Prajatantra: उत्तर बनाम दक्षिण का 2024 में कितना दिखेगा असर, क्या हैं भाजपा की मुश्किलें?

By अंकित सिंह | Dec 11, 2023

हाल में ही संपन्न पांच राज्यों के चुनावी नतीजों में भाजपा के जबरदस्त जीत हासिल हुई है। भाजपा ने इन पांच राज्यों में से तीन राज्यों में प्रचंड विजय हासिल की। भाजपा की जीत के बाद राजनीतिक दांव पेंच शुरू हो गए। इसके साथ ही उत्तर बनाम दक्षिण का भी मामला सामने आ गया। दरअसल, भाजपा ने जिन तीन राज्यों में जीत हासिल की, वह हैं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान। इन्हें हिंदी बेल्ट का राज्य माना जाता है जो देश के उत्तर और मध्य क्षेत्र में आते हैं। हालांकि, तेलंगाना में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगाई थी। बावजूद इसके उसे वहां ज्यादा सफलता नहीं मिली और कांग्रेस ने वहां जीत हासिल की। कर्नाटक के बाद तेलंगाना में जैसे ही कांग्रेस की सरकार बनी, उसके बाद नॉर्थ बनाम साउथ को भी हवा दे दी गई।

 

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कैसे शुरू हुआ उत्तर बनाम दक्षिण

दरअसल, सोशल मीडिया पर सबसे पहले इसकी चर्चा शुरू हुई। उसके बाद डीएमके सांसद सेंथिल कुमार ने संसद में कुछ ऐसा बयान दिया जिसके बाद से इस मुद्दे को हवा मिल गई। हालांकि, भाजपा की ओर से साफ तौर पर कहा गया कि विपक्षी भारत को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथी राहुल गांधी के पुराने बयान के भी खूब चर्चा हुई जिसमें उन्होंने कहा था कि उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत के लोगों में राजनीतिक समझ ज्यादा है। भाजपा के नेता अर्जुन राम मेघवाल ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों पर देश को उत्तर-दक्षिण के आधार पर बांटने की कोशिश करने का आरोप लगाया और कहा कि विपक्ष अपने प्रयासों में सफल नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि ‘इंडिया’ गठबंधन के दल भारत को उत्तर-दक्षिण के आधार पर विभाजित करने के अपने कथित प्रयासों में विफल रहेंगे।


भाजपा की ताकत

अगर भारत के मैप को देखें तो भाजपा की ताकत का साफ तौर पर पता चल जाएगा। भाजपा जहां मध्य और हिंदी हार्ट लैंड में पूरी ताकतवर है। तो वहीं, देश के पश्चिमी क्षेत्र यानी कि राजस्थान, गुजरात में भी उसकी पकड़ मजबूत है। महाराष्ट्र में 2019 में भाजपा को सफलता मिली थी लेकिन वहां वह गठबंधन में हैं। वहीं गोवा में उसकी सरकार है जो केंद्र की राजनीति के लिहाज से उतना महत्व नहीं रखता। पूरे दक्षिण भारत को देखें तो वह कहीं भी सत्ता में नहीं है जबकि पूर्वी तटीय क्षेत्र में भी वह हाशिए पर है जिसमें पश्चिम बंगाल, ओडिसा, आंध्र प्रदेश शामिल है। इन तीनों ही राज्यों में क्षेत्रीय दलों का शासन है जिन्होंने विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। यह बात भी सही है कि इन राज्यों में भाजपा ने अपनी पकड़ को पहले के तुलना में कई ज्यादा गुना मजबूत किया है। 2019 में भाजपा को बंगाल और ओडिशा में उम्मीद से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाबी मिली थी।

 

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क्या भाजपा की बढ़ेंगी मुश्किलें

उत्तर भारत के राज्यों की बात करें तो बीजेपी के कुल 118 लोकसभा के सांसद हैं जबकि 35 राज्यसभा के सांसद हैं। वहीं दक्षिण भारत में 6 राज्य हैं। इन राज्यों में 130 लोकसभा की सीटें हैं। इन 130 सीटों में से भाजपा के पास 29 लोकसभा की सीटें हैं। वहीं राज्यसभा के 7 सांसद हैं। 2019 में जब भाजपा अपने दम पर 303 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही थी तब भी दक्षिण भारत के कई राज्यों में उसका खाता तक नहीं खुल सका था। कर्नाटक ही ऐसा राज्य था, जहां भाजपा ने 28 में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, चार सीटें उसे तेलंगाना में जितने में कामयाबी हासिल हुई थी। हालांकि, कांग्रेस के लिए भी दक्षिण भारत कोई मजबूत किला नहीं है। दक्षिण भारत में उसके पास लोकसभा के 27 सीटें हैं। आंध्र प्रदेश में 25, केरल में 20, कर्नाटक में 28, तमिलनाडु में 39 और तेलंगाना में 17 लोकसभा की सीटें हैं। 


319 सीटों पर फोकस

2019 की बात करें तो 224 सीटों पर भाजपा ने 50 फ़ीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए थे और जबरदस्त तरीके से जीत हासिल की थी। इनमें से ज्यादातर सीटें उन राज्यों में थी जो कि भाजपा के गढ़ माने जाते हैं। वहीं, बाकी के 319 सीटों की बात करें तो उनमें से भाजपा केवल 79 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी। इसके बाद पार्टी का कुल आंकड़ा 303 हुआ था और यह बहुमत के जरूरी 272 से 31 ज्यादा हैं। भाजपा को जो 79 सीटें मिली थी उनमें महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिसा और तेलंगाना भी शामिल है जहां इंडिया गठबंधन की स्थिति मजबूत मानी जा सकती है। यही कारण है कि बीजेपी इन 79 सीटों पर जीत हासिल करने को लेकर पूरी तरीके से अपनी प्रतिबद्धता दिख रही है और इंडिया गठबंधन पर जबरदस्त तरीके से निशाना साथ रही है। 

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