By अंकित सिंह | Dec 20, 2023
लगभग 80 दिनों के बाद इंडिया गठबंधन के नेताओं ने जब नई दिल्ली में बड़ी बैठक की तो इससे जो सबसे बड़ी खबर निकल कर आई वह यह थी कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को गठबंधन का प्रधानमंत्री चेहरा बनाने का प्रस्ताव रखा था। ममता के इस प्रस्ताव को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल का भी समर्थन प्राप्त हुआ। बुधवार को ममता बनर्जी ने इसकी पुष्टि भी कर दी। हालांकि, खड़गे ने इसके जवाब में कहा कि पहले हमें 2024 का चुनाव जीतने पर ध्यान देना है। पीएम बनने के लिए हमें एमपी चाहिए और इसके लिए हम सब एक हुए हैं। एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे तभी तो हमारे एमपी जीतेंगे। हालांकि, विपक्षी गठबंधन ने इस बात के संकेत दे दिए कि कहीं ना कहीं अगर प्रधानमंत्री के रूप में किसी को आगे किया जाएगा तो उसमें मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल हो सकते हैं। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि मल्लिकार्जुन खड़गे की मजबूती क्या है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में वह कितने ताकतवर हैं?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का सबसे बड़ा मजबूत पक्ष यह है कि वह दलित समुदाय से आते हैं। खड़गे के जरिए इंडिया गठबंधन के नेताओं की ओर से दलित वोट को साधने की कोशिश हो सकती है। चुनावी परिणाम में दलितों की अहम भूमिका होती है। इसके अलावा उन्हें गांधी परिवार का भी बेहद भरोसेमंद माना जाता है। वह संगठन और प्रशासनिक अनुभव भी रखते हैं। साथ ही साथ उन्हें अच्छी हिंदी भी आती है जो कि उत्तर भारत में उनकी पकड़ को मजबूत बना सकती हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि कर्नाटक के बाहर उनका कुछ खास आधार नहीं है और ना ही उन्हें भीड़ को अपने पाले में करने की कला आती है। 2019 के चुनाव में वह अपनी लोकसभा सीट तक हार चुके हैं। इसके अलावा उनकी बड़ी कमजोरी यह भी है कि उनकी उम्र 81 साल हो गई है। ऐसे में जहां भाजपा 75 प्लस नेताओं को रिटायर कर रही है तो वहीं देश के समक्ष 81 साल का प्रधानमंत्री उम्मीदवार मतदाताओं को कितना प्रभावित कर पाएगा, यह वक्त ही बता पाएगा। इतना ही नहीं, अगर खड़गे को आगे किया जाता है तो भाजपा उन्हें एक बार फिर से गांधी परिवार की कठपुतली के रूप में पेश करेगी।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस आगे करती है तो बाकी के कई दलों की ओर से उन्हें समर्थन दिया जा सकता है। ऐसे में वह डार्क हॉर्स के तौर पर उभर कर सामने आ सकते हैं। गांधी परिवार की तरह परिवारवाद का आरोप खड़गे पर भाजपा नहीं लगा सकती। इसके अलावा दलित वोट भी इंडिया गठबंधन को मिल सकता है। लेकिन चुनौती यह भी होगी कि पिछली दफा जब कांग्रेस की ओर से पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनकर जो दलित कार्ड खेला गया था, वह पार्टी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ था। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह बड़ी चुनौती होगी कि खड़गे का खुद का वोट बैंक नहीं है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी और अन्य दलों के जो वोट है उसे वह इंडिया गठबंधन के पक्ष में कितना कर पाएंगे, यह भी समय पर छोड़ा जा सकता है। हालांकि यह भी है कि कई बड़े विपक्षी दल खड़गे के नाम का समर्थन न करें, जैसा कि सूत्र बता रहे हैं। खड़गे के नाम के प्रस्ताव पर बिहार के दो बड़े राजनीतिक दल यानी नीतीश कुमार की जदयू और लालू प्रसाद यादव की राजद बहुत ज्यादा इच्छुक नहीं है।
भाजपा साफ तौर पर यह कह चुकी है कि उसके प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ही होंगे। ऐसे मैं मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत चुनौती होगा। नरेंद्र मोदी देश के हर कोने में अपनी लोकप्रियता रखते हैं। साथ ही साथ अपने दम पर वह अपने गठबंधन को कई बार जीत दिला चुके हैं। हाल में ही तीन राज्यों में हुए चुनाव में हमने देखा कि किस तरह मोदी के नाम पर वोट पड़े हैं। लेकिन खड़गे के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है। इतना ही नहीं, उत्तर, पश्चिम और पूर्वी भारत में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अपने चरम पर है। वही खड़गे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच ही जाने पहचाने जाते हैं। नरेंद्र मोदी अभी 75 साल से नीचे हैं। लेकिन उनकी फुर्ती और चुस्ती लोगों को उत्साहित करती है। लेकिन खड़गे के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है।
कुल मिलाकर देखें तो चुनावी रणनीति को लेकर बैठकों का दौर लगातार जारी है। हालांकि इंडिया गठबंधन के लिए चुनौतियां लगातार बनी हुई है। सियासी फिजाओं में फिलहाल यह सवाल तैर रहे हैं कि आखिर मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम को ममता बनर्जी की ओर से आगे क्यों किया गया? जनता भी शायद यही समझाने की कोशिश में है। यही तो प्रजातंत्र है।