By अंकित सिंह | Mar 07, 2024
वर्तमान की स्थिति को देखें तो भारत में राजनीति और धर्म को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। दोनों कहीं ना कहीं एक दूसरे से जुड़ ही जाते हैं। चुनावी मौसम में तो धर्म और राजनीति के बीच का ताना-बाना कुछ ऐसा होता है कि पॉलीटिकल पार्टी अपने-अपने हिसाब से फायदा उठाने की कोशिश में जुट जाते हैं। देश जब लोकसभा चुनाव 2024 की दहलीज पर खड़ा है तो एक बार फिर से धर्म और राजनीति का मेल दिखाई दे रहा है। धर्म का मुद्दा राजनीतिक दलों को कैसे फायदा पहुंचाते हैं और इसका नुकसान कैसे हो जाता है, आज हम इसी को समझने की कोशिश करेंगे।
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे इस बात की भी संभावनाएं स्पष्ट हो जाती दिख रही है कि मुकाबला एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच ही होगा। एक ओर जहां भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन है तो दूसरी ओर कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडिया गठबंधन। एक ओर जहां भाजपा और एनडीए सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास की बाद करता हुआ दिख जाता है तो दूसरी और इंडिया गठबंधन का जोर पूरी तरीके से धर्मनिरपेक्षता पर टिका हुआ है। लेकिन फिर सवाल यही आ जाता है कि चुनाव के दौरान तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण की चर्चा कैसे सुनाई दे जाती है।
एनडीए गठबंधन पूरी तरीके से भाजपा के इर्द-गिर्द रहता है। भाजपा चुनाव के दौरान ध्रुवीकरण की राजनीति भी जबरदस्त तरीके से करती आई है। भले ही समय-समय पर वह इससे इनकार करती रही है। राम मंदिर का मुद्दा भी इसी का एक हिस्सा रहा है। हालांकि, भाजपा लगातार यह कहती रही है कि यह हमारे लिए राजनीति का नहीं बल्कि भावनाओं का मुद्दा रहा है। लेकिन चुनावी मौसम के दौरान मंदिर, यूसीसी, सीएए, जनसंख्या नियंत्रण कानून जैसे मुद्दों को उछालकर भाजपा कहीं ना कहीं हिंदुत्व वोट बैंक को मजबूत करती हुई दिखाई दे जाती है। वर्तमान की स्थिति में देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या पार्टी के वरिष्ठ नेता, मंदिरों का जबरदस्त तरीके से दौरा करते हुए दिख जाते हैं लेकिन अभी भी मस्जिद से दूरी बरकरार है। विपक्ष का आरोप यह भी रहता है कि भाजपा मुसलमानों के प्रति नफरत रखनी है। भाजपा अपनी पार्टी में मुसलमानों को आगे बढ़ने नहीं देती। तभी तो लोकसभा में उसके एक भी सांसद मुस्लिम नहीं है। हालांकि बीजेपी इन आरोपों को खारिज करती रहती है और साफ तौर पर सबका साथ सबका विकास का दावा करती हैं। हालांकि, 2024 चुनाव से ठीक पहले राम मंदिर का उद्घाटन भाजपा के लिए इस बार भी बड़ा मुद्दा रहने वाला है। भाजपा बार-बार यह कहती दिखाई दे रही है कि हम जो कहते हैं, उसे हर हाल में पूरा करते हैं। भाजपा राम मंदिर मुद्दे को लेकर हिंदुत्व वोट को एक बार फिर से इकट्ठा करने की कोशिश में है। भाजपा विकास और विरासत को जोड़ने की कोशिश में रहती है।
इंडिया गठबंधन के तमाम राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को महत्व देते नजर आते हैं। लेकिन गठबंधन में शामिल कुछ दलों की ओर से हिंदुओं को लेकर जिस तरीके से बयान सामने आते हैं उससे साफ तौर पर तुष्टिकरण की राजनीति का इशारा मिलता दिखाई दे जाता है। एक ओर धर्म को निजी मामला बताने वाले नेता किसी दूसरे धर्म विशेष के त्योहारों में टोपी पहनकर फोटो खिंचवाते दिख जाते हैं। उसे उनके द्वारा खूब साझा भी किया जाता है। हाल में डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन और ए राजा की ओर से हिंदू धर्म को लेकर जो बयान दिए गए, वह वाकई इस देश में स्वीकार नहीं किया जा सकता। लेकिन इंडिया गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों में विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा। विपक्षी दलों के नेता यूसीसी, सीएए, राम मंदिर जैसे मुद्दों पर भाजपा को जबरदस्त तरीके से घेरते हैं। इससे एक संदेश साफ तौर पर जाता है कि वह मुस्लिम वोट बैंक को अपनी तरफ पूरी तरह सुरक्षित रखना चाहते हैं। अपने राजनीति के शुरुआत में राम मंदिर की जगह अस्पताल और स्कूल बनाने की वकालत करने वाले इंडिया गठबंधन में शामिल अरविंद केजरीवाल भी आजकल रामराज्य की बात करते हैं। गुजरात चुनाव से ठीक पहले उन्होंने भारतीय नोटों पर लक्ष्मी और गणेश जी की तस्वीर की मांग करके कहीं ना कहीं हिंदुत्व राजनीति का नजारा पेश करने की कोशिश की थी। वहीं, चुनावी मौसम में राहुल गांधी भी मंदिर-मंदिर जाते दिखाई दे जाते हैं। खुद को जनेउधारी भी बताने लगते हैं। बाद में यही राहुल गांधी धर्म को निजी बताकर राम मंदिर जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम से किनारा कर जाते हैं।