By नीरज कुमार दुबे | Feb 13, 2024
फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी की गारंटी देने वाला कानून बनाने की मांग को लेकर किसान एक बार फिर दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। दिल्ली की ओर बढ़ने के सफर में यह आंदोलनकारी जिस तरह अवरोधकों को तोड़ रहे हैं और उत्पात मचा रहे हैं उससे साफ प्रदर्शित हो रहा है कि ये आंदोलनकारी लोग किसान हैं ही नहीं। क्योंकि किसान कभी उपद्रव नहीं मचाता, किसान कभी पुलिस पर पत्थर नहीं मारता, किसान कभी बंदूक नहीं लहराता, किसान कभी लाठियां नहीं भांजता। जिस तरह से ये आंदोलनकारी पूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ रहे हैं वह यह भी प्रदर्शित कर रहा है कि ऐन लोकसभा चुनावों के पहले यह आंदोलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार सत्ता में पहुँचने से रोकने के लिए ही खड़ा किया जा रहा है। हम आपको याद दिला दें कि हाल ही में भारत ने आरोप लगाया था कि कनाडा हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है। इसलिए प्रश्न उठता है कि कहीं कनाडा में सरकारी प्रोत्साहन पा रहे खालिस्तानी तत्वों द्वारा तो इस आंदोलन को हवा नहीं दी जा रही है?
हम आपको बता दें कि किसानों का पिछला आंदोलन जहां मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए था वहीं यह नया आंदोलन मोदी सरकार से एमएसपी गारंटी कानून बनवाने के लिए खड़ा किया जा रहा है। यहां सवाल उठता है कि यदि सरकार से कानून बनवाना था तो संसद सत्र के चलते समय क्यों नहीं सरकार से बात की गयी? अब जब 17वीं लोकसभा का कार्यकाल लगभग समाप्त हो चुका है तो सरकार कहां से कानून बना देगी? यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या एमएसपी कानून बना देने से ही किसानों की सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी? अभी सरकार लगभग 22 फसलों का एमएसपी देती है। सवाल उठता है कि क्या यह सभी 22 फसलें किसान एमएसपी पर ही बेचते हैं? कई बार ऐसा होता होगा कि कई फसलें एमएसपी से भी कम या एमएसपी से ज्यादा दर पर बेची जाती होंगी। दरअसल फसलों के दाम बहुत हद तक हालात पर निर्भर करते हैं इसलिए एमएसपी घोषित होने के बावजूद उससे कम या ज्यादा दाम पर फसलें बेची जाती रही हैं।
एमएसपी की मांग पर अड़े किसानों को यह भी देखना चाहिए कि मोदी सरकार ने पिछले 10 साल में उनके लिए क्या किया है। कोरोना महामारी आई, कई देशों के युद्ध और संघर्ष के चलते वैश्विक सप्लाई चेन प्रभावित हुई लेकिन देश में यूरिया के दाम नियंत्रण में रहे और किसानों की जेब पर बोझ नहीं पड़ने दिया गया। मोदी सरकार ने मिलेट्स को बढ़ावा देकर किसानों की आय बढ़ाने का अतिरिक्त प्रबंध भी किया। किसानों को समझना होगा कि एमएसपी से उनका वास्तविक भला नहीं होगा। उनका भला तब होगा जब उनकी कृषि लागत कम होगी और उनकी उपज बिना किसी बिचौलिये के मंडियों तक पहुँचेगी। किसानों का वास्तविक भला तब होगा जब वह स्टार्टअप के इस युग में अपने कृषि उत्पादों की मार्केटिंग करने का प्रयास करेंगे। किसानों को इस सबमें मदद के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए ना कि सभी फसलों के लिए एमएसपी गारंटी कानून जैसी अव्यवहारिक मांग करनी चाहिए।
बहरहाल, किसानों को यह बात भी समझनी होगी कि सरकार यदि एमएसपी गारंटी कानून लाई तो हर साल उस पर 10 लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। यह बोझ कितना बड़ा है इसे आसान शब्दों में समझाएं तो आपको बता दें कि यह लगभग उस व्यय (11.11 लाख करोड़ रुपये) के बराबर है जो सरकार ने हाल के अंतरिम बजट में बुनियादी ढांचे के लिए अलग से रखा है। सवाल यह भी है कि यह 10 लाख करोड़ रुपया कहां से आएगा? क्या सरकार बुनियादी ढांचे पर हो रहे खर्च में कटौती करे या रक्षा खर्च में कटौती करे या चिकित्सा अथवा शिक्षा क्षेत्र में हो रहे खर्च में कटौती करे या जनता पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नये टैक्स लगाये? इसमें कोई दो राय नहीं कि वैश्विक महामारी से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई, हर क्षेत्र पर महामारी का विपरीत असर पड़ा लेकिन अन्नदाता की बदौलत भारत बहुत जल्दी इस हालात से उबरने में सक्षम रहा। लेकिन अन्नदाता की जिम्मेदारी अभी खत्म नहीं हुई है, उसे यह सुनिश्चित करने के लिए देश के साथ खड़े रहना चाहिए कि देश का खर्च अनावश्यक रूप से बढ़ाने या देश को वित्तीय आपदा में धकेलने के प्रयासों को विफल किया जाये। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाये रखने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिक की भी है।
-नीरज कुमार दुबे