By अभिनय आकाश | Aug 31, 2024
इंडियन एयरलाइंस का एक विमान टेकऑफ करता है और मिनटों के अंदर हाईजैक कर लिया जाता है। प्लेन को अमृतसर हवाई अड्डे पर रिफ्यूलिंग के लिए उतारा जाता है। आतंकी प्लेन को काबुल ले जाना चाहते थे। ये कहानी सुनकर आपको आईसी 814 की याद आ रही होगी। भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी प्लेन हाईजैकिंग की घटना। जब हाईजैक होता है तो असल में क्या होता है। फ्लाइट के अंदर और फ्लाइट के बाहर क्या स्थिति होती है। नेता क्या करते हैं और एजेंसियां क्या करती है। क्या हाईजैकर्स के मन में भी इमोशंस होते हैं। जब किसी भी प्लेन को हाईजैक किया जाता है तो तमाम सवाल सभी के मन में होते हैं। भारत के मन में भी ऐसे ही सवाल आए थे, जब साल 1999 में भारत ने आतंक का वो खतरनाक चेहरा देखा था जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। वो दिन अगर आज भी याद किया जाए तो रूंह कांप जाएगी। 24 दिसंबर 1999 को काठमांडू से उड़े जहाज को दिल्ली जाना था लेकिन उसे आतंकियों ने हाईजैक कर लिया था। वे उसे अमृतसर से होते हुए कंधार लेकर गए थे। आतंकियों ने 179 पैसेंजर्स की रिहाई के बदले मौलाना मसूद अजहर समेत 3 आतंकियों के रिहाई की शर्त रखी थी। इसे इतिहास का सबसे बड़ा प्लेन हाईजैक कहा जाता है। इसी पर अनुभव सिन्हा ने आईसी 814 द कंधार हाईजैक नाम से एक वेब सीरिज बनाई है।
रॉ एजेंट को क्या लग गई थी हाईजैकिंग की भनक?
ये तो हम सभी जानते हैं कि काठमांडू से दिल्ली आ रहे इस इंडियन प्लेन को हाईजैक करके कंधार ले जाया गया था। लेकिन हाईजैक के उन दिनों में असल में क्या हुआ था। ये कहानी आपको इस वेबसीरिज में दिखाया गया है। इस कहानी में उस घोर लालफीताशाही को भी उजागर किया गया है। ये दौर अटल बिहारी वाजपेयी की गठबंधन सरकार का था। उसी साल कारगिल युद्ध में भारत पाकिस्तान को धूल चटा चुका था। ऐसे में विमान के अपहरण की आतंकी साजिश आखिर कैसे कामयाब हो पाई? भारत की खुफिया एजेंसी को कैसे इसकी भनक नहीं लगी या सूचना मिलने के बावजूद उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। कहानी की शुरुआत नेपाल से होती है, जहां भारतीय रॉ एजेंट को इसकी भनक मिलती है। उसकी सूचना की गंभीरता भारतीय अधिकारियों को जब तक समझ आती, तब तक विमान हाईजैक हो चुका था।
अमृतसर में ईंधन भराने के लिए थोड़ी देर के लिए रुका विमान
दिल्ली जा रही विमान आईसी 814 शाम पांच बजे लाहौर की तरफ मोड़ी जा चुकी थी। कैप्टन देवी शरण ने आतकंवादियों से कहा कि विमान में लाहौर तक जाने का ईंधन नहीं है। इसी बीच कैप्टन देवी शरण प्लेन में लगा इमरजेंसी बटन दबा चुके थे। जिससे भारत के अधिकारियों को ये पता चल गया था कि विमान का अपहरण हो गया है। विमान में सभी सवार यात्रियों को आतंकवादियों ने बंधक बना लिया था। विमान को लाहौर में उतरने नहीं दिया गया था और उसका ईंधन खत्म हो रहा था। विमान के कैप्टन देवी शरण ने आतंकवादियों से कहा कि उन्हें किसी भी हालत में विमान को अमृतसर में उतारना ही पड़ेगा। इधर भारत सरकार की क्राइसेस मैनेजमेंट की बैठक हो रही थी। शाम छह बजे विमान अमृतसर में ईंधन भराने के लिए थोड़ी देर के लिए रुकता है। अमृतसर में ये बात कही गई कि एनएसजी को भेजा जा रहा है। तब तक विमान को अमृसतर में रोक कर रखा जाए। आधे घंटे तक विमान अमृतसर के एयरपोर्ट पर खड़ा रहा लेकिन कोई टैंकर नहीं