By अभिनय आकाश | Dec 04, 2020
साल 2016 जुलाई का महीना तारीख 22, साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म के रिलीज का दिन। फिल्म का नाम था कबाली। जिसमें डॉन कबाली की भूमिका खुद रजनीकांत ने निभाई। इस फिल्म में एक डायलॉग था जो रजनीकांत ने विलेन के बॉस को संदेश देने के लिए कहा था- 'नान वंथुतेनू सोल्लू। थिरुम्बी वंथुतेनू। 25 वर्षथुकू मुन्नाडी इप्पाडी कबाली अप्पाडिए थिरुम्बी वंथुतान्नू सोलू(जाओ, जाकर उनलोगों से कह दो कि मैं लौट आया हूं और मैं वैसा ही हूं जैसा 25 साल पहले जाते वक्त था।)
रजनीकांत ने अपने समर्थकों को बताया है कि नई पार्टी का गठन नए साल की शुरूआत में ही यानी जनवरी के महीने में किया जाएगा, लेकिन पार्टी के नाम का ऐलान 31 दिसंबर को किया जाएगा। तमिलनाडु की राजनीति में रजनीकांत के राजनीतिक भविष्य, उनकी पालिटिकल पार्टी और अन्य सियासी बातें आगे तफ़सील से करेंगे। पहले आपको छोड़ा फ्लैशबैक में लिए चलते हैं। यही कोई 28-29 साल पहले। 'पुराची थलाइवी' जयललिता को जनता इसी नाम से बुलाया करती थी। जिसका मतलब होता है रिवॉल्यूशनरी लीडर यानी क्रांतिकारी नेता। साल 1991 के विधानसभा चुनाव में जयललिता भारी बहुमत से जीतने के साथ ही राज्य की सबसे कम उम्र की और पहली महिला सीएम बनीं थीं। इसके ठीक एक साल बाद का वक्त था साल 1992 जब रजनीकांत तब की मुख्यमंत्री जे जयललिता के पड़ोसी थे। पुलिस ने उन्हें इलाके में गाड़ी चलाने से रोका। रास्ते में जाम लगा हुआ था। जानकारी ली तो पता चला कि मुख्यमंत्री जयललिता वहां से गुज़रने वाली हैं, इसलिए ब्लॉकेड किया गया है। द नेम इज रजनीकांत नाम की जीवनी में लेखिका गायत्री श्रीकांत ने इस वाकये का जिक्र करते हुए लिखा है कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने रजनीकांत से कहा कि आपको 30 मिनट तक रुकना होगा। जब तक मुख्यमंत्री की गाड़ियों का काफिला इलाके से गुजर नहीं जाता किसी को जाने नहीं दिया जाएगा। रजनीकांत कुछ देर बाद ही अपनी गाड़ी से निकलकर पास के ही खंभे की ओट लेकर अपने अंदाज में सिगरेट की कश लेने लगे। जब वहां के लोगों को ये मालूम पड़ा कि सुरस्टार रजनीकांत वहां मौजूद हैं तो डॉ. राधाकृष्णन रोड पर भारी भीड़ लग गई।
घबड़ाए हुए पुलिस अधिकारी ने रजनीकांत से कहा कि आप अपनी गाड़ी बढ़ा लीजिए तो रजनीकांत का जवाब था 'सर, मैं इंतजार कर रहा हूं कि मुख्यमंत्री का काफिला गुजर जाए। इस घटना के चार साल गुजर चुके थे और 1996 के चुनाव करीब थे। रजनीकांत ने एक राजनीतिक बयान दिया जिसने विधानसभा चुनाव में एआईएडीएमके के सपनों पर पानी फेर दिया। तब रजनीकांत ने कहा था, 'अगर फिर से एआईएडीएमके सत्ता में आई तो तमिलनाडु को भगवान भी नहीं बचा पाएंगे।' माना जाता है कि ये रजनीकांत के बयान का ही असर था कि उस वक्त सत्ता विरोधी लहर में डीएमके ने जीत हासिल की - और सरकार बना ली। लोकसभा के चुनाव में राज्य की सभी 39 सीटों पर करुणानिधी की डीएमके और टीएमसी का कब्जा हो गया और तो और विधानसभा चुनाव में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके को महज चार सीटें ही नसीब हुईं। आलम ये था कि जयललिता 'बरगूर' से अपनी खुद की सीट भी हार गईं।
