।
देश में चाहे किसी भी राजनीतिक दल की सरकार हो, 'त्यागी समाज' के लोगों ने हमेशा ओछी राजनीति से दूर रहकर हर वक्त देश व समाज के हित में सोचते हुए कार्य करने में विश्वास रखा है। उन्होंने देश व समाज हित में जाति-धर्म के बंधन को तोड़ते हुए समाज के सभी लोगों को एकजुट करके कार्य करने में विश्वास रखा है। लेकिन जिस तरह से नोएडा में घटित एक आपसी विवाद की घटना पर देश के कुछ राजनीतिक दलों के चंद बड़े राजनेताओं व चंद मीडिया घरानों विशेषकर के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जातिवाद के बेहद घातक जहर को फैलाते हुए पूरे 'त्यागी समाज' को अपमानित करते हुए अपने निशाने पर ले लिया है, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
श्रीकांत त्यागी के प्रकरण के बाद से बेहद सभ्य व देशभक्त 'त्यागी समाज' के सभी लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करके कुछ लोगों के द्वारा जानबूझकर बहुत पीड़ा पहुंचाने का निंदनीय कार्य किया गया है। हालात देखकर लगता है कि देश के कुछ राजनेताओं व चंद मीडिया घरानों ने टीआरपी के लालच, क्षणिक स्वार्थ व ओछी राजनीति के लिए श्रीकांत त्यागी के आपसी विवाद की एक घटना के द्वारा पूरे सम्मानित 'त्यागी समाज' के मान सम्मान को ठेस पहुंचाने का दुस्साहस किया है, जिसके चलते धरातल पर 'त्यागी समाज' के लोगों के साथ-साथ अब देश के सर्वसमाज के लोगों में भी बेहद जबरदस्त ढंग से दिन प्रतिदिन आक्रोश बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते सर्वसमाज के लोग अब इस प्रकरण पर बहुत तेजी से एकजुट होते जा रहे हैं। वहीं रही-सही कसर 'बकरी को हाथी' बना देने वाली पुलिस ने श्रीकांत त्यागी की निर्दोष पत्नी, उसके छोटे-छोटे से बच्चों व मामा-मामी के साथ कथित रूप से दुर्व्यवहार करके पूरी कर दी है। वैसे तो श्रीकांत त्यागी विवाद के इस प्रकरण पर अधिकांश लोगों का यह मानना है कि जिस विवाद को पुलिस का संबंधित चौकी इंचार्ज भी बहुत आसानी से तुरंत सुलझा सकता था, उस विवाद को उत्तर प्रदेश के पुलिस-प्रशासन के बेहद शीर्ष अधिकारियों ने गैर जरूरी हस्तक्षेप व राजनीतिक दबाव में आने के चलते बहुत ज्यादा ही उलझा कर 'राई का पहाड़ बना' दिया है।
आपसी विवाद के मामले को 'तिल का ताड़' बनता देखकर अब तो आम लोग श्रीकांत त्यागी के प्रकरण में पुलिस-प्रशासन की कार्यवाही देखकर व्यंग्य कर रहे हैं कि ऐसा लगता है कि जैसे कि श्रीकांत त्यागी नाम का कोई एक व्यक्ति देश-दुनिया का एक सबसे बड़ा और बेहद कुख्यात वांछित आतंकवादी है, जिसका एक पल भी खुलेआम घूमना हमारे देश व समाज के लिए बेहद घातक है। हालांकि सूत्रों के अनुसार कभी इस पुलिस-प्रशासन के चंद लोग, देश व उत्तर प्रदेश के चंद प्रमुख राजनेता जब श्रीकांत त्यागी की धन-दौलत, गाड़ी घोड़े व अन्य सभी सुख-सुविधाओं का आये दिन आनंद ले रहे थे, तब उन लोगों को श्रीकांत त्यागी में कोई कमी नज़र नहीं आ रही थी। विचारणीय तथ्य यह है कि फिर अचानक से ही ऐसा क्या घटित हो गया की श्रीकांत त्यागी को चंद दिनों में ही पच्चीस हज़ारी इनाम वाला एक बहुत बड़ा अपराधी एक दम से बना दिया जाता है। देश के आम व खास सभी वर्ग के लोगों को श्रीकांत त्यागी के इस पूरे प्रकरण से एक बहुत ही बड़े षड्यंत्र की बू आती है। आम लोग शासन-प्रशासन व राजनेताओं से अब यह जानना चाहते हैं कि एक महिला के सम्मान की रक्षा करने के नाम पर दूसरी महिला व बच्चों के अपमान करने का हक भारत का कौन-सा कानून देता है।
इस प्रकरण में महिला व बच्चों से कथित दुर्व्यवहार के चलते सर्वसमाज में तेजी से आक्रोश व्याप्त होता जा रहा है, धरातल के हालात अब धीरे-धीरे ऐसे बनते जा रहे हैं कि अगर यूं ही भाजपा सरकार में बैठे लोगों ने तमाशबीन बनकर के चुप्पी साधने का कार्य किया, तो इस क्षेत्र में भविष्य में फिर से एक बहुत बड़े आंदोलन की मजबूत नींव अब धीरे-धीरे रखी जाने लगी है। अब यह मुद्दा सर्वसमाज के बहुत सारे लोगों लिए श्रीकांत त्यागी की पत्नी-बच्चों व मामा-मामी के सम्मान और राजनीतिक दबाव में जेल भेजे गये लोगों के हक व मुकदमा निरस्त करवाने की लड़ाई का बन गया है।
