Matrubhoomi: संजीवनी बूटी के बारे में कितना जानते हैं आप, यहां पढ़ें इससे जुड़ी नई जानकारियां

By अंकित सिंह | Apr 11, 2022

रामायण में जब लक्ष्मण इंद्रजीत के बाण से मूर्छित हुए थे तब हनुमान जी ने हिमालय की गोद से संजीवनी बूटी ले गए थे और इसके बाद लक्ष्मण जी के प्राण बच गए। समय-समय पर इस संजीवनी बूटी की चर्चा होती है। दावा यह भी किया जाता है कि आज भी यह संजीवनी बूटी हिमालय की कई पहाड़ियों पर मौजूद है। कुछ दिनों पहले ही उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान इकाई की ओर से यह दावा किया गया था कि द्रोणागिरी पहाड़ियों में रामायण के पौराणिक पौधे संजीवनी बूटी की ही तरह कुछ जड़ी बूटी मिले हैं। इसके बाद से उन बूटियों पर खोज लगातार जारी है। माना जाता है कि इन बूटियों में अद्भुत उपचार के गुण हैं। कहा जाता है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी को लाने के लिए द्रोणागिरी ही आए थे। द्रोणागिरी फिलहाल उत्तराखंड में स्थित है और इसे पर्यटन के हिसाब से लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। द्रोणागिरी जोशीमठ से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर है। द्रोणागिरी पर्वत के उस पार तिब्बत है। यही कारण है कि इसे भारत का आखरी छोड़ भी माना जाता है।


आज हम आपको इस संजीवनी बूटी के रहस्य के बारे में बताने जा रहे हैं:- 


  • बताया जाता है कि शक्राचार्य ने भगवान शिव से अमर होने का वरदान मांगा लेकिन भगवान शिव ने इसे असंभव करार दिया। हालांकि उन्होंने शक्राचार्य को संजीवनी विद्या के बारे में बता दिया। शक्राचार्य उस विद्या का इस्तेमाल करके युद्ध में मारे गए दैत्यों को फिर से जीवित कर देते थे।

 

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  • संजीवनी के बारे में कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति जो मृत्यु शैया पर है उसे यह स्वस्थ कर सकती हैं। संजीवनी चमत्कारी पौधा है जो कि हिमालय की गोद में ही प्राप्त होती है।


  • लंका से वैद्य सुषेण ने हनुमान जी को संजीवनी बूटी का पता जरूर बताया था। लेकिन हनुमान जी वहां पहुंचने के बाद यह समझ नहीं पाए थे कि संजीवनी बूटी कौन है। यही कारण है कि वे पूरा पहाड़ लेकर लंका पहुंच चुके थे। सुषेण ने चार बूटियों को बेहद महत्वपूर्ण बताया था। इन 4 वोटरों में मृतसंजीवनी, विशालयाकरणी, सुवर्णकरणी और संधानी बूटियां शामिल थीं। यह सभी हिमालय में ही मिलती थी।


  • माना जाता है कि हिमालय की गोद में ऐसी कई बूटियां हैं जो कि स्वास्थ्य वर्धन में लाभदायक साबित होते हैं। इसी के अलावा संजीवनी भी चिकित्सा के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं।


  • संजीवनी का वैज्ञानिक नाम सेलाजिनेला ब्राहपटेर्सिस है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति लगभग 30 अरब वर्ष पहले कार्बोनिफरस युग में हुई होगी। दवा तो यह भी किया जाता है कि संजीवनी संजीवनी मुरझाकर पपड़ी जैसी हो जाती है। इसके बावजूद भी वह जीवित रहती है और थोड़ी सी भी नमी मिलने के बाद खिल जाती है। 

 

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  • संजीवनी पत्थरों तथा शुष्क सतह पर भी उग सकती है। यह पौधा एक औषधि के रूप में काम करता है जो हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को भी रेगुलेट करता है। आयुर्वेद में इसके औषधीय लाभों के बारे में वर्णन है।


  • आज भी वैज्ञानिक संजीवनी का सही तरीके से पता नहीं लगा पाते हैं। इसका कारण यह भी है कि जंगलों में ऐसे अनेक पौधे हैं जो कि एक ही समान के दिखते हैं। संजीवनी लंबाई की जगह सतह पर ज्यादा फैलती है।


  • इसके अलावा संजीवनी बूटी हार्ट अटैक, अनियमित मासिक धर्म, डिलीवरी के समय और जोंडिस में भी लाभदायक साबित होता है। 


  • वैज्ञानिक यह भी दावा करते हैं कि संजीवनी बूटी वाली कहानी त्रेता युग की है जिसमें सदियां बीत गई हैं। आजकल तो 1-2 सालों में भी चीजें तेजी से बदल सकती है। ऐसे में संजीवनी बूटी में भी अंतर आया होगा। आज वह हल्के रंग में हम सबके बीच जरूर होगी।

 

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  • दावा तो यह भी किया जाता है कि संजीवनी बूटी श्रीलंका में भी मिलती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि हनुमान जी जिस पहाड़ को उठाकर से लंका पहुंचे थे उसका एक टुकड़ा रीतिगाला में भी गिरा था। रीतिगाला में आज भी ऐसी जड़ी बूटियां होती हैं लेकिन संजीवनी से बेहद अलग हैं।

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