जब भी किसी के पास जीवन-यापन से अतिरिक्त पैसा बचता है तो वह उसे उन जगहों पर लगाना चाहता है, जहां पर वे सुरक्षित हों और उससे बेहतर रिटर्न भी मिले और फिर मिलता रहे। इस नजरिए से भूमि, सोना और मकान को लम्बी अवधि के लिए बेहतर रिटर्न देने वाला साधन तो माना जा सकता है, लेकिन यदि आपको कम अवधि के लिए निवेश करना हो तो निवेश के अन्य विकल्पों पर विचार करेंगे, उपयुक्त तरीके से गौर फरमाएंगे तो अच्छा रहेगा।
ऐसा इसलिए कि पुरानी मान्यताओं को तरजीह देने वाले भारतीय समाज के लोग आज भी भूमि, सोना या मकान में निवेश करना ज्यादा उपयुक्त और सुरक्षित समझते हैं। क्योंकि भूमि में बगान लग जाने और मकान में दुकान निकल जाने से उसके मूल्य में काफी बढ़ोत्तरी हो जाती है। यहां पर एक कहावत भी प्रचलित है कि सोना बेचकर कोना खरीदा जाता है, लेकिन कोना बेचकर सोना कतई नहीं खरीदा जाता। क्योंकि सोना चल सम्पत्ति है, जबकि भूमि अचल प्रॉपर्टी।
यही वजह है कि कुछ अपवादों को छोड़कर जो लोग इसमें निवेश करते हैं, वे बदलते वक्त के साथ बेहतर रिटर्न नहीं ले पाते। इसके दो कारण हैं:- एक, इसमें बहुत ज्यादा पूंजी की जरूरत पड़ती है, और दूसरा, जानकारी के अभाव में लोग भूमि, सोना या मकान का सही क्रय और वाजिब उपयोग नहीं कर पाते हैं।
जानकारों का मानना है कि आप भूमि में उसी पैसे को निवेशित करें जिसकी जरूरत आपको निकट भविष्य में नहीं पड़े। क्योंकि भूमि सौदे को खरीदना जितना मुश्किल है, उससे भी ज्यादा परेशानी आती है उसे बेचने में। और जब तक बिक नहीं जाए, तब तक मन में संशय बना रहता है। इसलिए कि जरूरतमंद भूमि बिक्रेता को प्रायः अच्छा भाव नहीं मिल पाता है। इसके अलावा, कागजी कार्रवाई यथा- रजिस्ट्री, म्यूटेशन में लगा मोटा धन तुरंत बेचने पर प्रायः वापस नहीं लौट पाता।
यदि भूमि की खरीद-बिक्री के बीच में कोई प्रॉपर्टी डीलर या दलाल है तो और भी अधिक सजग रहें, क्योंकि कमीशन के अलावा दोनों ओर से टांके मारकर वह मोटी धनराशि पर हाथ फेर लेता है। यही नहीं, इसी चालबाजी और आपाधापी में कभी कभी खरीद-बिक्री का बना बनाया काम भी चौपट हो जाता है, क्योंकि क्रेता या विक्रेता में से कोई न कोई नाराज हो ही जाता है। इसलिए व्यावसायिक पारदर्शिता की नीति को यहां भी लागू करें।
मसलन, जब भी आपको भूमि में निवेश करने की जरूरत पड़े तो हमेशा यह ध्यान रखिए कि उस भूमि का महत्व क्या है? उसका सर्कल रेट क्या है? उसका मार्केट मूल्य क्या है? दोनों में अंतर कितना है? वह व्यावसायिक भूखंड है या औद्योगिक या फिर रिहायशी। मुख्य बाजार या फिर अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों से उसकी दूरी क्या है? उसका रेंटल वैल्यू क्या है? क्या वह कृषि भूमि है, या फिर बाड़ी-झाड़ी?
