By अंकित सिंह | Mar 20, 2024
अभिनेता से नेता बने चिराग पासवान लोकसभा चुनाव में बिहार एनडीए में लीड एक्टर के तौर पर उभरे हैं। एक समय में पूरी तरीके से हाशिए पर जा चुके चिराग पासवान ने जबरदस्त वापसी की और यह बता दिया है कि अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत के असली उत्तराधिकारी वही है। रामविलास पासवान के निधन के बाद जब पार्टी के पांच सांसद उनके चाचा पशुपति पारस के नेतृत्व में अलग हो गए थे तब चिराग अलग-थलग पड़ गए थे। हालांकि, उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी, जमीनी लड़ाई लड़ी, जबरदस्त वापसी की और बिहार एनडीए में जो सीट बंटवारा हुआ उससे इस बात का अंदाजा भी मिल गया। बिहार में 17 सीटों पर भाजपा जबकि 16 सीटों पर जदयू चुनाव लड़ेगी। 5 सीटें चिराग पासवान के नेतृत्व वाली एलजेपी (आर) को दी गई है। केंद्र में मंत्री रहे पशुपति पारस का हाथ खाली रह गया है।
खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान को उनके सब्र का फल मिला है। एनडीए में न होने के बावजूद भी उन्होंने कभी बीजेपी और खास करके प्रधानमंत्री के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला। केंद्र की मोदी सरकार के एजेंडे के साथ पूरी तरीके से मजबूती से वह खड़े रहे। भाजपा नेताओं के प्रति हमेशा सम्मान रखा। फालतू की बयान बाजी नहीं की। पार्टी में टूट के बावजूद भी चिराग ने हिम्मत नहीं हारी। वह लगातार जमीन पर संघर्ष करते रहें। जन विश्वास यात्रा निकाली, लोगों का जबरदस्त जन समर्थन मिला। जरूरत पड़ने पर भाजपा के लिए चिराग ने उपचुनाव में प्रचार भी किया। चाचा पशुपति पारस से तल्खी और उनके केंद्र में मंत्री बनने के बावजूद भी चिराग ने भाजपा के प्रति कोई नाराजगी नहीं दिखाई। उन्होंने भाजपा से अपना रिश्ता भी नहीं तोड़ा और ना ही किसी विपक्षी खेमे में जाने की कोशिश की।
पशुपति पारस के साथ पांच सांसदों के होने की वजह से उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया गया। हालांकि, जमीन पर देखें तो पार्टी का जनाधार चिराग पासवान के साथ ही खड़ा रहा। बिहार विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने अकेले लड़कर यह बता दिया कि उनकी पार्टी को बिहार में हल्के में नहीं लिया जा सकता। बिहार में पासवान बिरादरी के करीब 5.3% वोट है। इसे ही रामविलास पासवान की राजनीति का आधार माना जाता है। साथ ही साथ रामविलास पासवान ने सवर्णों को भी साधने की कोशिश की थी। इसकी वजह से कुछ सवर्ण वोट भी पासवान के साथ रहा है। जब चिराग ने अपनी यात्रा निकाली तो लोगों का भारी हुजूम हुआ। उन्हें जबरदस्त जन समर्थन मिला। चिराग युवा है। ऐसे में भाजपा के लिए आने वाली परिस्थितियों में भी काम आ सकते हैं। चिराग अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ संयमित है जो उनके लिए प्लस प्वाइंट साबित हुआ।
पशुपति पारस फिलहाल केंद्र की मोदी सरकार से इस्तीफा दे चुके हैं। संभवत वह लोकसभा चुनाव के लिए नए रास्ते की तलाश में है। हालांकि, बड़ा सवाल यही है कि पशुपति पारस को भाजपा ने केंद्र में मंत्री बनाया। लेकिन सीट बंटवारे में उनको अहमियत क्यों नहीं दी गई? इसका बड़ा कारण पशुपति पारस का बड़बोलापन भी है। साथ ही साथ पशुपति पारस ने जमीन पर कोई मेहनत नहीं किया। हाल में जितने भी सर्वे हुए उसमें यह साफ तौर पर निकाल कर आया कि पशुपति पारस के पास कोई वोट बैंक नहीं है। रामविलास पासवान के असली उत्तराधिकारी के तौर पर चिराग पासवान ही उभरे हैं। हाजीपुर सीट से पशुपति की चुनाव लड़ने की जिद ने भी उनके खिलाफ एक माहौल तैयार किया। केंद्र में मंत्री होने के बावजूद भी पशुपति पारस ने कुछ ऐसा नहीं किया जिसकी वजह से उन्हें भाजपा की ओर से महत्व दिया जाए।