आया। कैप्टन देवी शरण ने बिना ईंधन भराए विमान को उड़ाने से इंकार कर दिया। लेकिन आतंकवादी समझ गए कि वो ज्यादा देर तक रूके तो फंस सकते हैं। आंतकवादी 30 से 0 तक की गिनती करेंगे। अगर विमान नहीं उड़ा तो वो सबको गोली मार देंगे। बिना ईंधन भराए ही आईसी 814 और वहां से लाहौर के लिए रवाना हो जाता है। भारत ने आतंकवादियों के कब्जे से विमान को छुड़ाने का एक बड़ा मौका गंवा दिया था। विमान में ईंधन बिल्कुल भी नहीं बचा था। लाहौर एयरपोर्ट विमान को उतरने इजाजत नहीं दे रहा था। यहां तक कि एयरपोर्ट की सभी लाइट बुझा दी गई। विमान को मिलने वाला सिगन्ल भी बंद कर दए गए। कैप्टन के पास कोई चारा नहीं बचा और वो विमान को लाहौर की चलती सड़क पर उतारने लगें। विमान को क्रैश होने की हालत में देखकर लाहौर एयरपोर्ट ने आखिरकार रनवे देने की इजाजत दे दी। ये विमान रात आठ बजकर सात मिनट पर लाहौर में लैंड करता है। यहां विमान में ईंधन भराया गया और फिर रात को दस बजे के करीब लाहौर से दुबई के रास्ते ले गए। भारत ने दुबई में कमांडो आपरेशन का प्लान बनाया लेकिन यूएई की सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी। आतंकियों ने यहां पर विमान में ईंधन भरवाया और 27 यात्रियों को छोड़ भी दिया। दुबई से आतंकवादी इंडियन एयरलाइंस के अपहृत विमान को अफगानिस्तान लेकर गए। अगले दिन सुबह के तकरीबन साढ़े आठ बजे अफगानिस्तान में कंधार की जमीन पर उतरता है। उस दौर में कंधार पर तालिबान की हुकूमत थी।
रूपन कात्याल को आतंकियों ने निर्मतता से मारा
विमान पर कुल 180 लोग सवार थे। विमान अपहरण के कुछ ही घंटों के भीतर आतंकवादियों ने एक यात्री रूपन कात्याल को मार दिया। 25 साल के रूपन कात्याल पर आतंकवादियों ने चाकू से कई वार किए थे। कंधार में पेट के कैंसर से पीड़ित सिमोन बरार नाम की एक महिला को कंधार में इलाज के लिए विमान से बाहर जाने की इजाजत दी गई और वो भी सिर्फ 90 मिनट के लिए। उधर, बंधक संकट के दौरान भारत सकरार की मुश्किल भी बढ़ रही थी। मीडिया का दबाव था, बंधक यात्रियों के परिजन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। और इन सब के बीच अपरहरणकर्ताओं ने अपने 36 आतंकवादी साथियों की रिहाई के साथ-साथ 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की फिरौती की मांग रखी थी।
सिमोन बरार को 90 मिनट इलाज के लिए अस्पताल जाने की मोहलत
अपहरणकर्ता एक कश्मीरी अलगाववादी के शव को सौंपे जाने की मांग पर भी अड़े थे लेकिन तालिबान की गुजारिश के बाद उन्होंने पैसे और शव की मांग छोड़ दी। लेकिन भारतीय जेलों में बंद आतंकवादियों की रिहाई की मांग मनवाने के लिए वे लोग बुरी तरह अड़े हुए थे। पेट के कैंसर की मरीज सिमोन बरार की तबियत विमान में ज्यादा बिगड़ने लगी और तालिबान ने उनके इलाज के लिए अपहरणकर्ताओं से बात की। तालिबान ने एक तरफ़ विमान अपहरणकर्ताओं तो दूसरी तरफ भारत सरकार पर भी जल्द समझौता करने के लिए दबाव बनाए रखा।
कश्मीर दे दो, चाहे कुछ भी दे दो...बस घरवालों को वापस लाओ
