2012 में भी बीजेपी ने चला था 2022 सरीखा दांव, कांग्रेस मान जाती तो देश को उसी वक्त मिल सकता था पहला आदिवासी राष्ट्रपति

By अभिनय आकाश | Jul 22, 2022

देश जश्न में डूबा हुआ है और मौके भी बेहद खास है। ये मौका खास इसलिए है क्योंकि देश को पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति मिल गई है। इसके साथ ही प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के बाद द्रौपदी मुर्मू देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनी हैं। रायसीना हिल्स का रास्ता द्रौपदी मुर्मू के लिए इतना आसान भी नहीं था। ओडिशा के एक छोटे से गांव से निकलकर द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन तक का जो सफर तय किया है यकीनन उसमें उन्हें अपनी जी-तोड़ मेहनत लगानी पड़ी है। तब जाकर उन्हें इतनी शानदार जीत हासिल हुई है। मोदी विरोधियों की ओर से मुर्मू की उम्मीदवारी को लेकर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे थे। लेकिन सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास के नारे के साथ कार्य करने वाली मोदी सरकार ने एक साधारण और सरल बैकग्राउंड से आने वाली मुर्मू की उम्मीदवारी सुनिश्चित की। ऐसा नहीं है कि ये कोई पहली दफा है जब बीजेपी  की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए किसी आदिवासी चेहरे को आगे किया गया हो। क्या आपको पता है कि साल 2012 में ही देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिल सकता था। 

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साल 2012 की  बात है 13वें राष्ट्रपति का चुनाव के लिए 19 जुलाई की तारीख मुकर्र थी। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 30 जून, जबकि मतों की गणना 22 जुलाई को की गई। कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रणब मुखर्जी जिनसे दिल में इच्छा तो प्रदानमंत्री बनने की थी। लेकिन सोनिया गांधी के त्याग वाली कहानी और मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में चुना जाना। जिसने उम्मीद लगाए बैठे प्रणब मुखर्जी को भी हैरान कर दिया था। इसका जिक्र अपनी किताब में भी मुखर्जी ने करते हुए लिखा था कि 2004 में अगर वो पीएम बन गए होते तो कांग्रेस को 2014 में इतनी बड़ी हार नहीं मिलती। प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री तो नहीं बन पाए लेकिन साल 2012 में देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने उन्हें राष्ट्रपति बनाने की पेशकश की। संख्या बल यूपीए के साथ था। ऐसे में मुखर्जी का चुना जाना तय माना गया।

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कांग्रेस को उस वक्त उम्मीद थी कि प्रणब दा बिना किसी अड़चन के रायसीना हिल्स में दाखिल हो सकेंगे। लेकिन एनडीए ने  मेघालय से आने वाले लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष पूर्णो अगितोक संगमा को मैदान में उतार दिया।  मेघालय के मुख्यमंत्री, लोकसभा के अध्यक्ष और वर्ष 1999 में कांग्रेस से निकाले जाने के बाद शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की स्थापना करने वाले पीए संगमा का नाम वैसे तो बीजेडी और एआईए़डीएमके की तरफ से आगे किया गया था, जिसे  बीजेपी ने अपना समर्थन दिया। आदिवासी समुदाय से आने वाले संगमा प्रणब मुखर्जी के मुकाबिल मैदान में थे। लेकिन इस चुनाव में पीए संगमा को हार का सामना करना पड़ा था। पीए संगमा को कुल 3,15,987 वोट वैल्यू (30.7 फीसद मत) प्राप्त हुए थे। वहीं प्रणव मुखर्जी को 7,13,763 वोट वैल्यू (69.3 फीसद मत) मिले थे। तब पीएम संगमा ने भविष्यवाणी की थी कि जल्द ही कोई आदिवासी देश का राष्ट्रपति बनेगा। द्रौपदी मुर्मू की जीत के साथ उनकी ये भविष्यवाणी महज एक चुनाव बाद ही सही साबित हो गई। 

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