ऐसा करते समय आप यह भी सोचिए कि क्या उस पर बगान लगाया जा सकता है? क्या उस पर व्यावसायिक काम किया जा सकता है? क्या उस पर मकान या गोदाम बनाकर नियमित रेंटल आमदनी विकसित की जा सकती है। यदि वह रिहायशी भूमि है तो कैसी कॉलोनी में है- नई कॉलोनी में या फिर पुरानी कॉलोनी में। क्योंकि नई कॉलोनी में अधिक रिटर्न मिलेगा, जबकि पुरानी कॉलोनी में कम। किसी भी नई या पुरानी कॉलोनी में बिजली, पानी, सड़क, स्कूल, अस्पताल, मार्केट काम्प्लेक्स, उपासना स्थल, खेल के मैदान, पार्क, सामुदायिक भवन आदि की उपलब्धता के आधार पर भी कीमत घटती-बढ़ती रहती है। ऐसी कॉलोनी की कीमत बस स्टैंड से दूरी, रेलवे स्टेशन से दूरी, हवाई अड्डे से दूरी, बाजार से दूरी, प्रमुख प्रतिष्ठानों से दूरी, मुख्य सड़क से दूरी के आधार पर भी निर्धारित होती है।
दरअसल, ये ऐसी बातें हैं जो किसी भी भूमि के मूल्य में इजाफा करती हैं। इसलिए आप यह भी पता कीजिए कि सम्बन्धित कॉलोनी या व्यावसायिक इलाका कच्ची है या पक्की। स्थानीय अथॉरिटी से स्वीकृत है या फिर लाल डोरा क्षेत्र। उस भूमि पर बैंक लोन हो सकता है या नहीं। यदि हो सकता है तो फिर कितना? क्योंकि जितना हो सकता है, वही उसका वास्तविक मूल्य हुआ, जिसका भुगतान आप चेक या ड्राफ्ट के माध्यम से करते हैं। और जो आपसे ब्लैक में या नगद मांगा जाएगा, वह इस पेशे में जुड़े लोगों और बिक्रेता का अतिरिक्त लाभ होता है जिसकी अब परम्परा बन चुकी है। लेकिन यह दबी जुबान से चलती है, खुल्लमखुल्ला नहीं। इसलिए अपेक्षित सावधानी बरतें।
इसके अलावा, जब भी आप भूमि खरीदें तो लोन अवश्य करवाएं, इससे जमीन सम्बन्धी कमियों का पता अपने आप चल जाता है। साथ ही, पेपर चेन अवश्य लें। यदि रजिस्ट्री हो तो तुरंत करवाएं और पावर ऑफ अटॉर्नी के चक्कर में न पड़ें। साथ ही, म्यूटेशन भी अवश्य करवा लें। इससे आपकी भूमि परफेक्ट हो जाएगी और जब भी आप इसे बेचना चाहेंगे तो आसानी से बिक जाएगी और ठीकठाक मुनाफा देगी, बशर्ते कि आप चालाकी पूर्वक अपना काम करने को तत्पर रहिए।
ये तमाम बातें किसी मकान, दुकान, फ्लैट, कोठी, फैक्ट्री आदि पर भी लागू होती हैं। हालांकि, कुछ अतिरिक्त कानूनी सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं और सम्बन्धित संस्थाओं के प्रावधानों के मुताबिक सौदे को जांचना-जंचवाना पड़ता है। जैसे, किसी भी मकान, दुकान, फ्लैट, कोठी या फैक्ट्री को खरीदने से पहले ये पता कीजिए कि उसका नक्शा सम्बन्धित निकाय से विधिवत पास हुआ है या नहीं। इसी तरह बिजली, पानी का लीगल कनेक्शन लगा हुआ है या नहीं। इस मामले में फैक्ट्री की भूमि, भवन का नियंत्रण प्रायः अलग संस्था के पास होता है, जहां से पॉल्युशन आदि के प्रावधानों की भी बरीकीपूर्वक जांच करनी-करवानी पड़ती है। बनी बनाई मकान, फ्लैट, कोठी आदि के निर्माण की गुणवत्ता का ख्याल अवश्य रखें और किसी अनुभवी अभियंता से इसकी जांच करवाएं।
ऐसा नहीं हो कि मकान, दुकान, फ्लैट, कोठी आदि खरीदने के बाद उसमें मरम्मत या तोड़फोड़ करवानी पड़े। सम्भव हो तो किसी वास्तुविद् से भी सलाह जरूर करें। ये ऐसी बारीकियां हैं जिससे आपका निवेश परिपक्व समझा जाएगा और उससे आपको अपेक्षा से अधिक लाभ भी मिल सकता है। इसलिए धैर्यपूर्वक डील करें, सस्ता सौदा खरीदें, महंगे दामों पर बेचें, ताकि आपके निवेश पर आपको अव्वल रिटर्न मिले। अब तक के ट्रेंड के मुताबिक प्रायः 10-12 साल में जमीन की कीमत दोगुनी हो ही जाती है। इसलिए इत्मिनान पूर्वक निवेश करें।
जहां तक सोने में निवेश की बात है तो सोने के सिक्के या बिस्कुट में ही निवेश करें। किसी भी तरह के स्वर्ण आभूषण में यदि निवेश करना पड़े तो हॉल मार्क वाले आभूषण में निवेश करें, क्योंकि ऐसा करने से टांके का चक्कर नहीं पड़ता है। क्योंकि आमतौर पर टांके के खेल में आपका लाभ प्रायः स्वर्णकार ही हड़प जाता है। दरअसल, किसी भी सोने की कीमत प्रायः कैरेट के हिसाब से ही तय होती है, लेकिन बिस्कुट आपको 24 कैरेट के मिल जाएंगे, किन्तु स्वर्णाभूषणों में 20-22 कैरेट या 16-18 कैरेट का प्रचलन ज्यादा है। इसका असर सोने की गुणवत्ता और कीमत पर भी पड़ता है। आपको पता होगा वैसे तो सोने का भाव प्रायः ऊपर ही जाता है, लेकिन ऑफ सीजन में ये कभी कभार 2-3 हजार रुपये तक डाउन भी हो जाता है। अब तक के ट्रेंड के मुताबिक, अमूमन 8-10 सालों में सोने के भाव दुगुने हो ही जाते हैं। इसलिए आपका निवेश दुगुना हो जाएगा।
-कमलेश पांडे