By अभिनय आकाश | Jul 28, 2023
जिगर में दम रखने वालों से पूरी दुनिया डरती है। ये डर जरूरी भी है। खासकर जब आपको देश बचाना हो। चाणक्य से लेकर सुभाष चंद्र बोस तक सभी ने अपने हिम्मत और हौसले से वो कर दिखाया है, जिसके बारे में हम आज तक पढ़ते हैं। वो शौर्यपूर्ण इतिहास हमारे देश का रहा है जहां महिलाओं की वीरता और बलिदान की कई गाथाएं पढ़ने और सुनने को मिलती हैं। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी का तो आप सभी ने खूब सुना होगा। लेकिन इस देश में केवल झांसी की रानी ही अकेली मर्दाना नहीं थी, जिसने अंग्रेजों को खदेड़ा। हमारे देश में एक ऐसी वीर रानी भी हुई हैं जिसे परिवार वालों ने त्याग दिया। लेकिन उसकी चालाकी और समझदारी ने अच्छे-अच्छों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। वो रानी जिसका कहना था कि मेरा वचन ही मेरा शासन है। लेकिन फिर उसके नाम के साथ आखिर चुड़ैल क्यों जुड़ गया? भारत का इतिहास वीर राजा और रानियों की कहानियों से भरा पड़ा है। लेकिन आज हम बात जिस वीरांगना की कर रहे हैं उनकी कहानी को सुनकर आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे। एक ऐसी रानी जिसे कई युद्धों में एक वक्त पर बाजी पलटने के लिए जाना जाता था। वहीं हजारों दुश्मनों का मुकाबला चंद सैनिकों के साथ करने में सक्षम होने के लिए पहचानी जाती। जिसकी वजह से कोई उन्हें बाजीगर कहता, कोई खुफिया कूटनीति के कारण चुड़ैल रानी भी कहता।
कश्मीर में महिला शक्ति का रहा बोलबाला
रानी दिद्दा (958-1003 सीई) का शासन कश्मीर में महिला शक्ति के शिखर के प्रतिनिधित्व को दर्शाती है। उन्हें कश्मीर की कैथरीन कहा जाता था। पैर की विकलांगता और रूढ़िवादी दौर में महिला होने के बावजूद, दिद्दा चार दशकों से अधिक समय तक कश्मीर पर मजबूत शासन करने में सक्षम थीं। दिद्दा एक बेहद विवादास्पद शासक रहीं, जिनकी पहचान करना मुश्किल है। अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को शांत भाव से लागू करने के उनके जबरदस्त राजनीतिक अस्तित्व कौशल के बारे में सभी एकमत हैं। शासन करने की उसकी क्षमता, योग्य लेफ्टिनेंटों का चयन और विरासत में मिले टूटे हुए राज्य में स्थिरता की उपलब्धि। उनके बारे में एक कहानी ये भी प्रचलित है कि आसपास के राजा उन्हें चुड़ैल रानी बुलाते थे। उन्हें भरोसा ही नहीं था कि एक औरत महमूद गजनवी जैसे अक्रांता को भी हरा सकती है। उनके लिए तो ये बस चुड़ैल थी, जिसके पास काला जादू की कला थी।
कश्मीर का संक्षिप्त बैकग्राउंड
यह बौद्ध धर्म के लिए एक प्रमुख बौद्धिक केंद्र था, विशेषकर कनिष्क के अधीन। चौथी और पांचवीं शताब्दी में, पूज्य कुमारजीव जैसे सैकड़ों कश्मीरी मिशनरियों ने काराकोरम रेशम मार्ग की यात्रा की और चीन को बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया। छठी शताब्दी में, हूण शासक मिहिरकुल ने बौद्ध धर्म पर अत्याचार किया और शैव धर्म को प्रोत्साहित किया, जिससे कश्मीर तबाह हो गया। 8वीं शताब्दी में, शैव राजा ललितादित्य ने एक संक्षिप्त अखिल भारतीय साम्राज्य बनाया, जहां उन्होंने असम, अफगानिस्तान, तिब्बत, विंध्य, गुजरात और सिंध तक छापे मारे। यहां तक कि उनके चीनी सम्राट के साथ राजनयिक संबंध भी थे और उन्होंने वास्तव में तिब्बतियों, उनके आम दुश्मन से लड़ने के लिए कश्मीर में 200,000 चीनी सैनिकों की मेजबानी करने की पेशकश की थी (सौभाग्य से, 20 वीं शताब्दी तक कोई भी चीनी सैनिक कश्मीर में नहीं आया था। ऐतिहासिक रूप से,प्राचीन कश्मीर पर चार रानियों का शासन था, गोंडा वंश की यशोवती, उत्पल वंश की सुगंधा (904-906 ई.) और वीरदेव वंश की दिद्दा (980/1-1003 ई.)। उस समय के अन्य समाजों की तुलना में, कश्मीर में महिलाओं को उच्च सम्मान दिया जाता था।
