कितनी तरह के सांप (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Sep 02, 2023

बरसात के मौसम में सांप और सांप के काटने की बात और घटनाएं ज़रूर होती हैं। कई ख़बरें या वीडियो देखकर तो तन, मन और धन तक सिहर उठता है। वैसे तो कई ख़ास इंसानों की हरकतें और करतूतें इतनी ज़हरीली होती हैं कि नागिन अपने ख़ास नाग से कहती है, प्रिय मुझे तो डिप्रेशन होने लगा है, हमसे ज्यादा ज़हर तो इन इंसानों में है। एक जगह पढ़ा था कि मंत्री ने सांप को डसा और सांप मर गया। इन शब्दों, बातों की चाहे जैसे व्याख्या कर लें असली भाव यह है कि इंसान, सांप से ज़्यादा रपटीला, खतरनाक और ज़हरीला है। कुछ ज्ञानी लोग तो यहां तक कहते हैं कि सांप का काटा बच सकता है लेकिन इंसान का डसा नहीं बचता। 


किसी की जुर्रत नहीं कि ऐसे इंसानों बारे कुछ कह सके, कोई आकलन या सर्वेक्षण करवाए लेकिन कुछ समय पहले देश की राजधानी के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के पर्यावरण अध्ययन विभाग ने राजधानी में उपस्थित सभी प्रजातियों के सर्पों की सूची जारी करते हुए बताया था कि वहां तेईस किस्म के सांपों का बसेरा है। इसमें से सिर्फ चार प्रजातियों के सांप विषैले हैं। इस बात पर आंखें खोलकर भी विशवास नहीं किया जा सकता कि दिल्ली में केवल चार तरह के सांप विषैले निकले। अगर पर्यावरण के साथ वातावरण विभाग भी मिलकर अध्ययन करे लेकिन खालिस ईमानदारी से करे तो परिणाम ज़्यादा खतरनाक ही हो सकते हैं। राजधानी में बहुत सी चीजों, ख़ास तौर पर पिछले समय में राजनीति का तेज़ी से गिरता स्तर अत्यंत घिनौना, कड़वा और ज़हरीला होता गया है। 

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हैरानी की बात यह है कि दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में शामिल किए जाने वाले इलाके में भी इतने किस्म के सांप हैं। बताते हैं, बिगड़ते वक़्त के साथ यह बढ़ते ही जा रहे हैं। सच यह है कि इको सिस्टम में सांप और राजनीतिक सिस्टम में नेताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। गौर से गहन अध्ययन किया जाए तो राजनीतिक सिस्टम में भी कई तरह के सांप, सपोलों, बिच्छुओं और घोड़ों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हमेशा बनी रहती है। दिलचस्प यह है कि दोनों के नाम भी मिलते जुलते हैं। 


असली सांप चूहे जैसे जीवों को खाकर इनसे होने वाली कई बीमारियों से बचाते हैं। राजनीतिक व धार्मिक सांप अजगर बनकर इंसानों को ही नहीं इंसानियत को भी निगल जाते हैं। घृणा, नफरत, बदला और स्वार्थ जैसी बीमारियां रोपते हैं जो राजधानी ही नहीं पूरे देश को निरंतर डसती रहती हैं और बेहोश रखती है। आम इंसान लाश की तरह पड़ा, जीता रहता है। अफ़सोस की बात है इस सन्दर्भ में कोई आकलन नहीं करता। हो सकता है कोई विश्वविद्यालय अगला अध्ययन इस बारे भी करे कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग क्यूं बदलता है।


- संतोष उत्सुक

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