रूपहले पर्दे पर रजनीकांत के लिए कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है। अगर तमिलनाडु की राजनीती पर एक नज़र डाली जाए तो मिलता है पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और करूणानिधि के निधन के बाद वहां एक पॉलिटिकल वैक्यूम है। जिसको भरने का भरसक प्रयास डीएमके सुप्रीमो और करूणानिधि के छोटे बेटे स्टालिन और टीटीवी दिनाकरन कर रहे हैं। अगर कर्नाटक को हटा दिया जाए तो दक्षिण की राजनीती में भारतीय जनता पार्टी का कोई बड़ा दखल नहीं है। जहां तक तमिलनाडु की बात है वो एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में है। इस गठबधन को साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में ज़ोर का झटका उस वक़्त लगा जब पार्टी को जनता ने लगभग खारिज करते हुए सिर्फ एक सीट दी। इसके अलावा हाल ही में बीजेपी द्वारा आयोजित वेत्री वेल यात्रा जिसको लेकर एआईएडीएमके सरकार ने राज्य में धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए इस रैली की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
दक्षिण, खासतौर पर तमिलनाडु के लोग, रजनीकांत को दीवानगी की हद तक चाहते हैं - और यही वजह है कि उन्हें 'थलाइवा' कहते हैं। थलाइवा शब्द 'थलाइवर' से बना है, जिसका मतलब होता है - 'लीडर या बॉस।'
लेकिन इन सब के बीच एक बड़ा सीधा और सरल सवाल की क्या प्रशंसकों की ताली और जोश किसी स्टार के राजनीतिक कामयाबी का आधार बन सकते हैं? कुछ लोगों का जवाब ना में हो सकता है। अगर इस प्रसंग में अमिताभ बच्चन के इलाहाबाद से चुनाव लड़ने को याद किया जाय तो कुछ हद तक सवाल आसान हो सकता है। जब अमिताभ ने हेमवतीनंदन बहुगुणा जैसे बड़े नेता को पराजित कर दिया था।
बाद के दौर में अमिताभ के राजनीति से दूर होने की कई अन्य वजहें रही। लेकिन इतने दूर भी न जाए और दक्षिण के पास ही नजर दौराएं तो एमजी रामचंद्रन और जयललिता की मिसाल भी हो सकती है। ऐसे में एक और सवाल की क्या रजनीकांत एमजीआर और जयललिता की तरह ही सफल हो सकते हैं? इस सवाल का पहला जवाब शायद हां भी हो सकता है। चूंकि तमिलनाडु की मौजूदा राजनीति में एमजीआर और जयललिता जैसी शख्सियत की कमी है, इसलिए रजनीकांत उस जगह की भरपार्ई कर सकते हैं। लेकिन इसमें गौर करने वाली बात है कि एमजीआर और जयललिता दोनों ही राजनीतिक मैदान में उतरे थे तो केवल और केवल फैंस का सपोर्ट नहीं बल्कि उनके साथ ऐसे नेता भी साथ थे जो पहले से राजनीति में सक्रिय थे। चाहे वो एमजीआर को डीएमके के कई नेताओं का सपोर्ट मिलना हो या जयललिता के पीछे भी एआईएडीएमके के राजनीतिक सपोर्टरों का खड़े रहना।
अब आपको वापस से 1991 के दौर के एक घटनाक्रम में लिए चलते हैं जिसका जिक्र गायत्री श्रीकांत ने अपनी किताब में किया था।
रजनीकांत और उनकी पत्नी लता ने जयललिता के 1991 में मुख्यमंत्री बनने पर उनसे भेंट की थी। उस वक्त एक खुफिया अधिकारी जयललिता के कान में फुसफुसाया था कि ‘इस आदमी से सावधान रहिए, यह एक दिन मुख्यमंत्री बनना चाहता है। माना जाता है, उस वक्त जयललिता ने खुफिया अधिकारी से कहा था, 'क्या सचमुच ऐसी बात है? मुझे तो यह आदमी ऐसा नहीं लगता।' जयललिता आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वह खुफिया अधिकारी आज के वर्तमान दौर में जरूर मन ही मन मुस्कुरा रहा होगा। - अभिनय आकाश