लोहारा और काबुल के राज्यों को किया एकजुट
कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार, दिद्दा (जन्म लगभग 924) लोहारा के राजा सिंहराज की बेटी थी, जिसका राज्य पश्चिमी पंजाब और कश्मीर के बीच व्यापार मार्ग पर पहाड़ों की पीर पांचाल श्रृंखला में स्थित था। अपने मायके की ओर से, वह काबुल के हिंदू राजा भीमदेव शाही की पोती थीं। उन्होंने 26 साल की उम्र में कश्मीर के राजा क्षेमगुप्त से शादी की और लोहारा और काबुल के दो राज्यों को एकजुट किया। शासक बनने से पहले भी, दिद्दा का राज्य के मामलों में काफी प्रभाव था, जैसा कि उस युग के सिक्कों से पता चलता है, जिनमें उनका नाम और क्षेमगुप्त दोनों का नाम दर्शाया गया है। जब 958 में शिकार के बाद बुखार के कारण क्षेमगुप्त की मृत्यु हो गई। दिद्दा अपने बेटे अभिमन्यु को गद्दी पर बिठाकर राजमाता बन गई और शासन चलाने लगी।
विद्रोह को बुरी तरह कुचल दिया
लोग इससे हरगिज खुश नहीं थे। स्थानीय सरदारों ने कहा कि एक औरत हम पर शासन कैसे कर सकती है। उसका वचन नहीं चल सकता है। दिद्दा ने जवाब दिया कि मेरा वचन ही है मेरा शासन और रानी दिद्दा ने सबसे पहले उन बगावत करने वाले मंत्रियों और सरदारों से छुटकारा पाया। कुछ वक्त के लिए तो स्थिति तनावपूर्ण हो गई और दिद्दा सत्ता खोने के करीब आ गई, लेकिन अन्य प्रभावशाली राजनीतिक खिलाड़ियों की मदद से अपनी स्थिति कायम करने के बाद, दिद्दा ने क्रूरता का परिचय दिया। उन्होंने न केवल पकड़े गए विद्रोहियों को बल्कि उनके परिवारों को भी मार डाला। 972 ईं में महाराजा अभिमन्यु भी चल बसे लेकिन दिद्दा का शासन चलता रहा। उन्होंने अपने पोते भीमगुप्त को गद्दी पर बिठाया औऱ राजकाज चलाया।
लेकिन जिस कारण ये इतिहास में अमर हुई वो कारण था गुरिल्ला नीति को जन्म देना। मराठा सामाराज्य के छत्रपति शिवाजी और अहोम साम्राज्य के सेनापति लाचित बोड़फुकन और अंग्रेजों के खिलाफ तात्या टोपे की गुरिल्ला नीति को भलि भांति जानते हैं। लेकिन इस तकनीक की असली जनक दिद्दा रानी थी। जिन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल कर 35 हजार की शत्रु सेना का मुकाबला केवल 500 सैनिकों के साथ किया। इतना ही नहीं केवल 45 मिनट में जंग जीत भी ली। अचानक युद्ध में इस तरह बाजी पलटने का हुनर उन्हीं के पास था।
गजनवी को 500 सैनिकों की मदद से पिलाया पानी
एक लाइन इन दिनों खूब कही भी जाती है कि 'पॉवरफुल पीपुल मेक द प्लेसेज पॉवरफुल' और ऐसी ही पावरफुल शख्सियत रानी दीद्दा थी। जिन्होंने कश्मीर पर 50 सालों तक राज किया। इन्होंने 35 हजार की सेना को 500 की सेना से 45 मिनट में हरा दिया था। इतिहासकार मानते हैं कि रानी दिद्दा का अपने दुश्मनों को मारने का तरीका बड़ा ही क्रूर था। ऐसा इसलिए कि वो इससे एक मैसेज देती थी कि उनकी रियासत के अंदर घुसने वालों का क्या अंजाम हो सकता है। दिव्यांग होने के बावजूद आज तक वो कभी हारी नहीं। उन्हें कश्मीर की आखिरी रानी होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने महमूद गजनवी को दो बार हराया। जी हां, आपके ठीक सुना वहीं खूंखार गजनवी जिसके हिन्दुस्तान में प्रवेश करने के बाद विध्वंस हुआ। उसका अपना एक लंबा इतिहास है। लेखक आशीष कौल की किताब दिद्दा: द वारियर क्वीन ऑफ कश्मीर में दावा किया गया कि दिद्दा ने महमूद गजनवी को एक नहीं दो-दो बार हराया। रानी दिद्दा ने अपने अंतिम क्षणों में अपनी गद्दी अपने भाई के बेटे संग्रामराज को सौंप दी और फिर बाद में उनकी मृत्यु हो गई। कल्हड़ उपसंहार में दिद्दा के लिए लिखा गया है- वो लंगड़ी रानी जिससे किसी को एक कदम पार करने की उम्मीद नहीं थी, उसने तमाम विरोधों को ऐसे लांघ डाला जैसे कभी हनुमान ने समुंद्र लांघा था।