इंडिया गठबंधन यदि एकता बनाये रखे तो भाजपा को हराना कोई बड़ी बात नहीं है

By रमेश सर्राफ धमोरा | Feb 23, 2024

केंद्र में सत्तारुढ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को सत्ता से हटाने के लिए देश के 28 प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं ने एक साथ मिलकर इंडिया गठबंधन बनाया है। इंडिया गठबंधन बनने से देश के लोगों को राजनीति में एक नया विकल्प तो मिला ही है। उसके साथ ही उन्हें लगने लगा कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन में शामिल सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे तो भाजपा नीत एनडीए गठबंधन को कड़ी टक्कर देंगे। इंडिया गठबंधन में कांग्रेस सहित कई राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियां शामिल हैं। इनमें से बहुत-सी क्षेत्रीय पार्टियों की उनके प्रदेशों में सरकार भी चल रही है। इंडिया गठबंधन की कई बैठकें भी हो चुकी हैं। मगर गठबंधन में सीटों का बंटवारा नहीं होने से आपसी मनमुटाव की स्थिति बनी हुयी है।


इंडिया गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है। ऐसे में कांग्रेस का दायित्व बनता है कि वह गठबंधन में शामिल सभी दलों को साथ लेकर आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारे जल्दी से करे। मगर अभी तक ऐसा हो नहीं पाया है। चूंकि देश में 10 साल बाद भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों का एक गठबंधन बना है। इसलिए इसको सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए इसका संयोजक भी बनाया जाना चाहिए था। मगर कई महीने निकल जाने के बाद भी अभी तक विधिवत रूप से इंडिया गठबंधन के संयोजक का नाम घोषित नहीं हो पाया है। सीटों का बंटवारा नहीं होने के कारण गठबंधन में शामिल कई राजनीतिक दल नाराजगी जाहिर करने लगे हैं।

इसे भी पढ़ें: भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे विपक्षी दलों के नेताओं की पूरी साख ही दांव पर है

इंडिया गठबंधन को लेकर कांग्रेस द्वारा बरती जा रही ढलाई के चलते ही बिहार में जनता दल यू गठबंधन से बाहर होकर फिर से एनडीए में शामिल हो गया है। जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर बिहार में सरकार भी बना ली है। नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन को बनाने वाले मुख्य राजनेताओं में शामिल थे। वह इंडिया गठबंधन के संयोजक बनना चाहते थे। मगर गठबंधन में शामिल कई दलों के नेताओं में आपसी खींचातान के चलते नीतीश कुमार संयोजक नहीं बन सके। इसी से खफा होकर उन्होंने इंडिया गठबंधन को छोड़ दिया। जीतन राम मांझी की हम पार्टी बिहार में पहले ही इंडिया गठबंधन से बाहर निकल चुकी थी।


इसी तरह उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भी भाजपा से गठबंधन कर इंडिया गठबंधन को अलविदा कह दिया है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले ही इंडिया गठबंधन में शामिल वामपंथी दलों से किसी भी तरह का चुनावी गठबंधन करने से इंकार कर दिया है। ममता बनर्जी ने बंगाल में कांग्रेस के लिए उनकी मौजूदा दो लोकसभा सीटों को ही छोड़ने की बात कही है। जबकि कांग्रेस वहां अधिक सीटों पर दावा कर रही थी। इससे वहां सीटों का तालमेल नहीं हो पा रहा है। ममता बनर्जी ने अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही ममता बनर्जी त्रिपुरा, असम और गोवा में भी चुनाव लड़ने की बात कह रही हैं।


उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ सीटों का बंटवारा नहीं होने के चलत 31 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नामों की एकतरफा घोषणा कर दी थी। इनमें वह लोकसभा सीटें भी शामिल हैं जहां से कांग्रेस चुनाव लड़ने का दावा कर रही है। अखिलेश यादव की एकतरफा घोषणा से उनका कांग्रेस के साथ गठबंधन खटाई में पड़ता नजर आ रहा था। मगर कांग्रेस ने अखिलेश यादव की सभी शर्तें मान कर उत्तर प्रदेश में गठबंधन को टूटने से बचा लिया है। अखिलेश यादव ने कांग्रेस को 17 सीटें दी हैं।