देश के अधिकांश राजनीतिक दल व राजनेता यह जानते हैं कि 'त्यागी समाज' के अधिकांश लोग भाजपा के परंपरागत वोटर हैं। 'त्यागी समाज' के अधिकांश लोग भाजपा के प्रत्याशी के सामने किसी भी अन्य दल से अपनी 'त्यागी बिरादरी' के एक मात्र प्रत्याशी होने के बावजूद भी हमेशा भाजपा के प्रत्याशी को वोट देना पसंद करते हैं। यही एक सबसे बड़ा कारण है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के राजनेताओं ने नोएडा के श्रीकांत त्यागी विवाद के प्रकरण में पूरी 'त्यागी बिरादरी' के मान सम्मान को ठेस पहुंचाने का दुस्साहस किया है। वहीं इस आग में भाजपा के ही कुछ बड़े राजनेताओं ने खुद घी डालकर विवाद को भड़काने का कार्य किया है। वैसे तो अन्य दलों के राजनेताओं को कहीं ना कहीं यह लगता है कि 'त्यागी समाज' के लोग उनको तो किसी भी हाल में फिर भी वोट देंगे नहीं तो वह उनके साथ खड़े क्यों हों। वहीं दूसरी तरफ कहीं ना कहीं भाजपा के राजनेताओं को भी यह लगता है कि 'त्यागी समाज' तो उनका कट्टर समर्थक है, वह हर हाल में और विकट से विकट परिस्थिति में भी भाजपा को ही वोट करेगा, जिसके चलते वह 'त्यागी समाज' के हक की धरातल पर बात करने के लिए अब तैयार नहीं हैं। वैसे भी आज़ाद भारत में स्वाभिमानी 'त्यागी समाज' के लोगों ने कभी भी राजनीतिक रूप से अपने समाज के नाम पर राजनीति में भागीदारी मांगने का कार्य नहीं किया है, उन्होंने हमेशा व्यक्तिगत हैसियत के स्तर पर हक मांगा है, जिसका अब सभी राजनीतिक दल नाजायज फायदा उठा रहे हैं।
लेकिन श्रीकांत त्यागी प्रकरण के बाद से अब धरातल पर जिस तरह की राजनीतिक स्थिति बन रही है, वह भविष्य में उन सभी चंद बड़बोले राजनेताओं के साथ-साथ भाजपा को भी बहुत महंगी पड़ सकती है, क्योंकि आज जिस तरह से 'त्यागी बिरादरी' के मान सम्मान की रक्षा के लिए शहर दर शहर सर्वसमाज के लोग एकजुट हो रहे हैं, वह भाजपा और 'त्यागी समाज' के सम्मान से खिलवाड़ करने का दुस्साहस करने वाले अन्य दलों के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
हालांकि सर्वसमाज के इन लोगों के निशाने पर विशेष रूप से भाजपा के वह सभी चंद दिग्गज राजनेता निरंतर बने हुए हैं, जिन्होंने श्रीकांत त्यागी के इस आपसी विवाद के छोटे से प्रकरण में आग में घी डालकर बड़ी चालाकी से बात का बतंगड़ बनाने में अपनी पूर्ण भूमिका निभाई थी, ना जाने क्यों इन लोगों ने जरा भी यह सोचना तक भी आवश्यक नहीं समझा कि उनकी यह एक क्षणिक स्वार्थ वाली ओछी राजनीतिक हरकत के चलते, भाजपा को दशकों से निस्वार्थ भाव से एक तरफा वोट देने वाला परंपरागत 'त्यागी समाज' का वोटबैंक भाजपा से छिटक कर हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो सकता है।
वैसे भी भाजपा के कर्ताधर्ताओं को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में दोबारा योगी आदित्यनाथ की सरकार का गठन करवाने में 'त्यागी समाज' ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का कार्य किया है। जिस पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अपना सूपड़ा साफ मान रहा था, वहां पर 'त्यागी समाज' के वोटरों की एकजुटता ने एक बहुत बड़ा संदेश देकर के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा का सूपड़ा साफ होने से तो बचाया ही, साथ ही भाजपा को इस क्षेत्र में भारी बहुमत से विजयी बनवाने का कार्य किया था। हालांकि बाद में उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रीमंडल में किसी भी 'त्यागी बिरादरी' के सम्मानित व्यक्ति को शामिल नहीं किया गया था, जिसके चलते 'त्यागी समाज' के लोगों में भाजपा के खिलाफ गुस्सा व्याप्त था। लेकिन अब श्रीकांत त्यागी के प्रकरण के बाद जिस तरह से पुलिस-प्रशासन ने बात का बतंगड़ बनाया, उससे 'त्यागी समाज' के लोगों में जबरदस्त आक्रोश व्याप्त हो गया है। इस पूरे प्रकरण पर आंख बंद करके बैठे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह समझना चाहिए कि अगर उसने जल्द ही 'त्यागी समाज' के लोगों की नाराज़गी को दूर नहीं किया तो जो हालात धरातल पर बन रहे हैं उससे अगर 'त्यागी समाज' भाजपा से खफा हो गया तो 2024 के आगामी लोकसभा के चुनावों में भाजपा को एक दर्जन से अधिक लोकसभा सीटों पर व भविष्य में तीन दर्जन से अधिक विधानसभा की सीटों पर भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
-दीपक कुमार त्यागी
(वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक)