तमाम दुष्प्रचार के बावजूद दलितों की पसंदीदा पार्टी कैसे बन गयी भाजपा?

By नीरज कुमार दुबे | Oct 10, 2024

कांग्रेस की ओर से भाजपा पर अक्सर आरक्षण को खत्म करने की साजिश रचने का आरोप लगाया जाता है। इसी आरोप की वजह से लोकसभा चुनावों में भाजपा को बड़ा नुकसान भी हुआ और वह अपने बलबूते स्पष्ट बहुमत हासिल करने से चूक गयी। लेकिन उसके बाद मोदी सरकार ने सबक लिया और एक भी ऐसा अवसर नहीं आने दिया जब दलितों के मन में अपने आरक्षण को लेकर कोई शंका हो पैदा हो। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की वजह से एससी और एसटी वर्ग के मन में आशंकाएं पनपीं तो मोदी सरकार ने साफ कर दिया कि एससी और एसटी वर्ग के आरक्षण पर कोई आंच नहीं आने दी जायेगी। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से उपजे विवाद के बीच केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्पष्ट कर दिया कि डॉ. भीम राव आंबेडकर के बनाये संविधान में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण में ‘मलाईदार तबके’ के लिए कोई प्रावधान नहीं है। देखा जाये तो मोदी सरकार का यह स्पष्टीकरण आरक्षण के मुद्दे को लेकर समाज में भ्रम फैलाने वालों पर करारी चोट कर गया।


इसके अलावा, इसी साल अगस्त में एक और अवसर आया जब दलितों के मन में आशंकाएं पनपाने का काम किया गया। दरअसल केंद्रीय सेवाओं में लेटरल एंट्री के मुद्दे को उठाते हुए विपक्ष ने कहा कि यह दलितों और पिछड़ों को आरक्षण से वंचित करने की साजिश है। विपक्ष के इस हमले पर तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री ने लेटरल भर्ती विज्ञापन को रद्द करने के निर्देश दिये। केंद्र सरकार ने स्पष्ट कहा कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, इस कदम की समीक्षा और इसमें सुधार किया जायेगा। सरकार ने साथ ही देश को यह भी बताया कि लेटरल एंट्री के जरिये नियुक्तियों की शुरुआत कांग्रेस ने ही की थी। यह विषय भी दलितों और पिछड़ों को आश्वस्त कर गया कि मोदी के रहते आरक्षण को कोई खतरा नहीं है।

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इसके अलावा, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आरक्षण के मुद्दे पर ऐसा बयान दे दिया जिससे कि भाजपा को कांग्रेस पर हमला करने का बड़ा मौका मिल गया। दरअसल विदेश दौरे के दौरान राहुल गांधी ने एक सवाल के जवाब में आरक्षण खत्म करने की बात कह दी। उनका यह बयान देखते ही देखते वायरल हो गया। कांग्रेस और राहुल गांधी तमाम सफाई और स्पष्टीकरण देते रहे लेकिन यह मुद्दा तूल पकड़ चुका था। राहुल गांधी के इस बयान को इस तरह से पेश किया गया जैसे कांग्रेस तत्काल आरक्षण खत्म करना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके बाद अपनी हर सभाओं में कहना शुरू कर दिया कि कांग्रेस कान खोलकर सुन ले... जब तक मोदी है, तब तक बाबा साहेब अंबेडकर के दिए आरक्षण में से रत्ती भर भी लूट करने नहीं दूंगा। भाजपा ने आरक्षण पर राहुल गांधी के बयान से उपजे विवाद को खूब तूल दिया जिससे कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनावों में नुकसान उठाना पड़ा है।


अगर आप जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि भाजपा ने जम्मू में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सभी सात सीटों पर कब्जा कर लिया है जबकि हरियाणा में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 17 में से आठ सीटों पर कब्जा किया है। यह दर्शाता है कि दलित समुदाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के साथ फिर खड़ा हो गया है। हम आपको याद दिला दें कि 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने हरियाणा में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पांच सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने छह सीटें जीती थीं। जम्मू और कश्मीर में 2014 के विधानसभा चुनावों में (2022 में परिसीमन से पहले जिसके परिणामस्वरूप सीटें 83 से बढ़कर 90 हो गईं) भाजपा ने जम्मू में एससी के लिए आरक्षित पांच सीटें जीतीं थीं और कांग्रेस को एक सीट मिली थी। चुनाव परिणाम वाले दिन जब शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा मुख्यालय पर विजयी संबोधन दिया था तब उन्होंने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के दमदार प्रदर्शन पर भी प्रकाश डाला था।


देखा जाये तो हरियाणा में कांग्रेस को दलितों की भारी नाराजगी का सामना करना पड़ा है क्योंकि उसने पूर्व केंद्रीय मंत्री और हरियाणा में पार्टी के सबसे बड़े दलित चेहरे कुमारी शैलजा की बजाय भूपिंदर सिंह हुड्डा को सीएम पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया। हम आपको याद दिला दें कि हुड्डा के पिछले दो कार्यकालों की पहचान जाटों के दबदबे के रूप में की जाती है। हुड्डा के कार्यकाल में दलितों के खिलाफ अत्याचार की घटनाओं, विशेषकर मिर्चपुर में दो दलितों की हत्या की घटना लोगों के मन में ताजा थीं। भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान इन घटनाओं का जिक्र तो किया ही साथ ही कांग्रेस पर दलित पृष्ठभूमि के कारण शैलजा को हाशिए पर रखने का आरोप भी लगाया। भाजपा ने राज्य में दलितों के उप-वर्गीकरण की मांग का भी समर्थन किया।


बहरहाल, देखा जाये तो 2014 से मोदी सरकार की ओर से "समावेशी विकास" पर ध्यान केंद्रित करने के कारण अनुसूचित जाति के वर्गों में भाजपा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बना है। कांग्रेस ने 'आरक्षण और संविधान पर खतरे' की जो कहानी बुनी थी वह भले ही लोकसभा चुनाव में काम कर गई हो, लेकिन इसकी गूंज अब खत्म होती जा रही है। भाजपा दलितों के मन में यह बात बिठाने में कामयाब रही है कि बाबा साहेब द्वारा संविधान के माध्यम से दिये गये आरक्षण से कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता और प्रधानमंत्री मोदी के रहते कोई आरक्षण को खत्म नहीं कर सकता। 

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