बिहार में राजद, कांग्रेस, वामपंथी दलों को मिलकर चुनाव लड़ना है। मगर वहां नीतीश कुमार की जदयू के गठबंधन से बाहर जाने के बाद लालू प्रसाद यादव की राजद 28 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रही है। जबकि कांग्रेस वहां 10 सीट पर चुनाव लड़ना चाहती है। वामपंथी दल भी वहां आठ सीटों पर दावा कर रहे हैं। ऐसे में यदि समय रहते बिहार में सीटों का बंटवारा नहीं हुआ तो गठबंधन की गांठ ढी़ली पड़ जाएगी। 

तमिलनाडु में कांग्रेस ने 2019 में द्रुमक के साथ मिलकर नौ सीटों पर चुनाव लड़कर आठ सीट जीती थी। मगर अब कांग्रेस वहां 16 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। जबकि द्रुमक कांग्रेस को 7 सीट ही देना चाहती है। तमिलनाडु में भी इंडिया गठबंधन में शामिल दलों में सीट बंटवारे को लेकर आपसी रार मची हुई है। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को दिल्ली में तीन सीट देने की बात कही है। वहीं पंजाब में सीटों के बंटवारे को लेकर अभी तक बात नही बनी है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने तो पंजाब में आम आदमी पार्टी द्वारा अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी थी। आप ने कांग्रेस से हरियाणा, गुजरात, गोवा, असम की कुछ सीटों की भी मांग की है।


महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) व कांग्रेस की महाविकास अघाडी के साथ वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) के प्रकाश अंबेडकर के शामिल होने से महाविकास अघाड़ी मजबूत हुई है। मगर महाराष्ट्र में भी अभी सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है। हालांकि महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दल एकजुटता के साथ चुनाव में उतरने को तैयार हैं। इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दलों को एक साथ मिलकर चुनाव लड़ना होगा तभी वह भाजपा से मुकाबला कर पाएंगे। इसके लिए सबसे पहले इंडिया गठबंधन के संयोजक का चयन करना होगा।


गठबंधन में सबसे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं वहां उनके लिये अधिक सीटें छोड़े ताकि वह भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकें। वहीं कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे प्रदेश जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में है वहां वह अधिक सीटों पर चुनाव लड़े। वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, त्रिपुरा, गोवा जैसे राज्यों में बहुत कमजोर स्थिति में पहुंच गई है। इन प्रदेशों में क्षेत्रीय दल बहुत मजबूत हैं। ऐसे में कांग्रेस को इन प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों की मदद करनी चाहिए ताकि इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दल एक साथ मिलकर भाजपा नीत एनडीए से मुकाबला कर सकें। कांग्रेस के नेता जब तक बड़ा मन रखकर सीट बंटवारे को अंतिम रूप नहीं देंगे तब तक गठबंधन में शामिल नेताओं में आपसी मनमुटाव जारी रहेगा। इसलिए इंडिया गठबंधन के नेताओं को सबसे पहले सीटों का बंटवारा कर मनमुटाव की स्थिति को समाप्त करना होगा। तभी इंडिया गठबंधन एकजुट से चुनावी मुकाबले में उतर पायेगा।


-रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

प्रमुख खबरें

एक मौन तपस्वी श्रीयुत श्रीगोपाल जी व्यास का स्वर्गारोहण

बंगाल के मुख्यमंत्री बनेंगे अभिषेक बनर्जी? TMC में बदलाव के लिए ममता को सौंपा प्रस्ताव

BJP का आरोप, दिल्ली सरकार की मिलीभगत से हुआ डिस्कॉम घोटाला, शराब घोटाले से भी है बड़ा

Justin Trudeau की उलटी गिनती क्या शुरू हो गई है? मस्क ने बड़ी भविष्यवाणी यूं ही नहीं की