जानवरों को किसी भी बीमारी का दोष देना आम बात है। वैसे तो ‘आदमी’ को ‘सामाजिक पशु’ कह दिया जाता है पर वो मज़ाक में संजीदा कह देने का मामला है। आदमी तो यही मानता है कि इंसान गलती तो ... कभी कभार गलती से ही करता है।
कोविड जैसी नामी बीमारी की उत्पत्ति का दोष चीन के किसी क्षेत्र में उड़ते चमगादड़ को दिया गया था। एड्स का वायरस चिम्पैंजी के नाम कर दिया जाता है। बर्ड फ्लू का कारण मुर्गों को बताया जाता है। इसमें मुर्गियां भी शामिल मानी जा सकती होंगी। जानवरों को दोष देने में चतुर इन्सान की, दूसरों को दोष देने की स्वार्थी प्रवृति बहुत काम करती है। किसी भी नए किस्म के वायरस का दोषी इंसान को मानने के लिए कोई इंसान तैयार नहीं। हालांकि इंसानी वायरस ज्यादा खतरनाक होते हैं। लोकतंत्र की एक भी बीमारी का दोष नेताओं को नहीं दिया जाता। अगर कभी कोई अध्ययन हुआ होगा तो दोष घुमा फिराकर विपक्ष या जनता को ही दिया जाएगा ।
बारह नहीं तो चौबीस साल में कभी तो घूरे के भी दिन फिरते हैं। कहीं न कहीं, कभी सचाई भी अपना कब्ज़ा करना शुरू कर ही लेती है। पिछले दिनों मेहनत, पारदर्शिता और ईमानदारी से किया गया एक अध्ययन बताता है कि इंसानों ने जानवरों को ज़्यादा वायरस दिए हैं जिससे जानवर संक्रमित भी हुए हैं। इतना ही नहीं यह भी पता चला कि इंसान जानवरों से जितने वायरस लेता है उससे दोगुना उन्हें देता है। गलत चीज़ें देने में उस्ताद है इंसान। इस अध्ययन से तो यही लगता है कि इंसान, जानवरों से ज़्यादा वायरस रखता है। उसके विचार, उसकी हरकतें ज्यादा कीटाणु और विषाणु पैदा करती हैं।
यही खतरनाक कीटाणु जब इंसान से इंसान में जाते हैं तो कम असर करते होंगे लेकिन जब जानवर में प्रवेश करते होंगे तो ज़्यादा असर करते होंगे। जानवर इंसान को कीटाणु देना तो नहीं चाहता होगा लेकिन इंसान अपने व्यवहार के कारण ले लेता होगा। जानवरों का कुदरती पर्यावरण खत्म कर, नकली वातावरण में अपने स्वार्थ और आनंद के लिए रखना इंसानी शौक है।
इंसान पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुँचाने पर उतारू है। इंसान जानवर से ज़्यादा खतरनाक साबित हो चुका है। इंसान और जानवर जब भी करीब आते हैं उनके प्यार के आदान प्रदान के दौरान ऐसे ही तत्व विषाणु के रूप में जानवरों में प्रवेश कर जाते हैं। इस प्रक्रिया में अभी भी नैसर्गिक रूप से, कुदरत की विरासत संभाले हुए जानवरों से कम वायरस आते हैं।
जानवरों को साथ रखने के कारण इंसानों में जो वायरस आ जाते हैं देर सवेर उनका पता चल जाता है लेकिन जो कीटाणु हम जानवरों को देते हैं उनका पता कम ही चलता होगा। इंसान के कीटाणु जानवरों के कीटाणुओं से ज्यादा नुकसानदेह लगते हैं।
- संतोष उत्सुक