एक वक्त तो ऐसा लगने लगा कि तालिबान कोई सख्त कदम उठा सकता है। लेकिन बाद में गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि तालिबान ने ये कहकर सकारात्मक रवैया दिखाया है कि कंधार में कोई रक्तपात नहीं होना चाहिए नहीं तो वे अपहृत विमान पर धावा बोल देंगे। इससे अपहरणकर्ता अपनी मांग से पीछे हटने को मजबूर हुए। यात्रियों के परिवार लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और किसी भी कीमत पर अपनों को वापस पाना चाहते थे। लोगों का कहना था चाहे कश्मीर दे दो, चाहे कुछ भी दे दो...बस घरवालों को वापस लाओ। जब उस वक्त के विदेश मंत्री जवसंत सिंह ने इन लोगों को ये समझाने की कोशिश की कि सरकार को देश के हित का भी ख्याल रखना होता है। तो वहां मौजूद भीड़ शोर मचाने लगी और एक व्यक्ति ने तो यहां तक कह दिया कि भाड़ में जाए देश और भाड़ में जाए देश का हित। इस घटना का जिक्र उस वक्त प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करने वाले पत्रकार कंचन गुप्ता ने अपने एक Blog में भी किया था। एक शाम कारगिल के हीरो शहीद Squadron Leader अजय आहुजा की पत्नी प्रधानमंत्री कार्यलाय पहुंचीं। उन्होंने अधिकारियों से निवेदन किया कि उन्हें विमान में मौजूद लोगों के रिश्तेदारों से बात करने दी जाए। प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर शहीद की पत्नी ने मीडिया और लोगों से बात की। उन्होंने लोगों को समझाने की कोशिश की भी कोशिश की कि भारत को आतंकवादियों के आगे नहीं झुकना चाहिए। उन्होंने अपनी आप-बीती भी सुनाई और लोगों को समझाया कि कोई भी पीड़ा राष्ट्रहित से बड़ी नहीं हो सकती। लेकिन तभी भीड़ में से कोई चिल्लाया और कहा कि ये खुद एक विधवा हैं और चाहती है कि दूसरी महिलाएं भी विधवा हो जाए।
विपक्ष ने भी डाला सरकार पर दबाव
उस वक्त सरकार पर दबाव डालने का काम सिर्फ जनता ने ही नहीं किया बल्कि विपक्षी राजनीतिक पार्टियां भी लगातार सरकार पर दबाव बना रही थी और मीडिया ने उनका भरपूर साथ भी दिया। वामपंथी नेता वृंदा करात उस वक्त अक्सर बंधकों के परिवार वालों से मिलने 7 रेस कोर्स जाया करती थी। यह देश के प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास है और उस वक्त बंधकों के परिवार प्रधानमंत्री के आवास के अंदर ही कैंपेन कर रहे थे।
सरकार को माननी पड़ी अपहरणकर्ताओं की बात
आखिरकार तत्कालीन एनडीए सरकार को यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चत करने के लिए तीन आतंकवादियों को कंधार ले जाकर रिहा करना पड़ा था। तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद तीन आतंकवादियों को अपने साथ कंधार ले गए थे। छोड़े गए आतंकवादियों में जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद शामिल थे। 31 दिसंबर को सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौते के बाद दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर अगवा रखे गए सभी 155 बंधकों को रिहा कर दिया गया। बाद में इसी मसूद अज़हर ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की और ये आतंकवादी संगठन अब तक तीन सौ से ज्यादा भारतीयों की जान ले चुका है। जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों ने ही 2001 में संसद भवन और जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पर हमला किया था। 2019 में पुलवामा में CRPF के 40 जवानों की जान लेने वाले आतंकवादी संगठन का नाम भी जैश-ए-मोहम्मद ही है। लेकिन सवाल यही है कि आखिर मसूद अज़हर समेत तीन खूंखार आतंकवादियों को छोड़ने की नौबत क्यों आई ? इसका जवाब ये है कि आज भी हमारे देश में आम लोगों के लिए परिवार से बड़ा कुछ नहीं है और राजनेताओं के लिए राजनीति से बड़ा कुछ नहीं है।